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भोपाल। यूँ तो मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार स्वर्णिम मध्यप्रदेश होने का दावा करती नजर आती है तो वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की कुल आबादी सात करोड़ २६ लाख की तुलना में प्रदेश के पांच करोड़ ३४ लाख लोगों को एक रुपये किलो गेहंू और चावल मुहैया कराने का दावा राज्यपाल ओमप्रकाश कोहली के द्वारा दिये गये विधानसभा में अभिभाषण की बिन्दु १०९ में किया गया है, राज्यपाल द्वारा सदन में पड़े अभिभाषण में कहा कि मेरी सरकार द्वारा प्रदेश में पांच करोड़ ३४ लाख आबादी को मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना में एक रुपए किलो की दर से खाद्यान्न नमक और २० रुपए प्रतिकिलो शकर दी जा रही है, इस पर राज्य सरकार वर्ष २०१५-१६ हेतु ४१६.११ करोड़ रुपए का अनुदान प्रदान किया है तो वहीं वर्ष २०१६-१७ हेतु रुपये ७२४.११ करोड़ का प्रावधान किया गया है।
पात्र परिवारों में अंत्योदय अन्न योजना और सभी बीपीएल और २३ अन्य श्रेणी के गैर बीपीएल परिवारों को शामिल किया गया है, इन आंकड़ों से प्रदेश सरकार के सच्चाई के दावों की तो पोल खुलती ही है तो वहीं यह बात साफ जाहिर हो जाती है कि प्रदेश का हर दूसरा व्यक्ति गरीब है और वह सरकारी दावों के हिसाब से यानि राज्य की ७० फीसदी से अधिक की आबादी या तो सस्ता अनाज खरीदने के लिये बाध्य है या फिर उसकी खरीदी क्षमता होने के बावजूद उसे सस्ता अनाज देकर नकारा बनाया जा रहा है। किसी भी तेजी से बढ़ते हुए राज्य के लिये यह दोनों परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं इस मामले में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा करते हुए कांग्रेस के विधायक महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा ने कहा कि भारतीय राज्य भू सूचकांक में मध्यप्रदेश सरकार अव्वल है,
भुखमरी में मध्यप्रदेश सरकार का प्रतिशत ३०.९ है जो अपने आपमें नम्बर वन है, देश की दर इस मामले में २३ है और झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ व गुजरात भुखमरी के सूचकांक के मामले में हमसे आगे हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि प्रदेश सरकार भले ही राज्य में आनंद मंत्रालय बनाने का दावा करती हो लेकिन प्रदेश और वहीं इस प्रदेश को स्वर्णिम मध्यप्रदेश में ले जाने का ढिंढोरा पीटती है लेकिन भाजपा के १३ वर्षों के शासनकाल के दौरान राज्य की स्थिति यह है कि आबादी के ७० प्रतिशत से ज्यादा लोग भुखमरी के दौर से गुजर रहे हैं। इन आंकड़ों से इस राज्य के विकास की दावे की पोल खुलती नजर आती है कि राज्य सरकार का विकास के ढिंढोरे की हकीकत क्या है।
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