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Wednesday, February 14, 2018

शिवसेना की धमकी के आगे झुकी बीजेपी ? बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने गंभीरता से लिया

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शिवसेना की धमकी लगता है असर दिखाने लगी है. शिवसेना ने 2019 में लोकसभा और उसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का एलान किया है. अब साफ दिख रहा है कि शिवसेना के एकला चलो रे ऐलान को बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है.

शायद सही वजह है कि शिवसेना को मनाने की कोशिश शुरू कर दी गई हैं. बीजेपी चाहती है कि एनडीए से बाहर निकलने से पहले उसे मना लिया जाए.
करीबी सूत्रों से पता चला है कि बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में साथ लड़ने के लिए शिवसेना को 144 सीटों का प्रस्ताव दिया है. राज्य विधानसभा में 288 सीटें हैं और बीजेपी ने आधी पर शिवसेना को लड़ाने का प्रस्ताव दिया है. 2014 लोकसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने साथ लड़ा था लेकिन विधान सभा चुनाव से ठीक पहले 25 साल पुराने शिवसेना- बीजेपी गठबंधन की गांठ खुल गई थी. तब बीजेपी 144 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी पर शिवसेना ने इतनी सीटें देने से इनकार कर दिया था.

शिवसेना पुराना फॉर्मूला चाहती थी

गठबंधन टूटने से पहले शिवसेना विधानसभा में 171 और बीजेपी 117 सीटों पर लड़ती रही थी. लेकिन लोकसभा में भारी जीत से उत्साहित बीजेपी ने 144 सीटों पर लड़ने की मांग कर दी. इसे शिवसेना ने खारिज कर दिया और दोनों पार्टियों ने अलग अलग चुनाव लड़ा.
बीजेपी को 123 सीटें मिलीं जबकि शिवसेना ने 63 सीटें हासिल कीं. हालांकि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत के लिए जरूरी 145 सीटें नहीं मिलीं पर चुनाव बाद दोनों पार्टियां साथ आ गईं और दोनों अब सरकार में हैं.

क्या कहती है शिवसेना

बीजेपी के 144 सीटों के प्रस्ताव पर क्विंट ने शिवसेना नेताओ से बात की. 'शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा की उन्हें किसी ऑफर के बारे में कोई जानकारी नहीं है. रहा सवाल 2019 के चुनावों का, तो शिवसेना हर हाल में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी '

शिवसेना के फैसले से बीजेपी में क्यों घबराहट

लोकसभा चुनाव में मुश्किल से साल भर रह गए हैं. ऐसे में एनडीए में शामिल दलों ने बीजेपी के रवैये को लेकर नाराजगी जताई है. लेकिन शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ने का बिगुल बजाकर बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है. शिवसेना के बगैर महाराष्ट्र में बीजेपी की राह बहुत मुश्किल हो सकती है. 2014 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना को 21 परसेंट वोट मिले थे. दोनों पार्टियों ने मिलकर राज्य की 48 लोकसभा में से 42 सीटें जीतीं थीं. जिसमें शिवसेना को 18 और बीजेपी को 23 सीटें मिलीं थीं.

एनसीपी-कांग्रेस साथ आए तो दोगुनी मुसीबत

दरअसल एनसीपी कांग्रेस का साथ आना और शिवसेना का अलग होना बीजेपी के लिए दोहरी मुश्किल है. जानकारों के मुताबिक अगर ऐसा होता है तो इन हालात में बीजेपी को अपनी मौजूदा सीटें बचाने के लिए कोई नया पैंतरा चलना होगा वरना जानकारों के मुताबिक बीजेपी की मुश्किलें तय हैं.

2014 में बीजेपी आधी सीटें चाहती थी

महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में रहने वाली शिवसेना 2014 के पहले तक विधानसभा की 171 तो बीजेपी 117 सीटों पर चुनाव लड़ा करती थी. लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत के बाद बीजेपी ने शिवसेना से बराबर सीटों की मांग की.
उस वक्त शिवसेना ने इतनी सीटें देने से इंकार कर दिया, जिसकी वजह से बीजेपी ने शिवसेना से 25 साल पूराना गठबंधन तोड़ लिया था. बीजेपी के लिए ये फैसला फायदे का सौदा साबित हुआ और वो 123 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी साबित हुई.
लेकिन तब हालात अलग थे. उस वक्त महाराष्ट्र के सभी प्रमुख राजनैतिक पार्टियों ने चुनाव अलग अलग लड़ा था. पर अब कांग्रेस और एनसीपी ने साथ लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में शिवसेना के बिना चुनाव मैदान में उतरना बीजेपी के लिए भी बड़ा जोखिम भरा होगा.

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