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Saturday, December 17, 2011

अब समय आ गया है कि बैतूल के भी भाग्य का फैसला हो जाए

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अब समय आ गया है कि बैतूल
के भी भाग्य का फैसला हो जाए
बैतूल,(रामकिशोर पंवार): जबसे बालाघाट को छत्तिसगढ़ राज्य में शामिल करने की वकालत शुरू हुई है तबसे बैतूल जिले के भी भाग्य के फैसले पर राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को विचार करना चाहिए। बैतूल जिले की मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लगातार की जा रही उपेक्षा के एक नहीं सैकड़ो प्रमाण बताए जा सकते है। कभी सीपीएण्ड बरार स्टेट का अंग रहे बैतूल जिले का एतिहासिक एवं पौराणिक लगाव विदर्भ राज्य से रहा है। विदर्भ के राजा विराट के साले कीचक द्वारा बनाया गया अस्तबल एवं व्यायाम शाला कीचकधरा में थी जो कि वर्तमान में बैतूल जिले एवं महाराष्ट्र के सीमवार्ती जिले अमरावति की सीमा पर स्थित है जिसे चीकलधरा के नाम से पुकारा जाता है। विदर्भ की राजकुमारी दमयंती एवं राजा नल की कहानी बैतूल जिले में स्थित मासोद के तालाब से आज भी बयां होती है। पाडंव ने अपना अज्ञातवास बैतूल जिले के सालबडऱ्ी क्षेत्र की गुफाओं में काटा है। इस स्थान से ठहराव के बाद पाडंव कीचकधरा गए थे। जहां पर विदर्भ के राजा विराट के साजे कीचक का वध भीम ने किया था। बैतूल जिले की आबहवा एवं रहन सहन तथा पहनावा विदर्भ संस्कृति से मिलता - जुलता है। यहां पर खेती से लेकर अन्य सभी धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियां विदर्भ से मिलती - जुलती है। इस जिले में विदर्भ के संतो एवं महात्माओं का आम जनमानस पर गहरा प्रभाव रहा है। बैतूल जिले में अखंड भारत का केन्द्र बिन्दु है। यहां पर सूर्यपुत्री मां ताप्ती एवं चन्द्रपुत्री मां पूर्णा का जन्मस्थान है। यहां पर कुरूवंश के संस्थापक राजा कुरू की मां ताप्ती एवं पिता राजा सवरण का मिलन भी हुआ था। बैतूल जिले का विदर्भ से लगाव के पीछे मध्यप्रदेश सरकार की जिले के प्रति लगातार उपेक्षा प्रमुख कारण रही है। प्रदेश सरकार बैतूल जिले को अपना अंग नहीं मानती है इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि प्रदेश गान में सभी पर्वतो नदियो का उल्लेख किया गया है लेकिन सतपुड़ाचंल में बसे बैतूल की पर्वतमाला सतपुड़ा एवं जिले की प्रमुख पवित्र नदियो ताप्ती एवं पूर्णा का जिक्र तक नहीं है। पर्यटन विभाग एवं लोक संस्कृति विभाग द्वारा बनाया गया हमारा मध्यप्रदेश एवं पर्यटन विभाग के गीतो एवं वीडियो में बैतूल जिले के जंगलो से लेकर पर्यटन स्थलो तक की उपेक्षा की गई है। उस स्थान को भी प्रदेश सरकार अपने यशागान में भूल गई जहां पर प्रदेश के मुख्यमंत्री इको टूरिज्म का नाम देते है। कुकरू की हसीन वादियो से लेकर बैतूल जिलें के गोण्ड राजाओं के इतिहास तथा बैतूल जिले में आजादी के आंदोलन एवं उसके पूर्व के सभी एतिहासिक तथ्यो को नजर अंदाज करने का प्रयास किया गया है। जिले में मौजूद से पारस पत्थर की कहानी से लेकर गुरू नानक देव के मां ताप्ती की जन्मस्थली में ठहरने की गाथा को भी सरकार इस कदर भूली है कि अब जिले के लोगो को लगने लगा है कि ऐसे प्रदेश से जुडऩे से क्या फायदा जो उसे अपना अंग ही नहीं मानता है। भारत वर्ष में छोटे-छोटे पृथक राज्यों की मांग कर रहे विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों ने मिलकर नेशनल फेडरेशन बनाया जिसका नाम नेशनल फेडरेशन फॉर न्यू स्टेट्स रखा गया. हाल ही में दिल्ली के कन्च्यूशनल क्लब में इसी संस्था के बैनर तले आन्ध्र प्रदेश से तेलंगाना, बंगाल से गोरखा, महाराष्ट्र से विदर्भ व उत्तर प्रदेश से बुंदेलखंड, ब्रज प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश), अवध और पूर्वांचल के प्रतिनिधियों ने एक साथ मिलकर अपने -अपने पृथक राज्यों की मांग को लेकर अपनी-अपनी आवाज बुलंद की जिसमें तेलंगाना से पी निरुप रेड्डी, गोरखा से मनीष गतांक व श्रीमती दिल कुमारी भंडारी (पूर्व सांसद ) ,विदर्भ से अनिल जी (विधायक) , बुंदेलखंड से राजा बुंदेला , ब्रज प्रदेश से डा0. के .एस.राना , दुर्ग विजय सिंह भैया , अशोक शर्मा , अवध से मार्कंडेय प्रसाद सिंह और पूर्वांचल से डा0.संजयन त्रिपाठी, अशोक चौबे, मनोज भावुक व कुलदीप श्रीवास्तव के प्रतिनिधित्व में सैकड़ों बुद्धिजीवियों , समाजसेवियों , साहित्यकारों , कलाकारों व पत्रकारों ने शिरकत किया और अपने- अपने विचार रखे। बैतूल जिले में भी पृथक विदर्भ राज्य की मांग में जिले को शामिल करने की मांग की सुगबहाट शुरू हो गई है। बैतूल जिले का राजनैतिक इतिहास देखा जाए तो जिले के पहले लोकसभा सदस्य भीखूलाल चांडक विदर्भ क्षेत्र से थे जो इंडियन नेशनल कांग्रेस से 1951 में लोकसभा सदस्य चुने गए। बैतूल जिले की राजनैतिक गतिविधियो में विदर्भ के नेताओ का जिले में काफी हस्तक्षेप रहा है। जिले का अधिकांश कारोबार एवं रोजगार नागपुर से जुड़ा हुआ है। जिले के सभी रेल्वे स्टेशन सेंट्रल रेल्वे नागपुर डिवीजन एवं जिले की कोयला खदाने वेस्टर्न कोल फिल्ड नागपुर से संबधित रही है। जिले में सक्रिय मां ताप्ती जागृति मंच बैतूल ने विदर्भ के शेर कहे जाने वाले विदर्भ वीर जामंतराव धोटे के द्वारा शुरू की गई मांग को अपना समर्थन देकर आने वाले समय में इसे जनआन्दोलन का रूप देने की मुहीम शुरू कर दी है। 

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