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Thursday, November 8, 2012

नग्नता और सम्भोग

 नग्नता और सम्भोग

प्रेत जगत की मेरी पाँच कहानिंयाँ जहाँ अनेक पाठकों द्वारा पसन्द की गयी । और इस विषय पर मुझसे और भी अधिक लिखने का आग्रह किया गया । तथापि इसका दूसरा पक्ष यह भी था । कि उनमें वर्णित नग्नता और सम्भोग प्रसंग की पाठकों ने कटु आलोचना की । कुछ लोग जो प्रेत आवाहन की क्रियाओं के बारे में जानकारी रखते हैं । उनका कहना था । कि प्रेत आवाहन के लिये स्त्री या पुरुष का नग्न अवस्था में होना आवश्यक नहीं होता ? दूसरे जिस तरह का वर्णन मैंने किया । वह भी उन्हें अविश्वसनीय लगा ।
मैंने पहले भी यह बात कही है  कि अलौकिक ग्यान को लेकर प्रत्येक साधक का स्तर और तरीका एक ही विषय में एकदम भिन्न होता है । लेकिन जो लोग नग्नता या सम्भोग पर विशेष परिस्थितियों में भी आपत्ति समझतें हैं । उनके लिये कुछ हमारे जीवन के ही पहलू रख रहा हूँ । आप स्त्री पुरुष कोई भी हों । या आपका कोई सम्बन्धी हो । अगर डाक्टर से कुछ खास किस्म के चेकअप कराने होते हैं । तो वहाँ आपको " नग्न " होना ही पङता है । इसी प्रकार प्रेत आवाहन क्रिया एक प्रकार की डाक्टरी ही है ।
नग्नता की एक दूसरी जरूरत ये भी होती है  कि जब भी कोई प्रेतपीङा से ग्रसित हो जाता है । तो प्रेत पूरे शरीर पर प्रभावी होता है । इस स्थिति में अभिमन्त्रित धुँआ फ़ेंकने और अन्य क्रियाओं द्वारा वह पूर्णतया मुक्त हो जाता है । एक छोटा सा उदाहरण समझें कि जब आप स्टीम बाथ लेते हैं । उस स्थिति में कपङे पहनकर आप पूरा लाभ उठा सकते हैं ?
दूसरा उदाहरण । आजकल बाडी मसाज का काफ़ी चलन है । तो जब कोई स्त्री या पुरुष गै्र मर्द या स्त्री से मसाज कराते हैं । तो क्या वो पूरे कपङे पहनकर मसाज का लाभ उठा सकते हैं । इसी तरह सी बीच पर लेटकर सूर्य की धूप लेने के लिये मात्र एक छोटी चढ्ढी ही पहनी जाती है । आप नहाते हो तो नग्न होकर नहाते हो । बहुत से स्त्री पुरुष नग्न अवस्था में रात को सोते हैं । ऐसे ही उदाहरणों पर आलोचकों के पास कोई तर्क है । कि आखिर नग्नता क्यों जरूरी है ?


खैर । अब मैं आपको एक बङी घटना बताता हूँ । महाभारत काल में जब हस्तिनापुर की गद्दी के लिये वारिस की समस्या आन पङी । क्योंकि उस समय जो शासक था । वो संतान पैदा करने में अक्षम था । तब महारानी द्वारा महाभारत आदि कई धार्मिक ग्रन्थों के रचयिता श्री वेद व्यास जी से आग्रह किया गया कि वो " वंशबेल " को बङाने में योगदान करें ।
व्यास " नियोग पद्धित " के जानकार थे । उन्होंने कहा । रानियाँ पूर्णतः नग्न अवस्था में मेरे सामने से गुजर जाँय । महारानी ने दोनों रानियों और एक दासी को इसके लिये तैयार किया । दासी इसलिये शामिल कर ली कि रानियों से कोई गङबङ हो जाय । तो दासी पुत्र को गुपचुप रूप से तैयार कर लिया जायेगा ।
रानियों को यह बात बेहद अटपटी और नागवार लगी । इसलिये एक रानी ने शर्म की वजह से अपने चेहरे को लम्बे बालों से ढक लिया । आँखे बन्द हो जाने से इस रानी के जन्मांध धृतराष्ट्र पैदा हुये ।
दूसरी रानी ने शर्म की वजह से अपने पूरे शरीर पर " पडुआ मिट्टी " का लेप ( पीली मिट्टी ) कर लिया । इस रानी के गर्भ से " पांडु " पैदा हुये । जो जन्म से ही पान्डु रोग यानी पीलिया से पीङित थे ।
दासी बेचारी आग्या मानने को बेबस थी । इसलिये वो और कुछ तो नहीं कर पायी । मुँह ही मुँह में बुदबुदाते हुये । " बुदुर बुदुर " करते हुये निकली । दासी के इसी तरह बुदबुदाते रहने वाले " विदुर " पैदा हुये । उनका नाम ही इसीलिये विदुर पङा ।
तो देखा आपने । इलाज में जिस स्थान पर कमी हो गयी । वहीं विकार हो गया
महाभारत से ही एक और उदाहरण देखें । महाभारत का युद्ध समाप्त होने के कगार पर था । और कौरवों में केवल दुर्योधन शेष था । तब उसकी माता गांधारी ने ये एक ही पुत्र शेष बचा रहे । इस हेतु एक विशेष उपाय किया ।
 उसने दुर्योधन से कहा । कि मैंने विवाहोपरान्त आज तक किसी को नहीं देखा । इसलिये तुम पूर्णतः नग्न होकर मेरे सामने आ जाना । तब जब मैं पट्टी खोलकर तुम्हें देखूँगी । उससे तुम्हारा शरीर वज्र के समान हो जायेगा । दुर्योधन ऐसा कर भी रहा था ।


श्रीकृष्ण ने सोचा । ऐसा हुआ । तो पूरा खेल ही खराब हो जायेगा । उन्होने उसकी हँसी बनाते हुये कहा  - अरे तुमने । माता की बात का गलत अर्थ लगा लिया । नग्न होने का मतलब अधोवस्त्र भी उतार देना नही है ?
दुर्योधन बातों में आ गया । और उसने कमर का हिस्सा ढक लिया । गांधारी ने पट्टी खोल दी । और उसे बेहद अफ़सोस हुआ । पर अब तो जो होना था । वो हो चुका । बाद मैं भीम ने गदा युद्ध में उसकी जंघा ही तोङी थी । यदि वो नग्न होता तो जंघा भी वज्र हो जाती ।
एक और बात । श्री शुकदेव जी जव युवावस्था के प्रारम्भ में ही थे । वे तप करने को वन में चल दिये । पीछे पीछे उनके वृद्ध पिता मनाने हेतु चले । तब पिता ने देखा । कि आगे एक सरोवर में नग्न स्त्रियाँ स्नान कर रही थीं । श्री शुकदेव जी निकलते चले गये और वे स्त्रियाँ पूर्ववतः नहाती रहीं ।
पर जैसे ही उन्होंने शुकदेव के वृद्ध पिता को आते देखा । उन्होंने तेजी से कपङे पहने और बाहर आकर उन्हें प्रणाम किया । तब शुकदेव के पिता को बहुत जिग्यासा हुयी ।
उन्होंने कहा - हे देवियों ! मेरे युवा पुत्र के सामने तुम नग्न अवस्था में ही स्नान करती रहीं । और मुझ वृद्ध को देखते ही तुमने वस्त्र पहन लिये । इसका क्या कारण है ?
स्त्रिंयो ने कहा - महात्मन ! श्री शुकदेव जी ग्यान की उस अवस्था में पहुँच चुके हैं । जहाँ स्त्री पुरुष का भेद नहीं होता । पर आपकी दृष्टि में वो भेद है ।
आपने अक्सर देखा होगा । कि उच्च स्थिति के महात्मा जव किसी वीराने या वन आदि में होते हैं । वे दिगम्बरावस्था में रहना पसन्द करते हैं । परमात्मा से मिलने हेतु साधक को पूर्णतः आवरण रहित होना होना पङता है । लेकिन यहाँ इसका अर्थ मात्र नग्नता ही नहीं बल्कि सभी विकार आवरणों को त्यागना है ।
क्या आप जानते हैं । कुछ जगहों पर न्यूडिस्ट सिटी । न्यूडिस्ट सोसाइटी । न्यूडिस्ट पीपुल जैसी अनेक संस्थायें हैं । जिनसे जुङे लोग नियमानुसार अपने उस परिवेश में नग्न ही रहते हैं । यकीन न हो तो ये शब्द " गूगल " में टायप कर सर्च कर के देखें ।


अब थोङी देर " सम्भोग " की भी बात कर लें । सम्भोग शब्द का जिक्र आते ही एकदम स्त्री पुरुष की कामक्रीङा का दृष्य सामने आ जाता है । क्या वास्तव में सम्भोग शब्द का अर्थ इतना ही है ?
जी नहीं । संभोग का अर्थ इससे कहीं बहुत व्यापक है । भूख लगने पर भूख और भोजन का सम्भोग । प्यास लगने पर प्यास और पानी का सम्भोग । कोई रोग हो जाने पर रोग और औषधि का सम्भोग । यह सब सम्भोग ही हैं । प्रकृति ( नारी ) पुरुष ( चेतन ) से निरंतर संभोगरत है । इसी से प्रकृति में हर क्षण बदलाव और नया निर्माण होता रहता है ।
सम्भोग क्या है ? निरंतर होती हुयी क्रिया में जब कोई क्षुधा जैसी " आवश्यकता " उत्पन्न होती है । उसकी पूर्ति करना ही सम्भोग है ।
रजनीश ने " सम्भोग से समाधि " बताया है । इसका भी अर्थ बहुत लोग ये लगा लेते हैं । कि अधिक स्त्री या पुरुष सेवन ( विपरीत लिंगी ) से समाधि को प्राप्त किया जा सकता है । रजनीश ने कोई अनोखी बात नहीं कही । शास्त्र भरा पङा है । इस बात से ।
पर इसका अर्थ वो नहीं हैं । जो आप समझते हैं । इसका वास्तविक अर्थ है । भोगों का इस तरह से व्यवहार करना । कि आपकी आवश्यकता भी पूर्ति हो जाय । और भोग आप पर कोई प्रभाव भी न छोङे । यानी भोगों में सम स्थिति को प्राप्त करना । भोगों को सम दृष्टि से देखना । भोगों को आवश्यकता अनुसार भोगना और तदुपरान्त भोगों से नीरस हो जाना ही वास्तविक सम्भोग है ।

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