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Saturday, December 17, 2011

पारदर्शिता से परहेज करती देश की न्यायपालिका एवं विधायिका के दृष्टान्त

मनीराम शर्मा
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समक्ष केन्द्रीय  सूचना आयोग, नई दिल्ली
अपील सं.          /20

अनुक्रमणिका सह प्रलेख सूची
विषय-वस्तु                      पृष्ठ संख्या
1.      याचिका                                       1-3
2.      सूचनार्थ आवेदन दिनांक   05.10.11                4
3.      लो सू अ पत्र दिनांक   11.11.11                  5-8
4.      अपीलीय अधिकारी का पत्र दिनांक 06.12.11                 9
5.      प्रार्थी का रेजोइंडर  दि    25.11.11                              10-11
6.      प्रथम अपील दिनांक     04.11.11                 12  
7.      डाक विभाग का सुपुर्दगी प्रमाण पत्र                13        

मनीराम शर्मा, नकुल निवास,  रोडवेज डिपो के पीछे, सरदारशहर  331 403 जिला-चूरू (राज.) ई-मेल :maniramsharma@gmail.com       -प्रार्थी-अपीलार्थी
नामोपरि
1.श्री ऐ की साहू ,जन सूचना अधिकारी, राज्यसभा, नई दिल्ली -110001
2.                  श्री दीपक गोयल, अपीलीय अधिकारी, राज्यसभा, नई दिल्ली -प्रत्यर्थी विपक्षीगण

मान्यवर,
अपील ज्ञाप
उपरोक्त शीर्षकीय अपीलार्थी -प्रार्थी की अपील विरूद्ध प्रत्यर्थी-विपक्षी निम्नानुसार निवेदन है:-
1.                  यह है कि प्रार्थी-अपीलार्थी ने उक्त केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी को डाक से सशुल्क आवेदनपत्र  दिनांक 05/10/2011 को प्रस्तुत कर संलग्न आवेदनानुसार कुछ सूचनाओं हेतु आग्रह किया था ।
2.                  यह है कि प्रत्यर्थी ने अपने पत्र दिनांक 11.11.11 से कुछ अपूर्ण एवं भ्रामक सूचनाएँ देते हुए सूचित किया कि उसे बिंदु संख्या 1 (दिनांक 05.08.11 को प्रेषित याचिका)  याचिका उसे प्राप्त नहीं है  जबकि स्पीड पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार स्पीडपोस्ट कवर संख्या ER 765073828IN में समाहित यह याचिका  दिनांक 19.08.11 को लोक प्राधिकारी के कार्यालय में प्राप्त हो चुकी है|
3.                  यह है की प्रार्थी ने बिंदु संख्या 2 में याचिका समिति के समक्ष प्रस्तुतीकरण की तिथि जानना चाहा था किन्तु जवाब में इस पर प्राप्त  टिप्पणियों को प्रार्थी को भेजने आदि की तिथियाँ (?) सूचित की है जोकि असम्यक, अवांछित एवं भ्रामक होने के कारण असंतोषजनक है |
4.                  यह है की प्रार्थी ने बिंदु संख्या 3 में याचिका समिति द्वारा पारित आदेश जानना  चाहा था किन्तु जवाब में बिंदु 34 को अपमिश्रित कर सम्बन्धित नियम उद्धृत किये गए हैं| इसी प्रकार प्रत्यर्थी ने बिंदु संख्या 6 से 911 से 12  तक का संयुक्त अपमिश्रित जवाब दिया गया है जोकि असम्यक, अवांछित एवं भ्रामक होने के कारण असंतोषजनक है | यदि दी जाने वाली सूचना सटीक एवं स्पष्ट हो तो उसे बिन्दुवार वर्गीकृत कर दिया जा सकता है और किसी प्रकार के अपमिश्रण की आवश्यकता नहीं है| प्रत्यर्थी ने बिन्दुवार सूचना नहीं देकर कई बिंदुओं को एक साथ मिलाकर चतुराई से भ्रमित करने का अनुचित प्रयास किया है|  
5.                  यह है कि संविधान के अनुच्छेद 118 के अंतर्गत माननीय सदन ने अपनी प्रक्रिया के नियम अधिनियमित कर रखे हैं और सदन उन्हीं नियमों से शासित है और इसके विपरीत/भिन्न किसी परिपाटी की स्थापना किसी भी प्राधिकारी द्वारा नहीं की जा सकती और न ही इन नियमों का किसी भी प्राधिकारी द्वारा परित्याग किया जा सकता| जबकि प्रत्यर्थी ने बिंदु संख्या 10  के जवाब में (इन नियमों का परित्याग करते हुए) यह सूचित किया है स्थापित परिपाटी एवं प्रक्रिया के अनुसरण में... जोकि विधिविरुद्ध है|

6.                  यह है कि प्रत्यर्थी ने प्रार्थी को समय पर कोई  सूचना नहीं दी जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी ने प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील प्रस्तुत की तथा दिनांक 25.11.11 को प्रत्युक्ति (rejoinder)  भी भेजी किन्तु अपीलीय अधिकारी श्री दीपक गोयल ने  इस पर विचार किये बिना ही दिनांक 06.12.11 को निर्णय कर दिया और सम्बंधित (मानित) सूचना अधिकारी श्री ऐ के साहू का स्पष्ट पक्षपोषण किया है |  

7.                  यह है कि माननीय केन्द्रीय सूचना आयोग में आवक डाक की डायरी वेबसाइट पर उपलब्ध है जिससे नागरिक अपने पत्राचार के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकता है| केन्द्रीय सूचना आयोग में प्रथम व द्वितीय अपील की सुनवाई दूरभाष पर भी होती है| विपक्षी के कार्यालय में भी समान प्रक्रिया अपनाने से अधिनियम का उत्कृष्ट क्रियान्वयन हो सकेगा और लोक अधिकारी के कृत्यों में पारदर्शिता आने से उनकी विश्वसनीयता में वृद्धि होगी| केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो इम्फाल ईमेल की प्राप्ति अभिस्वीकृति  स्वचलित प्रणाली से तुरंत भेजता है|

8.                  यह है कि पंजाब राज्य सूचना आयोग द्वारा, निर्णय की सही क्रियान्विति के लिए, निर्णय के बाद भी प्रकरण को सूचीबद्ध किया है| प्रार्थी को यह अंदेशा है कि विपक्षी द्वारा हठधर्मितापूर्वक माननीय आयोग के निर्णय की सही एवं भावनात्मक अनुपालना नहीं की जायेगी| 
9.                                          यह है कि न्याय के प्राकृतिक सिद्धान्त के अनुकूल विपक्षी के बिन्दुवार सशपथ जवाब की प्रति, प्रार्थी को सीधे ही प्रेषित करने के लिए आदिष्ट किया जावे तथा मान्यवर द्वारा निर्णय से पूर्व प्रार्थी को टिप्पणी हेतु उचित अवसर प्रदान करने की अनुकम्पा की जावे और प्रकरण प्रार्थी के पक्ष में व विपक्षी के विरूद्ध अधिनियम के उद्देश्यानुसार 7 सप्ताह में निर्णित कर निम्नानुसार अनुकम्पा की जावे व प्रत्यर्थी गण/लोक प्राधिकारी को धारा  19 (8) के अंतर्गत  निर्देश दिए जाएँ कि  :-
(क)     प्रार्थी द्वारा वांछित समस्त सूचनाएं उसी प्रारूप में, शीघ्रतम एवं धारा 7 (6)19 (8)  के अनुसार निःशुल्क दी जावें,
(ख)      प्रत्यर्थी धारा 4(1) (क) की अनुपालना कर उसे वेबसाइट पर प्रकाशित करे,
(ग)       अपील प्राधिकारी विपक्षी संख्या 2 दूरभाष से अपीलों की सुनवाई करे और अपना निर्णय व नोटिस तुरंत व  जहाँ उपलब्ध  हो, ई-मेल से प्रेषित करे,
(घ)       अधिनियम के अंतर्गत आवेदन व अपील की प्रगति को वेबसाइट पर प्रदर्शित करे तथा ईमेल बॉक्स को नियमित खोले व रिकार्ड रखे  ,
(ङ)       लोक प्राधिकारी के यहाँ संधारित सभी डायरियों व जनता से प्राप्त समस्त  याचिकाओं और उन पर प्रतिवेदनों को वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाये ,
(च)      पारदर्शिता व दक्षता को बढ़ावा देने के लिए लोक प्राधिकारी के यहाँ प्राप्त ईमेल की प्राप्ति अभिस्विकृति ईमेल से तुरंत भेजे  अथवा ऐसी स्वचालित प्रणाली स्थापित करे,
(छ)      धारा 4(4) के अनुसरण में  वेबसाइट की सूचना का स्थानीय भाषा हिंदी रूपांतरण शीघ्रातिशीघ्र जारी करे,
(ज)     प्राप्त किन्तु गुम हुई डाक की तलाश करे व नहीं मिलने पर उसके सम्बन्ध में पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाई जाये
(झ)     मानित लोक सूचना अधिकारी श्री ऐ के साहू को भ्रामक सूचना प्रदनागी के अभियोग में धारा 20 के अंतर्गत दण्डित किया जाय,
(ञ)      प्रकरण निर्णित होने के दो माह बाद अनुपालना सुनिश्चित करने हेतु इसे पुनः सूचीबद्ध किया जाये व
(ट)            अन्य कोई आदेश जिसे मान्यवर समीचीन, न्यायानुकूल एवं अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में सहायक समझें, वह भी प्रसारित किया जावे।  
                                                अपीलार्थी  - प्रार्थी
                                   
मनीराम शर्मा
मो 919460605417,919001025852
मैं, मनीराम शर्मा , इस  याचिका   की मद संख्या 1 से 9  तक मय अनुतोष मेरे निजी ज्ञान तथा विश्वास के आधार पर सत्य होना प्रमाणित करता हूँ तथा मैं यह भी शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि अपील के साथ संलग्न दस्तावेज अपने मूल की सत्यप्रतियाँ हैं व इस सम्बन्ध में मैंने किसी अन्य प्राधिकारी, न्यायाधिकरण या न्यायालय में कोई कार्यवाही संस्थित नहीं की है।

                                                   मनीराम शर्मा
 सरदारशहर                         दिनांक:15:12:11 
....................................

समक्ष केन्द्रीय सूचना आयोग,नई दिल्ली
अपील सं0            /20

अनुक्रमणिका सह प्रलेख सूची
विषय-वस्तु                      पृष्ठ संख्या
1.      याचिका                                       1-3
2.      सूचनार्थ आवेदन दिनांक   26.09.11                4-5
3.      के लो सू अ पत्र दिनांक   31.10.11                6-7
4.      प्रथम अपील दिनांक     26.10.11                 8                                   



मनीराम शर्मा,नकुल निवास,  रोडवेज डिपो के पीछे, सरदारशहर  331 403 जिला-चूरू (राज.) ई-मेल :maniramsharma@gmail.com       -प्रार्थी-अपीलार्थी
नामोपरि
  1. के ज सू अ , भारत का उच्चतम न्यायालय , तिलक मार्ग, नई दिल्ली –110001
  2. अपीलीय अधिकारी, भारत का उच्चतम न्यायालय , तिलक मार्ग, नई दिल्ली –110001                                -प्रत्यर्थी विपक्षीगण

अपील ज्ञाप
मान्यवर,
उपरोक्त शीर्षकीय अपीलार्थी -प्रार्थी की अपील  विरूद्ध प्रत्यर्थी-विपक्षी निम्नानुसार निवेदन है:-
1.                  यह है कि प्रार्थी-अपीलार्थी ने उक्त केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी को डाक से सशुल्क आवेदनपत्र  दिनांक 26/09/2011 को प्रस्तुत कर संलग्न आवेदनानुसार कुछ सूचनाओं हेतु आग्रह किया था।
2.                  यह है कि आवेदक ने यह अपेक्षा की थी की उसे प्रत्युतर/सूचना ईमेल से भेजी जाय और सम्बंधित विभाग से प्राप्त मूल रूप में ही भेजी जाय किन्तु प्रत्यर्थी ने  सूचना न तो मूल रूप में भेजी है और न ही ईमेल से| अधिनियम की धारा 7(9) में प्रावधान है की सूचना मौजूद स्वरूप में ही दी जायेगी किन्तु प्रत्यर्थी ने सूचना को पुनरुद्धृत (Reproduce) कर दिया है जिससे दी गयी सूचना की प्रमाणिकता संदिग्ध हो जाती है और सूचना के वास्तविक स्रोत/उद्गम (Sourc)  का ज्ञान नहीं होता है |
3.                  यह है कि प्रत्यर्थी ने निर्धारित समायावधि में कोई सूचना नहीं दी है जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी ने प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष ई-मेल से प्रथम अपील प्रस्तुत की | प्रथम अपील प्राधिकारी ने अभी तक किसी   आदेश पारित करने से अवगत नहीं करवाया है |
4.                   यह है कि केन्द्रीय सचिवालय प्रक्रिया पुस्तक के अनुसार प्राप्त ईमेल की अभिस्वीकृति ईमेल से भेजी जानी चाहिए जोकि सहज और सरल भी है| माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रार्थी को न्यायिक प्रकरणों में आदेश एवं नोटिस ईमेल से भेजे जाते रहे हैं तथा डाक द्वारा भी नोटिस जारी होने के दिन तुरंत भेजे जाते हैं किन्तु प्रत्यर्थी संख्या 2 ने अपना अपीलीय आदेश आज तक  नहीं भेजा है और जानबूझकर  विलम्ब कर डाक से प्रेषित करने की परिपाटी बना रखी है | अधिनियम के अनुसार प्रत्यर्थी संख्या 2 ने निर्णय में विलम्ब के लिए कोई अपेक्षित कारण भी नहीं देने की  परिपाटी बना रखी है |
5.                  यह है कि प्रार्थी को बिंदु संख्या 1 से  8 तक पर कोई सूचना उपलब्ध नहीं करवाई गयी है| प्रत्यर्थी द्वारा दिया गया सम्पूर्ण जवाब ही टालमटोल पूर्ण व भ्रामक है| प्रत्येक आवेदन के लिए आवेदक अलग-अलग शुल्क अदा करता है और अधिनियम में किसी बिंदु पर एक से अधिक बार सूचना मांगने पर उसी प्रकार कोई प्रतिबन्ध नहीं जिस प्रकार एक पक्षकार एक मामले में किसी दस्तावेज की अनगिनत बार प्रतियाँ ले सकता है| सुप्रीम कोर्ट ने क्रान्ति एण्ड एसोसियेटस  बनाम मसूद अहमद खान की अपील सं0 2042/8 में कहा है, इस बात में संदेह नहीं है कि पारदर्शिता न्यायिक शक्तियों के दुरूपयोग पर नियंत्रण है। निर्णय लेने में पारदर्शिता न केवल न्यायाधीशों तथा निर्णय लेने वालों को गलतियों से दूर करती है बल्कि उन्हें विस्तृत संवीक्षा के अधीन करती है|”
6.                  यह है की प्रार्थी ने बिंदु संख्या 78 में जानना चाहा था कि सर्वोच्च न्यायालय की नामित कमिटी द्वारा न्यायाधीशों की संख्या निर्धारण हेतु किये गए अभ्यास कार्य की प्रति दी जाय किन्तु प्रत्यर्थी ने यह भ्रामक और टालमटोल पूर्ण जवाब दिया है कि इस तिथि में ऐसी कमिटी अस्तित्व में नहीं है जोकि सम्यक व उचित नहीं है| आज दिन चाहे कमिटी अस्तित्व में न हो किन्तु उसके द्वारा किया गया कार्य तो अस्तित्व में हो सकता है और उसकी प्रति दी जा सकती है| प्रत्यर्थी और/या उसके सहयोगी मानित के ज सू अ ने जानबूझकर यह भ्रामक सूचना दी है और इसके लिए उसे धारा 20 के अंतर्गत दण्डित किया जाय|   
7.                              यह है कि विपक्षी द्वारा धारा 4(1)(a)  के अनुसार न तो अनुक्रमणिका संधारित की जा रही है , न ही उसके विवरण आवेदक को दिए गए हैं और न ही यह वेबसाइट पर प्रकाशित की जा रही है| धारा 4(2) के अनुसार प्रत्यर्थी को अधिकांश सूचना स्वतः ही वेबसाइट पर दे देनी चाहिए ताकि नागरिकों को सूचना हेतु न्यूनतम आवेदन करना पड़े |     
8.                                          यह है कि न्याय के प्राकृतिक सिद्धान्त के अनुकूल विपक्षी के बिन्दुवार सशपथ जवाब की प्रति, प्रार्थी को सीधे ही प्रेषित करने के लिए आदिष्ट किया जावे तथा मान्यवर द्वारा निर्णय से पूर्व प्रार्थी को टिप्पणी हेतु उचित अवसर प्रदान करने की अनुकम्पा की जावे और प्रकरण प्रार्थी के पक्ष में व विपक्षी के विरूद्ध अधिनियम के उद्देश्यानुसार 7 सप्ताह में निर्णित कर निम्नानुसार अनुकम्पा की जावे व प्रत्यर्थी गण/लोक प्राधिकारी को धारा  19 (8) के अंतर्गत  निर्देश दिए जाएँ कि  :-
(क)     प्रार्थी द्वारा वांछित समस्त सूचनाएं उसी प्रारूप में, शीघ्रतम एवं धारा 7 (6)19 (8)  के अनुसार निःशुल्क दी जावें,
(ख)      अपील प्राधिकारी विपक्षी संख्या 2 दूरभाष से अपीलों की सुनवाई करे और अपना निर्णय व नोटिस तुरंत व  जहाँ उपलब्ध  हो, ई-मेल से प्रेषित करे,
(ग)       अधिनियम के अंतर्गत आवेदन व अपील की प्रगति को वेबसाइट पर प्रदर्शित करे ,
(घ)      लोक प्राधिकारी के यहाँ संधारित सभी डायरियों को वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाये ,
(ङ)       पारदर्शिता व दक्षता को बढ़ावा देने के लिए लोक प्राधिकारी के यहाँ प्राप्त ईमेल की प्राप्ति अभिस्विकृति ईमेल से तुरंत भेजे अथवा ऐसी स्वचालित प्रणाली स्थापित करे,
(च)       धारा 4(1)(a)  के अनुसरण में अनुक्रमणिका व सूचीपत्र संधारित करे व उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित की  जावे ताकि आवेदकों को आवेदन करने में आसानी हो ,
(छ)          अन्य कोई आदेश जिसे मान्यवर समीचीन, न्यायानुकूल एवं अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में सहायक समझें, वह भी प्रसारित किया जावे। आपकी अति कृपा होगी।
                                                अपीलार्थी  - प्रार्थी
                                   
मनीराम शर्मा
मो 919460605417,919001025852
मैं, मनीराम शर्मा , इस  याचिका   की मद संख्या 1 से 8  तक मय अनुतोष क से छ  तक मेरे निजी ज्ञान तथा विश्वास के आधार पर सत्य होना प्रमाणित करता हूँ तथा मैं यह भी शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि अपील के साथ संलग्न दस्तावेज अपने मूल की सत्यप्रतियाँ हैं व इस सम्बन्ध में मैंने किसी अन्य प्राधिकारी, न्यायाधिकरण या न्यायालय में कोई कार्यवाही संस्थित नहीं की है।
                                                            मनीराम शर्मा
 सरदारशहर                         दिनांक:15:12:11  

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