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Saturday, April 23, 2011

ड्रग्स माफिया सुनिल कृष्णा गुप्ता पुलिस को बना रहे उल्लू

सुर्या दवा एजेंसी का संचालक पूलिस से दूर, आजाद घुम रहा आरोपी

क्राइम रिपोर्टर // वसीम बारी (रामानुजगंज // टाइम्स ऑफ क्राइम)

क्राइम रिपोर्टर से सम्पर्क : 9575248127

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रामानुजगंज । रामानुजगंज नगर पंचायत के अन्तर्गत वार्ड क्र.12, ठिक मस्जिद के सामने आलीशान भवन में बीते माह 11 मार्च 2011 को राजस्व, पुलिस व स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने छापा मारकर सूर्या एजेंसी के संचालक सुनिल गुप्ता व व्यवसायी कृष्णा गुप्ता के गृह निवास से भारी मात्रा में पैथोलेब में जांच एवं परीक्षण के लिए उपयोग होने वाली सामग्री जब्त की थी। जब्त पैथोलैब के सामग्रियों में एक कार्टुन मलेरिया जांच किये जाने का स्लाइड, एमपी किट, एचआईव्ही किट सहित 63 प्रकार की पैथोलैब की सामग्री जब्त की गई थी। जिसकी लागत लगभग साढे तीन लाख रूपये आंकी गई है। ड्रग्स इंस्पेक्टर के द्वारा भी जांच किया गया। पुलिस ने उसके खिलाफ धारा 9, 9ए, बी, सी, डी/13, 28, 28ए, 28बी औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत कार्रवाई की है। पुरे एक माह बीत जाने के बाद भी ना तो आरोपी ने सरेण्डर किया और नही संबंधित विभाग द्वारा गिरफ्तारी हेतु कोई ठोस पहल किया गया है। औपचारीकता मात्र पुरा किया गया है। विभाग द्वारा फिसडडी कार्रवाई का मतलब साफ है कि यदि आपके पास पैसा है तो कोई भी गैर कानूनी धंधा बेधडक़ कर सकते हैं क्योकि नियम और कानून तो सिर्फ गरीबों के लिए होते हैं। यानी के पैसा बोलता है.........
ये मामला सामने आने के बाद संबंधित विभाग को चाहिए कि करिश्मा रोड लाईन के संचालक से जुडे तमाम संपत्तियों की जांच कराये, क्योंकि ऐसे लोग कानून के शिकंजे में जल्दी फंसते नही है। और वैसे भी रामानुजगंज में अवैध कारोबार व कालाबाजारी चरम सीमा पर है। पर, बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन? जांच के प्रारंभिक स्तर यदि देखा जाय तो पुरा मामला अवैध कारोबार का प्रतीत होता है। क्योंकि? दवाओं के भंडारण में लाइसेंस शर्तो का पालन नही किया जाना। सुनिल गुप्ता द्वारा लाइसेंस में उल्लेखित शर्तो का घोर उलंघन कर सामग्री को सार्वजनिक दूकानों में न रखकर, जब्त दवाएं सूर्या एजेंसी के मालिक सुनिल कुमार के घरो एवं किचन में पायी गई तथा गुप्त तरीके से संग्रहित कर परिवहन किया जाता रहा। यहां तक की स्टाक रजिस्टर निरीक्षण, माल आवक-जावक का रजिस्टर व संबंधित विभागों को सूचना भी देना नही पाया गया।
संचालक को किस आधार पर लाइसेंस दिया गया, क्या उसे पांच साल का अनुभव था? रजिस्ट्रेशन के 11 माह बीत जाने के बाद भी भौतिक सत्यापन क्यों नहीं किया गया? प्रश्न यह उठता है कि यदि बिल नही है तो सामग्री छत्तीसगढ के कई शहरों में कैसे भेज दिया जाता था? जबकि चालान में दवा, बैच नंबर, रेट आदि का होना जरूरी है, परंतु चालान में एैसा कुछ भी नही पाया गया है। जांच के दौरान संचालक सुनिल कुमार गुप्ता नदारद क्यों रहा? और आज तक फरार क्यों है? बकौल एसडीएम जी.आर.राठौर रजिस्ट्रेशन बनाते समय अनुभव सहित जिस गोदाम में दवा रखना है, वहां का नक्षा, खसरा रखना अति आवष्यक है व दूकान के सामने बोर्ड रजिस्ट्रेशन चस्पा होना चाहिए था। जबकि मौका पर एैसा कुछ भी नही पाया गया।

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