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Saturday, April 21, 2012

राज्य सुरक्षा कानून का आरोपी मुक्त

नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतो का मिला लाभ
बैतूल। राज्य सुरक्षा कानून के तहत प्रस्तुत पुलिस प्रतिवेदन को नस्तीबद्ध करते हुए न्यायालय जिला दण्डाधिकारी, बैतूल बी चंद्रशेखर ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतो का आरोपी को लाभ देते हुए कहा कि आरोपी का आचरण अच्छा रहा हो तो उस दशा में पुराने मामलों केआधार पर वर्तमान मे निष्कासन की कार्यवाही नहीं की जा सकती। पुलिस की ओर से प्रस्तुत कार्यवाही को प्रमाणित करने में अभियोजन विफल रहा।
क्या हैं मामला
पुलिस अधीक्षक बैतूल द्वारा वर्ष 2007 में पुलिस थाना शाहपुर के अतंर्गत अनावेदक पिपली उफ पंकज पिता रामस्वरूप रावत निवासी परदेशीपुरा शाहपुर, जिला बैतूल के विरूद्ध 17 मामलों की सूची प्रस्तुत करते हुए राज्य सुरक्षा एवं लोक व्यवस्था कानून 1990 की धारा 5 के अंतर्गत कार्यवाही के लिए प्रतिवेदन जिला दण्डाधिकारी के न्यायालय में पेश किया गया। पुलिस प्रतिवेदन में बताया गया किआरोपी अपना जीवन यापन सट्टे के कारोबार से करता हैं। सट्टे के आवैधानिक कारोबार से जुड़े रहने से आसामाजिक तत्वों की भीड़ जमा होती हैं। आसपास की एवं कस्बे की जनता त्रस्त एवं आतंकित हैं। भय एवं आतंक के कारण उसे विरूद्ध कोई भी व्यक्ति अपराध की सूचना नहीं देता और उसके विरूद्ध न्यायालय में गवाही भी नहीं देता हैं।क्षेत्र की जनता का भय दूर करने के लिए, सार्वजनिक शांति एवं व्यवस्था कायम करने के लिए आरोपी/अनावेदक को उसके क्षेत्र से हटाकर कही और रहने के लिए आदेशित किया जाए।
दोनो पक्षों के गवाह पेश
जिला दण्डाधिकारी, बैतूल के समक्ष पुलिस प्रतिवेदन एवं अपराधों की सूची की पुष्टि के लिए अभियोजन पक्ष की ओर से 02 साक्षीगण सुंदरे शैलेन्द्र कुमार शर्मा एवं जेएल को पेश किया जिन्होने वर्ष 2001 से अपराधिक गतिविधियों की पुष्टि की गई। इसके अतिरिक्त स्वतंत्र साक्षी मुन्नालाल सोनी ने वाहन दुघर्टना के प्रकरण की पुष्टि की गई। इसके अलावा गवाह ने किसी झगड़े की पुष्टि नहीं की और आरोपी के अन्य मामलों को लेकर कोई जानकारी नहीं होना बताया। बचाव पक्ष की ओर से 12 गवहों की सूची न्यायालय में पेश की गई और 07 गवाहों का परीक्षण करवाया गया। अभियोजन पक्ष की ओर से प्रतिपरीक्षण में गवाहों ने बताया कि वे आरोपी के विरूद्ध पंजीबद्ध प्रकरणों की जानकारी नहीं हैं और 24घंटे उसके साथ नहीं रहते हैं।
विधि पर तर्क
न्यायालय जिला दण्डाधिकारी के समक्ष अभियोजन और बचाव पक्ष ने तर्क पेश किए। बचाव पक्ष के अधिवक्ता किशोर घावरे ने लिखत जवाब में हाई कोर्ट के पूर्व फैसलो की जानकारी देते हुए तर्क दिया कि अभियोजन के गवाहों का प्रतिपरीक्षण का अवसर बचाव पक्ष को सुनवाई के दौरान नहीं मिला हैं। मप्र राज्य सुरक्षा कानून 1990 की धारा 5(ख) के अधीन सार्वजनिक घूत अधिनियम के कुछ छुट पुट मामलों के आधार पर निष्काषन की कार्यवाही नहीं की जा सकती। इस कानून का उपयोग आरोपी के पूर्ण के कार्यो के लिए दण्ड देने में उपयोग नही किया जा सकता।
साक्ष्य का मूल्यांकन
जिला दण्डाधिकारी बी चन्द्रशेखर ने साक्ष्य का मूल्यांक एवं विश£ेषण करते हुए यह पाया कि पुलिस ने वर्ष 2001 से वर्ष 2007 तक पंजीबद्ध किये गए अपराधिक प्रकरणों एवं प्रतिबंधात्मक कार्यवाही के आधार पर आरोपी के विरूद्ध प्रतिवेदन पेश किया गया हैं। भारतीय दण्ड विधान के 02 प्रकरण, जुआ एक्ट के 06 प्रकरण, प्रतिबंधात्मक कार्यवाही के 07 प्रकरणों की जानकारी पेश की गई हैं। अपराधिक प्रकरणों की सूची में से वर्ष 2005 एवं 07 में जुआ एक्ट के प्रकरणों में दो बार अर्थदण्ड से दण्डित किया गया हैं।
सदाचार का लाभ
विद्वान दण्डाधिकारी बी चंद्रशेखर ने पाया कि प्रकरण के विचाराधीन रहने के पिछले 4 वर्षो के दौरान आरोपी के विरूद्ध कोई भी अपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध होने का तथ्य अभियोजन पक्ष की ओर से प्रकट नहीं किया गया हैं। पुलिस प्रतिवेदन में दर्शाए गए अपराधिक प्रकरण 2007 के पूर्व के हैं। 2012 में निष्कासन की कार्यवाही आरोपी के विरूद्ध 2007 तक पंजीबद्ध हुए अपराधिक प्रकरणों के आधार पर किया जाना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत हैं। इस दशा में आरोपी पपली उर्फ पंकज के विरूद्ध प्रस्तावित की गई कार्यवाही को प्रमाणित करने में अभियोजन पक्ष असफल रहा। मप्र राज्य सुरक्षा कानून 1990 की धारा 5 के अधीन कार्यवाही किए जाने के लिए ठोस आधार नहीं होने से आरोपी को जारी नोटिस नस्तीबद्ध किया गया। आरोपी की ओर से किशोर घावरें अधिवक्ता ने पैरवी की।

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