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Saturday, June 9, 2012

हम सुधरना क्यों नहीं चाहते?

 ( डा. शशि तिवारी )
 हमारे ग्रन्थों में लिखा है मुखिया कैसा होना चाहिए, राजा कैसा हो, प्रजा के लिए क्या-क्या करना चाहिए और क्या नहीं, रीति व नीति क्या हो, आदि-आदि। वही प्रजा में भी देश/प्रदेश के लिए ईमानदारी व वफादारी भी सर्वोच्च प्राथमिकता में होना चाहिए। ताकि प्रजा और राजा (प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री) प्रदेश/देश को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकें।

 आज राजा एवं मंत्री दोनों पर ही प्रजा तरह-तरह के भ्रष्टाचार के न केवल आरोप लगा रही है बल्कि ये सच भी हो रहे है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हमारे देश की निष्पक्ष न्यायालय की है। शुरू में तो प्रत्येक आरोपित व्यक्ति अपने को ईमानदार बताने का ही पूरा-पूरा प्रयास करता है, वो बात अलग है कि इसके लिए ही पूरा-पूरा प्रयास करता है, वो बात अलग है कि इसके लिए वह झूठ पर झूठ बोले, प्रजा को गुमराह करें, लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि आरोपित व्यक्ति निःसंदेह कही न कही दागदार तो होता ही है, ऐसा हाल में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों से साबित हुआ है। आज सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि लोकतंत्र पर भी ये काली छाया न केवल पड़ रही है बल्कि इन जन प्रतिनिधियों को भी जनता ने भी शक एवं अविश्वास की नजर से देखना शुरू कर दिया है।

 आप ईमानदार है ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि आपके क्रियाकलापों से ईमानदारी का झलकना इस तरह जनता को आदर्श प्रस्तुत करने के लिए खुद को भी न्यायिक/दण्ड प्रक्रिया से गुजरना ही चाहिए। यदि टीम में कोई दागी है, भ्रष्टाचारी है तो उसे किसी भी स्तर से बचाव की जगह दूध का दूध पानी का पानी करना ही चाहिए। चक्रवती राजा रामचन्द्र ने भी प्रजा की संतुष्टि के लिए कई परीक्षाएं दी जो सर्वविदित है। जब देश के मुखिया प्रधानमंत्री पर यदि कोयला ब्लाॅक आवंटन पर भ्रष्टाचार का आरोप टीम अन्ना के सदस्य लगाते है तो मंत्री मण्डल का पूरा कुनबा अति उत्साह में आकर बचाव के मूड में बिना सोचे-समझे कूद अपनी-अपनी स्वामी भक्ति का परिचय बढ़ चढ़ कर देने में जुट जाते हैं। यहां यह नहीं भूलना चाहिए हमारे यहां न्यायिक प्रक्रिया है, स्वयं को निर्दोष बता देने मात्र से कोई निर्दोष नहीं हो सकता। यदि सभी लोग ऐसा करने लगे और ऐसा कहने लगे तो न्यायिक प्रक्रिया के साथ-साथ संवेैधानिक ढांचा ही ध्वस्त हो जायेगा? जिस देश की प्रजा नंगी-भूखी हो महंगाई, भ्रष्टाचार से कराह रही हो तो उस देश/राज्य का राजा कैसे चैन की नींद सो सकता है। यदि जिम्मेदार भारतीय कोई भी नागरिक तर्क प्रमाण के साथ आरोप या प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है तो बजाए इसके कि खुद निर्दोष साबित करने सारे जतन करने की जगह उसी के पीछे पड़ जाना कहाँ तक उचित है? इस तरह के कृत्य से राजा एवं प्रजा दोनों की ही छवि धूमिल होती है जो किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए? यह भी यक्ष प्रश्न है जो कार्य जनहित-प्रजाहित के पक्ष में पक्ष एवं विपक्ष के जन प्रतिनिधियों को उठाना चाहिए वे दायित्वों का निर्वहन न कर अन्ना हजारे, बाबा रामदेव की टीम कर रही है। आज विपक्ष सिर्फ और सिर्फ सौदेबाजी की भूमिका तक ही सिमट कर रह गया ह,ै जिससे कही न कही विपक्ष के जन प्रतिनिधियों से विश्वास उठता जा रहा है? ऐसी विषम परिस्थिति में अगर कोई सिविल सोसायटी या नागरिक देशहित के मुददों को उठाता है तो उसे प्रोत्साहन देना चाहिए? आज हर राजनीतिक पार्टी में ऐसे बयानवीर है जिनका काम केवल ऊल-जुलूल बयान दे, जन-मुद्दों से भटका न केवल अपना समय काटना है बल्कि पार्टी हाईकमान की नजरों में चढ़ने के लिए ‘‘कुछ भी करेगा’’ की तर्ज पर अपने को तमाशा दिखाना भी है। क्या यह लोकतंत्र का अपमान नहीं है? कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि ये ‘‘तू चोर मेंैं सिपाही’’ की अदला-बदली की भूमिका में ही मगन रहते हेंैं।

 विगत् चार वर्षों में लगभग अर्द्धशतकीय घोटाले उजागर हो चुके है। प्रारंभ में सभी जवाबदेह मंत्रियों ने सिरे से न केवल नकारा बल्कि सुनियोजित ढंग से बचाव में बचाव टीम भी उतरी थी। लेकिन यहां भला हो न्यायालय का इन वर्षों में जनता की उम्मीदों पर खरा उतर गुनाहगारों को जेल के सींखचों के पीछे भेजा फिर चाहे भले ही वह व्यक्ति कितना ही असरदार या वजनदार क्यों न रहा हो? इससे निःसंदेह न्यायालय ने अपनी पवित्रता को न केवल बरकरार रखा है बल्कि जनता का विश्वास भी इन संस्थाओं पर बढ़ा है।

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