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Tuesday, March 19, 2019

गोवा के सीएम सावंत ने पर्रिकर से सीखी थी राजनी‎ति, आज संभाल रहे राजनी‎तिक ‎विरासत

प्रमोद सावंत ने मनोहर पर्रिकर के लिए इमेज परिणाम
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मडगांव: गोवा में प्रमोद सांवत ने मनोहर पर्रिकर की विरासत संभाली है। बता दें ‎कि 46 वर्षीय सावंत गोवा में भाजपा के अकेले विधायक हैं, जो आरएसएस काडर से हैं। गोवा के सीएम बनने से पहले वे पार्टी के प्रवक्ता और गोवा विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं। तो 2017 में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनी, तब उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था।
वह किसी भी विधानसभा में सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे। वह नेतृत्व के लिए किस तरह से पसंदीदा लीडर थे, इस बात को इससे ही समझा जा सकता है कि जब भी पर्रिकर के विकल्प की बात की गई तो उनका नाम प्रमुख तौर से ‎लिया गया। पर्रिकर की बीमारी की खबर के बाद प्रमोद सावंत बीते साल अक्टूबर आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत से भी मिले थे। कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने अपनी सीएम दावेदारी की बात की थी। माना जाता है कि पर्रिकर से ही उन्होंने राजनीति सीखी थी और वह उनकी पसंद भी थे।
सूत्रों के अनुसार पार्टी के प्रति सावंत की वफादारी उन्हें पर्रिकर के उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित करती है। पार्टी के एक सूत्र ने बताया, सावंत की पार्टी के प्रति वफादारी ऐसी रही है कि उन्होंने अपनी निजी आकांक्षाओं को हमेशा पार्टी से पीछे रखा। इसके अलावा अगले 10 से 15 सालों के लिए कोई युवा नेतृत्व तलाशने की बीजेपी की कोशिश भी उनके तौर पर पूरी हुई है। इसके अलावा पर्रिकर की इच्छा यही थी कि अगला सीएम भाजपा विधायकों में से कोई हो तो इसे भी सावंत के जरिए पूरा किया गया है।
सावंत गोवा में बिचोलिम तालुका के एक गांव कोटोंबी के रहने वाले हैं। सावंत का बचपन से आरएसएस से संबंध रहा है। आरएसएस की ओर झुकाव के कारण ही हिंदुत्व की विचारधारा के प्रति उनमें समर्पण आया। उनके पिता पांडुरंग सावंत पूर्व जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। वह भारतीय जनसंघ, भारतीय मजदूर संघ के सक्रिय सदस्य थे। भाजपा के वफादार कार्यकर्ता के तौर पर उनकी पहचान थी।
पूर्व आरएसएस संघचालक सुभाष वेलिंगकर ने बताया कि सावंत कुछ समय तक आरएसएस में रहे हैं। उनकी राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी थी। इसलिए उनको भाजपा में शामिल कर लिया गया। वेलिंगकर ने बताया, उन्होंने बिचोलिम तालुका आरएसएस शाखा के बौद्धिक प्रमुख के तौर पर अपनी सेवा दी थी। लेकिन उन्होंने आरएसएस की गतिविधियों में ज्यादा समय नहीं दिया क्योंकि जल्द ही वह राजनीति में आ गए थे।

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