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Wednesday, April 14, 2010

दवा माफिया के सरगना अशोक शर्मा घोटालेबाज को क्यों बचा रहे हैं मोहंती?

bhopal //Vinay G. David (98232 21036) (टाइम्स ऑफ क्राइम)

1. मामले की जांच चल रही है लोकायुक्त में ?
2. कोष एवम लेखा की अंकेक्षण रिपोर्ट में हुआ खुलासा
3. सरकार की चुप्पी पर सवालिया निशान ?
4. संचालनालय कोष एवम लेखा की अंकेक्षण रिपोर्ट की फ़ाइल गायब
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स्वास्थ्य विभाग में फिर करोड़ों का गोलमाल हुआ है और इस बार सभी आरोप स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा पर लगाये जा रहे हैं. इन घोटालों की शिकायत लोकायुक्त में भी पहुँच चुकी है और जांच भी चल रही है. डॉ. अशोक शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने विज्ञापन प्रसारण, बैनर मुद्रण, विज्ञापन निर्माण, पल्स पोलियो अभियान, तथा दवा खरीदी में जमकर भ्रष्टाचार किया है. यह भ्रष्टाचार उचित मूल्य से अधिक कीमत पर आवश्यकता से अधिक खरीदी कर गया है.स्वास्थ्य महकमे को लूटेरों का अड्डा बनाने वाले डॉ.अशोक शर्मा हाईकोर्ट की आंखों में धूल झोंककर दुबारा अपनी कुर्सी हथियाने की कोशिशें कर रहे हैं. लोकायुक्त में लंबित छह शिकायतों, आयकर महकमे के छापे में मिली बेनामी दौलत और बजट से 31.20 करोड़ रुपये ज्यादा की दवाईयां खरीदने के कारण विभागीय जांच का सामना कर रहे दवा माफिया के इस सरगना को हाईकोर्ट ने निलंबन पर स्थगन दे दिया है. पूरे महकमे के अफसरों की जोर जबरदस्ती के बाद भी इनमें से अस्सी लाख रुपए की दवाईयां एक्सपायर हो जाने के कारण कबाड़ में फेंकदीं गईं थीं.लेकिन इस सबके बावजूद वह हाईकोर्ट से स्थगन ले आया है. अब इस स्थगन को आधार बनाकर इस भ्रष्ट अफसर की फाईल मुख्य सचिव को भेजी गई है. उसे स्थगन दिलाने के लिए केविएट दायर करने के बाद शासन ने अपना जवाब पेश करने में महीना भर लगा दिया. इसके बाद जब सरकारी वकील न्यायाधीश के सामने पहुंचा तो उसने कहा कि माईलॉड डॉ. अशोक शर्मा को न्याय के लिए सीधे हाईकोर्ट के सामने उपस्थित होने का अधिकार है. उसने यह नहीं बताया कि इस अफसर को इसलिए निलंबित किया गया था क्योंकि इसके घर केन्द्रीय आयकर महकमे ने छापा डाला था और बेनामी दौलत भी जब्त की थी. उसके खिलाफ लोगों ने शपथपत्र देकर छह शिकायतें लोकायुक्त संगठन के सामने प्रस्तुत की हैं जिनमें लगाए गए आरोप दस्तावेजी प्रमाणों पर आधारित हैं. इसके साथ ही डॉ. अशोक शर्मा को महीने भर में ऐसे दस्तावेज भी उपलब्ध करा दिए गए जिनके कारण हाईकोर्ट से उसे शक के आधार पर राहत मिल सके. इस सुनवाई के लिए बाकायदा रोस्टर बदलने का इंतजार किया गया और पीठासीन न्यायाधीश जस्टिस आर.के.गुप्ता के सामने कुछ इस तरह का माहौल बना दिया गया कि कुर्सी से धकियाकर उतार दिया गया यह दवा माफिया का सरगना एक बार फिर अमानत में खयानत का लाईसेंस पा सके. हालांकि उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शासन डबल बैंच के समक्ष फैसले पर पुर्नविचार का अनुरोध कर सकता है.लेकिन विभाग के सचिव सुधीरंजन मोहंती ऐसा नहीं करना चाहते.उन पर विभाग के मंत्री का दबाव है या वे स्वयं डॉ. शर्मा से कोई गुलगपाड़ा करवाना चाहते हैं यह तो वे ही बता सकते हैं. डॉ. अशोक शर्मा ने मध्यप्रदेश शासन, उसके स्वास्थ्य आयुक्त और मंत्रालय के उप सचिव के खिलाफ जो याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की थी उस पर शासन से पंद्रह दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है. लेकिन शासन जवाब दाखिल करने के बजाय डॉ. शर्मा को वापस उसकी कुर्सी पर बिठाने की जुगत भिड़ा रहा है. डॉ. शर्मा के वकील संजय अग्रवाल ने माननीय उच्च न्यायालय में कहा कि शासन को विभागीय जांच में कोई गड़बड़ी नहीं मिली है. जबकि इस दौरान अवर सचिव एम.रफीक खान की ओर से जारी अनुशासनात्मक कार्यवाही की जांच वाली फाईल सचिव सुधीरंजन मोहंती के पास दबी पड़ी थी. डॉ.शर्मा ने हाईकोर्ट के सामने पेज 5,6,7,8,11,14 और 15 भी पेश किए जो डॉ. अशोक शर्मा को क्लीनचिट देने के लिए तैयार किए गए थे. कहा गया कि लोकायुक्त जांच का मतलब यह नहीं है कि माननीय लोकायुक्त महोदय ने उन शिकायतों पर कोई संज्ञान लिया है. 26 मार्च 2010 को दिए गए इस आदेश के खिलाफ अपना पक्ष दाखिल करने के लिए शासन को 15 दिनों का समय दिया गया था. डॉ. अशोक शर्मा की कारगुजारियों की फेरहिस्त बड़ी लंबी है. लेकिन फिर भी वे विभागीय मंत्री अनूप मिश्रा के नाक के बाल बने हुए हैं. डॉ. शर्मा को नाजायज संरक्षण देने के कारण अनूप मिश्रा की कार्यप्रणाली सरकार की निगाह में संदिग्ध बन गई है. डॉ. शर्मा की हेराफेरियों के कारण हर साल अस्पतालों में दवाओं का कृत्रिम संकट पैदा किया जाता रहा है. फिर औने पौने दामों पर एक्सपायरी डेट के नजदीक वाली दवाईयां थोक में खरीद ली जाती रहीं हैं. शर्मा के निलंबन के दौरान शासन ने जो आरोप पत्र बनाया उसमें कहा गया है कि विभाग की औषध नीति 2006 की कंडिका 3.6 के अनुसार वर्ष 2007-08 के लिए पिछले तीन सालों में हुई दवा की खपत के आधार पर दवाएं खरीदी जानी थीं. इन सालों में औषधि खरीदी किसी नियम से नहीं की गई थी. वर्ष 2004-05 में 56.68 करोड़ की दवाएं खरीदी गईं थीं. वर्ष 2005-06 में 39.77 करोड़ और वर्ष 2006-07 में 39.34 करोड़ रुपए की दवाएं खरीदी गईं थीं. इन आंकड़ों के आधार पर औसत तौर पर 45.26 करोड़ रुपयों की ही दवाएं ही खरीदी जा सकती थीं. औषधि नीति की कंडिका 3.1 के अनुसार औषधि खरीदी के लिए उपलब्ध बजट की अस्सी फीसदी राशि का उपयोग केन्द्रीय खरीदी प्रणाली से और बीस प्रतिशत बजट का उपयोग जिला स्तर पर किया जाना था. वर्ष 2007-08 में औषधि मद के अंतर्गत 34.20 करोड़ की ही राशि उपलब्ध थी. लेकिन डॉ. शर्मा ने इस साल 65.40 करोड़ की राशि से दवाएं खरीद डालीं. इस तरह उन्होंने 31.20 करोड़ रुपए से अधिक की राशि से दवाएं खरीदने के आदेश दे दिए. इस वर्ष के पहले तीन महीनों में उन्होंने 13.36 करोड़ की दवाएं खरीदने के आदेश देने से पहले स्वास्थ्य आयुक्त से अनुमोदन ही नहीं लिया. जरूरत से ज्यादा दवाएं खरीदने का ही नतीजा था कि जून 2009 तक की स्थिति में 80.94 लाख की दवाएं कालातीत हो गईं. जिससे जनता के खजाने की बर्बादी हुई. ज्यादा खरीदी करके डॉ. शर्मा ने मध्यप्रदेश भंडार क्रय नियमों का पालन ही नहीं किया. इन सभी आरोपों के कारण डॉ. शर्मा के खिलाफ अनुशासनतात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए. उन्हें भेजे आदेश में कहा गया है कि यदि उन्होंने 15 दिन के अंदर अपना स्पष्टीकरण नहीं दिया तो एक पक्षीय कार्रवाई की जाएगी. वास्तव में शासन को इन तथ्यों के आधार पर डॉ. शर्मा को बर्खास्त करना चाहिए था जो अब तक नौकरी से विदा नहीं किए गए हैं. डॉ. शर्मा की कारगुजारियों से विभाग में अराजकता की स्थितियां बन गईं हैं. प्रमोशन पाकर संचालक बने डॉ. ए.एन.मित्तल ने संचालनालय के दो कमरों पर अपना कब्जा जमा लिया है. संचालक के लिए बनाए गए कक्ष पर उन्होंने अपनी नाम पट्टिका लगा दी है लेकिन अपना पुराना कमरा छोडऩे को तैयार नहीं हैं. स्वास्थ्य विभाग के अफसर कुर्सी की यह खींचतान देखकर परेशान हैं. स्वास्थ्य सचिव सुधीरंजन मोहंती जिस तरह एकेवीएन घोटाले में मोहम्मद पीर राजन के खिलाफ कार्रवाई न करने के कारण आज तक मुकदमे झेल रहे हैं उसी तरह भविष्य में उन्हें अशोक शर्मा के घोटालों का कलंक भी ढोना पड़ सकता है. सरकार के मुखिया शिवराजसिंह चौहान को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए. तभी प्रदेश के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य की नीतियां और दवाएं मिल सकती हैं.

चकहाँ कहाँ घपला
पल्स पोलियों टीकाकरण अभियान में :-
संचालनालय कोष एवम लेखा के अंकेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 01.01.2004 से 28.02.2005 तक राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान के अंतर्गत 45 जिलों को 3,53,22,040 रूपये आरसीएच के माध्यम से उपलब्ध करवाए गए. जो कि सम्बंधित जिलों के सीएमएचओ द्वारा व्यय की जानी थी. तथा संबधित व्यय का उपयोगिता प्रमाण पत्र लेना चाहिए था. लेकिन 45 जिलों में कुल 3,53,22,040 रु में से 2,65,85,690 रु खर्च हुए तथा 7,46,659 रुपये संचालनालय को वापस प्राप्त हुए लेकिन संचालनालय ने सीएमएचओ से यह नहीं पूछा कि कितनी राशि कहाँ व्यय हुई.

पल्स पोलियों टीकाकरण अभियान विज्ञापन प्रसारण :- कार्यालय के अभिलेखों के परिक्षण में पाया गया कि पल्स पोलियो अभियान के विज्ञापन प्रसारण आल इंडिया रेडियो में स्मृति फिल्म्स भोपाल से कराये गए. जिसके लिए कोई टेंडर प्रक्रिया नहीं की गई. जबकि स्मृति फिल्म्स भोपाल की दरों को क्रय समिति ने अनुमोदित नहीं किया था. साथ ही विज्ञापन प्रसारण देय राशि का सत्यापन भी नहीं किया गया. अंकेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक विज्ञापन प्रसारण में लगभग 22,88,286 रु अनियमित खर्च होना पाया गया है. इसके अलावा दूरदर्शन पर विज्ञापन प्रसारण के लिए प्रतिदिन 75 प्रसारण का आदेश दिया गया था लेकिन प्रतिदिन 450 सेकेण्ड का भुगतान किया गया. साथ ही कुल 810 सेकेण्ड का प्रसारण किया जाना था लेकिन भुगतान 3320 सेकेण्ड का किया गया. इस प्रकार 13,28000 रुपये का भुगतान बिना कार्य के किया गया. ऑडियो केसेट्स निर्माण में 2,20,400 का ज़्यादा भुगतान करते हुए एडजस्टमेंट कर दिया गया. केबल नेटवर्क पर 8,20,000 का फर्जी भुगतान किया गया. होर्डिंग की न्यूनतम दरें 2875 रु प्रतिमाह निर्धारित थीं लेकिन 2917 रु प्रतिमाह की दर पर होर्डिंग लगाने के आदेश देकर 12,92000 रुपये के वारे न्यारे कर दिए गए.

राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान के बैनर मुद्रण में :- राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान के बैनर मुद्रण में 1,35,06,800 रुपये अनियमित व्यय किये गए. अंकेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 50000 रुपये के बैनर जिलों में बांटे जाने के आदेश थे. लेकिन 57620 रु के बैनर बांटे गए यानि 7620 रु अधिक काटे गए. इतना ही नहीं बैनर का मुद्रण मेसर्स विनायक क्रियेशन भोपाल से बिना टेंडर जारी किये ही करवा लिया गया.
महामारी के नाम पर दवा सामग्री खरीदी में :- संचालनालय कोष एवम लेखा के अंकेक्षण रिपोर्ट में दवा एवम अन्य सामग्री खरीदी में 10 करोड रुपये बिना अनुमोदन कर सीधे भुगतान किया गया. साथ ही महामारी के नाम पर 4 करोड रु का घोटाला भी किया गया. महामारी के नाम पर लगभग 4 करोड रु की फिनाइल और ब्लीचिंग पाउडर खरीद ली गई. खरीदी में क्रय समिति का अनुमोदन लिया गया और न ही क्रय समिति से आवश्यकता का आंकलन कराया गया. इसके स्थान पर संचालक स्वास्थ्य सेवायें डॉ. अशोक शर्मा ने खुद ही आवश्यकता का आंकलन कर खरीदी कर ली. जो कि नियम विरुद्ध है. फिनाइल खरीदी में जमकर घोटाला किया गया है, इसका सीधा अंदाज़ा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि डी.जी.एच.एस. भारत शासन द्वारा जारी निर्देशों में महामारी में लगने वाली दवाइयों की सूची में फिनाइल शामिल नहीं है फिर कैसे महामारी के नाम पर फिनाइल खरीद ली ? यह एक अहम सवाल है.

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