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मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दावा करती है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है. मुख्यमंत्री सचिवालय से लेकर प्रदेश के अधिकांश मलाईदार पदों पर, ऐसे आईएएस अधिकारी काबिज हैं, जिन के खिलाफ एंटी करप्शन एजेंसी लोकायुक्त में भ्रष्टाचार की जांच चल रही है. यही नहीं लोकायुक्त संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 26 आईएएस अफसरों के साथ ही दो मंत्रियों, एक पूर्व मंत्री सहित 2 हजार 7 सौ नेता और अफसर भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे हैं.
नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर मध्यप्रदेश भले ही तीसरे स्थान पर है, लेकिन यहां के हर चौथे अधिकारी-कर्मचारी पर कोई न कोई आरोप है. पिछले 10 साल से जिस तरह के मामले उजागर हो रहे हैं, उनसे इतना तो साफ है कि चाहे नौकरशाही हो या फिर अन्य अधिकारी-कर्मचारी सबके सब भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं. पंचायत के सचिव से लेकर सरकार के बड़े अफसरों तक के यहां पड़े छापों में जो सच्चाई सामने आई है, वह आंखें खोलने के लिए काफी है. इस तरह के आईएएस, आईएफएस, आईपीएस अधिकारियों, कर्मचारियों और राज्य स्तर के अधिकारियों की एक लंबी सूची है.
आंकड़ों के मुताबिक आईएएस अफसरों में मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल, राकेश श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव मनोहर अगनानी, एम.के.सिंह, प्रवीण गर्ग, प्रवीण कृष्ण, शिखा दुबे, अजीत केसरी, विवेक पोरवाल, नरेश पाल, बसंत कुर्रे, संतोष मिश्रा, एस.एस.कुमरे, अरुण पांडे, विशेष गढ़पाले, आकाश त्रिपाठी, अखिलेश त्रिपाठी, सभाजीत यादव, विकास नरवाल, रमेश थेटे, पीएल सोलंकी शामिल हैं. इनके खिलाफ पद का दुरुपयोग कर लाभ पहुंचाने, अनियमितता बरतने के अलावा दवा खरीदी, किसानों की जमीन हड़पने से लेकर मंदिर की जमीन बेचने तक के मामलों की जांच चल रही है.
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