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Friday, March 23, 2012

सौ साल से चम्पा के फूलो की होती है बरसात

सौ साल से चम्पा के फूलो की होती है बरसात
बैतूल // रामकिशोर पंवार
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जहाँ एक ओर लोग सडक़ो और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड़ लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। यह पेड़ आज भी सदियों से चली आ रही अपनी परम्परा के अनुसार चैत्र मास की नवरात्री भर सुबह - सुबह माता मैया के पूरे चबुतरे को सफेद फूलो से सजा देता है। माता रानी को सुबह चैत्र मास की नवरात्री पर कुंवारी कन्याएं तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर चढ़ाने आती है उस समय चम्पा का पेड़ भी अपने ताजे फूलो से मां खेड़ापति के प्रति आस्था को व्यक्त करता है। ग्राम पंचायत रोंढा में सेवानिवृत वनपाल श्री दयराम पंवार के पैतृक मकान से लगे इस पेड़ की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेडापति माता मैया के चबतुरे पर लगे इस पेड़ ने अपनी उम्र के लगभग सवा सौ साल पार कर लिए है। 
 
जबसे चम्पा के पेड़ में फूल आ रहे है तभी से लेकर आज तक चम्पा के फूलो की अविरल बरसात माता रानी के ऊपर हो रही है। ग्राम रोंढा की 79 वर्षिय श्रीमति गंगा बाई नरसू देवासे के अनुसार उसके जन्म के पहले से इस स्थान पर उक्त चम्पा का पेड़ है। श्रीमति देवासे के अनुसार गांव के इस मोहल्ले की उस गली के मोड़ पर स्थित चम्पा के पेड़ के नीचे से कभी हाथी आया - जाया करता था लेकिन चम्पा के पेड़ की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड़ के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। गांव की सर्वाधिक लोकप्रिय बिजासन माई - माता मैया के नाम से पुकारी जाने वाली इस आदिशक्ति स्वरूपा मां जगदम्बा के पूरे चबुतरे पर चम्पा के फूलो की सेज देखती बनती है। वैसे कहा जाता है कि चम्पा के फूल देवी - देवताओं पर नहीं चढ़ाए जाते है। 
 
चम्पा के बारे में लोक कहावत है कि चम्पा तेरे तीन गुण रंग रूप और बास चम्पा , चम्पा तेरा एक अवगुण भंवरा न आए पास  इस कहावत के बारे में लोगो का कहना है कि चम्पा के फूल की का रंग और रूप बहुंत सुंदर होता है। यह फूल सुंगधित नहीं होता है जिसके कारण इस पर भंवरा कभी नहीं मंडराता है। वैसे कहा जाता है कि फूलो में सिर्फ तीन फूलो की ही चर्चा होती है। चम्पा ,चमेली और बरेली के फूल इन तीनो को देखना जाना न भूल भी सबसे कहलाने वाली इस खेडापति माता माँ के चबुतरे पर लगे इस पेड को कुछ लोगो के द्धारा काटने का भी प्रयास किया लेकिन पूरे दिन भर तीन लोग मिल कर भी पेड की एक डाली काट नहीं पाये। चम्पा के पेड को काटने वालो में स्वंय के बेटे के भी याामिल होने की बात कहने वाली श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार शाम को पेड काटने वाले इस तरह बिमार हुये कि छै माह तक उनका इलाज चलता रहा। 
 
जब दवा -दारू से लोग ठीक नहीं हुये तब दुआ ही काम आती है अंत में गांव के उन तीनो युवको ने माता माँ से एवं उस चम्पा के पेड के पास माफी मांगी और पूजा - अर्चना की तब जाकर वे ठीक हो सके। गांव के एक ही परिवार के दो मुखिया इसी पेड की डाली को काटने के चक्कर में अकाल मौत के शिकार हो चुके है। ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस तरह की घटना के बाद से उस गली से चौपहिया वाहनो एवं बैलगाडी का निकलना तक बंद हो गया। गांव के लोग उस चम्पा के पेड के लिए गांव की गली को सडक़ तक बनाने के लिए सहमत नहीं हो पा रहे है। गांव की उस गली को पक्की सीमेंट रोड बनाये जाने का प्रस्ताव पास होकर पडा है लेकिन सभी के सामने समस्या यह है कि उस पेड को आँच न आये और सडक़ बन जाये। ग्राम के लोगो की आस्था के केन्द्र बने इस चम्पा के पेड से लगे माता मंदिर का चबुतरा भी श्री पंवार के द्वारा अपने स्वर्गीय माता श्रीमति मीना बाई भोभाट एवं पिता स्वर्गीय श्री मंहग्या जी भोभाट की स्मृति में बनाया जा चुका है। 
 
इसके अलावा ग्राम रोंढा के ही मूल निवासी सेवानिवृत वनपाल श्री दयाराम पंवार के पुत्रो द्वारा गांव के अपने पैतृक मकान की भूमि माता माँ के मंदिर व चबुतरे के लिए दान में दी जा चुकी है। गंाव के लोगो की आस्था का एवं विश्वास का केन्द्र बने चम्पा के पेड के प्रति पूरे गांव का प्रेम ही उसकी सुरक्षा करेगा। अब गांव का कोई भी व्यक्ति उस पेड़ को काटने या उसकी डाली को छाटने की बात नहीं करता। बैतूल जिले के छोटे से सर्वोदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकड़ो जी महराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पड़े थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड़ को देखने के लिए लोग दूर - दूर से आते रहते है। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड है जो कि अपनी उम्र के सौ साल पूरे कर चुका है। पेड़ो से इंसान का रिश्ता नकारा नहीं जा सकता शायद यही कारण है कि लोगो की आस्था एवं विश्वास  तथा श्रद्धा के इस त्रिवेणी संगम कहे जाने वाले पेड़ में कड़वी नीम के पेड़ की एक नई फसल उगने के बाद पेड़ बनती जा रही है इसके बाद भी कड़वी नीम की कड़वाहट इस चम्पा के पेड़ के फूलों में न आने वाली सुगंध में पर कोई असर कर पाई है। 
 
बैतूल जिले के ग्राम रोंढा के इस चम्पा के पेड़ के लिए अपना पैतृक खण्डहर हो चुके मकान के ध्वस्त हो जाने के बाद भी उस स्थान पर कोई मकान आदि का निमार्ण न करने वाले सेवाविनृत वनपाल श्री पवांर के पुत्रो ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एवं माता रानी के चबुतरे के लिए अपनी स्वेच्छा भूमि दान करके  लोगो को एक संदेश देना चाहा है कि लोग इंच भर की जमीन के लिए एक दुसरे की जान के दुश्मन बने हुये है लेकिन उक्त जमीन को दान में देने से उनका गांव के प्रति प्यार और स्नेह और अधिक हो जायेगा। किसी ने कहाँ भी है कि जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि ...... हो सकता है कि शायद अपने बच्चो के एवं अपने जन्म से जुड़े अपने गांव से अपना रिश्ता बरकरार रखने के लिए जो 30 साल तक वन विभाग में वनो की सुरक्षा का दायित्व निभाने के बाद उम्र के उस ठहराव पर श्री पंवार का यह अभिनव प्रयास उन लोगो के लिए एक उदाहरण बनेगा जो कि अपने घरो - दुकानो - मकानो - सडक़ो और गलियों के नाम पर हरे - भरे पेड़ो को बेरहमी से काट डालते है।

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