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Wednesday, April 17, 2013

मध्याह्न भोजन योजना में सरकारी दाल पतली होने की कहानी


बच्चों का निवाला छीनने से बाज नहीं आ रहे अधिकारी और स्वसहायता समूह

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बैतूल,(रामकिशोर पंवार): ताप्तीचंल में बसे आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में 2894 शासकीय माध्यमिक एवं प्राथमिक स्कूल में 2 लाख 35 हजार 121 छात्रों के संचालित मध्याह्न भोजन योजना में दिन प्रतिदिन दाल पतली होती चली जा रही है। इस योजना ने इमानदार का पाठ सिखाने वाले मास्टर को जालसाज और भ्रष्ट बना कर रख दिया है। यह आरोप नहीं बल्कि पूरे मध्यप्रदेश सहित बैतूल जिले में संचालित मध्याह्न भोजन योजना की कार्य योजना की एक एनजीओ द्वारा करवाई जांच के बाद हुई समीक्षा रिर्पोट में इस बात का खुलासा हुआ है। कई स्कूलो के तो ए हालात है कि शिक्षक पढ़ाई छोड़ कर रसोइयां का काम कर रहा है। दर्जनो ऐसे स्वसहायता समूह है जो डिफाल्टर घोषित किए जा चुके है। अशिक्षित महिलाओं के स्वसहायता समूहो का अधिकांश स्थानो पर स्कूलो के प्रधान पाठको द्वारा ही संचालन करना पाया गया।

 मध्याह्न भोजन योजना के संदर्भ में आया कड़वा सच यह है कि बैतूल जिले के अधिकांश स्कूलो में पतली होती जा रही दाल और घटिया दर्जे का मध्याह्न भोजन के पीछे इस योजना में फैला भ्रष्ट्राचार बताया जाता है। इस समय मध्याह्न भोजन योजना के भोजन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से शासन ने मध्याह्न भोजन की राशि में प्रति छात्र प्रति शैक्षणिक दिवस के मान से बढ़ोतरी तो कर दी है, लेकिन भोजन की गुणवत्ता में आज तक सुधार नहीं आ सका है। इस समय जिले में सैकड़ो मामले जन सुनवाई एवं अन्य माध्यमों से घटिया स्तर एवं विषाक्त भोजन के बैतूल जिला मुख्शलय तक आने के बाद कार्रवाई के नाम पर शुन्य ही देखने को मिलता है। राजीव गांधी शिक्षा मिशन में स्कूल चलो अभियान का बेड़ागर्क कर चुके पूर्व डीपीसी संजीव श्रीवास्तव को पुन: मध्याह्न भोजन योजना का प्रभारी बनाया गया है। जहां एक ओर सरकारी राशि बार - बार बढ़ तो जाती है लेकिन वहीं दुसरी ओर स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों पौष्टिक भोजन मिल ना एक सुखद सपना ही बन कर रह गया है।

जानकार सूत्र बताते है कि भारत सरकार के 75 प्रतिशत अनुदान पर चल रही इस मध्याह्न भोजन की राशि में राज्य शासन का मात्र 25 प्रतिशत योगदान रहता है लेकिन पूरी रकम को डकराने का काम राज्य शासन के अधिनस्थ कर्मचारी , अधिकारी , स्वंयसेवी संगठन तथा स्वसहायता समूह कर रहे है। मध्याह्न भोजन योजना के संचालक का पक्ष यह है कि शासन द्वारा मध्याह्न भोजन राशि का जो निर्घारण किया गया है उसमें भी काफी बड़ा फर्क नजर आता है। जैसे कि प्राथमिक शाला जहां छात्रों की संख्या 1 लाख 45 हजार से ऊपर है वहां मध्याह्न भोजन की जो नई दरें निर्घारित की गई है वह 3.34 रूपए प्रति छात्र है। वहीं माध्यमिक शाला जहां छात्रों की संख्या 89 हजार से अधिक है वहां 5 रूपए प्रति छात्र राशि निर्घारित की गई है। सवाल यह उठता है कि बैतूल जिला जो कि आदिवासी बाहुल्य जिला है क्या इस जिले में शिक्षा सत्र के दौरान स्कूलो में बच्चों की उपस्थिति शत् प्रतिशत् रहती है। सवाल यह भी उठता है कि जब शासन द्वारा स्कूलो को या स्वसहायता समूहो को स्कूलो में दर्ज संख्या के अनुपात में अनुदान मिलता है तब अनुउपस्थिति का मापदण्ड एवं भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान क्यूं नहीं दिया जा रहा है। बैतूल जिले में राज्य शिक्षा मिशन के बैतूल कार्यालय में पूर्व पदस्थ रह चुके या उससे जुड़े लोगो को ही एमडीएम योजना का प्रभारी बनाया गया है जिसके चलते पूरी की पूरी मध्याह्न भोजन दाल की तरह पतली एवं विषाक्त हो रही है। हालांकि कहा जा रहा है कि मध्याह्न भोजन योजना की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सरकारी अनुदान बढ़ाया गया है जिसके चलते नवीन दरें एक जुलाई से जिले में लागू होंगी। जिसके चलते शायद दाल कुछ कम पतली होगी तथा मध्याह्न भोजन योजना की गुणवत्ता में सुधार आएगा लेकिन यह तो वक्त ही कितना आया और कितना और आएगा।



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