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Monday, March 4, 2013

प्रतिशोध का दर्शन


प्रतिशोध का दर्शन

धरना, प्रदर्शन व्यर्थ हुए, व्यर्थ हुई हडताल
नेता लूटें देश को, हो रहे मालामाल।
अहिंसा,अनशन बे-असर, बहरी है सरकार
आम आदमी मर रहा, भारत है लाचार।
लातों के भूत माने नहीं, धरना,अहिंसा,अनशन
छल,कपट है खून में, नहीं किसी से अपनापन।
राज कर रहे देश पर, गौरी चमडी फिरंगी
सुभाषवादी ही समझ सकें, इनकी चाल दो-रंगी।
रक्षात्मक रुख जनता का, राष्ट्र की बर्बादी
झूठे सपने विकास के ,नहीं कोई आजादी।
गांधीवाद कब सफल हुआ, झूठा बस प्रचार
टुकडों में भारत बंटा, दस लाख जन-संहार।
गांधीवाद की पोल खुली, अन्ना व रामदेव
प्रतिशोध से क्रांति हो, पथ यही एकमेव।
सावरकर सच हुए, सच हुए दयांनंद
परिवर्तन बस प्रतिशोध से , हां कहे श्री अरविंद।
गांधीगिरी व अन्नागिरी, न चली न चलेगी
हिंसक न समझे अहिंसा को, सुभासगिरी ही फलेगी।
दुष्टों के संग दुष्ट्ता, सही यही व्यवहार
धरने ,अनशन त्याग दो, जरुरी इनका संहार॥

आचार्य शीलक राम

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