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Thursday, March 16, 2017

क्या लोकसभा के साथ होंगे प्रदेश विधानसभा के चुनाव ?

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हाल ही में सम्पन्न हुए पाँच राज्यों की विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम ने जहां नोटबंदी के बाद यूपी में कसाब, कब्रिस्तान और श्मशान जैसे जुमलों के बाद पूरा देश मोदी का मुरीद हो गया है और अब नरेन्द्र मोदी और उनके सहयोगी अमित शाह को यह दिखाई देने लगा है कि अब भाजपा उनकी जेब में पूरी तरह से सुरक्षित है शायद यही वजह है कि इस चुनाव के बाद भाजपा के भ्रष्ट नेताओं और खासकर भाजपा शासित प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की नींद अब उड़ती दिखाई देने लगी है तो वहीं यह चर्चा भी जोर पकडऩे लगी है कि गुजरात चुनाव के पहले कई नेताओं की कुंडलियों में ग्रहण योग शुरू हो सकता है, दरअसल अब भाजपा का मतलब मोदी और मोदी होने लगा है

जैसा कभी कांग्रेस में तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा था कि इंदिरा इज इंडिया बाद में क्या हुआ सबको पता है। मोदी जरूर इतिहास से सबक लेंगे और उन्हें ईश्वर को तोहफा बताने वाले जुमलों से सावधान रहेंगे उन्हें अवतार बताने वालों में होड़ शुरू होने लगी है, जो गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद बेशर्मी की हद तक जायेगी, कई नेता गले में पट्टे डाले जैसे होंगे और दिखेंगे, मोदी और भाजपा के मामले में जोडऩे में बेजोड़ नरेन्द्र मोदी शीर्षक से भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह नया इंडिया में अपने कालम न काहु से बैर में लिखते हैं कि भाजपा में कहा जाने लगा है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्यों के लोकप्रिय मुख्यमंत्री वे अपना प्रिय बनाकर दिल्ली कूच करने का हुकुम सुना सकते हैं,
राघवेन्द्र सिंह अपने कालम न काहू से बैर में लिखते हैं कि परिवर्तन होने पर जनप्रिय कम मोदी प्रिय नेताओं की सत्ता संगठन में ताजपोशी हो सकती है, वैसे जैसा कि हरियाणा और झारखंड के मुख्यमंत्री चयन में सबने देखा इस किस्म के सियासी अनुमानों को खारिज करना और खिल्ली उड़ाना मोदी का शगल रहा है, किस्से का दूसरा पहलू यह भी है कि मोदी पहले से ज्यादा झुक जाएं और सबको साथ लेकर चलें लेकिन ऐसा लगता नही है। यूपी विजय के बाद महामानव बनकर उभरे हैं और यह कद अभी और भी बड़ा होगा। मोदी भाजपा ही नहीं पूरे देश में वनमेन आर्मी की तरह हैं। प्रतिपक्ष नेताओं में राहुल गांधी सबसे आगे हैं जिन्हें वे कभी गंभीरता से नहीं लेते। शेष नेताओं की जनता में स्वीकार्यकता नहीं है और उनमें संघर्ष का माद्दा भी नहीं। महाबली मोदी बेफिक्र हो अपना रथ दौड़ाएंगे। फिर इसके तले भाजपाई दबें या विरोधी कुचले जाएं। चौंकाने वाले फैसले जीत के बाद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्साहित मोदी २०१८ के मध्य तक कुछ बड़े और जोखिम भरे फैसले ले सकते हैं। 
सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी से भी अधिक हलचल मचाने वाले। मसलन जम्मू-कश्मीर से धारा ३७० हटाने का निर्णय कर सबको चौंका सकते हैं। इसी तरह कामन सिविल कोड लागू करने का फैसला भी आ सकता है। इसके बाद २०१८ में राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ समय पूर्व लोकसभा चुनाव भी कराये जा सकते हैं। हजारों गलतियां और लाख खामियों पर इस तरह के निर्णय ऐसा सुरक्षा कवच बनेंगे कि मोदी समर्थन का तूफान सत्ता में वापसी कर सकते हैं। वैसे राम मंदिर बनाने, ३७०, कामन सिविल कोड भाजपा के एजेंडे में पहले से ही है। हमेशा उसका कहना रहा है कि लोकसभा के साथ राज्यसभा में पर्याप्त बहुम मिलते ही उनपर अमल किया जाएगा। एक विधान और एक निशान के निकट पहुंच रही भाजपा। चुनावी नतीजों के पहले एक्जिट पोल की तरह यह भी हमारा एक अनुमान है। बाकी तो २०१८ तक प्रतीक्षा ही एकमात्र विकल्प है। अभी तो हर हर और घर घर मोदी के बाद चप्पा-चप्पा भाजपा है। पंजाब अलबत्ता पंजे की पकड़ में है। गोवा में फिर मनोहर पर्रिकर की सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। मणिपुर में भले ही भाजपा सरकार नहीं बना पाई मगर जबरदस्त अद्भुत और अकल्पनीय सफलता पाई है नोटबंदी के बाद यूपी में कसाब, कब्रिस्तान, श्मशान जैसे जुमले के बाद पूरा देश मोदी का मुरीद है और भाजपा उनकी जेब में सुरक्षित है … 
फेविकोल के एक विज्ञापन में यह भी आता था पकड़े रहना, छोडऩा मत। राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह की कलम से लिखे गये अपने कालम के शीर्षक जोडऩे में बेजोड़ मोदी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं तो वहीं इसके साथ ही यह चर्चा भी जोर पकड़ती नजर आ रही है कि मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में २०१८ में होने वाले विधानसभा चुनाव अब मोदी शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह या वसुंधरा राजे के नेतृत्व में नहीं करायेंगे बल्कि इन चुनावों को या तो छ: महीने टालकर लोकसभा के साथ चुनाव कराये जायेंगे या फिर २०१८ में लोकसभा के चुनाव उसकी अवधि समाप्त होने के पूर्व कराये जा सकते हैं। खैर इसको लेकर यह अटकलें लगाई जा रही हैं या तो मोदी मध्यप्रदेश, राजस्थान या छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों को टालकर छ: महीने बाद मई २०१९ में लोकसभा चुनाव के साथ इन राज्यों की विधानसभा के चुनाव करायेंगे या फिर उसके पहले लोकसभा के चुनाव करा सकते हैं। 
इस तरह की नीति अपनाकर मोदी इन विधानसभाओं के चुनाव शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह या वसुंधराराजे सिंधिया के चेहरे पर नहीं बल्कि इन राज्यों की विधानसभा के चुनाव वह अपने चेहरे पर लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। खैर मामला जो भी हो लेकिन यूपी चुनाव के बाद इन तीनों राज्यों में राजनीतिक हलचलें जोर पकड़ती नजर आ रही हैं तो वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के दिल्ली में जाने की खबर भी जोर पकड़ती दिखाई दे रही है। मामला जो भी हो लेकिन यह जरूर है कि प्रदेश में होने वाले २०१८ में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मोदी जो रणनीति अपनाने जा रहे हैं उसके तहत मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव शिवराज के चेहरे से नहीं बल्कि मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा, हालांकि राजनीति और क्रिकेट में अनिश्चितताओं का दौर हमेशा बना रहता है तो इन राजनैतिक अफवाहों और चर्चाओं के मामले में भी कोई भविष्यवाणी अभी से नहीं की जा सकती लेकिन यह जरूर है कि यूपी चुनाव के बाद अब प्रदेश के नेतृत्व पर कई तरह के सवाल खड़े होते नजर आ रहे हैं और कब क्या हो जाए यह कहा नहीं जा सकता है।

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