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Tuesday, May 31, 2011

शिक्षाकर्मियों की फर्जी भर्ती, जांच तेज

अम्बिकापुर ! सूरजपुर जनपद पंचायत के फर्जी शिक्षाकर्मी मामले की जांच आज अंतिम दिन भी जारी रही। वर्ष 2009 में तात्कालिक एसडीएम पी. दयानंद द्वारा शिक्षाकर्मी फजीवाड़े की जांच की जा रही थी, मगर उनके स्थानांतरण के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में पहुंच गया था। फजीवाड़े की नए सिरे से जांच के आदेश जारी हुए हैं और इस बार शिक्षाकर्मी फजीवाड़े की जांच की कमान एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल को सौंपी गयी है। जांच के पहले दिन करीब केवल 20 शिक्षाकर्मी दस्तावेजों के साथ उपस्थित हुए थे, जबकि जांच के अंतिम दिन करीब 40 शिक्षाकर्मी अपने दस्तावेजों के साथ उपस्थित हुए।
विदित हो कि शिक्षाकर्मियों के प्रमाणपत्रों की जांच के लिए 27 व 28 तारीख का समय दिया गया था, जांच अवधि समाप्त होने के बाद शिक्षाकर्मियों के हम में किसी भी प्रकार की सुनवाई नहीं की जाएगी, विभाग एकतरफा कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होगा। उल्लेखनीय है कि जिले के सूरजपुर जनपद पंचायत में वर्ष 2006-07 में शिक्षाकर्मी वर्ग-03 की नियुक्ति में फर्जीवाड़े की शिकायत पूर्व में की गई थी। इस दौरान करीब सूरजपुर में 300 शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी, जिसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी किये जाने का मामला प्रकाश में आया था। इस दौरान करीब 100 शिक्षाकर्मी अपने मूल दस्तावेजों के साथ उपस्थित हुए थे और करीब 74 शिक्षाकर्मियों के दस्ताजेज संदेहास्पद पाये गये थे और इसी दौरान मामले की जांच के समय ही एसडीएम पी. दयानंद का तबादला हो गया, जिससे जांच की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई थी। करीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर शिक्षाकर्मी फर्जीवाड़े की दस्तावेंजों की जांच के आदेश दिये गये हैं। जांच की कमान संभाले एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल ने सूरजपुर के वर्ष 2006-07 में नियुक्त शिक्षाकर्मियों के मूल दस्तावेजों के साथ 26-27 व 28 तारीख को अंबिकापुर में पहुंचने का निर्देश दिया था। श्री अग्रवाल ने बताया कि प्रारंभिक जांच में दस्तावेजों के फर्जी होने के आसार हैं। दस्तावेजों को जारी करने वाले संस्थानों में तस्दीक के लिए भेजा रहा है। विदित हो कि शिक्षाकर्मियों के प्रमाणपत्रों में यूपी, बिहार जैसे राज्य के डीएड व बीएड के प्रमाणपत्र संलग् हैं जो संदेहास्पद है। श्री अग्रवाल ने यह भी बताया कि नियत तिथि तक जांच के दौरान अनुपस्थित रहने वाले शिक्षाकर्मियों के विरूद्ध विभाग एक पक्षीय कार्यवाही करने के लिए बाध्य होगा। बताया जाता है कि भाजपा के कुछ नुमाइंदों के साथ अधिकारियों से मिलीभगत कर जमकर फर्जीवाड़ा किया और पैंसों का लेन-देन कर अपात्र शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी। गत वर्ष पैसों के लेन-देन की बात सामने भी आई थी, जिस मामले में संलिप्त लोगों पर आज तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई है। शिक्षाकर्मी जो पिछले वर्ष इस जांच में उपस्थित थे उनका मामला कोर्ट में विचाराधीन है। लिहाजा इस जांच में उन शिक्षाकर्मियों को अलग रखा गया है। बहरहाल 4 साल बाद शिक्षाकर्मियों के फर्जीवाड़े के मामले को एक बार फिर जांच के दायरे में लाने पर कई कयास लगाये जा रहे हैं। कुछ बड़े अधिकारियों का रिटायरमेंट समीप होने के कारण उनके द्वारा ऐसा कोई मौका नहीं गंवाना चाहते, जहां से आमदनी होने की संभावना हो। कुछ शिक्षाकर्मियों का कहना है कि हमें किसी साजिश का शिकार बनाया जा रहा है। मगर इतना तो स्पष्ट है कि मामले के उजागर होने से अपने भविष्य को अंधकारमय होते देख शिक्षाकर्मियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें बहुत कुछ बयां कर रही है।

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