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Tuesday, March 26, 2013

राष्ट्रीय एकता के लिये समर्पित रहा गणेश शंकर विद्यार्थी का जीवन


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भोपाल । अमर हीद पत्रकार गणेश शंकर विद्य़ार्थी का सारा जीवन क्रांतिकारियों, शहीदों देशभक्तों एवं राष्ट्रीय एकता को समर्पित पत्रकारिता के लिये लगा रहा। मानवता के एक अनन्य पुजारी सम्प्रदायिकता की आग में भेंट चढ़कर अमर शहीद हो गये।
उक्त विचार मध्यप्रदेश के जनसंपर्क एवं संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता षोध एवं प्रषिक्षण संस्था द्वारा अमर षहीद पत्रकार गणेश षंकर विद्यार्थी के षहीद दिवस पर प्रकाषित स्मारिका का विमोचन करते हुये व्यक्त किये। उन्होने कहा कि विद्यार्थी जी मात्र 40 वर्ष  7 माह  की उम्र में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र , सिद्धांतों , विचारों और संकल्पों के लिये शहीद हो गये।
राष्ट्रीय एकता परिषद के उपाध्यक्ष , पत्रकार चिंतक एव विचारक श्री रमेश शर्मा ने कहा कि गणेश शंकर विद्यार्थी ने हमेषा क्रांतिकारियों, देश भक्तों को फरारी में षरण देना, मुकदमें की तैयारी और आर्थिक सहयोग का सिलसिला बनाये रखा। सरदार भगत सिंह , चंद्रषेखर आजाद, रोशन सिंह ठाकुर, अशफाफ उल्ला खॉ आदि ने अपना अज्ञातवास ‘प्रताप’ के संपादकीय सहयोगी के रुप में बिताया था। आजाद हिन्दुस्तान में भारतीय जनता पार्टी के भीष्म पितामाह अटल बिहारी वाजपेयी और लौह पुरुश लालकृष्ण आडवाणी ने ‘ प्रताप ’ के सम्पादकीय विभाग में कार्य किया।

संस्था अध्यक्ष ओम प्रकाश हयारण ने कहा कि गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में ‘प्रताप’ समाचार पत्र का प्रकाषन षुरु किया । 2013 में प्रताप के सौ वर्ष पूर्ण हो गये है। संस्था द्वारा इस वर्ष ‘प्रताप’ की स्वर्ण जयंती सम्मान , अलंकरण महोत्सव का आयोजन करेगी। और अमर षहीदों के परिजनों समेत, धार्मिक  ,राजनैतिक उद्योग व्यापार , षिक्षा स्वास्थ्य एवं सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले 1000 प्रतिभाओं  को  गणेश षंकर विद्यार्थी सम्मान से सम्मानित करेगी।

श्री हयारण ने बताया कि ‘प्रताप’ एक दिन उनकी शक्ति था , दूसरे दिन हिन्दी जगत की श्रद्धा बना और आज वह उनकी षुभ स्मृति है। पत्रकार कला के हिन्दी स्वरुप के ‘प्रताप’ नामक राष्ट्र मंच से गणेश जी ने कायरों को, देशघातकों को , महलों को, मुकुटों को, अत्याचारियों को और स्वार्थियों को लगातार चुनौतियॉ दी और परिणाम में तलाषियॉ , अपमान , अर्थ हानि और कारागार सहे।

सलाहकार मनमोहन कुरापा ने कहा कि सन् 1931 से लगातार सन् 1940 तक इस देश में कोई भी ऐसा आंदोलन नहीं है जिसका प्रसार प्रचार आंषिक नेतृत्व गणेश शंकर विद्यार्थी और उनके प्रताप ने नहीं किया हो । देषी राज्यों में  होने वाले अनाचारों की कथाये सर्वप्रथम ‘प्रताप’ ने जनता के सम्मुख रखी। बहुत वर्षो तक तो ‘प्रताप’ ही एक प्रकार से गांधी जी का मुख्य पत्र बना रहा।

कार्यक्रम का संचालन महसचिव रानी यादव ने एवं आभार अध्यक्ष ओम प्रकाश हयारण ने व्यक्त किया।


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