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Thursday, March 21, 2013

नर्मदा नदी की दिखने लगी चट्टानें


घटते जल स्तर से चिंता बढ़ी

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नरसिंहपुर से सलामत खाँ की रिपोर्ट....


               

नरसिंहपुर. गर्मी के शुरूआती असर को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। गर्मी के शुरूआती दौर में ही नर्मदा के  जलस्तर में गिरावट आना शुरू हो चुकी जिससे पत्थर दिखाई देने लगे हैं। जिसे देखकर तापमान का अंदाजा लगाया जा सकता हैै। सतधारा पुल से खड़े होकर देखने पर पत्थर बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे है। विगत वर्षो की अपेक्षा इस वर्ष जलस्तर में अधिक गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है।

बिगड़ते पर्यावरण से गर्मी में निरंतर हो रही बढ़ोत्तरी से कुओं, तालाबों, नदी, नालों के निरंतर घटते जा रहे भू जल स्तर को बढ़ाने की दिशा में प्रयास जरूरी हैै। भूजल के निरंतर प्रयोग व उसकी बचत के प्रति गंभीर प्रयास होने से जल संकट से निपटा जा सकता है। भू जल स्त्रोतों की बिगड़ती जा रही हालत चिंतनीय है, देखा गया हैै कि क्षेत्र के अधिकांश भू जल स्त्रोत जिनमें कुआं, तालाबों की संख्या अधिक हैै वे उचित रखरखाव के अभाव व निरंतर दोहन के चलते उनके भूजल स्तर में निरंतर कमी आती जा रही हैं। जहां तक नरसिंहपुर शहर के कुओं की स्थिति देखी जावे तो यहाँ शायद ही कुछ कुएं जीवित अवस्था में हो, अनेक कुएं तो देखभाल के अभाव में दूषित हो गये हैैं। शहर के बड़े-बड़े प्राचीन जलाशय भी दूषित होते जा रहे हैैं, उनका जल स्तर भी निरंतर गिरते जा रहा है। हैैण्डपंपों की स्थिति भी काफी खराब होती जा रही हैैं अधिकांश हैैण्डपंप हवा फेंक रहे हैैं।

जल संरक्षण व बचाव के संबंध में एक अभिनव अभियान पानी रोको पानी सोको चलाकर गांव-गांव में लोगों को पानी के बचाव के उपाय बताये गये। इन उपायों में ऐसी रचनाओं का निर्माण भी शामिल था जिससे जल स्त्रोतों के पास जल एकत्रित हो लेकिन देखा गया कि जब तक अभियान चला अधिकारियों, कर्मचारियों व ग्रामीणों ने इसमें रूचि दिखाई बाद में सब ठांय-ठांय फिस्स हो गया। भूजल स्त्रोतों की निरंतर खराब हो रही स्थिति के बारे में विशेषज्ञों का मत है कि विगत कुछ वर्षो से वर्षा का जल पर्याप्त रूप से जमीन के अंदर नहीं पहुंच पा रहा है, पर्यावरण के हो रहे नुकसान से यह प्रक्रिया इतनी कमजोर पड़ चुकी है कि मुख्यत: वृक्षों के माध्यम से भूमि के अंदर जाने वाला जल वृक्षों की संख्या को कम होने से बाधित हुआ है।

इसी तरह से कुंआ व तालाबों में जल एकत्रित करने की प्राकृतिक प्रक्रिया के कमजोर पडऩे से उनमें भी जरूरत के मुताबिक जल का संचय नहीं हो पा रहा है। भूजल स्त्रोतों के निरंतर गिरते जल स्तर को देखते हुए दूसरे नगर व कस्बों के लोग सजग हो गये और उनके द्वारा शासन-प्रशासन के सहयोग से सार्थक उपाय क्रियान्वित करने शुरू कर दिये गये हैं। नगर में भी आये दिन गहराने वाले जल संकट के चलते ऐसी अपेक्षा की जा रही है कि घटते भूजल स्तर को बढ़ाने  हेतु कारगर प्रयास किया जाये। वैसा देखा जाये तो भूजल स्त्रोतों को बढ़ाने के लिये ग्रीष्म का मौसम ही अनुकूल हैं, इस मौसम में लोगों को चाहिए कि वे बारिश के पानी को जमीन के अंदर पहुंचाने के लिए जगह-जगह संबंधित कार्य करें। इसके अलावा कुओं, तालाबों, नदी, नालों की सफाई कर उनके बंधानों को मजबूत बनाने के साथ-साथ ऐसे उपाय करें ताकि आगामी बरसात में जल इन स्त्रोतों में पहुँँच सके अन्यथा लगातार भूजल स्त्रोतों के दोहन व जल स्त्रोतों के स्तर बढ़ाने की दिशा में प्रयास न होने से आने वाले समय में जमीनी जल संकट के और अधिक गहराने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। वहीं गर्मी ने शुरूआती दौर में ही असर दिखाना शुरू कर दिया हैै, दोपहर के समय घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है। लोग आंशकित हैै कि आगामी महीनों में क्या स्थिति होगी। विगत दो-तीन दिनों से आसमान पर छाए बादलों से भी पारा चढ़ा हुआ हैै।

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