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Saturday, March 5, 2011

बैतूल जिला मुख्यालय पर नशा करने वालों की संख्या देख कर आबकारी विभाग का माथा ठनका

कहीं भूत , पिशाच तो आकर नहीं कर रहे नशा .?

बैतूल// रामकिशोर पंवार ( टाइम्स ऑफ क्राइम)
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बैतूल जिला मुख्यालय पर नशा करने वालों की संख्या देख कर
आबकारी विभाग का माथा ठनका कहीं भूत , पिशाच तो आकर नहीं कर रहे नशा .?
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के सामाजिक एवं न्याय विभाग द्वारा प्रदेश की सभी स्थानीय निकायों एवं ग्राम पंचायतो को पत्र लिख कर यह जानने की कोशिस की थी कि प्रदेश के कितने लोग कितने प्रकार का नशा करने के आदी है। कोठी बाजार स्थित सामाजिक न्याय विभाग बैतूल ने बैतूल जिला मुख्यालय की जवाबदेही बैतूल की नगर पालिका को सौपी थी कि वे अपने वार्ड स्तर पर सर्वे करवाए कि किस वार्ड में कितने लोग कौन - कौन से नशे के आदी हैं।
जब आकड़ा सामने आया तो सामाजिक न्याय विभाग एवं नगर पालिका की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन सकते में आ गया सबसे अधिक राजस्व देने वाला आबकारी विभाग। प्रदेश का यह विभाग अकसर घाटे से उबारने के लिए शराब की दुकानो की नीलामी करवाते समय पिछले वर्ष के अनुपात में अधिक बोली लगवा कर शासकीय दुकानों की लायसेंस फीस वसूल करता था। करोड़ो का मुनाफा देने वाले बैतूल जिले के आबकारी रोड़ स्थित जिला आबकारी विभाग कार्यालय में उस समय मायुसी छा गई जब सर्वे रिर्पोट में बताया गया कि बैतूल नगर पालिका के 33 वार्डो में से 12 वार्डो में मात्र 110 लोग ही शराब पीते हैं जबकि बैतूल जिला मुख्यालय पर मात्र 8 देशी शराब की दुकान एवं 5 विदेशी शराब की दुकाने तथा दो अहाते संचालित हैं। देशी एवं विदेशी मदिरा की दुकानो शराब विक्रय की राशि लगभग 16 करोड़ प्राप्त होती हैं।
यदि बैतूल जिले में 110 बारह वार्ड में शराबी निकले है तो 33 वार्डो में इनकी संख्या औसतन 330 होनी चाहिए जो किसी भी सूरत में अधिक से अधिक 1 करोड़ रूपए की भी देशी या विदेशी शराब नहीं पी सकते ऐसे में बैतूल शहर की 15 करोड़ की शराब आखिर कौन पी जाता हैं...? इसी तरह सामाजिक न्याय विभाग के द्वारा करवाए गए नशामुक्ति अभियान सर्वे में चौकान्ने वाले तथ्य आए हैं। अन्य प्रकार के नशा करने वालों में 12 वार्डो में मात्र 154 ने तंबाकू का सेवन करने वाले मिले जबकि बैतूल जिला मुख्यालय पर सात सौ से अधिक पान की छोटी बड़ी दुकाने है जहां पर चार सौ से पांच किलो प्रतिदिन की तम्बाकु की बिक्री होती है। बैतूल जिले के प्रमुख तम्बाकु विकेत्रा एवं नागरिक सहकारी बैंक के अध्यक्ष श्री राम पंवार कई वर्षो से तम्बाकु का पुश्तैनी धंधा करते चले आ रहे हैं।
श्री पंवार के अनुसार आकड़े तो बहद चौकान्ने वाले हैं। श्री पंवार कहते हैं कि या तो नगर पालिका ने सही ढंग से सर्वे नहीं किया या फिर लोग अपने नशे की आदत को छुपाना चाहते हैं। इसी कड़ी में बैतूल जिला मुख्यालय पर मात्र 5 व्यक्यिों को गंजेड़ी बताया गया। जबकि गांजा - भांग की दुकान की आय बताती हैं कि जिला मुख्यालय पर औसतन सवा सौ लोग दोनो प्रकार का नशा ले जाते हैं। बैतूल जिले के मात्र 12 वार्डो के सर्वे में 254 लोगों में से महज 95 लोगों ने ही इस बात को स्वीकार किया कि वे नशे की आदत छोडऩा चाहते हैं और इन 55 लोगों में से मात्र दस लोग ही ऐसे थे जो शराब छोडऩा चाहते थे शेष लोग तंबाकू आदि लोग के शौकिन थे। अधिकांश का कहना था कि इस सर्वे में गम भुलाने और कर्ज से परेशान होकर नशा करने जैसे कारण लोगों ने गिनाए हैं।
कुछ लोग आदतन इस लत की वजह से वे नशा करते हैं। सर्वे के दौरान कुछ शराब के शौकिनों ने यह कहा कि वे शौक से शराब पीते हैं तो पांच लोगों ने यह कहा कि वे गम भुलाने के लिए शराब पीते हैं। वहीं एक ने तो यह बताया कि कर्ज से परेशान होकर वह शराब पीता है। नशामुक्ति के उद्देश्य से सामाजिक न्याय विभाग के इस सर्वे में सिर्फ बीपीएल एवं अंत्योदय कार्ड धारक गरीब परिवार के लोगों ने ही यह हिम्मत दिखाई कि वे ना ना प्रकार के नशे के आदी हैं। वहीं शहर के मध्यमवर्गीय एवं धन्ना सेठो के इलाके से किसी भी व्यक्ति ने यह स्वीकार नहीं किया कि वह किसी भी तरह का नशा करते है। सर्वे रिर्पोट तो यह कहती हैं कि जानबुझ कर गरीबो को ही निशाना बनाया गया है। एक एन जी ओ की रिर्पोट के अनुसार बैतूल शहर के चंद धन्ना सेठो की युवा पीढ़ी आज भी ड्रग्स , अफीम , हीरोइन तक का नशा करती है।
जिले की एक नामचीन महिला जनप्रतिनिधि का बिगडैल बेटा आदतन नशे का ऐसा शिकार हैं कि उसे होश तक नहीं रहता। ऐसे में नगर पालिका का सर्वे बेमानी पूर्वक है। इन सबसे हट कर अब आबकारी विभाग को हैरानी हो रही हैं कि कहीं शमशान , मुर्दाघरो , कब्रिस्तान से भूत पिशाच आकर तो 15 करोड़ की शराब तो नहीं पी जाते हैं...? बरहाल सर्वे से एक बात तो पता चली कि नशा करने वाले लोगों ने स्वीकार किया उनकी मासिक औसत आय दो हजार से ढ़ाई हजार रूपए होने के बाद भी वे नशा के आदी है जबकि दो लाख से ढाई लाख रूपए प्रतिमाह की आय वालों ने अपने मुंह पर चुप्पी का गम लगा रखा हैं।

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