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Sunday, April 28, 2019

सहज संवाद / संविधान की रक्षा के राग पर गूंज रहे हैं गठबंधनी तराने

Dr. Ravindra Arjariya

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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश में चुनावी घमासान तेज होता जा रहा है। वायदों और दावों की कमानें खिंचतीं चली जा रहीं हैं। दलगत नीतियों को तिलांजलि देकर पार्टियां अपने गठबंधन को मजबूत करने में जुटी हैं ताकि जातिगत एवं परम्परागत वोटबैंक संयुक्त प्रत्याशी के पक्ष में हस्तांतरित किया जा सकें। खासकर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन तो इस दिशा में बेहद सावधानी बरत रहा है ताकि यादव, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछडा वर्ग और जाट समाज के मतदाताओं को अन्य के पार्टियों के पक्ष में जाने से रोका जा सके।
इस गठबंधन ने भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी कोसना शुरू कर दिया है। चुनावी मंचों से गूंजना वाली आवाजों ने अनेक स्थानों पर तो मर्यादाओं की सीमा को ही तार-तार कर दिया। निर्वाचन आयोग ने स्वयं संज्ञान लेकर तथा विभिन्न शिकायतों पर कार्यवाही करते हुए देश के वातावरण को व्यक्तिगत द्वेष तक पहुंचने से बचाया है। विचार चल ही रहा था हमारी गाडी ने लखनऊ में प्रवेश किया। ट्राफिक की अधिकता से वाहन रेंग-रेंग कर चल रहे थे। तभी हमारे बगल में चल रही कार में हमें अपने पुराने मित्र प्रद्युम्न वर्मा का चेहरा नजर आया।
मोबाइल से उनका नम्बर डायल कर दिया। उन्होंने फोन उठाया तो हमने बगल में देखने के कहा। तब तक हम हजरतगंज चौराहे पर पहुंच चुके थे। रेड सिंग्नल होने की वजह से दौनों गाडियां रुक गईं। उन्होंने अपनी गाडी से निकल कर हमारी गाडी में बैठते हुए बेहद खुशी जाहिर की। हम दौनों ही लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान हबीबुल्लाह होस्टल में रहते थे। अध्ययन के बाद हमारी दिशायें बदल गईं थीं। हमने पत्रकारिता का क्षेत्र चुना और वह राजनीति में चले गये। बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेताओं की श्रेणी तक पहुंच चुके प्रद्युम्न वर्मा ने लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कारों का परिचय देते हुए ‘सर’ के संबोधन के साथ अभिवादन किया।
आत्मीयता भरे सम्मानजनक व्यवहार से दिल बाग-बाग हो उठा। उन्होंने अपने आवास पर चलने की जिद की। अधिकार पूर्ण निवेदन के आगे अपने को असहाय पाते हुए हमें स्वीकृति प्रदान करना पडी। अपने ड्राइवर को प्रद्युम्न के द्वारा दिखाये जाने वाले मार्ग पर चलने का आदेश दिया। उनकी गाडी हमें फौलो कर रही थी। कुछ समय बाद हम उनके सुव्यवस्थित आवास पर थे। अतिथि सत्कार का पहला चरण पूरा होने के उपरान्त हमने उनसे बसपा-सपा-रालोद के गठबंधन का आधार जानने की कोशिश की। भारतीय जनता पार्टी की बिन्दुवार आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी ने संविधान की रक्षा के लिए ही मान, सम्मान और सिद्धान्तों को हाशिये पर भेजकर गठबंधन किया है और ऐसे ही सपा और रालोद के भी विचार हैं।
बाबा साहेब के आदर्शों के साथ खिलवाड नहीं होने दिया जायेगा। हर हालत में हम संविधान के मूल स्वरूप को बचाकर ही रहेंगे। हमने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा कि भाजपा के अलावा आपका गठबंधन तो कांग्रेस को भी कोस रहा है। गर्व से सीना चौडा करते हुए उन्होंने कहा कि देश के लिए जितनी घातक भाजपा है, उतनी ही कांग्रेस भी। दलगत स्वार्थ पूर्ति हेतु यह दौनों पार्टियां राष्ट्रीय हितों के साथ खिलवाड कर रहीं हैं। लम्बे समय तक केन्द्र को अपनी मनमर्जी से चलाने वाले इन्ही दलों के कारण ही देश की आन्तरिक समस्याओं का दावानल ठहाके लगा रहा है और बाह्य ताकतें घमका रहीं हैं।
वास्तविकता तो यह है कि हम चारों ओर से घिर गये हैं। गरीबों के हितों से लेकर पिछडों को समस्याओं के समाधान तक को निरंतर अनदेखा किया जाता रहा है। उनकी बात समाप्त होते ही हमने बसपा पर टिकट बेचने के लगने वाले आरोपों को प्रश्न बनाकर उछाल दिया। अक्सर लगने वाले इन आरोपों को सिरे से नकारते हुए उन्होंने कहा कि सर, आप तो जानते ही हैं कि विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में भी तो इस तरह के मनगठन्त आरोपों का बाजार गर्म होता था।
जब आप छात्रसंघ चुनाव में खडे हुए थे तब भी तो तरह-तरह की अफवाहें फैलाई गईं थीं। अतीत की गवाही पर वर्तमान को तौलने वाले उनके प्रयास पर हम भी हंसे बिना न रह सके। उनके मुखमण्डल पर विजयी मुस्कान नाचने लगी। चर्चा को गम्भीरता का आवरण पहनाते हुए हमने कहा कि लोकसभा के चुनावी परिणाम आने में अभी समय है। यदि आपके विजयी होने वाले दावों को मान भी लिया जाये कि सदन में आपका गठबंधन सम्मानजनक संख्या में उपस्थित होगा। तब भी आपकी सरकार तो नहीं बन सकती, फिर क्या होगा।
समाने वही भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां या फिर कांग्रेस और उसका कुनवा। किसी एक के सहारे से ही तो वैतरणी पार करने की बाध्यता होगी। एक और राष्ट्रवाद का नारा देने वाला समूह और दूसरी ओर अम्बेडकर साहब के मनाकर देने पर भी संविधान में धारा 370 और 35ए जुडवाने वाली जमात। तब क्या करेगा आपका यह गठबंधन। प्रश्न की गहराई और तार्किकता को गोलमोल उत्तरों की ढाल से रोकने का प्रयास करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह की गम्भीर स्थिति में हमेशा ही हमारी पार्टी प्रमुख लोकतांत्रिक तरीके से सभी की राय लेकर निर्णय लेतीं है।
इस मुद्दे पर तो सपा और रालोद के साथ विचार विमर्श करके ही निर्णय लिया जायेगा। फिलहाल तो हम देश के संविधान को बचाने के मिशन पर लगे हुए हैं। घडी पर नजर पडते ही हम चौंक गये। शाम के चार बज रहे थे और पांच बजे हमें एक अतिविशेष व्यक्ति से मिलना था। सो हमने चर्चा को पूर्ण विराम देते हुए पुनः मिलने के आश्वासन के साथ उनसे विदा ली। हमें लगा कि यहां तो संविधान की रक्षा के राग पर गूंज रहे हैं गठबंधनी तराने। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जयहिंद।

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