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Sunday, November 27, 2011

माया की फ्र्री स्टाइल से औंधे मुंह गिरे राजनीतिक पण्डे

            डॉ. शशि तिवारी
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                 कहते है प्यार और जंग में सब जायज़ होता है इतिहास गवाह है कि जनता जीत वाले का ही गुणगान करती है फिर बात चाहे राजा राम की हो, अकबर की हो, अशोक की हो या सिकंदर की हो। आज राजनीति कोई जंग से कम नही है जिसमें साम, दाम, दण्ड भेद का सहारा ले बड़ी दबंगाई के साथ किया जा रहा है। आज कोई भी राजनीतिक पार्टी दूध की घुली नहीं है। सभी का काम छल और भ्रम पैदा कर सत्ता हासिल करना ही शगल बन गया है। दिल्ली की राजनीति का प्रमुख केन्द्र प्रारंभ से ही उत्तर प्रदेश रहा है और हो भी क्यों आखिर उसने ही इस देश को सर्वाधिक प्रधानमंत्री जो दिये। मजाक में ही सही मायावती का नाम प्रधानमंत्री के लिए उछाला जा रहा है। उसके पीछे दूर की कौड़ी यह भी हो सकती है यदि भारत में सभी दलित एक हो जाए तो यह सपना भी पूरा हो सकता है।
                मायावती को ‘‘आयरन लेडी’’ भी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। उनके पूरे जीवन क्रम पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो आप भी मानने लगेंगे जिस स्तर से वह उठ तीव्र गति से राजनीतिक पटल पर छाई, राजनीतिज्ञों को चकमा दे अपनी दबंगाई की छबि बनाई जो आश्चर्यजनक  है। वह महिला होने के नाते से अतुलनीय है। फिर बात चाहे ताज कारीडोर की हो, या मूर्ति पार्कों की।
                वास्तव में देखा जाए तो माया ‘‘कर्मण्ये वाधिकारस्ते फलेषु कदाचना’’ की तर्ज पर कार्य कर अपने अभियान में भी सफलता अर्जित कर रही है। उनकी नजर एक सघे अर्जुन की भाँति है जिसकी नजर केवल चिड़िया की आँख (प्रधानमंत्री पद) पर है। माया ने बता दिया कि नारी अब 16 श्रृंगार तक ही सीमित नही है वह 16 मिनट में असंभव कार्य एक दो नही पूरे प्रदेश का 4 भागों में बंटवारा कर किसी चौधरी की तरह कर सबकी बोलती भी बंद कर सकती है। ये नारी शक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। नारी यदि अपने पर जाए तो देवता भी ‘‘त्राही माम’’ करते नजर आते है फिर ये तो अदने से मानव है। पूरा विपक्ष जिसमें कई पार्टियां जो एक दूसरे की राजनीतिक पृष्ठ भूमि में विरोधी रही, केवल और केवल अपनी ढींगा मस्ती और अच्छी नौटंकी कैसी हो इसी में व्यस्त रही और जब तक होश में आते 16 मिनट में ही कारवां लुट चुका था। अब पूरा विपक्ष उत्तर प्रदेश की भोली भाली जनता के निशाने पर अचानक ही गया है। जनता इनसे पूछ रही है, सवाल कर रही है ‘‘तू इधर-उधर की बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा। मुझे रहजनों से गिला नही, तेरी रहबरी का सवाल है।
                हकीकत में तो समूचे विपक्ष ने उत्तर प्रदेश की जनता के साथ विश्वासघात किया है। ये सभी जनता की अदालत में मुल्जिम है। क्या मुंह लेकर जायेंगे अब जनता के बीच, क्या कहेंगे कि हम लालची है? चंद रूपयों में नाटक करने के लिए बिक गए? हम केवल नोैटंकी में व्यस्त रहे? ऐसे अर्कमण्य नेताओं की खबर तो भविष्य में जनता ही लेगी? वही इनको इनके कर्मों की सजा भी देंगी? कहने को तो ये जनप्रतिनिधि अपने आप को जनता का रहनुमा बताते नहीं थकते। अब जब बहुमत से ही बंटवारा हो गया अर्थात् उत्तर प्रदेश की अधिकांश जनता के जनप्रतिनिधि ने अर्थात् उनकी आवाज ने ही टुकड़े कर दिये तो अब विपक्ष को भी बेवजहां का स्वांग रच भाण्डों की राजनीति बंद कर देना चाहिए और सच्चे मन से जनता की सेवा के कार्य में पुनः जुट जाना चाहिए। हो सकता है भविष्य में मालिक (जनता) खुश हो उस राज्य की सत्ता ही सौंप दें।
                हकीकत में उत्तर प्रदेश का बंटवारा वर्तमान प्रदूषित स्वार्थपरक, भ्रष्टाचारियों, लालचियों, वंशवाद की राजनीति करने वालों ने ही इसे नरक में धकेला है जिसमें सभी राजनीतिक दल बराबरी के जिम्मेदार है। ये सभी मिल एक दूसरे पर सिर्फ कीचड़ उछालने में ही मशगूल है। ऐसे में जनता अपने को छला सा, ठगा सा ही महसूस करती है। हकीकत में जनता की आवाज उसकी मंशा सुनने वाला कोई भी नहीं है। चाहे जो पार्टी हो हर हाल में महंगाई, भ्रष्टाचार, अत्याचार जनता को ही झेलना है। पता नही कब भ्रष्टों के विरूद्ध असली जनक्रांति होगी?
वास्तव में प्रदेश में पार्टियां तो आती जाती रहती है लेकिन जनता का दुख केवल वही का वही
रहता है बल्कि दिनोदिन और भी बढ़ता जाता है। राजनीतिक सांडो की लड़ाई के चलते उनके कभी भारत बंद, कभी शहर बंद, जैसी त्रासदी के साथ जन, धन की हानि झेलना पड़ती है सो अलग।
                                आज एक चलन और बढ़ गया है चाहे विधानसभा हो या संसद हो सभी में सत्ता पक्ष इनका संचालन अपने मनमाने तरीके से बहुमत की आड़ ले करते है। यह प्रवृत्ति देर सबेरे स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए खतरा ही साबित होगी? इसी तरह विगत् 20 वषों में देखे तो हम पाते है कि क्या संसद, क्या विधानसभाएं सभी के केवल कार्य दिवस कम हुए बल्कि कार्य दिवसों को केवल राजनीतिक लडाईयों का अखाडा ही बनाते जा रहे है। अब संविधान के मंदिरों में भी लात-घूसों से मार पिटाई, की घटनाएं आम सी हो गई है। आज जन प्रतिनिधियों का संसद या विधानसभा चलाने में रूचि कम अपने वेतन भत्तों को बढ़ाने एवं पेंशनों की अधिक चिंता रहती है और हो भी क्यों , जनता का माल मुफ्त में जो उडाने को मिल रहा है।
 
(लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक हैं)
मो. 9425677352

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