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Saturday, July 28, 2012

ठेंगे पे रखता है संविधान को अन्ना सम्प्रदाय !



पंकज चतुर्वेदी


कोई बारह सौ कारें, प्रत्येक में चार लोग यानी कुल मिलाकर 4800, तीन सौ से कम मोटरसाइकिल यानी अधिकतम छह सौ, कुछ और फुटकर जोड. लें; सब कुछ मिलाकर बमुश्किल सात हजार लोग. उनके सामने केजरीवाल और उनके साथियों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कुछ मिनट पहले राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचित हुए प्रणब मुखर्जी के लिए जो आपत्तिजनक शब्द इस्तेमाल किए, उससे स्पष्ट है कि अन्ना के नाम पर आंदोलन करने वाले ना सिर्फ अपने लोकपाल के लक्ष्य से भटक गए हैं, बल्कि वे लोकतंत्र के मायने, संविधान की र्मयादा, देश की कार्यप्रणाली किसी पर भी ना तो भरोसा रखते हैं और ना सम्मान. यदि अन्ना संप्रदाय के पास असल में 15 मंत्रियों के खिलाफ ठोस प्रमाण हैं तो वे सुप्रीम कोर्ट जा कर विशेष जांच दल के गठन की मांग क्यों नहीं करते. सनद रहे कि टू-जी, कॉमनवेल्थ सहित कई मामलों में ऐसा हो चुका है.

दिल्ली एनसीआर, जिसकी आबादी एक करोड. अस्सी लाख से अधिक ही होगी, उसमें महज सात हजार लोग जुडे. उस रैली में. चूंकि एक कार सड.क पर चलने पर कम से कम सात मीटर की जगह घेर रही थी, सो बारह सौ कारों की लंबाई कम से कम आठ किलोमीटर में फैल गई थी- कहने को हो गया कि भारी जनसर्मथन जुटा था अन्ना हजारे की मुहिम के लिए. असल में यह तमाशा इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि अन्ना-टीम के लोगों की विश्‍वसनीयता आम जन समुदाय में घटती जा रही है. यही नहीं यह आंदोलन महज मध्य वर्ग के उन लोगों का है जो लोन लेकर मकान-कार रखते हैं, जो इंटरनेट व लैपटॉप से लैस हैं और जिसके सामाजिक सरोकार महज महानगरीय सुविधाओं तक ही सीमित हैं. एक तरफ अन्ना कहते हैं कि सरकारी कर्मचारियों को तृतीय वर्ग लोकपाल के दायरे में होना चाहिए क्योंकि आम लोगों का वास्ता सबसे ज्यादा उनसे ही पड.ता है. दूसरी ओर वह आम आदमी इस प्रदर्शन में बिसरा दिया गया, क्योंकि ना तो उसके पास कार है और ना ही मोटरसाइकिल. सबसे बड.ी बात अभी तक अन्ना समुदाय लोगों को यह विश्‍वास दिलाने में असफल रहा है कि लोकपाल आने से ही भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा. जब यही सब कुछ होना था तो इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा करने की क्या जरूरत थी. यही नहीं बीते तीन महीनों में अन्ना के समुदाय में भी जम कर टूट-फूट हुई. स्वामी अग्निवेश से लेकर अरुणा राय तक अलग हुए.

इस बात से भी कई लोग आहत थे कि अन्ना टीम के कुछ सदस्य लोकपाल की आड. में कांग्रेस-विरोधी राजनीतिक समीकरण बनाने में जुटे हैं. वैसे यह बात तो जाहिर है कि दिल्ली एनसीआर की प्रात:कालीन शाखाओं में बौद्धिक के दौरान स्वयंसेवकों को जंतर-मंतर पहुंचने के निर्देश दिए जा रहे हैं. कुल मिलाकर केजरीवाल और किरण बेदी अपनी गिरती साख से परेशान थे और उन्होंने यह उद्देश्यहीन कार-मोटरसाइकिल रैली आयोजित कर दी. रैली में केवल कांग्रेस और केंद्र सरकार को कोसने वाले पोस्टर थे, पीले कागज पर छपे हुए, जिन्हें जनता अपने साथ नहीं लाई थी, ‘इंडिया अगेन्स्ट करप्शन’ ने छपवाया था. जब लोकपाल बिल का मसला संसद में है, राज्यसभा में वह विपक्ष के द्वारा पास नहीं हो पाया ऐसे में केवल कांग्रेस को कोसना किसी भी तरह से निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता.
यह बात केजरीवाल- बेदी -भूषण एंड संस जानते हैं कि संसद में बिल पास करवाने के लिए क्या करना चाहिए. इसके बावजूद दिल्ली में कार रैली करने का उनका निर्णय उनके ‘प्रभाव-समाज’ मध्य वर्ग को ललचाने के प्रयास से अधिक नहीं है. कुछ हजार लोगों की कार रैली, सड.क पर काफी लंबाई में फैली तो दिखी लेकिन उसमें वे लोग गायब थे जो अन्ना के आंदोलन को बड.ी उम्मीदों से देखते थे. कुल मिलाकर नौ हजार लीटर पेट्रोल अकेले कारें पी गईं. फिर मोटरसाइकिल – स्कूटर ने भी हजार लीटर से ज्यादा ईंधन फूंका.

इस रैली के चलते जगह-जगह जाम लगे. दिल्ली, जहां रविवार को कुछ कम यातायात होता है और माना जाता है कि इस दिन शहर के फेफडे. कुछ तसल्ली से सांस लेते हैं; लोकपाल-रैली ने हर रोज से ज्यादा दूषित कर दिया हवा को. काश, अन्ना समुदाय ने इस मसले को व्यापक रूप में लिया होता. यह भी तय है कि उस आंदोलन के संचालक पर्यावरण, समाज इस बात से भी कई लोग आहत थे कि अन्ना टीम के कुछ सदस्य लोकपाल की आड. में कांग्रेस-विरोधी राजनीतिक समीकरण बनाने में जुटे हैं. वैसे यह बात तो जाहिर है कि दिल्ली एनसीआर की प्रात:कालीन शाखाओं में बौद्धिक के दौरान स्वयंसेवकों को जंतर-मंतर पहुंचने के निर्देश दिए जा रहे हैं.



पंकज चतुर्वेदी,लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं. इस समय नेशनल बुक ट्रस्ट में सम्पादक हैं.

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