कोरोना वायरस संक्रमण के कारण देश भर में चल रहा लॉकडाउन जब तीन मई तक के लिए बढ़ाया गया था तो मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर हजारों प्रवासी मजदूर इकट्ठा हो गए थे। यहां वे अपने घर जाने देने की मांग कर रहे थे। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज भी की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उद्धव ठाकरे को फोन कर हालात की जानकारी ली थी। गृह मंत्री ने मुख्यमंत्री से कहा था कि इससे कोरोना वायरस के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर होगी। प्रशासन को ऐसे हालातों से निपटने के लिए सतर्क रहना होगा। तब सरकार के प्रचारकों ने अपने हिसाब से जो कहा किया और जिसका प्रचार हुआ उसके मुकाबले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के विधायक बेटे के ट्वीट की चर्चा कम हुई।
आदित्य ठाकरे ने ट्वीट कर कहा था, ‘केंद्र सरकार द्वारा मजदूरों के घर वापस जाने की कोई व्यवस्था नहीं करने के कारण बांद्रा या सूरत में हंगामा हुआ। वे खाना या आश्रय नहीं चाह रहे हैं। वे अपने घर वापस जाना चाह रहे हैं।’ सूरत की खबरों और आदित्य ठाकरे के ट्वीट की चर्चा अखबारों में कम हुई। अफवाह फैलाने के लिए एक पत्रकार को गिरफ्तार भी किया गया जबकि ट्रेन चलाने की योजना थी और अफवाह फैलने या भीड़ जुटने का कारण पत्रकार की खबर के अलावा भी बहुत कुछ था। कार्रवाई सिर्फ अफवाह फैलाने के लिए हुई। भीड़ जुटने, सोशल डिसटेंसिंग का पालन नहीं होने के लिए हुई या नहीं मैं नहीं जानता।
अब दूसरा लॉकआउट कल खत्म होने वाला है। तीसरा शुरू भी होगा। आज अखबारों में खबर है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलीं जबकि अखबारों में खबर थी कि ट्रेन नहीं चलेगी श्रमिकों को बसों से भेजा जाएगा। मैंने कल लिखा भी था कि ट्रेन नहीं चल सकती है तो मजदूरों को विमान से भेजा जाए। हजारों किलोमीटर बस से भेजने का कोई मतलब नहीं है। और वही हुआ ट्रेन चली। गुपचुप तरीके से। इसकी जरूरत क्यों पड़ी? यह स्थिति क्यों बनी? हैदराबाद में फंसे झारखंड के लोगों या कुछ खास मजदूरों के लिए सुविधा पहले क्यों? यह सब किस आधार पर तय किया गया। क्या पहले बता दिया जाता तो लोग पहले राहत नहीं महसूस करते। गोपनीय क्यों रखा गया। सवाल जवाब नहीं देती उसे पता है ऐसे सवाल उसके समर्थक नहीं करते।
लॉकडाउन में फंसे लोगों के लिए सरकार ने ‘श्रमिक स्पेशल’ ट्रेन चलाने की मंजूरी दी। इस विषय पर जारी सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि लॉक डाउन के कारण भिन्न स्थानों पर फंसे प्रवासी मजदूरों, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों, छात्रों और अन्य व्यक्तियों के लिए यह ट्रेन शुरू की गई और ये ट्रेनें एक स्थान से दूसरे स्थान तक के लिए होंगी और संबंधित राज्य सरकारों के आग्रह पर शुरू की गई हैं। अब सवाल उठता है कि ऐसा पहले क्यों नहीं किया गया? क्या लॉकडाउन से पहले इसपर नहीं सोचा जाना चाहिए था। या उसके बाद भी इतने दिनों तक इस मामले से आंखे मूंदे रहना सरकार की नालायकी नहीं है। वह भी तब जब कुछ राज्यों के फंसे हुए लोगों के जाने की व्यवस्था पहले भी की गई है।
अखबारों ने पहले की खबरें नहीं छापी, लोगों की परेशानी नहीं बताई, सरकार ने ध्यान नहीं दिया और लोग बिलावजह परेशान हुए। मैं पहले भी लिख चुका हूं कि जब 550 लोग संक्रमित थे तो लॉक डाउन कर दिया गया और अब 31,500 से ज्यादा लोग संक्रमित हैं तो 40 दिन से ज्यादा लोगों को परेशान करके अब घर पहुंचाया जा रहा है। इस दौरान उनके पैसे भी खर्च हो गए होंगे। कुल मिलाकर सरकार ने ज्यादा परेशान करके काम राहत दी और आज के अखबारों में खबर ऐसे छपी है जैसे सरकार ने बहुत उदारता दिखा दी या लॉक डाउन का कोई लाभ हुआ इसलिए इन्हें जाने दिया जा रहा है। इन्हें लॉक डाउन के बाद भी ऐसे ही भेजा जा सकता था और ना ये तब संक्रमित थे ना अब हैं। जो जांच तब हो सकती थी वही अब हुई होगी। या नहीं हुई होगी। जो जांच तब नहीं हुई वह अब भी नहीं हुई होगी।
मैं नहीं जानता सरकार कैसे सोचती और कैसे काम करती है। लेकिन थाली बजाने और दीया जलाने वाली जनता के लिए सरकार सोचे भी क्यों? ऐसा कुछ नहीं है जो सरकार को मार्च में मालूम नहीं था अब मालूम हुआ है। उसे पता ही होगा कि अचानक लॉक डाउन करने से परेशानी होगी, यह भी पता था (नहीं था तो होना चाहिए था) कि लॉक डाउन लंबा चलेगा और उतने समय तक लोगों को जबरन बांध कर नहीं रखा जा सकता है। और लोग घरों पर सुकून से नहीं होंगे तो लॉक डाउन का पालन मुश्किल है। लेकिन सरकार हेडलाइन मैनेजमेंट से काम चला लेती रही और ताली थाली बजाकर जनता ने पूरा सहयोग किया। इसीलिए किट खरीदने में भ्रष्टाचार हुआ (आप लापरवाही कहिए) और इस कारण देरी भी हुई। कुल मिलाकर लॉक डाउन में सरकार जो काम कर लेने चाहिए था उसमें पीएम केयर्स के अलावा कुछ नहीं हुआ और सरकार को यह ढील देनी पड़ी जो असल में लॉक डाउन का सरकारी उल्लंघन है।
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