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Tuesday, October 25, 2011

साच को आंच क्या..?


                                                           बैतूल // रामकिशोर पंवार
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बैतूल  . कल पूरे दिन बैतूलवी पत्रकारिता में भूचाल आ गया। कल का दिन पत्रकारों को हमेशा याद रखना चाहिए। कल की हमारी खबर सह सिद्ध करती है कि बैतूल के पत्रकार कितने पढ़े लिखे एवं समझदार है। दुसरो को ज्ञान बाटने वाले स्वंय कितने अज्ञानी है। 

कल पूरे दिन पत्रकारों ने हंगामा मचाने में कोई कसर नहीं  छोड़ी। सवाल यह उठता है कि कल की खबर में कहा लिखा था कि यह पत्रकार इस अधिकारी से खैरात लेता है। सच का सामना कोई करना ही नहीं चाहता था। जिनके नाम नहीं छपे थे वे नाम क्यों नहीं छाने इस बात को लेकर हंगामा मचाते रहे और जिनके छपे थे वे इस बात को लेकर कि उनके नाम क्यों छापे गए। बैतूल के पत्रकारों को याद दिलाना चाहता हूं कि पत्रकारों की लिस्ट तो चार दिन पहले ही हमने अपनी वेब साइट बैतूल पत्रकाार ब्लाग पोस्ट डाट काम पर जारी कर दी थी ताकि लोग ओरीजनल पत्रकारों के लिए भटके न और सही जगह सही खबर पहुंचा सके। हमारी उस पहल का किसी ने स्वागत नहीं किया क्योकि उन्हे इतनी समझ कहां..?
लोगो के बारे में जब सवाल उठाते हो कि इस अधिकारी ने इतना बड़ा गड़बड़ घोटला किया तब पत्रकार ने भी सच का सामना करने का दंभ रखना चाहिए। प्रभु चावला एवं बरखादत्त जैसे पत्रकारों का नाम जब घोटाले में सामने आया तो उन्होने कोई सफाई नहीं दी। किसी के चेहरे पर कीचड़ या कालीख पोतने से कोई गंदा नहीं होता यदि वह पाक साफ है तो..? उस विवादास्पद लिस्ट में मेरा पांच बार मेरे दोनो भाईयों का नाम था इसका मतलब क्या खैरात पाने वालों की सूचि में हम भी शाामिल हो गए। हमे सच का सामना करना नही आता। सच को सिद्ध नही किया जाता क्योकि सच एकदम आइने की तरह पाक साफ रहता है। कल पूरा दिन मुझे मेरे बव्च्चे की उम्र के पत्रकार ज्ञान बाट रहे थे कि ऐसा क्यों करते हो..? ऐसे मे दुश्मनी बढ़ जाएगी। पूरे पत्रकार एक हो जाएगें और तुम अकेले पड़ जाओगें। 

मैंने पत्रकारिता भाई के भरोसे लुगाई लाने वाली नहीं की है और न करूंगा। मैं एक नहीं चार बार जेल गया वह भी झुठे प्रकरण में यह बात हर कोई पत्रकार जानता है उस समय कितने मेरे साथ आए..? मेरे खिलाफ पिछले दो सालो से जिला बदर की कार्रवाई चल रही है कितने पत्रकार मेरे पीछे थे मैं और मेरा भगवान जानता है जिन चार पत्रकारों को मैंने बतौर गवाह लेकर गया था उन लोगो के मैने कितने हाथ पैर जोड़े वे भी जानते है। जब हम किसी अधिकारी से उपकृत नहीं होते है तो हमें डर किस बात का ..? हम क्यों बार - बार चीख - चीख कर अपनी खीच और कमीज उतार रहे है। ऐसा नहीं कि मैं कोई दुध का धुला हूं और यह भी सच है कि कोई पत्रकार दुध का धुला है..? हमाम में सब नंगे है लेकिन उन लोगो को मिर्ची लगाने का काम उन चंद लोगो का है जो कि जयचंद और विभिषण कहे जाते है। मुझे याद है कि मेघवाल साहब जब तक बैतूल में रहे उनका एक ही डायलाग था कि एक रोटी है और चार कुत्ते सभी को एक - एक टुकड़े खिला दूंगा तो फिर मैं क्या खाऊंगा..? कहले का मतलब था कि कुछ लोगो को इस खबर से ऐसा लगा कि कहीं अधिकारी छपी लिस्ट देकर यदि लिफाफा देने लगे तो उन्हे तो फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी...? और ऐसे पत्रकारों ने लोगो को उनके कार्यालयों एवं मोबाइल पर मेरे खिलाफ इतना भड़काया कि कहाँ नहीं जा सकता। 

मैं हनुमान नहीं हूं और न माता सीता की हर बात के लिए अपनी सफाई पेश कर या फिर अग्रि परीक्षा दूं या फिर छाती फाड़ कर दिखाऊं कि मेरे मन में क्या है। लोग मुझे धमकाते रहे कि यह तो साइबर कानून है लेकिन भैया तुम्हारे पास तो साइबर भी नहीं है फिर तुम्हे कैसे मालूम कि कानून क्या है। देश मे कानून नाम की चीज होती तो इस देश में आधे से ज्यादा पत्रकार ब्लेकमेलिंग के चक्कर में जेल मे होते क्योकि वरसन पत्रकारिता सबसे बड़ा ब्लेकमेलिंग का प्रमाण है। किसी को यह बताना कि उसके खिलाफ यह मामला सामने आया है या उसके खिलाफ यह शिकायत आई है वह भी ब्लेकमेलिंग है क्योकि जिसने उपकृत किया उसके ब्यान को बढ़ा - चढ़ा कर छाप कर उसे उपकृत कर देना भी तो ब्लेक मेंलिंग है। बैतूल की पुलिस हजारो लोगो को साल भर पकड़ती है। हजारो लोगो के नाम छपते है अब मेरे ही पत्रकार भाई जरा अपने दिल पर हाथ रख कर यह तो बताएं कि उन्होने कितने लोगो के वरसन छापे कि वे क्यों पकड़ायें.? पत्रकारिता की परिभाषा जो दुसरो पर लागू होती है वह अपने ऊपर भी होनी चाहिए। 

मुझे छै साल तक आपस में लड़वा कर दोनो तबलो पर हाथ रखने वाले लोगो को यह नहीं भूलना चाहिए कि कुंभकरण को भी छै माह बाद होश आ जाता था लेकिन मुझे छै साल बाद यदि होश आया और मैं गलती को सुधारने चला तो पूरे पत्रकार जात के ऐसे भांड लोगो को बुरा लगा और वे लगे विधवा अलाप करने ताकि एक माहौल बना कर रामू को पत्रकारिता की जात बिरादरी से अलग - थलग किया जा सके लेकिन अजय देवगन की एक फिल्म का डायलाग हमेशा याद रखना चाहिए कि झुझड में सियार चलते है शेर नहीं ..? जिसमें होगा दम वहीं कहलाएगा बाजीराव सिंघम ....? एक बार फिर उस सूचि को लेकर जिसके भी मन में मेरे प्रति कुलषित भावना जागी हो तो वह इस पूरी खबर को स्वंय पढ़ कर अपने पढ़े लिखे होने का प्रमाण देंकर एक बार दिल से कहे कि सांच को आंच क्या...?

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