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Saturday, May 28, 2011

योग के साम्राज्य का संन्यासी बाबा


नई दिल्ली में रविवार को भ्रष्टाचार के खिलाफ आयोजित रैली में योग गुरु स्वामी रामदेव के साथ जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी।

जैसा देश वैसा भेष

नगालैंड की राजधानी कोहिमा में इन दिनों आयोजित एक योग शिविर में योग गुरु स्वामी रामदेव परंपरागत अंगामी नगा परिधान में नजर आए।

भ्रष्टाचार के खिलाफ

नई दिल्ली में रविवार, 27 फरवरी को भ्रष्टाचार के खिलाफ आयोजित एक रैली में अपने समर्थकों के साथ गदा उठाए हुए योग गुरु स्वामी रामदेव।
नाम : रामकृष्ण यादव उर्फ बाबा रामदेव। उम्र : 46 साल। शिक्षा : आठवीं पास, लेकिन तीन मानद डॉक्टरेट। पेशा : टीवी पर प्रोग्राम देना व योग के ‘इवेंट’ करना। व्यवसाय : योग के कैसेट, ऑडियो सीडी से लेकर आयुर्वेद की दवाएं बेचना। निजी संपत्ति : शून्य। ट्रस्टों की संपत्ति : बेहिसाब। खुद का बैंक खाता नहीं, पर ट्रस्टों का कारोबार 1,100 करोड़ रुपये से ज्यादा। उपलब्धि : दुनिया में योग का डंका बजाना, लोगों में स्वास्थ्य के प्रति चेतना जगाना। अन्य कार्य : भारत स्वाभिमान पार्टी के जनक। दावा : मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं। पता : पतंजलि योगपीठ, कनखल, हरिद्वार।
लालू यादव की बात मानकर बाबा रामदेव राजनीति से दूर ही रहे होते, तो शायद इतने विवादों में नहीं पड़ते। यों भी दूसरे संन्यासियों, नेताओं, टीवी कलाकारों को उनसे कोई कम ईर्ष्या नहीं थी। आए दिन उनकी योग चिकित्सा को चुनौतियां मिलती ही रहती थीं, दिव्य योग मंदिर में कम वेतन, दवा में हड्डी का अंश, कैंसर और एड्स के इलाज के दावे पर सवाल, वंदे मातरम् विवाद पर उनकी टिप्पणी, उड़ान फेम कविता चौधरी की योग यात्रा नामक फिल्म में एक्टिंग, स्कॉटलैंड में दान में मिला द्वीप, ..ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनके कारण बाबा सुर्खियों के शहंशाह बनते रहे हैं। अब सबसे बड़ा मुद्दा उन्होंने काले धन को लेकर उछाला है। बाबा रामदेव जिस भारत स्वाभिमान पार्टी के नेता हैं, उसमें एक से दस नंबर तक वही सर्वेसर्वा हैं।
बाबा अन्नत्यागी हैं। दो साल से केवल फल और दूध का सेवन कर रहे हैं। फिलहाल देश में घूम-घूमकर काले धन के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। बाबा का ही कमाल था कि लोग कोल्ड ड्रिंक्स पीने के बजाय उससे टॉयलेट्स साफ करने लगे थे, जिससे गर्मी में भी कोल्ड ड्रिंक्स की खपत कम हुई। अब बाबा रामदेव का पांच सूत्री अभियान है- भ्रष्टाचार मिटाना, स्वास्थ्य सेवा दिलाना, मुफ्त शिक्षा, स्वच्छता आंदोलन और भाषाई एकता।
लिबरलाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन और प्राइवेटाइजेशन जैसे शब्दों से बाबा को नफरत है और नेहरू खानदान को छोड़ सभी महान नेता उनके आदर्श हैं, चाहे विवेकानंद हों या भगत सिंह, गांधी हों या सुभाष या फिर विनोबा। उनका कहना है कि 99 प्रतिशत लोग ईमानदार हैं, लेकिन भ्रष्टाचार जहर है, जो देश को खा रहा है, विकास के लिए विदेशी पूंजी गैर-जरूरी है। बाबा के समर्थक मानते हैं कि काले धन वाले नेता, विदेशी पूंजी के दलाल और पेस्टिसाइड लॉबी उनके खिलाफ अभियान चला रही है। कभी साइकिल से गली-गली जाकर आयुर्वेदिक दवा बेचने वाले रामकृष्ण यादव की कहानी फिल्मी लगती है।
1995 में उन्होंने कर्मवीर महाराज और आचार्य बालकृष्ण के साथ ट्रस्ट बनाया था और पीछे नहीं देखा। 6 अगस्त, 2006 को पतंजलि योगपीठ की स्थापना की। उसके बाद उन्होंने अपनी भूमिका बार-बार बदली। आज बाबा के समर्थक करोड़ों में हैं और उनके विरोधी भी बड़ी संख्या में हैं। उनकी हस्ती ही ऐसी है कि लोग उन्हें पसंद-नापसंद कर सकते हैं, पर नजरअंदाज नहीं कर सकते। नई दिल्ली। योग गुरु बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर केंद्र सरकार को रामलीला मैदान से ललकारा। उन्होंने जंग का ऐलान किया और इस बीमारी से मुक्ति के लिए पांच नुस्खे भी दिए। ऐतिहासिक रैली में तीन घंटे से अधिक देरी से पहुंचे बाबा ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने के समर्थन में ढेरों तर्क दिए। योग गुरु बाबा रामदेव ने रविवार को सरकार से भ्रष्टाचार रोकने और कालाधन वापस लाने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की. साथ ही चेतावनी दी कि सरकार ने ऐसा नहीं किया, तो वह इसको लेकर जनता के बीच जायेंगे और इस सरकार को हटा देंगे. रामलीला मैदान में विशाल रैली में उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर जम कर निशाना साधा. आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री बेइमानों से घिरे ईमानदार व्यक्ति हैंविदेशी बैंकों में जमा काला धन को स्वदेश लाने और भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए योग गुरु स्वामी रामदेव के नेतृत्व में तमाम बुद्धिजीवियों ने रामलीला मैदान से शंखनाद किया। रैली में स्वामी रामदेव ने न केवल भ्रष्टाचार के पांच मूल स्रोतों को चिह्नित किया, बल्कि इसे रोकने के लिए पांच सुझाव भी दिए।योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा है कि वह देशवासियों को भ्रष्टाचार मुक्त और राजनीति की भी शिक्षा देंगे। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचारियों को शीर्षासन और अलोम-विलोम भी कराने हैं। अब अगली महा रैली 23 मार्च को होगी जिसमें 10 लाख से भी अधिक लोगों के दिल्ली आने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि स्विस बैंकों में 400 लाख करोड़ काला धन जमा है जिसे देश में लाना योग गुरू बाबा रामदेव ने कहा है कि वे लोगों के हितों के लिए काम कर रहे हैं और आगे भी भ्रष्टाचार मुक्त और स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए अपने अभियान को जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि खातों का लेखा-जोखा नियमित रूप से तैयार किया जा रहा है। अगर कोई भी व्यक्ति, संगठन, जांच एजेंसी और किसी भी राजनीतिक पार्टी को कोई संदेह है तो वे संगठन में लगाए जा रही धनराशि की जांच कर सकते हैं।कुछ दिनों पहले जिस रामलीला मैदान में बाबा रामदेव किसी दूसरे संगठन के मंच और मुद्दे पर अतिथि बनकर आये थे, आज उसी स्थान पर, उसी मंच पर, उन्हीं लोगों के बीच एक बार फिर बाबा रामदेव मौजूद थे लेकिन इस छोटे से अंतराल में मंच भी उनका हो चुका था, मुख्य वक्ता भी वे थे और मुद्दा भी अब बाबा रामदेव का है. काले धन के मुद्दे को लेकर विवाद में आये बाबा रामदेव पर अब संत समाज ने भी हल्ला बोल दिया है. इसकी शुरूआत भी एक ऐसे महंत ने की है जो किसी समय भारतीय जनता पार्टी की ओर से केन्द्र में गृहमंत्री रहा है. पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री और परमार्थ निकेतन, हरिद्वार के प्रमुख ट्रस्टी चिन्मयानन्द ने रामदेव पर आरोप लगाया है कि पिछले आठ सालों में गरीबों के नाम पर रामदेव ने अरबों रूपया इकट्ठा किया लेकिन खर्च धेला नहींछींटे उछलने शुरू हो गये हैं. पहले उन्हें सलाहें मिलती थीं कि वह सिर्फ अपना योग संभालें राजनीति न करें. राजनीति न करें का अर्थ कि वह कालेधन और भ्रष्टाचार के मुद्दे को गंभीर न बनाएं यानी व्यवस्था तंत्र पर प्रहार न करें. बाबा ने इन सलाहों को सिरे से नकार कर भ्रष्टाचार विरोधी अपना नगाड़ा बजाना जारी रखा तो वह सब होना शुरू हो गया जिसकी भरी-पूरी आशंका थी. बाबा पर चौतरफा हमले शुरू हो गये.है।लोकतंत्र का सही अर्थ बताते हुए बाबा ने कहा कि एक राजा ने मेरे खिलाफ बोला है लेकिन लोकतंत्र में न कोई राजा होता है न रानी है सबसे बड़ी जनता की ताकत है
  • बाबागीरी में गलत क्या है अगर आप को एक राष्ट्र के नाते भारत को परिभाषित करना हो तो क्या कहेंगे? यह कि भारत दुनिया के नक्शे पर एक भौगोलिक टुकड़ा है या यह कि एक निश्चित सीमाओं में बंधा हुआ ऐसा भूभाग, जिस पर भारत सरकार की प्रभुसत्ता स्थापित है, जिस पर भारत का संविधान और कानून लागू होता है? नहीं, इन परिभाषाओं में हर नागरिक को भावनात्मक रूप से इस ईकाई के साथ जोड़ने की जीवंत शक्ति नहीं झलकती, इनमें वह प्राणतत्व नहीं दिखता, जो किसी को भी अपने देश से प्यार करना सिखाता है, जो हृदय में देशभक्ति के बीज बोता है, जो किसी भी नागरिक के मन में देश के लिए प्राण न्योछावर कर देने का जज्बा भर देता है। राष्ट्र एक जीवंत ईकाई है, वह हमारी जुबान से बोलता है, वह हमारे रहन-सहन, हमारी भाषा, हमारी संस्कृति के रूप में अभिव्यक्त होता है। तमाम अलग-अलग संस्कारों, धर्मो के बावजूद एक अरब से ज्यादा लोगों को एक सूत्र में बांधे रखने में सफल भूमिका का निर्वाह करता है। इन अर्थो में राष्ट्र यहां के समस्त नागरिकों का एक अखंड सांस्कृतिक समवेत है, एक वृहत्तर सांस्कृतिक ईकाई है, जो हम सबके दिलों में धड़कती रहती है। इसीलिए हर नागरिक को देश के बारे में सोचने का हक है। उसकी बेहतरी के बारे में, इस रास्ते में आने वाले अवरोधों के बारे में और उन्हें हटाने के तौर-तरीकों के बारे में। बाबा रामदेव को अगर देश की चिंता है और उनके पास देश की बेहतरी के लिए कुछ सुझाव हैं तो यह कहकर उनका उपहास नहीं किया जाना चाहिए कि वे योग कराते हैं तो योग ही कराएं, उन्हें राजनीति के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। इस तरह तो हर पेशे के लोगों से कहा जा सकता है। चिकित्सक लोगों का इलाज करें, उन्हें देश के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है, अधिवक्ता मुकदमे लड़ें, उन्हें देश के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है, शिक्षक बच्चों को पढ़ाएं, उन्हें देश की दुर्दशा से क्या मतलब? ये तर्क अनर्गल और अतार्किक हैं। बाबा ने योग के महत्व और जरूरत को पुनस्र्थापित किया है, बहुत से लोग उनके तरीके से अनेक बीमारियों से ठीक हुए हैं। योगासनों और प्राणायामों का वैज्ञानिक प्रभाव भी परीक्षित है। इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी है, उनके प्रति लोगों का आदर बढ़ा है। वे भी इस देश से उतना ही प्यार करते हैं, जितना कोई और कर सकता है। फिर उन्हें देश की बदहाल स्थिति के बारे में चिंता करने का उतना ही अधिकार है, जितना किसी राजनेता को। बात बेबात ब्लॉग में सुभाष राय

    योगसूत्र में योग के क्रियात्मक पक्ष की चर्चा की गई है। यह यौगिक क्रिया ध्यान लगाने की औपचारिक कला, मानव का आंतरिक स्थिति में परिवर्तन लाने, और मानव चेतना को पूर्ण रूप से अंतर्मुखी बनाने से संबद्ध थीं।ए.ई.गौफ ने ‘फिलासफी ऑफ दि उपनिषदाज (१८८२) में लिखा है कि योग का आदिम समाजों, खासकर आदिम जातियों निम्न जातियों से संबंध है। दार्शनिकों की एकमत राय है कि योग का तंत्र मंत्र, जादू टोने से भी संबंध रहा है। इस परिपेक्ष्य को ध्यान रखकर देखें तो बाबा रामदेव ने आधुनिक धर्मनिरपेक्ष योगियों की परंपरा का निर्वाह करते हुए योग प्राणायाम को तंत्र मंत्र,जादू टोने से नहीं जोडा है। बल्कि वे अपने कार्यक्रमों में किसी भी तरह के कर्मकांड आदि का प्रचार भी नहीं करते। अंधविश्वासों का भी प्रचार नहीं करते। सिर्फ सामाजिक राजनीतिक तौर पर उनके जो विचार हैं वे संयोगवश संघ परिवार या हिन्दुत्ववादियों से मिलते हैं।

    बाबा रामदेव का विखंडित व्यक्तित्व हमारे सामने है। एक ओर वे योग प्राणायाम को तंत्र वगैरह से अलगाते हुए धर्मनिरपेक्ष व्यवहार पेश करते हैं, लेकिन दूसरी ओर अपने जनाधार को बढाने के लिए हिन्दुत्ववादी विचारों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस समूची क्रिया में योग प्राणायाम प्रधान है, उनके राजनीतिक सामाजिक विचार प्रधान नहीं है। उनका योग प्राणायाम का एक्शन महत्वपूर्ण है। उनका हिन्दुत्व का प्रचार महत्वपूर्ण नहीं है। हिन्दुत्व के राजनीतिक विचारों को वे अपने योग के बाजार विस्तार के लिए इस्तेमाल करते हैं।
    यदि संत महंतों की राजनीतिक पार्टियां हिट कर जातीं तो करपात्रीजी महाराज जैसे महापंडित और संत की रामराज्य परिषद का दिवाला नहीं निकलता। हाल के वर्षों में बाबा जयगुरूदेव की पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त न हुई होती।

    उल्लेखनीय है बाबा जयगुरूदेव की उन इलाकों में जमानत जब्त हुई है जहां पर उनके लाखों अनुयायी हैं। बाबा रामदेव को यह ख्याल रखना चाहिए कि वे विश्व हिन्दू परिषद से ज्यादा प्रभावशाली नहीं हैं लेकिन कुछ क्षेत्रों को छोडकर अधिकांश भारत में विश्व हिन्दू परिषद चुनाव लडकर जमानत भी नहीं बचा सकती है। इससे भी बडी बात यह है कि भारतीय राजनीतिक जनमानस में अभी भी धर्मनिरपेक्षता की जडें गहरी हैं। कोई भी पार्टी धार्मिक या फंडामेंटलिस्ट एजेण्डा सामने रखकर चुनाव नहीं जीत सकती। गुजरात या अन्य प्रान्तों में भाजपा की सफलता का कारण इन सरकारों का गैर धार्मिक राजनीतिक एजेण्डा है। दंगे के लिए घृणा चल सकती है। वोट के लिए घृणा नहीं चल सकती। यही वजह है कि गुजरात में व्यापक हिंसाचार करने के बावजूद भाजपा यदि जीत रही है तो उसका प्रधान कारण है उसका अधार्मिक राजनीतिक एजेण्डा और विकास पर जोर देना।
    बाबा रामदेव कम्पलीट पूंजीवादी मानसिकता के हैं। वे योग और अपने संस्थान से जुडी सुविधाओं का चार्ज लेते हैं। उनके यहां कोई भी सुविधा मुफ्त में प्राप्त नहीं कर सकते। यह उनका योग के प्रति पेशेवर पूंजीवादी नजरिया है। वे फोकट में योग सिखाना,अपने आश्रम और अस्पताल में इलाज की व्यवस्था करने देने के पक्ष में नहीं हैं। मसलन उनके हरिद्वार आश्रम में चिकित्सा के लिए आने वालों में साधारण सदस्यता शुल्क ११हजार रूपये, सम्मानित सदस्यता २१ हजार रूपये, विशेष सदस्यता शुल्क ५१ हजार रूपये, आजीवन सदस्यता एक लाख रूपये, आरक्षित सीट के लिए २ लाख ५१ हजार रूपये और संस्थापक सदस्यों से ५ लाख रूपये सदस्यता शुल्क लिया जाता है।

    आयकर विभाग की मानें तो बाबा रामदेव द्वारा संचालित दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट भारत के समृद्धतम ट्रस्टों में गिना जाता है। जबकि अभी इसे कुछ ही साल अस्तित्व में आए हुए हैं। गृहमंत्रालय के हवाले से ‘तहलका‘ पत्रिका ने लिखा है कि बाबा रामदेव की सालाना आमदनी ४०० करोड रूपये है। यह आंकडा २००७ का है।

    असल समस्या तो यह है कि बाबा अपनी आय का आयकर विभाग को हिसाब ही नहीं देते। कोई टैक्स भी नहीं देते। पत्रिका के अनुसार ये अकेले संत नहीं हैं जिनकी आय अरबों में है। श्रीश्री रविशंकर की सालाना आय ४०० करोड रूपये,आसाराम बापू की ३५० करोड रूपये,माता अमृतानंदमयी ‘‘अम्मा“ की आय ४०० करेड रूपये, सुधांशु महाराज ३०० करोड रूपये,मुरारी बापू १५० करोड रूपये की सालाना आमदनी है। (तहलका,२४जून, २००७)

    एक अन्य अनुमान के अनुसार दिव्ययोग ट्रस्ट सालाना ६०मिलियन अमेरिकी डॉलर की औषधियां बेचता है। सीडी, डीवीडी, वीडियो आदि की बिक्री से सालाना ५ लाख मिलियन अमेरिकी डॉलर की आय होती है। बाबा के पास टीवी चैनलों का भी स्वामित्व है।

    उल्लेखनीय है बाबा रामदेव अपने कई टीवी भाषणों और टीवी शो में विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने और भ्रष्टाचार के सवाल पर बहुत कुछ बोल चुके हैं। हमारी एक ही अपील है कि बाबा रामदेव अपने साथ जुडे ट्रस्टों, आश्रमों, अस्पतालों और योगशिविरों के साथ साथ चल अचल संपत्ति का समस्त प्रामाणिक ब्यौरा जारी करें, वे यह भी बताएं कि उनके पास इतनी अकूत संपत्ति कहां से आयी और उनके दानी भक्त कौन हैं, उनके नाम पते सब बताएं। बाबा रामदेव जब तक अपनी चल अचल संपत्ति का समस्त बेयौरा सार्वजनिक नहीं करते तब तक उन्हें भारत की जनता के सामने किसी भी किस्म के नैतिक मूल्यों की वकालत करने का कोई हक नहीं है। भारत में अघोषित तौर पर संपत्ति रखने वाले एकमात्र अमीर लोग हैं या बाबा रामदेव टाइप संत महंत। जबकि सामान्य नौकरीपेशा आदमी भारत सरकार को आयकर देता है, अपनी संपत्ति का सालाना हिसाब देता है। भारत सरकार को सभी किस्म के संत महंतों की संपत्ति और उसके स्रोत की जांच के लिए कोई आयोग बिठाना चाहिए और इन संतों को आयकर के दायरे में लाना चाहिए।

    नव्य उदारतावाद के दौर में टैक्सचोरों और कालेधन को तेजी से सफेद बनाने की सूची में भारत के नामी गिरामी संत महंतों की एक बडी जमात शामिल हुई है। इन लोगों की सालाना आय हठात् अरबों खरबों रूपये हो गयी है। इस आय के बारे में राजनीतिक दलों की चुप्पी चिंता की बात है। उनके देशी-विदेशी संपत्ति और आय के विस्तृत ब्यौरे को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

    संतों महंतों के द्वारा धर्म की आड में कारपोरेट धर्म का पालन किया जा रहा है। धर्म जब तक धर्म था वह कानून के दायरे के बाहर था लेकिन जब से धर्म ने कारपोरेट धर्म या बडे व्यापार की शक्ल ली है तब से हमें धर्म उद्योग को नियंत्रित करने, इनकी संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने, सामाजिक विकास कार्यों पर खर्च करने की वैसे ही व्यवस्था करनी चाहिए जैसी आंध्र के तिरूपति बालाजी मंदिर से होने वाली आय के लिए की गई है।

    इसके अलावा इन संतों महंतों के यहां काम करने वाले लोगों की विभिन्न केटेगरी क्या हैं, उन्हें कितनी पगार दी जाती है,वे कितने घंटे काम करते हैं, किस तरह की सुविधा और सामाजिक सुरक्षा उनके पास है। कितने लोग पक्की नौकरी पर हैं, कितने कच्ची नौकरी कर रहे हैं। इन सबका ब्यौरा भी सामने आना चाहिए। इससे हम जान पाएंगे कि धर्म की आड में चल रहे धंधे में लोग किस अवस्था में काम कर रहे हैं।

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