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Sunday, March 28, 2010

0.58 करोड़ की हानि- भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का प्रतिवेदन

अव्यवहारिक खदानों के अर्जन के परिणामस्वरूप 0.58 करोड़ की हानि
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का प्रतिवेदन

ममता अरोरा/आर.एस.अग्रवाल मो. 982613975

कम्पनी खनिज पट्टे अर्जन, खनिज निकालने तथा विक्रय करने का कार्य कर रही थी और उसका खनिजों का व्यवसाय में मध्यस्थ कार्य था। राज्य सरकार के लघु खनिज नियम 1996 के अनुसार राज्य सरकार ने कम्पनी को पट्टे तथा रायल्टी के अग्रिम भुगतान पर रेत की खदानें सौंपी थी। यह भी कि कम्पनी प्रायवेट पार्टियों सहित खुले टेण्डर में भागीदारी भी करती थी और नीलामी में निर्धारित नीलामी मूल्य के भुगतान पर जिलाधीशों से खाने/रेत की खदाने प्राप्त करती थी।राज्य सरकार की अधिसूचना में स्पष्ट रूप से यह शर्त दी गई है कि नीलामी में भगीदारी से पूर्व पट्टाधारक द्वारा खानों/खदानों की स्थिति, उपलब्धता तथा खनिज की गुणवत्ता आदि सुनिश्चित करनी होती है। कम्पनी ने 2005-06 एवं 2007-08 के मध्य राज्य सरकार से नीलामी के माध्यम से खदानों की रेत की मांग तथा गुणवत्ता का विश्लेषण किये बिना 14 रेत की खदानें (होशंगाबाद तथा रायसेन प्रत्येक में सात) प्राप्त की। नीलामी की निबन्धन एवं शर्तों के अनुसार कम्पनी ने अपने अनुमान के अनुसार 3.99 लाख घन मीटर रेत उठाने के लिये अग्रिम रॉयल्टी के रूप में 2005-06 एवं 2007-08 के मध्य 1.30 करोड रूपये का भुगतान किया। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार यदि उठाई गई मात्रा अनुमानित मात्रा से कम होती है तो रायल्टी की असमायोजित राशि व्यपगत हो जायेगी और व्यय के रूप में मानी जायेगी। इन खदानों से संबंधित अभिलेखों की संवीक्षा से प्रकट हुआ कि उपरोक्त अवधि के दौरान कम्पनी ने वस्तुत: केवल 0.74 लाख घन मीटर रेत ही उठाई थी जिसे 0.72 करोड रूपये में बेचा गया था। इस प्रकार रेत की उस अनुमानित मात्रा के न उठाने के कारण जिसके लिये रॉयल्टी भुगतान किया गया था, कम्पनी को 0.58 करोड रूपये की हानि उठानी पड़ी। कम रेत उठाने के कम्पनी द्वारा यथा विश्लेषित कारण खदानों में उपलब्ध रेत की मात्रा तथा गुणवत्ता का मूल्यांकन न करना तथा खदानों को अधिकार में लेने में विलम्ब करना था। प्रबन्धन ने सूचित किया (अप्रैल/जून 2009) कि रेत की कोई मांग नहीं थी, क्योंकि इन खदानों की रेत की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, जिसके कारण रेत कम बिकी। इसलिये होशंगाबाद जिले की सात खदानें 2008-09 में सरकार को सौंप दी गई और रायसेन की सात खदानें 14 सितम्बर 2008 को परिचालन के लिये प्रायवेट ठेकेदारों को आबंटित कर दी गई। उत्तर विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि कम्पनी नीलामी में भागीरथी करने से पूर्व रेत की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने में विफल रही और अनुमानित मात्रा निकालने में भी विफल रही।इस प्रकार खदानों के चयन तथा अर्जन में कम्पनी के गलत अनुमान के कारण कम्पनी ने 0.58 करोड रूपये की परिहार्य हानि उठाई । यह अनुसंशा की जाती है कि रेत की गुणवत्ता तथा मात्रा का तकनीकि मूल्यांकन खदानों के चयन तथा अर्जन से पूर्व किया जाना चाहिये।

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