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Saturday, July 18, 2015

कविता को पढ़कर आंसू आये... दुध, पिलाया उसने छाती से

शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका ।
"जन्नत,, के धनी "पैर,, कभी सहला न सका ।

'दुध, पिलाया उसने छाती से 'निचोड़कर,
मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका ।

बुढापे का "सहारा,, हूँ 'अहसास, दिला न सका ।
पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल, पर सुला न सका ।

वो 'भूखी, सो गई 'बहू, के 'डर, से एकबार मांगकर,
मैं "सुकुन,, के 'दो, निवाले उसे खिला न सका ।

नजरें उन 'बुढी, "आंखों,, से कभी मिला न सका ।
वो 'दर्द, सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका ।

जो हर "त्यौहार,, 'ममता, के रंग पहनाती रही मुझे,
उसे " त्यौहार,, पर दो 'जोड़, कपडे सिला न सका ।

"बिमार,, बिस्तर से उसे 'शिफा, दिला न सका ।
'खर्च, के डर से उसे बडे़ 'अस्पताल, ले जा न सका ।

"माँ" के बेटा कहकर 'दम, तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,
'दवाई, इतनी भी "महंगी,, न थी के मैं ला ना सका ।

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