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Tuesday, May 2, 2017

लड़की ने शादी के लिए दिया ऐसा 'विज्ञापन', देख हैरान रह जाएंगे आप

TOC NEWS // 02 MAY 2017

नई दिल्ली: बंगाल में शादी के लिए एक बंगाली लड़की ने विज्ञापन में एक अनोखी मांग करके इतिहास ही रच दिया है। अमूमन वर और वधू की तलाश वाले विज्ञापनों में चेहरा मोहरा, शिक्षा और जाति इत्यादि की बात होती है या कई बार ऐसे विज्ञापनों में ख़ान पान की आदतों के बारे में भी जानकारी दी जाती है। लेकिन इस बंगाली लड़की का विज्ञापन सबसे अलग और अनूठा है।

अपनी बहन की शादी के लिए इस बंगाली लड़की के भाई ने राजनीतिक विचारधारा वाले कम्युनिस्ट दूल्हे की इच्छा जताई है। यह विज्ञापन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के मुख्यपत्र गणशक्ति में प्रकाशित हुआ है। विज्ञापन में लिखा है कि ऐसे वर की तलाश है जो वामपंथी गतिविधियों में सक्रिय हो। यह विज्ञापन कोलकाता के दीप्तानुज दासगुप्ता ने छपवाया है। उन्हें अपनी 25 वर्ष की एम.ए संस्कृत, बी.एड पास बहन के लिए वामपंथी दूल्हा चाहिए।
उनका मानना है कि पश्चिम बंगाल का राजनीतिक माहौल भले ही बदल गया हो बावजूद ऐसे कई परिवार हैं जो वामपंथ में भरोसा रखते हैं और वह एक ऐसे ही परिवार से संबंध रखते हैं। दीप्तानुज ने बताया कि उनकी बहन को उनके परिवार ने तब गोद लिया था जब वह एक साल की थी। दीप्तानुज का कहना है कि वह किसी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं, लेकिन खुद को ‘मार्क्सवाद का छात्र’ मानते हैं। शादी के लिए रोज विज्ञापने देखते होंगे।
दीपात्नुज दासगुप्ता ने बीबीसी से बताया, "हम मानते हैं कि वामपंथी लोग संकीर्ण विचारधारा के नहीं होते, जीवन के हर क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी होती है, वे कुछ बड़ा सोचते हैं। हमारे घर का वातावरण ऐसा ही है। ऐसे में अपन बहन के लिए हमें वैसा लड़का चाहते हैं जो ख़ुद को वामपंथी बताने में गर्व महसूस करता हो, ख़ासकर वैसे दौर में जब हर तरह वामपंथ को खत्म माना जा रहा है।"
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर रवि कुमार कहते हैं, ‘मैंने भी पहली बार इस तरह के किसी वैवाहिक विज्ञापन के बारे में सुना है जिसमें किसी राजनीतिक विचारधारा के दूल्हे से शादी करने की इच्छा प्रकट की गई है। लेकिन अगर ऐसा है तो यह समाज के सांस्कृतिक विकास का लक्षण है।’
जबकि एक दूसरे समाजशास्त्री विवेक कुमार रवि के मत से सहमत नहीं हैं। वह मानते हैं कि इस तरह का विज्ञापन एक अपवाद है। भारतीय समाज में अभी कोई बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं आया है। इसीलिए इस विज्ञापन को विकास का लक्षण नहीं माना जा सकता है। वैसे भी यह विज्ञापन वामपंथियों की किसी साजिश का हिस्सा ज्यादा लगता है खुद को प्रासंगिक सिद्ध करने के लिए।’

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