महाकालेश्वर मंदिर में मनमाने निर्माण |
उज्जैन - (डॉ. अरुण जैन) समृद्घ शिल्प इतिहास और पुरातत्व महत्व के प्रतीक श्री
महाकालेश्वर मंदिर में मनमाने निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। राजाधिराज के
दरबारी पुरातत्व विभाग के नियमों की अनदेखी तो कर ही रहे हैं, वहीं 19 साल
पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की नसीहत को भी दरकिनार किया जा रहा
है। सिंहस्थ महापर्व के मद्देनजर महाकाल मंदिर में टनल निर्माण का काम शुरू
हो गया है। मुय द्वार की सीढ़ी तथा मंदिर परिसर में लाल धौलपुरी पत्थर
लगाए जा रहे हैं। कुछ ही दिनों में नंदी हॉल विस्तारीकरण का काम शुरू होने
वाला है। यही नहीं मंदिर के पीछे तीन मंजिला धर्मशाला निर्माण की भी पूरी
तैयारी कर ली गई है।
सलाह तक नहीं ली - 14 फरवरी 1994 को भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल के अधीक्षक ने उज्जैन के तात्कालीन संभागायुक्त
को महाकाल मंदिर में हो रहे नवनिर्माण पर रोक लगाने के लिए चि_ी लिखी थी।
पत्र में इस बात की ताकीद भी दी गई थी कि श्री महाकालेश्वर मंदिर के
वास्तविक स्वरूप को समय-समय पर बदला जा रहा है। उस पर रोक लगाई जानी चाहिए।
मगर ताजा निर्माण कार्य शुरू करने से पहले पुरातत्व विभाग से कोई सलाह
नहीं ली गई है।
ये हैं नियम - मप्र पुरातत्व अधिनियम 1962 के तहत
कोई भी प्राचीन स्मारक या जमीन से प्राप्त संपदा अथवा 100 वर्ष के पूर्व
की सामग्री, स्मारक तथा देव स्थान पर शासन का अधिकार है। ऐसे देव स्थानों
के 200 मीटर की परिधि में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य करने के लिए
मप्र पुरातत्व विभाग तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की अनुमति लेना
आवश्यक है। मंदिरों में होने वाले निर्माण कार्यों में पुरातत्व विभाग के
इंजीनियरों, रसायन विशेषज्ञों से राय-मशविरा लेना आवश्यक है।
रिपोर्ट
भी ठंडे बस्ते में- मंदिर प्रशासन ने वर्मा जांच आयोग की रिपोर्ट को भी
ठंडे बस्ते में डाल दिया है जबकि वर्मा आयोग की रिपोर्ट में दर्शन व्यवस्था
तथा श्रद्घालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए थे।
यह
है रिपोर्ट - अधिवक्ता सत्यनारायण व्यास ने बताया कि 15 जुलाई 1996 में
सोमवती अमावस्या पर भस्म आरती के समय महाकाल मंदिर में हुई भगदड़ में कई
जानें गईं थीं। सामान्य प्रशासन विभाग की अधिसूचना 1-1-96-एक (8-क) दिनांक
6.8.96 के द्वारा न्यायिक जांच आयोग गठित किया गया। जांच की जिमेदारी
न्यायमूर्ति आरके वर्मा को सौंपी गई। जांच आयोग ने 7 बिंदुओं पर ततीश की।
31 दिसंबर 1999 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की। इसमें अन्य बिंदुओं के साथ
मंदिर के मुय प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक में किए जाने वाले परिवर्तन
एवं सुधार कार्यों को भारतीय पुरातत्व विभाग भारत सरकार के निर्देशन में
कराने के निर्देश दिए गए थे।
उचित नहीं वर्तमान निर्माण - मप्र
पुरातत्व विभाग के उप संचालक एसएन राज ने "नईदुनिया" से चर्चा में बताया कि
महाकाल मंदिर का मूल स्वरूप विकृत हुआ है। वर्तमान में जो भी निर्माण
कार्य हो रहे हैं, वे उचित नहीं है। क्योंकि किसी भी प्राचीन धरोहर के
आसपास होने वाले निर्माण उससे मिलते-जुलते होना चाहिए।
जताई
हैरानी - श्री राज ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि सिंहस्थ के मद्देनजर
मंदिर में कई महत्वपूर्ण कार्य हो रहे हैं। लेकिन मंदिर प्रशासन ने मप्र
पुरातत्व विभाग से कोई मशविरा नहीं लिया। वर्मा आयोग की रिपोर्ट को सही
ठहराते हुए श्री राज ने कहा कि मंदिर में होने वाला कोई भी निर्माण तथा
परिवर्तन आयोग की अनुशंसा के अनुसार ही होना चाहिए।
उज्जैन में
नहीं कार्यालय - मजेदार बात तो यह है कि धार्मिक व पौराणिक महत्व की नगरी
उज्जैन में मप्र पुरातत्व विभाग का कार्यालय ही नहीं है। जून 1996 के बाद
उज्जैन में विभाग के कार्यालय को बंद कर दिया गया है।
|
Pages
▼
click new
▼
No comments:
Post a Comment