विदित हो कि शिक्षाकर्मियों के प्रमाणपत्रों की जांच के लिए 27 व 28 तारीख का समय दिया गया था, जांच अवधि समाप्त होने के बाद शिक्षाकर्मियों के हम में किसी भी प्रकार की सुनवाई नहीं की जाएगी, विभाग एकतरफा कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होगा। उल्लेखनीय है कि जिले के सूरजपुर जनपद पंचायत में वर्ष 2006-07 में शिक्षाकर्मी वर्ग-03 की नियुक्ति में फर्जीवाड़े की शिकायत पूर्व में की गई थी। इस दौरान करीब सूरजपुर में 300 शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी, जिसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी किये जाने का मामला प्रकाश में आया था। इस दौरान करीब 100 शिक्षाकर्मी अपने मूल दस्तावेजों के साथ उपस्थित हुए थे और करीब 74 शिक्षाकर्मियों के दस्ताजेज संदेहास्पद पाये गये थे और इसी दौरान मामले की जांच के समय ही एसडीएम पी. दयानंद का तबादला हो गया, जिससे जांच की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई थी। करीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर शिक्षाकर्मी फर्जीवाड़े की दस्तावेंजों की जांच के आदेश दिये गये हैं। जांच की कमान संभाले एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल ने सूरजपुर के वर्ष 2006-07 में नियुक्त शिक्षाकर्मियों के मूल दस्तावेजों के साथ 26-27 व 28 तारीख को अंबिकापुर में पहुंचने का निर्देश दिया था। श्री अग्रवाल ने बताया कि प्रारंभिक जांच में दस्तावेजों के फर्जी होने के आसार हैं। दस्तावेजों को जारी करने वाले संस्थानों में तस्दीक के लिए भेजा रहा है। विदित हो कि शिक्षाकर्मियों के प्रमाणपत्रों में यूपी, बिहार जैसे राज्य के डीएड व बीएड के प्रमाणपत्र संलग् हैं जो संदेहास्पद है। श्री अग्रवाल ने यह भी बताया कि नियत तिथि तक जांच के दौरान अनुपस्थित रहने वाले शिक्षाकर्मियों के विरूद्ध विभाग एक पक्षीय कार्यवाही करने के लिए बाध्य होगा। बताया जाता है कि भाजपा के कुछ नुमाइंदों के साथ अधिकारियों से मिलीभगत कर जमकर फर्जीवाड़ा किया और पैंसों का लेन-देन कर अपात्र शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी। गत वर्ष पैसों के लेन-देन की बात सामने भी आई थी, जिस मामले में संलिप्त लोगों पर आज तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई है। शिक्षाकर्मी जो पिछले वर्ष इस जांच में उपस्थित थे उनका मामला कोर्ट में विचाराधीन है। लिहाजा इस जांच में उन शिक्षाकर्मियों को अलग रखा गया है। बहरहाल 4 साल बाद शिक्षाकर्मियों के फर्जीवाड़े के मामले को एक बार फिर जांच के दायरे में लाने पर कई कयास लगाये जा रहे हैं। कुछ बड़े अधिकारियों का रिटायरमेंट समीप होने के कारण उनके द्वारा ऐसा कोई मौका नहीं गंवाना चाहते, जहां से आमदनी होने की संभावना हो। कुछ शिक्षाकर्मियों का कहना है कि हमें किसी साजिश का शिकार बनाया जा रहा है। मगर इतना तो स्पष्ट है कि मामले के उजागर होने से अपने भविष्य को अंधकारमय होते देख शिक्षाकर्मियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें बहुत कुछ बयां कर रही है।
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Tuesday, May 31, 2011
शिक्षाकर्मियों की फर्जी भर्ती, जांच तेज
विदित हो कि शिक्षाकर्मियों के प्रमाणपत्रों की जांच के लिए 27 व 28 तारीख का समय दिया गया था, जांच अवधि समाप्त होने के बाद शिक्षाकर्मियों के हम में किसी भी प्रकार की सुनवाई नहीं की जाएगी, विभाग एकतरफा कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होगा। उल्लेखनीय है कि जिले के सूरजपुर जनपद पंचायत में वर्ष 2006-07 में शिक्षाकर्मी वर्ग-03 की नियुक्ति में फर्जीवाड़े की शिकायत पूर्व में की गई थी। इस दौरान करीब सूरजपुर में 300 शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी, जिसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी किये जाने का मामला प्रकाश में आया था। इस दौरान करीब 100 शिक्षाकर्मी अपने मूल दस्तावेजों के साथ उपस्थित हुए थे और करीब 74 शिक्षाकर्मियों के दस्ताजेज संदेहास्पद पाये गये थे और इसी दौरान मामले की जांच के समय ही एसडीएम पी. दयानंद का तबादला हो गया, जिससे जांच की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई थी। करीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर शिक्षाकर्मी फर्जीवाड़े की दस्तावेंजों की जांच के आदेश दिये गये हैं। जांच की कमान संभाले एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल ने सूरजपुर के वर्ष 2006-07 में नियुक्त शिक्षाकर्मियों के मूल दस्तावेजों के साथ 26-27 व 28 तारीख को अंबिकापुर में पहुंचने का निर्देश दिया था। श्री अग्रवाल ने बताया कि प्रारंभिक जांच में दस्तावेजों के फर्जी होने के आसार हैं। दस्तावेजों को जारी करने वाले संस्थानों में तस्दीक के लिए भेजा रहा है। विदित हो कि शिक्षाकर्मियों के प्रमाणपत्रों में यूपी, बिहार जैसे राज्य के डीएड व बीएड के प्रमाणपत्र संलग् हैं जो संदेहास्पद है। श्री अग्रवाल ने यह भी बताया कि नियत तिथि तक जांच के दौरान अनुपस्थित रहने वाले शिक्षाकर्मियों के विरूद्ध विभाग एक पक्षीय कार्यवाही करने के लिए बाध्य होगा। बताया जाता है कि भाजपा के कुछ नुमाइंदों के साथ अधिकारियों से मिलीभगत कर जमकर फर्जीवाड़ा किया और पैंसों का लेन-देन कर अपात्र शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी। गत वर्ष पैसों के लेन-देन की बात सामने भी आई थी, जिस मामले में संलिप्त लोगों पर आज तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई है। शिक्षाकर्मी जो पिछले वर्ष इस जांच में उपस्थित थे उनका मामला कोर्ट में विचाराधीन है। लिहाजा इस जांच में उन शिक्षाकर्मियों को अलग रखा गया है। बहरहाल 4 साल बाद शिक्षाकर्मियों के फर्जीवाड़े के मामले को एक बार फिर जांच के दायरे में लाने पर कई कयास लगाये जा रहे हैं। कुछ बड़े अधिकारियों का रिटायरमेंट समीप होने के कारण उनके द्वारा ऐसा कोई मौका नहीं गंवाना चाहते, जहां से आमदनी होने की संभावना हो। कुछ शिक्षाकर्मियों का कहना है कि हमें किसी साजिश का शिकार बनाया जा रहा है। मगर इतना तो स्पष्ट है कि मामले के उजागर होने से अपने भविष्य को अंधकारमय होते देख शिक्षाकर्मियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें बहुत कुछ बयां कर रही है।
डाक्टर अशोक वीरांग की याचिका सुप्रीमकोर्ट से भी खारिज
भोपाल . विभाग के संयुक्त संचालक डाक्टर अशोक वीरांग की याचिका आज सुप्रीम कोर्ट की डबल बैंच ने खारिज कर दी है . डॉ . वीरांग ने इस याचिका के माध्यम से मध्यप्रदेश शासन की पदोन्नति प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाए थे .
स्वास्थ्य विभाग में लंबे समय से सक्रिय भ्रष्ट अफसरों की साजिशें थमने का नाम नहीं ले रही हैं . दवा माफिया से जुड़ी इस लॉबी ने संयुक्त संचालक डाक्टर अशोक वीरांग की पदोन्नति को लेकर जो मुहिम चला ऱखी है उसे आज एक बार फिर देश की सर्वोच्च अदालत ने तगड़ा झटका दिया है . डाक्टर वीरांग ने सिविल याचिका क्रमांक एसएलपी 15471-2011 के माध्यम से माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हाईकोर्ट की डबल बैंच के फैसले के विरुद्ध अपना पक्ष प्रस्तुत किया था . इस याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट ने उनके पदोन्नति के दावे को गलत खारिज किया है . इस पर सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश जस्टिस जी . एस . सिंघवी और जस्टिस चौहान की बैंच ने यह कहते हुए उनकी याचिका निरस्त कर दी कि उन्हें तकनीकी आधार पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं है . इस याचिका में डाक्टर वीरांग ने मध्यप्रदेश सरकार की पदोन्नति प्रक्रिया पर स्थगन मांगा था .
गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग में डाक्टर योगीराज शर्मा और डाक्टर अशोक शर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों , दवा खरीद का बजट दलालों को बेच देने , जांच एजेंसियों के छापों में काला धन बरामद होने जैसे मामलों के बाद राज्य शासन ने पदोन्नति के लिए डीपीसी बुलाई थी . इस प्रक्रिया में उपलब्ध दस्तावेजों और गोपनीय चरित्रावली के आधार पर डा . ए . एन . मित्तल को स्वास्थ्य संचालक के रूप में पदोन्नति दी गई थी . डाक्टर मित्तल ने पदभार संभालने के बाद शासन की सिफारिश पर तमिलनाडू ड्रग कार्पोरेशन की दवा खरीद नीति सख्ती से लागू की थी . इस कदम से दवा माफिया की कारगुजारियों को तगड़ा झटका लगा था .
शासन की इस नीति से क्षुब्ध दवा माफिया ने पदोन्नति की पूरी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाना शुरु कर दिये . इस संबंध में लोकायुक्त संगठन में शिकायत भी की गई जिस पर शासन ने पदोन्नति में अपनाई गई समस्त पारदर्शी प्रक्रिया की जानकारी लोकायुक्त के समक्ष प्रस्तुत कर दी थी . इसके बाद अशोक वीरांग को जब हाईकोर्ट की डबल बैंच ने दो टूक शब्दों में यह कहकर लौटा दिया कि वे इधर उधर की नहीं सिर्फ अपनी बात कहें तो वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए . जहां आज जस्टिस सिंघवी ने उन्हें फटकार लगाकर वापस लौटा दिया ।
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