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Sunday, November 1, 2015

देश गृहयुद्ध और आपातकाल की ओर—क्या हम तैयार हैं?

Present by - Toc News

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

मैं कभी भी किसी जाति के नाम से कोई टिप्पणी लिखने में विश्वास नहीं करता। लेकिन ब्राह्मणों की ओर से सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करना कि——''आरक्षण के फन को कुचलेगा ब्राह्मण संगठन'' मुझ जैसे व्यक्ति को संयमित प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले को व्यक्ति को भी जवाबी प्रतिक्रिया व्यक्त करने को विवश किया जा रहा है। यद्यपि खुद ब्राह्मणीय व्यवस्थानुसार ब्राह्मण जाति नहीं, बल्कि कथित हिन्दू धर्म का सर्वोच्च वर्ण है। अत: ब्राह्मण को जाति मानकर नहीं, बल्कि वर्ण मानकर और उनकी असंवैधानिक ललकार को पढकर मैं संवैधानिक सच्चाई और प्रथमदृष्टया नजर आ रहे हालात को लिखने को विवश हूं।
मुझे यह जानकर आश्चर्य होता है कि मात्र 2-3 फीसदी ब्राह्मण वर्ग के लोग सार्वजनिक रूप से देश की तीन चौथाई आरक्षित (3/4) आबादी के संवैधानिक हकों को फन सम्बोधित करके कुचलने की बात करते हैं। मनुवादी तथा कॉर्पोरेट मीडिया ऐसी असंवैधानिक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित भी करता है। सरकार चुप्पी साधे हुए है। संविधान को धता बताकर आरक्षण को कुचलने की बात पढकर भी आरक्षित वर्ग के लोग या तो भयभत हैं या फिर उनको अपने बहरूपिये राजनेताओं पर अति-आत्मविश्वास है। क्या इसे संवैधानिक लोकतांत्रित गणतंत्र कहा जा सकता है?

कारण जो भी हों लेकिन इस समय देश के हालात शर्मनाक और चिन्ताजनक हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात् आरएसएस और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के बयानों तथा उनके व्यक्तिगत क्रियाकलापों से ऐसा प्रतीत होता है कि आरक्षण तथा जातीय हिंसा के बहाने देश को गृहयुद्ध में धकेला जा रहा है। साफ तौर पर हालात एसे नजर आ रहे हैं कि गृहयुद्ध के बहाने देश में आपात काल लागू कर के सत्ताधारी पार्टी मनुवादी व्यवस्था लागू करने की ओर अग्रसर होती दिख रही है।

गत दिनों पाञ्चजन्य में लिखा गये असंवैधानिक लेख के लेखक, प्रकाशक, मुद्रक और पाञ्चजन्य के विक्रेताओं के विरुद्ध सरकार द्वारा इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं करना। साथ ही साथ देशभर में अचानक दलित—आदिवासी लोगों पर क्रूरतापूर्वक अत्याचारों और हमलों में बढोतरी होना और मीडिया द्वारा चुप्पी, आपात काल लगाये जाने की आशंका को भयावह बनाने का काम कर रहे हैं। जिसके बारे में कुछ समय पूर्व भाजपा के पितृपुरुष कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने भी आशंका जतायी थी। क्या हम फासिस्टवादी लोगों के नेतृत्व में आपात काल के जुल्मों—सितम को झेलने के लिये तैयारी कर रहे हैं?



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