Pages

click new

Monday, June 6, 2011

बलात्कार के अपराध में महिला आरोपी क्यों नहीं हो सकती ?

कल के आलेख लिव-इन संबंधों को एक बार और सुप्रीमकोर्ट की मान्यता पर दीप्ति, ने एक प्रश्न किया कि -आज ही एक वेब साइट पर पढ़ा कि महिला ही महिला का बलात्कार नहीं कर सकती है, कम से कम क़ानूनन। आप क्या इस मुद्दे पर रौशनी डाल सकते हैं?

इस संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय राजस्थान राज्य बनाम हेमराज एवं अन्य के मुकदमे में 27 अप्रेल 2009 को दिया है। जिसे यहाँ पूरा पढ़ा जा सकता है।

भारतीय दंड संहिता में बलात्संग के अपराध को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है-

धारा-375 बलात्संग-
जो पुरुष एतस्मिन पश्चात अपवादित दशा के सिवाय किसी स्त्री के साथ निम्न लिखित छह भांति की परिस्थितियों में से किसी परिस्थिति में मैथुन करता है वह पुरुष "बलात्संग" करता है, यह कहा जाता है-
पहला- उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध।
दूसरा- उस स्त्री की सम्मति के बिना।
तीसरा-उस स्त्री की सम्मति से, जब कि उस की सम्मति, उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को, जिस से वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति के भय में डाल कर अभिप्राप्त की गई है।
चौथा- उस स्त्री की सम्मति से, जब कि वह पुरुष यह जानता है कि वह उस स्त्री का पति नहीं है और उस स्त्री ने सम्मति इसलिए दी है कि वह विश्वास करती है कि वह ऐसा पुरुष है जिस से वह विधि पूर्वक विवाहित है या होने का विश्वास करती है।
पाँचवाँ- उस स्त्री की सम्मति से जब कि ऐसी सम्मति देने के समय वह विकृतचित्त या मत्तता के कारण या उस पुरुष द्वारा व्यक्तिगत रुप में या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से कोई संज्ञा शून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदार्थ दिए जाने के कारण, उस बात की, जिस के बारे में वह सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने मे असमर्थ है।
छठा- उस स्त्री की सम्मति से या बिना सम्मति के जब कि वह सोलह वर्ष से कम आयु की है।

स्पष्टीकरण- बलात्संग के अपराध के लिए आवश्यक मैथुन गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है।

अपवाद- पुरुष का अपनी पत्नी के साथ मैथुन बलात्संग नहीं है जब कि पत्नी पन्द्रह वर्ष से कम आयु की नहीं है।
इस तरह हम पाते हैं कि भारतीय दंड संहिता में बलात्संग ऐसा अपराध नहीं है जो कि स्त्री के द्वारा किया जा सके। बलात्संग ऐसा अपराध है जो केवल पुरुष द्वारा स्त्री के साथ किया जा सकता है। इस कारण से स्त्री द्वारा बलात्संग किया जाना संभव नहीं है।


यहाँ दीप्ति द्वारा जिस निर्णय की चर्चा की गई है उस में एक किशोर पर यह आरोप था कि उस ने किसी किशोरी के साथ बलात्कार किया है। उस में हेमराज नामक व्यक्ति और उस की पत्नी का भी सामान्य आशय था। जब कि सामान्य आशय का अर्थ यह है कि उस कृत्य को करने का समान रुप से इरादा होना और उस के लिए एक साथ हो जाना। किसी भी स्त्री के द्वारा भारतीय दंड संहिता में वर्णित बलात्कार का अपराध करना संभव नहीं होने के कारण यह भी संभव नहीं है कि उस तरह का सामान्य आशय किसी स्त्री का हो। यही मान कर उक्त प्रकरण में हेमराज की पत्नी को दोषमुक्त कर दिया गया था। जिस के विरुद्ध राजस्थान सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई थी। इस मामले में राजस्थान उच्चन्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यथावत रखा गया।

No comments:

Post a Comment