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Monday, August 15, 2011

सरकारी दवाओं से निजी प्रैक्टिस!

सहायक ग्रामीण चिकित्सक की सीएमओ से शिकायत

कोरबा-मोरगा ! केंद्र और राय सरकार द्वारा एक ओर जहां स्वास्थ्य के मामले में ग्रामीण अंचल को प्राथमिकता देते हुए स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को पलीता लगाया जा रहा है। ऐसे लोग अपने स्वार्थ के लिए सरकार और मरीज की जान दांव पर लगा रहे हैं। ऐसे ही एक सहायक ग्रामीण चिकित्सक द्वारा मोरगा में नयम विरूध्द कार्यों को बेधड़क अंजाम दिया जा रहा है।
ग्राम पंचायत मोरगा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सहायक ग्रामीण चिकित्सक द्वारा मारूतिनंदन के नाम से निजी क्लिनिक का भी संचालन किया जाकर अनेक तरह की बीमारियों के उपचार का दावा करते हुए प्रेक्टिस किया जा रहा है। मोरगा प्रतिनिधि अजय तिवारी ने ग्रामीणों के हवाले से बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बहुत ही कम समय दिया जाता है, यहां तक कि अधिकांशत: यहां ताला लगा रहता है। सरकारी अस्पताल में आने वाली विभिन्न बीमारियों की दवाइयां अस्पताल से नि:शुल्क वितरित न कर अपने निजी क्लिनिक में लाकर उसे मरीजों को बेचा जा रहा है। इतना ही नहीं एक ही सीरिंज को बार-बार प्रयुक्त कर अनेक मरीजों को इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे उन मरीजों में इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। इसकी शिकायत पूर्व में भी क्षेत्रवासियों द्वारा जिले के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी एवं खंड चिकित्सा अधिकारी से की जा चुकी है लेकिन आज तक किसी तरह की कार्रवाई अथवा जांच-पड़ताल नहीं हुई है। ज्ञात हुआ है कि चिकित्सा सहायक द्वारा अस्पताल में संसाधन जुटाने एवं दवाईयां खरीदी आदि के लिए जीवनदीप समिति से बिना किसी सलाह अथवा विचार-विमर्श के रूपये आहरण कर खर्च किया जा रहा है। जीवनदीप समिति की बैठक पिछले एक वर्षों से नहीं हुई है और इसका खुलासा तब हुआ जब जीवनदीप समिति की बैठक की कागजी खानापूर्ति कर ग्राम पंचायत मोरगा के सरपंच और उप सरपंच से हस्ताक्षर कराने की कोशिश की गई। दोनों पंचायत प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया।
सामानों की खरीदी में घोटाला
पीएचसी के लिए दो नग आलमारी एवं दो नग सीलिंग पंखा 31 जनवरी 2011 को कटघोरा में संचालित अग्रवाल एजेंसी से क्रय किया गया। इनमें एक आलमारी की कीमत 7150 रुपये व एक सीलिंग पंखा की कीमत 1450 रुपये दर्शाते हुए बिल बनवाया गया है एवं परिवहन खर्च 1000 रुपये बिल में दर्शाया गया है, लेकिन जब सामानों को परखा गया तो वे उपरोक्त कीमत के मानदंड पर किसी भी दृष्टिकोण से खरा नहीं उतरे। घटिया क्वालिटी के सामानों की खरीदी कर बेहतर क्वालिटी के सामान का बिल बनवाकर शासकीय राशि का दुरूपयोग किया गया है।

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