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Saturday, November 11, 2017

लक्ष्य-भेदन हेतु नेतृत्व की सम्यक दृष्टि आवश्यक : डा. रवीन्द्र अरजरिया


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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
सरकारी तंत्र की पैचीदगी भरी औपचारिकताओं के मध्य आम आवाम पिसने लगा है। जटिलताओं को सहजता की ओर ले जाने के प्रयासों का कहीं दूर तक अता-पता नहीं चल रहा है। ऐसे में सामाजिक मापदण्डों को पूरा करने की चुनौतियां, नये रूप धारण करने लगीं हैं। प्रशासनिक व्यवस्था को नूतन आयाम देने की कवायत चलने लगी है। बदलते फैशन की तरह सरकारों के परिवर्तित होते ही उत्तरदायी लोग अपनी सोच को समाज के ऊपर थोपने का प्रयास करने लगते हैं। स्थानों, योजनाओं, प्रस्तावों के नामों से लेकर रंगों के उपयोग तक में बदलाव किये जाने लगते हैं। स्वयं को, पार्टी को, कथित आदर्शों को स्थापित करने की मुहिम शुरू हो जाती है। विरोधियों की कमियों को रेखांकित करने से लेकर स्वयं के दस्तावेजी विकास का ढिंढोरा पीटा जाने लगता है।
अपने खास लोगों को लाभ पहुंचाने हेतु तरीके निकालने, स्वयं और कथित रूप से पार्टी का भविष्य सुरक्षा करने हेतु वोट बैंक में इजाफा करने तथा विरोधियों को समाप्त करने हेतु तुष्टीकरण की नीतियों को तंत्र का अघोषित मूल कार्य निरूपित कर दिया जाता है। कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण को पहुंचा दिया जाता है। स्थानीयस्तर पर तैनात आधिकारियों के स्व-विवेकी निर्णयों की लगाम सत्ताधारियों के सिपाहसालारों के हाथों में पहुंच जाती है।
सामाजिक परिदृश्य का यह स्वरूप सनै-सनै विकसित होता जा रहा है। विचार-समुद्र में उठ रहे ज्वार को भाटे तक पहुंचाने का क्रम दस्तक देने लगा। चूंकि इस समय हम बुंदेलखण्ड प्रवास पर थे, सो दस्तक की आहट को कपाटों के खोलने तक पहुंचाने का उद्योग भी यहीं करना था। अचानक जेहन में आईएएस अधिकारी राम विशाल मिश्रा का चेहरा उभरा। उनकी सेवा निवृत्ति में कुछ ही समय बाकी था। प्रशासनिक दायित्वों की क्रीज पर लम्बे समय से जमे श्री मिश्रा से दर्शकों की मनोभूमि जानने का निश्चय किया। यद्यपि वे मित्रता के आगोश में उन्मुक्त अट्ठास करने वाले आत्मीयजन है, फिर भी समय और स्थान निर्धारित कर हम उनके कार्यालय पहुंचे।
हमारे आगमन की पूर्व सूचना उनकी सुरक्षा से लेकर सेवा में लगे कर्मचारियों को दे दी गयी थी। सो सम्मानपूर्वक उनके चैम्बर तक पहुंचाया गया। आत्मिक मिलन और औपचारिकताओं के उपरान्त विचार-समुद्र के ज्वार पर संवाद केन्द्रित हो गया। सेवा काल के अनुभवों की बानगी प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि लक्ष्य-भेदन हेतु नेतृत्व की सम्यक दृष्टि आवश्यक होती है तभी सफलता की पुष्पमाला से कण्ठ सुशोभित हो सकेगा। पारदर्शी नीतियां, स्पष्ट संवाद, तर्कपूर्ण निर्णय जैसे कारकों को अंगीकार करने से, जहां दायित्वबोध को पूर्ण करने की संतुष्टि मिलती है वहीं कार्य की व्यस्तता बोझ न बनकर योग बन जाती है।
विषय को विस्तार में पहुंचने से रोकने के लिए हमने बीच में ही टोकते हुए कहा कि व्यक्तिगत सोच को व्यवहार में परिणत करने के दौरान संविधान की व्यवस्था को कैसे आत्मसात करते हैं। उन्होंने रामचरित मानस की चौपाइयों का सहारा लेते हुए कहा कि सहजता ही धर्म है और असहजता अधर्म। ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों को एक साथ सक्रिय करके सफलता के सिंहासन पर आसीत हुआ जा सकता है। लक्ष्य भले ही सामाजिक, पारिवारिक, प्रशासनिक या आध्यात्मिक दायित्वों का हो, यही हमारे जीवन का मूल मंत्र है। चर्चा चल ही रही थी कि उनके कार्यालय के बाहर कुछ शोर गूंजा। पता चला कि ग्राम प्रधान की अगुवाई में ग्रामीणों ने कोटेदार के कथित रवैये के प्रति विरोध दर्ज कराने हेतु यह रूप अख्तियार किया है।
जिलाधिकारी की गरिमा से उन्होंने तत्काल जिला पूर्ति अधिकारी को बुलाकर प्रकरण के निदान का दायित्व सौंपा। अधिकारी ने वापिस आकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने सभी प्रदर्शनकारियों को बुलाया और इस दिशा में तत्काल कार्यवाही करने का आश्वासन दिया। प्रशासनिक नियमों से अवगत कराया। नागरिकों के कर्तव्यों और दायित्वों से ओत-प्रोत एक प्रवचन भी दे डाला। प्रदर्शनकारी वापिस चले गये। इस दौरान हम साक्षी भाव से उनकी कथनी और करनी की समीक्षा करते रहे। प्रशासनिक अधिकारी की बाध्यता, परिस्थितियों की चुनौतियां और जन-अपेक्षाओं का एक साथ दिग्दर्शन हुआ। ज्वार काफी हद तक भाटे में बदल चुका था।
फिर भी सत्ताधारियों की नीतियों-रीतियों और तंत्र को अपनी सोच के अनुरूप ढालने के प्रयासों का मूल तत्व समाधान की परिधि से बाहर ही था। इस संदर्भ में प्रश्न करते ही उन्होंने अंतरिक्ष में घूरते हुए मंद-मंद मुस्कुराना शुरू कर दिया। हम समझ गये कि सेवा काल के इस अंतिम पडाव पर वे भी साक्षी भाव में सांसों का कारोबार कर रहे हैं। सो स्वल्पाहार के उपरान्त पुनः मिलने के वायदे के साथ विदा ली। इस बार बस इतना ही। अगली बार एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।   
Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
for cont. -
ravindra.arjariya@gmail.com

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