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Sunday, January 20, 2019

चैनलों की बाढ़ में डूबती पत्रिकारिता और उतराती इलेक्ट्रॉनिक मीडिया


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# नवीन पुरोहित का विशेष लेख
TOC NEWS @ www.tocnews.org

भोपाल। बीते साल जुलाई में, केबल ऑपरेटरों द्वारा ज़ाकिर नाइक के पीस टीवी के प्रसारण के खिलाफ शिकायतें मिली थी। केबल नेटवर्क के माध्यम से प्रसारण के लिए पीस टीवी के पास सरकार से वैध अनुमति नहीं थी फिर भी प्रसारण हो रहा था। डेटा पर एक नज़र से पता चलता है कि टीवी चैनलों की प्रसारण से संबंधित निगरानी के लिए दिशानिर्देश मौजूद हैं, कार्यान्वयन बुरी तरह से विफल हो गया है।


अवैध टीवी चैनल की रोकथाम के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश मौजूद हैं, लेकिन अब तक क्रियान्वयन न के बराबर रहा है। बांग्लादेश में आईएसआईएस के आतंकी हमलों के बाद, विवादास्पद उपदेशक जाकिर नाइक और उनके पीस टीवी जैसे चैनल निगाह में आये और टीवी चैनलों की वैधता और उन परपर सामग्री की निगरानी पर नए सिरे से बहस शुरू हुई है। सरकार द्वारा लोकसभा में साझा की गई जानकारी बताती है कि विभिन्न स्थानीय केबल नेटवर्क्स में सैकड़ों चैनल बिना सूचना एवं प्रसारण की अनुमति के, बगैर लाइसेंस के धड़ल्ले से चल रहे है। हालांकि निगरानी और विनियमन के लिए दिशा-निर्देश मौजूद हैं, उपलब्ध डेटा और जानकारी से पता चलता है कि कार्यान्वयन पूर्णतः विफल रहा है।

केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995, केबल नेटवर्क पर टीवी चैनलों के प्रसारण और पुनः प्रसारण को नियंत्रित करता है। प्राधिकृत अधिकारी (जिला मजिस्ट्रेट, अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में) अधिनियम के तहत, जब भी केबल अधिनियम, 1995 का उल्लंघन होता है, कार्रवाई करने का अधिकार दिया जाता है। केबल टीवी नेटवर्क नियम, 1994 के तहत, किसी भी केबल ऑपरेटर को अपनी केबल सेवा में किसी भी टीवी प्रसारण या चैनल को शामिल करने या शामिल करने की अनुमति नहीं है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा भारत के क्षेत्र के भीतर देखे जाने के लिए पंजीकृत नहीं किया गया है।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय दो प्रकार से टीवी चैनलों को अनुमति देता है यानि सेटेलाइट नॉन-न्यूज एंड करंट अफेयर्स टीवी चैनल्स ’और  न्यूज एंड करंट अफेयर्स टीवी चैनल्स।  किसी भी सैटेलाइट टीवी चैनल को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी की गई अपलिंकिंग / डाउनलिंकिंग पॉलिसी के दिशानिर्देशों के अनुसार ही प्रसारित किया जा सकता है। सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा अनुमति प्राप्त कंपनियां सुरक्षा एवं एडवर्टाइजमेन्ट एवं प्रोग्राम कोड ऑफ कंडक्ट की शर्तों से बंधी होती है , जिनमें विशेष सुरक्षा संबंधी शर्तें भी शामिल हैं।

इन कंपनियों को हर साल लायसेंस रिन्यूअल की फीस जमा करनी होती है, अपना ऑडिट जमा करना होता है, अपना इंस्पेक्शन करबाना होता है। ऐसी ही अनुमति प्राप्त कंपनियों के कुल 892 निजी सैटेलाइट टीवी चैनल वर्तमान में भारत में संचालित करने की अनुमति है.

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30 जून 2018 तक, कुल 892 निजी उपग्रह टीवी चैनलों को भारत (या तो अपलिंक या डाउनलिंक) से संचालित करने की वैध अनुमति है। ताजा और पुष्ट आकंड़े www.mib.gov.in पर परमिटिड टीवी चैनल्स के सेक्शन में उपलब्ध है। इन्हें आसानी से गूगल सर्च भी किया जा सकता है।

अब किसी भी चैनल का विवरण सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा टीवी सेवाओं को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से हालिया लांच किए गए ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल पर भी उपलब्ध है। हालांकि अब तक 1031 चैनलों को अनुमति दी गई है, लेकिन 139 चैनलों की अनुमति रद्द कर दी गई है।

इसे बिडम्बना ही कहेंगे कि जहां एक छोटे से छोटा अखबार RNI में पंजीकृत होकर ही अपना अखबार प्रकाशित करता है या यों कहें कि रजिस्टर्ड तो होता ही है भले ही उसकी प्रकाशन संख्या कम हो लेकिन वहीं दूसरी तरफ प्रसारित टीवी चैनलों की बड़ी संख्या सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में पंजीकृत ही नही है और न ही उनके पास न्यूज़ चैनल चलाने की किसी भी प्रकार की अनुमति है। कुल मिलाकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बढ़ती भीड़ और उसके पराभव का ये एक बहुत बड़ा कारण है।

गौरतलब है कि एक न्यूज चैंनल संचालित करने बाली कंपनी के पास सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग लायसेंस, टेलीपोर्ट का डब्ल्यूपीसी सर्टिफिकेट और एनओसीसी सर्टिफिकेट होना अत्यंत आवश्यक है बिना इनके कोई भी न्यूज़ चैनल किसी भी केबल या डीटीएच ऑपरेटर द्वारा प्रसारित नहीं किया जा सकता।बिना इन अनुमतियों के कोई भी चैनल ब्रॉडकास्ट ऑडियन्स रिसर्च काउंसिल (BARC) में रजिस्टर्ड नहीं हो सकता। केंद्र सरकार ने नवंबर 2017 में यह स्पष्ट कर दिया है कि वह उन्ही न्यूज़ चैनल्स को विज्ञापन जारी करेगी जो बार्क में रजिस्टर्ड हों और जिनकी TRP शून्य न हो।

नैतिकता, शुचिता, जिम्मेदारी और कर्व्यनिष्ठा की दुहाई देने बाली मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संक्रमणकाल से गुजर रही है। संविधान के स्वघोषित चौथे स्तंभ में पड़ रही ये दरारें कहीं पत्रिकारिता के इस स्तंभ को ही धराशायी न कर दें इस पर ध्यान देने की गंभीर आवश्यकता है।

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