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Monday, February 29, 2016

पानी के लिए सरकार लेगी 20 हजार करोड़ का लोन पहले कराये अवैध बोरवेल।।

Toc news
भोपाल। मध्यप्रदेश मे डार्क जौन घोषित होने के बाद भी कही अवैध बोरवेल भाजपा के नेताओ और अधिकारियों की मिली भगत से होते रहे। यह अवैध बोरवेल के मामले किसी से छूपे नही वही प्रदेश सरकार आखं बन्द कर सबकुछ देखती रही।अब प्रदेश की जनता को गुमराह करने के लिए प्रदेश में पेयजल व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार 20 हजार करोड़ का लोन लेगी. सरकार इसके लिए वर्ल्ड बैंक, एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक, हुडको से लोन के लिए आवेदन करेगी.
पीएचई मंत्री कुसुम महदले ने बताया कि सरकार ने बेकार पड़े हैंडपम्पों को हटाने और 62 हैंडपंप पर एक कर्मचारी को सेवा देने के लिए नियुक्त करने का फैसला लिया है.
पीएचई विभाग ने पेयजल व्यवस्था और काम की क्वॉलिटी के लिए एक ही ठेकेदार को पेजयल व्यवस्था का काम देने और उसका पांच से दस साल तक के मेंटनेंस का जिम्मा सौपने की तैयारी की है.मंत्री के विभाग के खिलाफ भारी नाराजगी कुछ दिनों पहले ही हुई कैबिनेट की बैठक के दौरान मंत्रियों के निशाने पर पीएचई विभाग रहा.
बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल, मालवा समेत भोपाल के आसपास पेयजल समस्या को लेकर मंत्रियों ने पीएचई विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए.
दरअसल, प्रदेश में गर्मी की दस्तक के साथ ही अब पेयजल समस्या सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. पेजयल समस्या से दो-चार हो रहे लोग अब मंत्रियों पर और मंत्री इसका ठीकरा पीएची विभाग पर फोड रहे है.
शिवराज कैबिनेट की बैठक में प्रदेश के चार मंत्री गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, गौरीशंकर शेजवार और राज्यमंत्री लाल सिंह आर्य ने पेयजल संकट को लेकर पीएचई विभाग के कामकाज पर ही सवाल खड़े कर दिए है.
मंत्रियों के एक सुर में पेयजल समस्या उठाने पर सीएम शिवराज को हस्तक्षेप करना पड़ा. सीएम ने पूरे मामले में पीएची विभाग को बिगड़े हैंडपंप सुधारने, बोरिंग कर नए हैंडपंपो के जरिेए पानी मुहैया कराने, बंद पड़ी नल-जल योजनाओं को शुरु करने के निर्देश जारी किए है. पेयजल मामलों की समीक्षा सीएस अंटोनी डिसा करेंगे.

Saturday, February 27, 2016

कोर्ट में सरेंडर के बाद गरजे दिग्विजय सिंह' मैं कोई भगोड़ा नहीं








मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय में 1993 से 2003 के बीच फर्जी अप्वॉइंटमेंट के मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद शनिवार को मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जमानत कराने कोर्ट पहुंचे। 30 हजार रुपए के मुचलके पर उन्हें जमानत दे दी गई। इस बीच उनके बंगले पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता सुबह से ही पहुंच गए थे। कोर्ट से जमानत पर छूटने के बाद दिग्विजय सिंह ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में मीडिया से चर्चा करते हुए सरकार को खूब कोसा। उन्होंने कहा,'मैं कोई भगाड़ा नहीं और न ही डरने वाला हूं।' ताजा घटनाक्रम... - सुप्रीम कोर्ट से पहुंचे दिग्विजय सिंह के वकील विवेक तन्खा ने कोर्ट में जमानती आवेदन पेश करते हुए कहा कि शुक्रवार को कोर्ट ने वारंट जारी किया और शनिवार को दिग्विजय सिंह ने सरेंडर कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में दोपहर 3 बजे बाद सुनवाई की। -दिग्गी के लिए कांग्रेस नेता गोविंद गोयल ने जमानत पेश की। दिग्गी के वकील विवेक तन्खा ने कहा, कम समय में मिला नोटिस। -काफी देर तक दिग्विजय सिंह को अपने मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट रूम से बाहर बैठना पड़ा। कोर्ट जाते समय दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह फॉर्चुनर गाड़ी ड्राइव कर रहे थे, जबकि दिग्विजय सिंह फ्रंट सीट पर बैठे थे। शुक्रवार को हुआ था वारंट जारी... मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय में 1993 से 2003 के बीच फर्जी अप्वॉइंटमेंट के मामले में दिग्विजय सिंह के खिलाफ शुक्रवार को गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था। सुनवाई के दौरान वे जिला कोर्ट में मौजूद नहीं थे। इसलिए अब उन्हें कोर्ट में बॉन्ड भरकर बेल लेनी पड़ रही है। न्यूज एजेंसी एएनआई से उन्होंने कहा कि अगर एमपी पुलिस चाहे, तो उन्हें अरेस्ट कर सकती है। दिग्विजय पर है नजदीकियों के लिए नियम तोड़ने का आरोप

सिंहस्थ में साधु-संतों को चाहिए ५०० क्विंटल गांजा

अवधेश पुरोहित @ present by - Toc news
भोपाल। सिंहस्थ चाहे उज्जैन में हो या इलाहाबाद में मगर हर सिंहस्थ में ५०० क्विंटल से ज्यादा गांजा लगता है, इसका इंतजाम भी ऊपर वाला ही करता है इस तरह का कहना है राजस्थान से आये महामण्डलेश्वर रविकरण दास जी का उन्हें चिलम बाबा भी कहा जाता है, यूं तो साधु-संतों की दुनिया ही निराली है जो चिलम न पिए वह साधु काहे का आखिर साधु लोग चिलम क्यों पीते हैं आम धारणा तो यह है कि नशा करने की आदत होती है इसलिये साधु-संत चिलम पीते हैं मगर महामण्डलेश्वर ने इस संबंध में खुलासा करते हुए बताया कि चिलम पीने की वजह क्या होती है और क्यों हर साधु चिलम पीता है, राजस्थान के खाटु श्याम आश्रम से आए महामण्डलेश्वर रविकरण दास ने बताया कि जब मंत्रों से सिद्धि की जाती है यक्ष और गंधर्व जैसी शक्तियां कोशिश करती हैं कि साधक अपनी सिद्धि को सफल न कर पाए इसके लिये तरह-तरह के प्रयास करती है कि साधक की मानसिक स्थिति बिगड़े ध्यान लगाने के लिए सिद्धि साधना करने के लिये साधक चिलम पीता है वरना यक्ष और गंधर्व दिमाग को बिगाड़ देते हैं साधु के चिलम पीने का यही सबसे बड़ा कारण है गांजा कहां से आता है इस बात पर रविकरण दास का कहना है कि वह अपने आप कहां से यह पता नहीं, एक साधु एक दिन में पचास ग्राम से ज्यादा गांजा पीता है और पचास ग्राम में नौ चिलमें बनती हैं उन्होंने बताया कि सिंहस्थ में क्विंटलों से गांजा आता है लगभग ५०० क्विंटल गांजे की खपत सिंहस्थ में होती है, क्या यह व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है इस प्रश्न को बड़ी खूबसूरती से टालते हुए वह कहते हैं कि व्यवस्था तो ऊपर वाला करता है। 

Friday, February 26, 2016

दिग्विजय सिंह का गिरफ्तारी वारंट जारी

Toc news / FRIDAY, FEBRUARY 26, 2016
भोपाल। वर्ष, 1993 से 2003 के बीच विधानसभा सचिवालय में फर्जी नियुक्तियों के मामले में शुक्रवार को कोर्ट ने मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। वे कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए थे।

इससे पहले जहांगीराबाद पुलिस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित आठ आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया। जिला कोर्ट में लोकायुक्त के विशेष न्यायाधीश काषीनाथ सिंह की अदालत में चालान पेश किया गया। उल्लेखनीय है कि मार्शलों की फर्जी नियुक्ति मामले में फरवरी, 2015 में जहांगीराबाद पुलिस ने मामला दर्ज किया था।

यह है मामला..
दिग्विजय सिंह और श्रीनिवास तिवारी ने अपने दस साल के कार्यकाल (1993 से 2003) में विधानसभा सचिवालय में अपने नजदीकियों को नियम विरुद्ध नियुक्तियां दी थीं। अपात्र लोगों को स्थायी करने के लिए उनका दूसरे विभागों में संविलियन किया गया था। नियम विरुद्ध उन्हें पदोन्नति भी दी गई थी। विधानसभा में मार्शलों की नियुक्तियां भी सामने आई थीं।

इस मामले में जहांगीराबाद पुलिस ने 27 फरवरी, 2015 को एफआईआर दर्ज कर दिग्विजय सिंह और श्रीनिवास तिवारी समेत 19 लोगों को आरोपी बनाया था। विवेचना के दौरान पुलिस ने पांच लोगों को और आरोपी बनाया था। इस मामले में पुलिस 21 सितंबर, 2015 को श्रीनिवास तिवारी समेत 19 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश कर चुकी है। शुक्रवार को दिग्विजय सिंह सहित अन्य के खिलाफ चालान पेश किया गया।

इनके खिलाफ चालान
1-दिग्विजय सिंह
2- अशोक चतुर्वेदी
3- एके त्यागी
4- रमाशंकर मिश्रा
5- योगेश मिश्रा
6- सुषमा द्विवेदी
7- कुलदीप पांडे
8- केके कौशल

रेल बजट 2016 अपडेट्स

रेल यात्री किराया नहीं बढ़ा, 4 नई कैटेगरी वाली ट्रेनें मिली, हर कोच में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण
Present by - toc news
नई दिल्ली:  रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को लोकसभा में रेल बजट पेश करते हुए कहा कि 2016-17 के रेल बजट में सभी पक्षों से संबंधित मुद्दों का ख्याल रखा है। प्रभु ने अपने दूसरे रेल बजट भाषण के शुरू में कहा कि यह समय चुनौतीपूर्ण है और भारतीय रेल की आगे की यात्रा के लिए सहयोग, समन्वय और संचार की रणनीति अपनाई जाएगी।प्रभु ने कह कि हम देश में बुनियादी ढांचे में निवेश में अग्रणी रहेंगे।

पेश हैं रेल बजट 2016-17 के अहम बिंदु:

लाइव अपडेट्स इस प्रकार है-

-रेल यात्री किराया नहीं बढ़ा।

- 4 नई कैटेगरी वाली ट्रेनें मिली।

-ट्रेनों में पायलट आधार पर बच्चों के खाने की अलग से व्यवस्था पेश होगी ।

-रेलवे वरिष्ठ नागरिकों के लिए निचली सीट का कोटा बढ़ाकर 50 प्रतिशत करेगी ।

-कुछ चुनिंदा स्टेशनों पर पायलट आधार पर बार कोड वाले टिकट की शुरूआत होगी ।

रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन किया जायेगा ।

-भारत के पहले रेलवे आटो केंद्र का चेन्नई में जल्द ही उद्घाटन किया जायेगा ।

-मुम्बई में दो एलिवेटेड उपनगरीय रेलवे कारिडोर.. चर्चगेट-विरार और सीएसटी-पणवेल का निर्माण किया जायेगा ।

-तीन सीधी और पूर्णत: वातानुकूलित ‘हमसफर’ रेल गाड़िया 130 किलोमीटर प्रति घंटे के रफ्तार से चलेंगी ।

-पत्रकारों के लिए रियायती दर पर टिकटों की ई-बुकिंग पेश की गई।

-2020 तक ट्रेनों में जब चाहें तब टिकट मिलेगी।

-महिलाओं के लिए 24 घंटे की हेल्पलाईन नंबर 182  ।

-रेलवे के 2 एप्प के जरिए टिकट बुक या कैंसिल होंगे।

-धार्मिक स्थलों के लिए आस्था सर्किट पर ट्रेनें चलाई जाएंगी।

-अहमदाबाद से मुंबई तक हाईस्पीड ट्रेन चलेगी।

-अब कुलियों को सहायक कहकर बुलाया जाएगा।

-400 स्टेशनों का सार्वजनिक निजी भागीदारी के जरिए आधुनिकीकरण किया जाएगा।

-रेलवे स्टेशनों पर मिल्क फूड की व्यवस्था होगी।

-रेलवे की दो एप्प के जरिए सारी समस्या का समाधान होगा।

-जीपीएस सिस्टम से ट्रेनों की सही और सटीक जानकारी मिलेगी।

-ट्रेन की हर कोच में जीपीएस सिस्टम लगाए जाएंगे।

-यात्रियों की पसंद का खाना मुहैया कराने की कोशिश।

-हर कैटेगरी के कोच में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।

-124 सांसदों ने सांसद निधि से यात्री सुविधाओं के विकास में योगदान करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।

-रेल पुलों के निर्माण के लिए 17 राज्यों ने भारतीय रेलवे के साथ संयुक्त उद्यम बनाने पर सहमति व्यक्त की।

-2020 तक 95 फीसदी ट्रेनें सही समय से चलेंगी।

 -रेल मंत्री ने कहा कि यात्रियों के किराये में सब्सिडी के चलते रेलवे को 30 हजार करोड़ रूपये का नुकसान।

-रेलवे वित्त वर्ष 2017.18 में नौ करोड़ और वित्त वर्ष 2018.19 में 14 करोड़ मानव दिवस सृजित करेगा।

-रेलवे में एलआईसी का 1.5 लाख करोड़ रुपए निवेश।

-पिछले साल के 139 वादों पर काम जारी।

- सभी बड़े स्टेशनों पर सीसीटीवी और महिलाओं के लिए हेल्पलाईन होंगे।

-रेलवे विद्युतीकरण पर खर्च में 50 प्रतिशत वृद्धि, अगले वित्त वर्ष में 2000 किलोमीटर रेल मार्ग का विद्यतीकरण किया जायेगा

-रेलवे को सरकार से 40,000 करोड़ रुपए का बजटीय समर्थन मिलेगा।

- रेलवे में दुर्घटना को शून्य करने का लक्ष्य।

- 2500 वाटर वेंडिंग मशीन लगाई गई।

-ट्रैफिक लोड कम करने के लिए विकल्प की तलाश।

-अगले साल 400 रेलवे स्टेशनों पर वाई-फाई होगा।

-एटीएम से टिकट बुक कराने पर काम जारी।

-वित्त वर्ष 2016-17 के लिए इस सालनिवेश 1.21 लाख करोड़ रुपए रहेगा।

-हमने बड़े पैमान पर लंबित पड़े पुराने कार्यो को पूरा करने और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पूंजी व्यय को मजबूत बनाया है और पूंजी व्यय की दर बढायी है : रेल मंत्री ।

- महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए नए कदम उठाए।

- 5 साल में रेलवे प्रोजेक्ट पर 8.5 लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे।

- इस साल रेलवे की 40 नई परियोजनाएं शुरू हुई।

-रेलवे में सभी पदों के लिए ऑनलाइन भर्ती होगी।

-वित्त वर्ष 2015.16 के बजट में बिजली समेत ईधन लागत में 8,720 करोड़ रूपये की बचत ।

- हमें उम्मीद है कि परिचालन अनुपात वर्तमान वर्ष के 90 प्रतिशक की तुलना में 92 प्रतिशत होगा : प्रभु ।

-शुल्क राजस्व के अतिरिक्त राजस्व के नये स्रोतों का दोहन करेंगे : रेल मंत्री

 -मुख्य उद्देश्य रेल को आर्थिक वृद्धि का इंजन बनाना, रोजगार पैदा करना और उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधाएं देना है : सुरेश प्रभु ।

-राज्यों के साथ मिलकर पीपीपी मॉडल।

-हर दिन सात किलोमीटर नए रेलवे ट्रैक बनाए।

-2800 किलोमीटर रेलवे ट्रैक को पूरा गया है।

-मालगाड़ियों की गति बढ़ाकर 50 किलोमीटर प्रति घंटा करने की कोशिश।

-पैसेंजर ट्रेन में बायो टॉयलेट बनाने की कोशिश की जाएगी।

- रेलवे के परिचालन शुल्क को कम करने की कोशिश।

-लोगों की उम्मीदों को पूरा करेगा यह रेल बजट- सुरेश प्रभु

-रेलवे कर्मचारियों को 11.67 फीसदी ज्यादा वेतन मिलेगा।

-समाज के हर वर्ग के लोगों ने रेल बजट के लिए सुझाव दिए- सुरेश प्रभु

- देश में घूमने और कई लोगों से मिलने के बाद बजट बनाया- रेल मंत्री

-रेल मंत्री ने कहा कि ये चुनौतियों का समय और सबसे कठिन दौर है जिसका हम सामना कर रहे हैं ।

आइसना ने रेल मंत्री सुरेश प्रभु और उनकी टीम को दी शुभकामनांए

पत्रकार संगठन " आइसना " के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवशंकर त्रिपाठी एवं मप्र के प्रदेश अध्यक्ष अवधेश भार्गव ने रेल मंत्री सुरेश प्रभु और उनकी टीम को दी शुभकामनांए
Toc news                                                                                सुरेश प्रभु के रेल बजट में पत्रकारों के हितों देखते हुए मान्यता प्राप्त पत्रकार अब अन्य यात्रियों की तरह ऑनलाइन रेलवे टिकट हासिल कर सकेंगे। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को लोकसभा में रेल बजट पेश करते हुए यह घोषणा की। देश में पत्रकारों का सबसे बड़ा एवं लोकप्रिय संगठन "आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन" ( आइसना ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवशंकर त्रिपाठी एवं मप्र के प्रदेश अध्यक्ष अवधेश भार्गव ने इस फैसले का स्वागत किया व रेल मंत्री सुरेश प्रभु और उनकी टीम को बधाई दी।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि प्रभु ने यह बजट यात्रियों के हित में पेश किया है। इस बजट से अहसास होता है कि रेलवे में भारी निवेश हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस बजट से देश के नवनिर्माण में मदद मिलेगी। श्री शिवशंकर त्रिपाठी ने कहा कि रेलवे में आईटी और निवेश को तवज्जो दिया जाना अहम पहलू है। हमने रेलवे में कई सफलताएं देखी थीं और अब इस बजट से रेलवे में सुधार की गति और तेज होगी। गौरतलब है कि गत पिछले साल को राष्ट्रीय स्तरीय पत्रकारों का संगठन "आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन" ( आइसना ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवशंकर त्रिपाठी के नेतृत्व में पत्रकारों का प्रतिनिधिमण्डल मंत्रालय से मिला था और सतत प्रयास किया। पूरे देश में "आइसना" के सदस्यों ने अपने अपने स्तरों पर संघर्ष  किया.  आज रेल बजट में समिति की इस मांग को रेलमंत्री ने पूरा कर दिया। "आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन" ( आइसना ) रेल मंत्री सुरेश प्रभु को धन्यवाद ज्ञापित किया है।

"आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन" ( आइसना ) की मध्य प्रदेश की इकाई अब प्रदेश के उन पत्रकारों के लिए संघर्षरत है जिनको अधिमान्यता से वंचित रखा गया है, उनकाे अधिमान्यता दिया कर पत्रकार का हक दिलाना प्रथम लक्ष्य है. मप्र के प्रदेश अध्यक्ष अवधेश भार्गव ने बताया की जिस तरह अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों को बीमा का लाभ दिया जाता है उसी तरह गैरअधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों को बीमा का लाभ दिया जाये, आइसना प्रदेश के सभी जुडे़ पत्रकारों को एकजुट होकर इस मुद्दे पर अपनी स्वयं की लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया है, आइसना से जो पत्रकार नहीं जुड़ पाये वह जितनी जल्दी हो साथ आये. आइसना के प्रदेश महासचिव विनय जी. डेविड ने पत्रकारों से अपील आइसना के साथ जुड़े और आगे बढे.

आइसना से जुड़ने के लिए सम्पर्क करें
विनय जी डेविड,
महासचिव " आइसना "
9893221036
9009844445

Thursday, February 25, 2016

कमिश्नर आर.के माथुर के रिटायरमेंट पर पत्रकारो ने रखा विदाई पार्टी

कमिश्नर ने कहा की रिटायरमेंट के बाद अब मै समाजसेवी बनकर काम करूँगा...

बमीठा में  कमिश्नर आर.के माथुर के रिटायरमेंट पर विदाई समाहरो का कार्यक्रम रखा गया, जिसमे पत्रकारो द्वारा कमिश्नर आर.के माथुर, कलेक्टर डॉ.मसूद अख्तर, पुलिस अधीक्षक ललित शाक्यवार, SDOP इसरार मंसूरी, SDM राजनगर सोनिया मीना, राजनगर CEO जय शंकर तिवारी, जिला पंचयात अघ्यक्ष राजेश प्रजापति, राजनगर तहसीलदार बलबीर रमण, बमीठा TI कमलेश साहू का शाल श्रीफल से उनका सम्मान किया गया, जिस मौके पर पत्रकर्ता के क्षेत्र में कार्य कर रहे पत्रकारो का सम्मान अथितिओ और कमिश्नर द्वारा किया गया, जिसमें मनोज सोनी, राकेश रिछारिया, देवेन्द्र चतुर्वेदी,राज पटैरिया, नरेंद्र सिंह परमार, सुनील उपाध्याय, भास्कर पाठक, बंटी जैन,  विनोद मिश्रा, मुरसलिम खान, आशीष सैनी, अभिनास तिवारी, नूतन सोनी, राघवेंद्र रिछारिया,  आईसीना पत्रकार का बैच पहनाकर पत्रकारो को समान्नित किया गया, और कहा की पत्रकारो और अधिकारियो के बीच आपसी तालमेल बना रहे और इस तरह के कार्यक्रम आयोजित होते रहना चाहिए, और बमीठा में आईसीना पत्रकार संगठन के कार्यालय का उदघाटन भी अथितिओ द्वारा किया गया।



आइसना के सागर संभाग कार्यालय के उद्घाटन सम्पन हुआ

राष्ट्रीय पत्रकार संगठन आइसना के संभाग कार्यालय के उद्घाटन समारोह में पहुचे संभागीय कमिश्नर माननीय राम कुमार माथुर जी माननीय जिले के डीएम साब  मसूद अख्तर जी माननीय जिला पुलिस अधीक्षक ललित शक्वार जी एसडीएम राजनगर सोनिया मीणा जी SDOP इसरार मंसूरी जी  जिला पंचायत अध्यक्ष राजेश प्रजापति तहसीलदार बलवीर रमण जी MPT सीओ राय साब नारायण सिंह बहल जी जयशंकर तिवारी जनपद सीओ । टीआई बमीठा टीआई खजुराहो ।


सभी का मेंरी तरफ से आभार  🙏🏻🙏🏻🙏🏻  आप सब के आगमन से हम पत्रकारों में नई उर्जा का संचार हुआ हे में सदा आपका आभारी रहूगा  🙏🏻🙏🏻🙏🏻
देवेन्द्र चतुर्वेदी संभाग अध्यक्ष
राष्ट्रीय पत्रकार संगठन आइसना
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
आज के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कमिश्नरसाब  ने कहा की पत्रकार को पक्षकार नहीं होना चाहिए ।
कलेक्टर साहब ने कहा की पत्रकार समाज का हे आइना ।
एसपी साहब ने कहा की पत्रकार की कलम में बहुत ताकत हे जिसका इस्तमाल सादउपयोग में करना चाहिए दुरूपयोग में नहीं ।
आज के कार्यक्रम में प्रदेश उपाध्यक्ष नवनीत जेन अविनाश तिवारी प्रदेश सचिव जिला अध्यक्ष भास्कर पाठक  अनुपम गुप्ता संभाग महासचिव अलोकिक खरे  संभाग कोषाध्यक्ष सचिन ताम्रकार संभाग सह सचिव राज पटेरिया संभाग उपाध्यक्ष राकेश रिछारिया संभाग उपाध्यक्ष आशीष सेनी संभाग सयुक्त सचिव मुस्सलिम खान संभाग सचिव मनोज सोनी संभाग सचिव बिनोद मिश्रा जिला बरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनील पाण्डेय जिला महासचिव संचलन करता राजू चोहान गोबिन्द्र सिंह जिला पंचायत सदस्य जिला संयोजक बालमुकुन्द बिस्कर्मा प्रबोध बर्मा संभाग सचिव बिजेश बर्मा जिला मंत्री नूतन सोनी जिला सहसंयोजक सतेन्द्र सिंह जिला उपाध्यक्ष सुनील उपाध्याय नरेन्द्र सिंह परमार परसुराम तिवारी ब्लाक अध्यक्ष  राधे बाबा दुबे ब्लाक उपाध्यक्ष  जुगल रिछारिया बिनोद तिवारी रामासंकर दीक्षित सहित कई साथी मोजूद रहे

चलती कार में कर रहे थे सेक्स, दर्दनाक हादसे में युवक की मौत

Present - toc news
लखनऊ – तेज रफ्तार कार में ‘सेक्स ’ कर रहा था प्रेमी जोड़ा और हादसा हो गया। इस दर्दनाक हादसे में युवक की मौत हो गई जबकि लड़की गंभीर रूप से घायल है । पुलिस के अनुसार कार चला रहे प्रेमी का सेक्स के दौरान कार से नियंत्रण हट गया और उसकी कार ट्रक से भिड़ गई ।कार अचानक अनियंत्रित होकर रांग साइड हुई और सामने से आ रही डीसीएम से टकरा गई। हादसे में युवक की मौत हो गई जबकि युवती गंभीर रूप से घायल है।

हादसा असम हाइवे पर थाना गजरौला क्षेत्र में स्थित कठिना पुल के पास हुआ। पीलीभीत की ओर से एक कार पूरनपुर की ओर जा रही थी। अचानक ही कार कठिना नदी पुल के पास अनियंत्रित होकर रांग साइड में आ गई। इसी बीच पीछे से आ रही तेज रफ्तार डीसीएम ने ओवरटेक करने के चक्कर में कार में टक्कर मार दी।

हादसे में कार चला रहे पूरनपुर के मोहल्ला रजागंज निवासी 30 वर्षीय यासीन की मौके पर मौत हो गई, जबकि उसके साथ अगली सीट पर बैठी पूरनपुर की ही दूसरे समुदाय की 28 वर्षीय युवती घायल हो गई।

हादसे के बाद मौके पर तमाम लोगों की भीड़ जुट गई। मौके पर मौजूद लोगों ने जब युवती और कार चालक को बाहर निकला तो उनके कपड़े पूरी तरह अस्त-व्यस्त थे। युवक और युवती दोनों ही लगभग अर्धनग्न अवस्‍था में थे। युवती ने बताया कि उसके पिता पेंटर हैं। जबकि मारा गया युवक कार मिस्त्री है।

वह उसके साथ कार में घर वापस जा रही थी। सूचना पर पुलिस भी मौके पर पहुंच गई। पुलिस ने भीड़ के बीच नग्नावस्था में युवती को किसी तरह बचाकर एक कार में बंद किया और दुर्घटनाग्रस्त हुई कार से कपड़े निकालकर युवती को दिए।

कार चालक के ऊपर कपड़े डालकर उसे ढका। पुलिस ने युवती के घर वालों को सूचना दी है। एसओ राजेश यादव ने बताया कि युवती और युवक के शरीर पर निचले हिस्से में कोई कपड़े नहीं थे। मामले में दोनों के परिजनों को सूचना दे दी गई है। – एजेंसी

Wednesday, February 24, 2016

पंचायत का CEO करोड़ो का आसामी, छापे में मिली पेट्रोलपंप समेत करोड़ों की जायदाद ।।

Toc News
ग्वालियर। छोटे से कस्बे के पंचायत CEO के निवास पर लोकायुक्त कार्रवाई में पेट्रोल पंप समेत करोड़ों की संपत्ति का खुलासा हुआ है।करैरा जनपद पंचायत के CEO रहने के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप में श्रीवास्तव को संभागायुक्त के आदेश से निलंबित किया गया था। लोकायुक्त की टीम अभी भी श्रीवास्तव के निवास पर छानबीन कर रही है। ये मिला कार्रवाई में....
शिवपुरी जिले के करैरा जनपद पंचायत के निलंबित CEO शिवकुमार श्रीवास्तव के ग्वालियर स्थित मकान पर पर लोकायुक्त टीम ने बुधवार सुबह छापामार कार्रवाई की। कार्रवाई के दौरान लोकायुक्त की टीम ने श्रीवास्तव के किराएदार के कमरे में छिपाकर रखी गई नगदी व कुछ जेवरात बरामद किए हैं। इसके अलावा आरोपी के घर से कई रजिस्ट्रियां, लॉकर की दो चाबियां और 3 लाख 22 हजार नकद मिला है।
20 करोड़ की संपत्ति मिली सीईओ के घर से
श्रीवास्तव के ग्वालियर व भोपाल में मकान होने के अलावा ग्वालियर में दो प्लाट और पत्नी के नाम एक पेट्रोल पंप होने का भी खुलासा हुआ है। शिवकुमार के घर से अब तक की कार्रवाई में 68 लाख की फिक्स डिपाजिट, 60 बीघा जमीन के दस्तावेज और बैंक एकाउंट में 26 लाख भी मिले हैं। लोकायुक्त की टीम ने अब तक श्रीवास्तव के नाम बीएसएफ कॉलोनी में तीन प्लाट, भोपाल में एक फ्लैट के कागजात और करीब 20 करोड़ की संपत्ति का खुलासा किया है।
पत्नी ने लगाया संभागायुक्त पर आरोप
कार्रवाई के दौरान श्रीवास्तव घर पर मौजूद नहीं थे, वहां केवल उनकी पत्नी ब्रजेश मौजूद थीं। शिवकुमार अभी दिल्ली में बताए जा रहे हैं, उनकी पत्नी ब्रजेश ने इस रेड के मामले में संभागायुक्त केके खरे पर आरोप लगाया है, ब्रजेश के मुताबिक संभागायुक्त खरे ने ही उनके पति को बिना कारण पहले जेल भिजवाया, अब उन्होंने ही हमारे घर पर भी छापा पड़वाया है।

नीमच से लेकर भोपाल व भोपाल से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक नीमच पुलिस की कार्य प्रणाली पर उठने लगे सवाल

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नीमच -  12 नवंबर 2015 को नीमच (मध्यप्रदेश) के दो पत्रकार लोकेन्द्र फतनानी व नरेंद्र गहलोत द्वारा पुलिस अधीक्षक नीमच को 11 नवंबर को दर्ज किए फर्जी प्रकरण के सम्बन्ध में  उचित कार्यवाही करने हेतु आवेदन दिया था, जिसमे उन्होंने उल्लेख किया था कि उनके अन्य दो पत्रकार साथी पर व उन पर भरभड़िया के दबंग पूर्व सरपंच व उसके समर्थको ने जान लेवा हमला किया था इसी हमले के दौरान हम दोनों मौके से भाग खड़े हुए व उनके अन्य दो साथियो व उन पर नीमच केंट थाने पर फर्जी प्रकरण दर्ज करवाया जा चूका है। उक्त आवेदन पर पुलिस द्वारा आज दिनांक तक 71-72 दिन व्यतीत होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। इससे तो साफ़ प्रतीत होता है की इसमे पुलिस द्वारा बालाराम व उनके समर्थको को संरक्षण दिया जा रहा है। जब पत्रकारो द्वारा दिनांक 11/12/2015 को सांय 7 बजे ही नीमच जिला कलेक्टर व पुलिस को उक्त घटना के सम्बन्ध में अवगत करा दिया गया था तो फिर चारो पत्रकारो को ही क्यों मुल्जिम बनाकर सलाखों के पीछे पहुचाया गया ? यदि इसी प्रकार पुलिस पत्रकारो को झुठे प्रकरण में फंसाती रहेगी तो जिस प्रकार आमजन को पुलिस पर से विश्वास उठ चूका है उसी प्रकार पत्रकारो को भी पुलिस पर से विश्वास उठ जाएगा। नीमच केंट पुलिस द्वारा मात्र 22 मिनिट में दिनांक 11/12/2015 को सच्चे व ईमानदार पत्रकारो पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर लिया गया था। पुलिस को सूचना पत्रकारो द्वारा दी गई, पुलिस द्वारा ही मौके पर से पत्रकारो को लाया गया जंहा की अवेध बोरवेल उत्खनन हो रहा था। पुलिस यदि चाहती तो उस समय अवेध बोरवेल उत्खनन को रुकवा सकती थी। पुलिस ने पहुंचकर ही पत्रकारो को बालाराम व उसके समर्थको से छुडवाया किन्तु जिन्होंने चारो पत्रकारो पर जानलेवा हमला किया था वह आज भी खुल्ले में बेख़ौफ़ घूम रहे है। क्या पुलिस पत्रकारो को अपना दुश्मन समझती है जो नियम के विरुद्ध बिना जांच करे पत्रकारो पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर लेती है। पूर्व में 24/10/2015 को भी उसी जगह अवैध खनन् को उक्त पत्रकारो ने रुकवाकर मशीन जप्त करवाई थी व प्रकरण दर्ज करवाया था। यह प्रकरण नीमच न्यायालय में अभी चल रहा है। और सबसे बड़ी बात तो यह है की न्यायालय ने उक्त जगह उत्खनन पर प्रतिबन्ध लगाया था। किन्तु फिर भी उसी जगह उत्खनन की जानकारी जब मिडियाकर्मी को लगी तो वे कवरेज करने ग्राम भरभड़िया पहुचे। यह न्यायालय के आदेशो की अवहेलना है जिस पर की पुलिस को तत्काल कार्यवाही करना चाहिए थी। गत 15/02/2016 को पुनः उसी जगह बोर को और गहरा करने का काम रात्रि में शुरू हुआ। जेसे ही यह शुरू हुआ उसकी सुचना भी व्हाट्सऐप पर अधिकारियो तक पहुच गई किन्तु फिर भी किसी अधिकारी ने कार्यवाही नहीं की। पुलिस प्रशासन को यह समझना अति आवश्यक है की समाज को आइना दिखाने का काम पत्रकारो का होता है और पत्रकार आमजन की तरह भीड़ का हिस्सा नहीं है। क्या यह खबर देखने के बाद नीमच पुलिस प्रशासन पुनः चारो पत्रकारो पर कार्यवाही करेगा या फिर उन लोगो पर जिन्होंने चारो पत्रकारो पर जानलेवा हमला किया था ?

दिल्ली थाना वसंत कुंज क्षेत्र में पत्रकार का मर्डर ।

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एंकर-- नशा, गुस्सा और रसुक के कॉकटेल में एक पत्रकार की जान ले ली, जी हाँ एक पत्रकार जो अपने किराए के कमरे में अपने दोस्तों के साथ बैठा था। उसके फ्लैट के नीचे एक रसुकजादे का जीम था। जीम में शराब की पार्टी चल रही थी, शोर शराबा हो रहा था। लेकिन उस पत्रकार नें बस ईतनी जुर्रत करदी की,, उनसे निवेदन करबैठा कि शोर ना करें,, बस ईतनी सी बात उस रसुकजादे बरदास्त नहीं हुई,, और उसनें पत्रकार को गोली मारदी।


वीओ 1
2016 के शुरुवात से सूर्खियों में रहा वसंतकुंज पुलिस स्टेशन,,, पहले देव्यांस की मौत का मामला और आजकल पुरे देश में फैला JNU का मसला, अब इस इलाके में एक पत्रकार की हत्या,, ऐसा लगता है,, जो ईलाका पहले काफी पॉश माना जाता था,, आजकल इस इलाके में अपराधों की झड़ी सी लग गई है। हरदीप ने 30 साल की उम्र में कई न्यूज चैनलो में काम किया । हरदीप अपनें माता-पिता के इकलौते बेटे थें, घर-परिवार की सारी जिम्मेदारी इन्हीं के उपर थी,,, लेकिन दिल्ली के बेखौफ अपराधियों नें इन्हें मौत की नींद सुला दिया । घटना बीते रविवार की है। हरदिप अपनें कमरा नंबर 112 में अपने दो दोस्तों के साथ बैठे थें।,,, रात तकरिबन 10.30 बजे इनके फ्लैट के नीचे जिम था वहाँ से काफी शोर-शराबा की आवाज आने लगी।,, जब बरदास्त की हद पार हो गई,, तब हरदीप उस जिम में गए और रिक्वेस्ट करनें लगे कि शोर ना मचाए।,,, उस वक्त जिम का मालिक रिंकु अपनें कुछ दोस्तों के साथ जीम में बैठ कर शराब पी रहा था। हरदीप के मना करनें के बाद सभी उसे गाली देने लगे। हरदीप वापस अपने कमरे में आ गया। लेकिन थोड़ी देर बाद रिंकु बंदुक ताने हुए उसके कमरे में आगया।,, उसनें पहले हरदीप को खूब मारा पिटी, उसके बाद रिंकु नें हरदीप को पेट में गोली मारदी। हरदीप को दोस्तों नें उसे बचाने की कोशिस की लेकिन रिंकु बन्दूक लहराते हुए और धमकाते हुए वहाँ से आराम से चला गया।,,, हरदीप को दोस्तों नें 100 पर कॉल किया, लेकिन पुलिस नहीं आई,, लिहाजा उसके दोस्तों नें घायल हरदीप को एक ऑटो में बीठाकर सफ्दरजंग ले गए। वहाँ पहुँचने के कुछ हीं देर बाद हरदीप की मौत हो गई। ईस हादसे के बाद ईस ईलाके में थनी खौफ है,, कि ईस मामले पर खूद हरदीप को दोस्तों नें भी कैमरे के आगे कुछ नहीं बोला।,, फिलहाल पुलिस नें हत्या का मामला दर्ज कर लिया है। लेकिन खूनी रिंकू की पहचान होनें के बावजूद वो पुलिस की गरफ्त से फरार है। हरदीप का परिवार हरियाणा कैथल के बालू गॉव में रहता है, और हरदीप फिलहाल IUAC में एडिटर के पद पर कार्यरत थें।

बारात गए युवक की हत्या कर कुएँ में फेका गया था


👉🏻अमगवाँ गाँव के कुएँ में मिली थी लाश
सिहोरा- खितौला थाना के अमगवाँ गाँव में खेत पर बने कुएँ में 18 फरवरी को सुनील पटेल(40वर्ष) की लाश मिलने के मामले में पोस्टमॉर्डम रिपोर्ट आने के बाद युवक की मौत को हत्या होना बताया गया है जिसमे मृतक के सिर,माथे और जबड़े में चोटें लगने की वजह से मौत हुयी है । जिसके बाद पुलिस ने पोस्टमॉर्डम रिपोर्ट के आधार पर अज्ञात लोगों पर हत्या कर साक्ष्य छुपाने की धारा 301,302और 34 के तहत मामला दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है।
👉🏻N Iपहले ही जताई थी आशंका
      N I ने पहले ही आशंका जाहिर कर हत्या होना बताया था ।मृतक सुनील पटेल 13 फरवरी की रात से गायब हो गया था जबकि युवक की हत्या दो दिन बाद किसी अज्ञात स्थान पर की गयी थी और साक्ष्य छुपाने के लिए आरोपियों ने लाश को खेत में बने कुएँ में फेंका गया था जिसकी लाश 18 फरवरी को कुएँ में मिली थी लेकिन घटनास्थल से न तो मृतक के टूटे हुए जबड़े के दांत मिले थे और न ही घटना स्थल पर खून मिला था जिसके बाद ज्यादातर हत्या के ही कयास लगाये जा रहे थे पुलिस भी मामले को दुर्घटना नही मान रही थी और पोस्टमॉर्डम रिपोर्ट आने का इन्तजार कर रही थी।ज्ञात हो की पुलिस ने मृतक के दांत और शरीर से निकले खून की तलास करने के लिए घटनास्थल से मिटटी भी उठवा कर लायी थी लेकिन मौके पर दांत नही मिले थे जिसके बाद पुलिस भी मामले को गंभीरता से लेते हुए सूक्ष्म बिन्दुओ की जांच शुरू कर है जिसमे पुलिस यह भी मान रही है की युवक की हत्या कर लाश कुएँ में फेकी गई है और इस हत्याकांड में एक से अधिक आरोपी शामिल हैं जिनकी पुलिस तलास में जुट गई है।
👉🏻यह था मामला
       खितौला थाना के ग्राम हरसिंघ्घी से मृतक सुनील पटेल पिता रामचरण (40वर्ष) दोस्त की बरात 13 फ़रवरी को अमगवाँ गाँव गया हुआ था जिसके बाद युवक सभी बरातियों के बीच रात के साढ़े बारह बजे तक देखा गया था लेकिन बारात से वापस घर नही लौटा था रिपोर्ट खितौला थाने में 16 फ़रवरी को गुम इंसान की रिपोर्ट दर्ज करवाई गयी थी । जिसके बाद युवक की लाश 18 फ़रवरी को अमगवाँ गाँव के खेत में बने कुएँ में मिली थी जो की गाँव से काफी दूर था।

इनका कहना
पोस्टमॉर्डम रिपोर्ट में युवक की लाश मिलने के दो दिन पहले हत्या कर कुएँ में फेका गया है जिसके बाद हत्या का मामला दर्ज कर आरोपियों की तलास की जा रही है।
ललित गर्ग
जांचकर्ता एसआई खितौला थाना

केंद्र ने बदले नियम, कलेक्टरों को मिले खदान मंजूरी के अधिकार

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भोपाल । निर्माण कार्यों के लिए आवश्यक रेत, पत्थर व गिट्टी के लिए खदानों के लिए अब राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण के पास नहीं भटकना पड़ेगा, बल्कि कलेक्टर से ही स्वीकृति मिल जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा किए नियमों में बदलाव के चलते अब 5 हेक्टेयर तक की खदानों की पर्यावरणीय मंजूरी देने के अधिकार कलेक्टरों को दे दिए गए हैं। इसके लिए जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाएगी, जिसकी प्रक्रिया प्रदेश में शुरू कर दी गई है।
केंद्र सरकार ने यह फैसला विभिन्न राज्यों की मांग के चलते किया है। इसकी वजह थी निर्माण कार्यों की जरूरतें आसानी से पूरी की जा सके। दरअसल प्रदेश स्तर पर गठित समिति के पास पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए राज्यभर से आए दिन ढेरों प्रस्ताव रोजाना आते थे जिससे मामलों को निपटाने में काफी समय लग जाता था। इस स्थिति के चलते बाजार में रेत, गिट्टी, मुरम और पत्थर की मांग आपूर्ति का अंतर बढऩे से इनके भाव भी आसमान छूने लगे हैं। वर्ष 2006 के पहले तक लघु-गौण खनिज की ऐसी खदानों के लिए पर्यावरण अनुमति जरूरी नहीं रहती थी, लेकिन 22 सितंबर 2014 को दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार का मामला सुप्रीम कोर्ट में आया। लंबी बहस और चर्चा के बाद छोटी खदानों के लिए जिला व्यवस्था लागू करने का फैसला हो गया। हाल ही में केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी। एनजीटी ने भी 13 जनवरी 15 को अपने आदेश में लघु खनन पट्टे की पर्यावरणीय नीति बनाने का निर्देश दिया।
750 मामलों के निपटाने का इंतजार
राज्य स्तरीय समिति के पास विभिन्न जिलों की 750 खदानों के मामले अनुमति के लिए पेंडिंग है। एक महीने से अनापत्ति देने का काम भी लगभग बंद है। जिला स्तरीय समितियां का इंतजार हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि ये सभी मामले जिला समितियों के अस्तित्व में आने के बाद संबंधित जिलों में लौटा दिए जाएंगे।
तीन साल में गठित होगी समिति
जिलों में गठित होने वाले चार सदस्यीय जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (दिया) एवं इसके सहयोग के लिए जिला स्तरीय विशेषज्ञ आकलन समिति ने 11 सदस्य होंगे। कलेक्टर इसके पदेन चेयरमैन होंगे। समिति ने वन अधिकारी, खनन और भू विज्ञान विभाग में सहायक निदेशक या उप निदेशक स्तर के अधिकारी रहेंगे। ‘दियाÓ में भू विज्ञानी को सचिव बनाया जाएगा। हर तीन साल में समिति का पुर्नगठन होगा।
एक माह मेें होगा गठन
खनिज साधन विभाग का मानना है कि अगले एक महीने में सभी जिलों तक समितियों का गठन हो सकता है। केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद राज्य सरकार ने सभी संभागीय मुख्यालयों को निर्देश भेज दिए हैं। माइनिंग क्षेत्र से जुड़े जानकारों का मानना है कि जिला स्तरीय समितियों के गठन के छह-आठ महीने बाद इस निर्णय का असर मार्केट में दिखने लगेगा।
भरपूर आपर्ति तो कीमतें घटेंगीं
– लघु खनिज की खदानों पर केंद्र के इस निर्णय से क्या फर्क पड़ेगा?
-यह बहुत महत्वपूर्ण निर्णय है। अब खदानें जल्दी शुरू हो सकेंगी।
-क्या अब रेत, गिटटी, मुरम और पत्थर की कीमतें कम होंगी ?
-हां, बिल्कुल। खदानों की मंजूरी जल्दी होने से उत्पादन बढ़ेगा। मार्केट में भरपूर आपूर्ति से कीमतें भी घटेंगी।
-अभी प्रदेश स्तरीय समिति में सैंकड़ों मामले पेंडिंग हैं। इनके निराकरण की क्या नीति रहेगी?
-जिला समितियां गठित होते ही सभी मामले ट्रांसफर होंगे और प्राथमिकता से उनका निपटारा होगा।
-इस मुद्दे को लेकर मप्र सरकार ने क्या पहल की, कभी केंद्र सरकार से चर्चा हुई ?
-हम लंबे समय से यह मांग कर रहे थे, निर्णय स्वागत योग्य है।

भाजपा के विधायक अवैध बिजली कनेक्शन से जला रहे बिजली

मामाजी इनको बिजली कनेक्शन तो दिलवा दो....

भाजपा के विधायक अवैध बिजली कनेक्शन से जला रहे बिजली विधानसभा नोटिस का भी लिहाज नहीं भोपाल से विधायक  हैं रामेश्वर शर्मा

भाजपा के विधायक रामेश्वर शर्मा ने विधानसभा से आवंटित कराए बंगला में अभी तक बिजली का कनेक्शन नहीं लिया है। जबकि बंगले में तीन-तीन एसी लगे हैं। बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए विधानसभा सचिवालय विधायक को 28 मई 2015 से 8 जनवरी 2016 तक कई बार नोटिस भी भेजे हैं। विधानसभा सचिवालय द्वारा बार-बार नोटिस जारी करने के बाद भी बिजली का कनेक्शन नहीं लिया। नियमानुसार स्वतंत्र बंगला आवंटित कराने पर आवंटिती को बिजली कनेक्शन स्वयं लेना होता है।

 यूं तो विधायक शर्मा सीईओ को धमकाने से लेकर अनर्गल बयान देने तक चर्चा में रहे हैं। बंगले में लाखों रुपए के निर्माण कार्य भी कराए हैं। जिसके लिए विधानसभा ने कोई अनुमति नहीं दी। विधानसभा ने सिर्फ 11 लाख करीब रुपए स्वीकृत किए। जिसमें एसी शामिल नहीं हैं।

Tuesday, February 23, 2016

ऊर्जा मंत्री के आश्वासन के बावजूद भी क्यों बढ़ रहे बिजली के दाम ?

अवधेश पुरोहित
Present by - toc news
भोपाल.  हालांकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बिजली, पानी और सड़क के मुद्दे पर बनकर सत्ता पर काबिज हुई थी इस सरकार के सत्ता के लगभग १२ साल पूरे होने के बावजूद भी इस प्रदेश की जनता को सरकारी लाख दावों के बावजूद भी २४ घंटे बिजली मिल पा रही है, स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश के किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं और वह अपने खेतों की ठीक से सिंचाई भी नहीं कर पा रहे हैं लेकिन इन सबसे मजे की बात प्रदेश के ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने विधानसभा चुनाव के समय बिजली की दरों में आगामी साल से कमी आने के दावे किये थे किन्तु वह दावे झूठे साबित हुए और पिछले साल भी दर वृद्धि की गई थी और इस बार भी बिजली कंपनियों ने घाटे का हवाला देकर फिर दर वृद्धि की मांग की, पूर्व में बिजली सरप्लस होने को आधार बताकर बिजली की दरों में कमी आने की संभावना जताई गई थी, अब भी बिजली सरप्लास है पर दर में कमी करने के दावे को राज्य के ऊर्जा मंत्री शायद भूल गए, तभी तो विद्युत कम्पनियों द्वारा राज्य के उपभोक्ताओं को बिजली की दर बढ़ाकर उन पर पुन: बोझ डालने के प्रयास में है, तो वहीं यह कम्पनियां प्रदेश की जनता को तो महंगी दरों पर बिजली उपलब्ध करा रहे हैं पर वहीं दूसरे राज्यों को सस्ती दरों पर बिजली क्यों उपलब्ध कराई जा रही है,

सरकार की इस तरह की दोहरी नीति को लेकर बिजली उपभोक्ता परेशान हैं, हालांकि बार-बार बिजली की दरें बढ़ाने का यह सिलसिला इस बात को जाहिर करता है कि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इतनी कमजोर है कि वह सरकार द्वारा और खासकर बिजली कंपनियों द्वारा बार-बार दरें बढ़ाने का क्रम जारी रखे हुए है, लेकिन वह इसका विरोध नहीं कर पा रही है और ना ही नियामक आयोग के समक्ष इस बात को लेकर कोई ठोस तर्क नहीं रख पा रही है जिसके कारण विद्युत कंपनियां अपने मनमानी के चलते घाटे का सहारा लेकर बिजली की दरें उपभोक्ताओं पर थोपती रहती है,

 इस सब घटनाक्रम को देखकर राज्य की जनता को इन दिनों आ रहे दिल्ली सरकार के उस विज्ञापन देखकर यह तरस आता है कि जिसमें वह महिला यह कहती नजर आती  है कि केजरीवाल सरकार के पूर्व हमारा बिजली का बिल चार हजार से पांच हजार तक आता था लेकिन केजरीवाल सरकार आने के बाद अब हमारा बिल १३ रुपये महीने के लगभग आता है और वह यह महिला यह भी कहती नजर आती है कि पहले की उपेक्षा हमारी दिल्ली की सरकार ने बिजली के दाम आधे कर दिये। सवाल यह उठता है कि आखिर केजरीवाल सरकार में ऐसा क्या जादू है कि जो अपने राज्य की जनता को कम दरों में बिजली उपलब्ध करा रही है जबकि उस सरकार के पास बिजली उत्पादन की इकाईयां भी कम हैं और अन्य राज्यों से बिजली खरीदने के साथ-साथ वहां निजी कंपनियां बिजली सप्लाई का काम कर रही हैं, प्रदेश की विद्युत कम्पनियों द्वारा बार-बार विद्युत की दरें बढ़ाने का विरोध जितनी ताकत और तर्क के साथ राज्य के आप पार्टी के नेताओं द्वारा नियामक आयोग के समक्ष विरोध दर्ज कराया गया, वैसा राज्य की किसी अन्य पार्टी या संगठन द्वारा नहीं, बार-बार बिजली की दरें बढ़ाने को लेकर सवाल यह उठता है कि दिल्ली सरकार अपने उपभोक्ताओं को कम दरों में बिजली उपलब्ध करा सकती है तो हमारी सरकार क्यों नहीं, तो वहीं लोगों में यह चर्चा का विषय भी आम है कि जनता को चुनाव के पूर्व आश्वासन देकर सत्ता में आने के बाद उन्हें पर्याप्त सुविधा दिलाने और अपने वायदे निभाने की ताकत हमारे राजनेताओं में नहीं है

तभी तो प्रदेश में पर्याप्त बिजली होने के बावजूद भी  राज्य के उपभोक्ताओं को महंगी बिजली उपलब्ध कराई जा रही है ऐसे में सवाल यह उठता है कि राज्य के ऊर्जा मंत्री ने विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य की जनता को यह आश्वासन दिया था कि आगामी  साल में बिजली की दरों में कमी की जाएगी तो उनका यह दावा केवल चुनावी दावा बनकर रह गया। सवाल यह भी उठता है कि राज्य के यह हमारे सत्ताधीश कब तक इस तरह से जनता को गुमराह करते रहेंगे और उनपर महंगी बिजली का भार थोपते रहेंगे।  

'शराब-शबाव के बिना नहीं रह सकते नेता"


OMG ! ये क्या बोल गये पप्पू यादव..
सिवान | 
अपने विवादित बोल के कारण सुर्खियों में रहने वाले जन अधिकार पार्टी के नेता और सांसद पप्पू यादव ने एक बार फिर अपने बयान से सनसनी फैला दी है। पप्पू यादव ने कहा है कि 90 फीसद सांसद व विधायक शराब-शबाब के बिना नहीं रह सकते।

सिवान में एक निजी कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे पप्पू यादव ने यहां तक कह डाला कि अब ठेकेदार, रंगदार, अपराधी, बिल्डर, अपहर्ता आदि सांसद और विधायक बन रहे हैं। ऐसे में राजनीति में नैतिकता और स्वच्छता आ ही नहीं सकती है। उन्होंने कई ऐसी बातें कहीं, जिनपर राजनीतिक गलियारों में बहस हो सकती है।

बिहार को चला रहे तीन-तीन सीएम
पप्पू यादव ने सूबे की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यहां अपराध और अपराधी बेलगाम हो गए हैं। तीन-तीन सीएम मिलकर सूबे की सरकार चला रहे हैं। नीतीश कुमार राजनीतिक सीएम हैं तो प्रशांत किशोर टेक्निकल सीएम। वहीं, सर्वेसर्वा सीएम लालू प्रसाद यादव हैं, जो अपराधियों को संचालित करते हैं। ऐसे में बिहार में अपराध बढऩा लाजिमी है।

राजबल्लभ प्रकरण को लेकर साधा निशाना
पिछले दिनों राजद विधायक राजबल्लभ यादव पर एक नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप पर उन्होंने कहा कि जिस महिला ने विधायक तक नाबालिग को पहुंचाया था, उसने खुद कहा है कि वह कई सांसद-विधायकों को लड़कियां सप्लाई करती है। ऐसे नेताओं की जांच होनी चाहिए।

निजी स्कूलों की मान्यता समाप्त निरस्त / दो लाख परीक्षार्थी होंगे प्रायवेट

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प्रदेश के 1600 प्राइवेट स्कूलों के करीब 2 लाख विद्यार्थी प्राइवेट छात्र के रूप में हाई स्कूल और हायर सेकंडरी परीक्षा में शामिल होगे. यह खबर जब छात्रों के घर पहुंची, तो हंगामा खड़ा हो गया. अभिभावकों का कहना था कि स्कूल वालो ने बच्चो का भविष्य बर्वाद कर दिया. जब उन्होंने स्कूल प्रबंधन पर चढाई की, तो स्कूल संचालनालय और मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल के खिलाफ सक्रीय हो गए है. वे प्रदेश व्यापी आंदोलन की चेतावनी दे रहे है.

इस मामले में छात्रों का सिर्फ इतना कुसूर है कि उन्होंने इन स्कूलों में पढ़ाई और यह भी नहीं देखा कि उन्होंने इन स्कूलों में पढ़ाई की और यह भी नहीं देखा कि स्कूल की मान्यता मिली भी या नहीं. चुकी मंडल ने इस बार एक जुलाई से ही परीक्षा फॉर्म भरवा लिए थे. इस लिए सभी छात्रों ने नियमित परीक्षाओ के रूप में फॉर्म भरे है. महज 9 दिन बाद (एक मार्च को) हायर सेकंडरी और 10 दिन बाद हाई स्कूल परीक्षा शुरू हो रही है. परीक्षा के ठीक पहले छात्रों के घर पहुंची इस खबर ने छात्रों और उनके अभिभावकों का तनाव बड़ा दिया है. बच्चे का साल भर स्कूल भेजने और पूरी फीस देने के बाद उसे परीक्षा में प्राइवेट छात्र के रूप में बैठना पद रहा है. नाराज अभिभावक स्कूल संचालको पर गुस्सा निकल रहे है, क्योकि मान्यता ख़त्म होने के बाद भी वे अब तक छात्रों को प्राइवेट करने की बात को दवाये बैठे थे.

अधिनियम में अस्थाई मान्यता का प्रावधान नहीं
स्कूल शिक्षा विभाग ने पहली बार हाई स्कूल व हायर सेकंडरी की मान्यता देने के अधिकार कलेक्टर को दिए है. जबकि जिला शिक्षा अधिकारियो (डीडीओ) को मान्यता वृद्धि के अधिकार है. सभी डीडीओ ने आसानी से मान्यता वृद्धि कर दी जब वे फाइले कलेक्टरों के पास पहुंची, तो प्रदेश में 1492 प्रकरण निरस्त कर दिए गए.

टी वी की किसी भी ख़बर पर भरोसा करने से पहले आप दस बार सोचेंगे।Zee News से स्तीफा देने के बाद पत्रकार विश्व दीपक का बयान

Zee News से स्तीफा देने के बाद पत्रकार विश्व दीपक का बयान और चैनल को लिखा पत्र। इसे पढ़ने के बाद टी वी की किसी भी ख़बर पर भरोसा करने से पहले आप दस बार सोचेंगे।
Present by - TOC news
"हम पत्रकार अक्सर दूसरों पर सवाल उठाते हैं लेकिन कभी खुद पर नहीं. हम दूसरों की जिम्मेदारी तय करते हैं लेकिन अपनी नहीं. हमें लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है लेकिन क्या हम, हमारी संंस्थाएं, हमारी सोच और हमारी कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक है ? ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं है. हम सबके हैं.

JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार को 'राष्ट्रवाद' के नाम पर जिस तरह से फ्रेम किया गया और मीडिया ट्रायल करके 'देशद्रोही' साबित किया गया, वो बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है. हम पत्रकारों की जिम्मेदारी सत्ता से सवाल करना है ना की सत्ता के साथ संतुलन बनाकर काम करना. पत्रकारिता के इतिहास में हमने जो कुछ भी बेहतर और सुंदर हासिल किया है, वो इन्ही सवालों का परिणाम है.

सवाल करना या न करना हर किसी का निजी मामला है लेकिन मेरा मानना है कि जो पर्सनल है वो पॉलिटिकल भी है. एक ऐसा वक्त आता है जब आपको अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों और अपनी राजनीतिक-समाजिक पक्षधरता में से किसी एक पाले में खड़ा होना होता है. मैंने दूसरे को चुना है और अपने संस्थान ZEE NEWS  से इन्ही मतभेदों के चलते 19 फरवरी को इस्तीफा दे दिया है.

मेरा इस्तीफा इस देश के लाखों-करोड़ों कन्हैयाओं और जेएनयू के उन दोस्तों को समर्पित है जो अपनी आंखों में सुंदर सपने लिए संघर्ष करते रहे हैं, कुर्बानियां देते रहे हैं.
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(ज़ी न्यूज़ के नाम मेरा पत्र जो मेेरे इस्तीफ़े में संलग्न है)

प्रिय ज़ी न्यूज़,

एक साल 4 महीने और 4 दिन बाद अब वक्त आ गया है कि मैं अब आपसे अलग हो जाऊं. हालांकि ऐसा पहले करना चाहिए था लेकिन अब भी नहीं किया तो खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकूंगा.

आगे जो मैं कहने जा रहा हूं वो किसी भावावेश, गुस्से या खीझ का नतीज़ा नहीं है, बल्कि एक सुचिंतित बयान है. मैं पत्रकार होने से साथ-साथ उसी देश का एक नागरिक भी हूं जिसके नाम अंध ‘राष्ट्रवाद’ का ज़हर फैलाया जा रहा है और इस देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेला जा रहा है. मेरा नागरिक दायित्व और पेशेवर जिम्मेदारी कहती है कि मैं इस ज़हर को फैलने से रोकूं. मैं जानता हूं कि मेरी कोशिश नाव के सहारे समुद्र पार करने जैसी है लेकिन फिर भी मैं शुरुआत करना चहता हूं. इसी सोच के तहत JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बहाने शुरू किए गए अंध राष्ट्रवादी अभियान और उसे बढ़ाने में हमारी भूमिका के विरोध में मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं. मैं चाहता हूं इसे बिना किसी वैयक्तिक द्वेष के स्वीकार किया जाए.

असल में बात व्यक्तिगत है भी नहीं. बात पेशेवर जिम्मेदारी की है. सामाजिक दायित्वबोध की है और आखिर में देशप्रेम की भी है. मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इन तीनों पैमानों पर एक संस्थान के तौर पर तुम तुमसे जुड़े होने के नाते एक पत्रकार के तौर पर मैं पिछले एक साल में कई बार फेल हुए.

मई 2014 के बाद से जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कमोबेश देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Communalization) हुआ है लेकिन हमारे यहां स्थितियां और भी भयावह हैं. माफी चाहता हूं इस भारी भरकम शब्द के इस्तेमाल के लिए लेकिन इसके अलावा कोई और दूसरा शब्द नहीं है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि ख़बरों को मोदी एंगल से जोड़कर लिखवाया जाता है ? ये सोचकर खबरें लिखवाई जाती हैं कि इससे मोदी सरकार के एजेंडे को कितना गति मिलेगी ?

हमें गहराई से संदेह होने लगा है कि हम पत्रकार हैं. ऐसा लगता है जैसे हम सरकार के प्रवक्ता हैं या सुपारी किलर हैं? मोदी हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, मेरे भी  है; लेकिन एक पत्रकार के तौर इतनी मोदी भक्ति अब हजम नहीं हो रही है ? मेरा ज़मीर मेरे खिलाफ बग़ावत करने लगा है. ऐसा लगता है जैसे मैं बीमार पड़ गया हूं.

हर खबर के पीछे एजेंडा, हर न्यूज़ शो के पीछे मोदी सरकार को महान बताने की कोशिश, हर बहस के पीछे मोदी विरोधियों को शूट करने की का प्रयास  ? अटैक, युद्ध से  कमतर कोई शब्द हमें मंजूर नहीं. क्या है ये सब ? कभी ठहरकर सोचता हूं तो लगता है कि पागल हो गया हूं.

आखिर हमें इतना दीन हीन, अनैतिक और गिरा हुआ क्यों बना दिया गया  ?देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान से पढ़ाई करने और  आजतक से लेकर बीबीसी और डॉयचे वेले, जर्मनी  जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद मेरी पत्रकारीय जमापूंजी यही है कि लोग मुझे ‘छी न्यूज़ पत्रकार’ कहने लगे हैं. हमारे ईमान (Integrity) की धज्जियां उड़ चुकी हैं. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?

कितनी बातें कहूं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लगातार मुहिम चलाई गई और आज भी चलाई जा रही है . आखिर क्यों ? बिजली-पानी, शिक्षा और ऑड-इवेन जैसी जनता को राहत देने वाली बुनियादी नीतियों पर भी सवाल उठाए गए. केजरीवाल से असहमति का और उनकी आलोचना का पूरा हक है लेकिन केजरीवाल की सुपारी किलिंग का हक एक पत्रकार के तौर पर नहीं है. केजरीवाल के खिलाफ की गई निगेटिव स्टोरी की अगर लिस्ट बनाने लगूंगा तो कई पन्ने भर जाएंगे. मैं जानना चाहता हूं कि पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत ‘तटस्थता’ का और दर्शकों के प्रति ईमानदारी का कुछ तो मूल्य है, कि नहीं ?

दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के मुद्दे पर ऐसा ही हुआ. पहले हमने उसे दलित स्कॉलर लिखा फिर दलित छात्र लिखने लगे. चलो ठीक है लेकिन कम से कम खबर तो ढंग से लिखते.रोहित वेमुला को आत्महत्या तक धकेलने के पीछे ABVP नेता और बीजेपी के बंडारू दत्तात्रेय की भूमिका गंभीरतम सवालों के घेरे में है (सब कुछ स्पष्ट है) लेकिन एक मीडिया हाउस के तौर हमारा काम मुद्दे को कमजोर (dilute) करने और उन्हें बचाने वाले की भूमिका का निर्वहन करना था.

मुझे याद है जब असहिष्णुता के मुद्दे पर उदय प्रकाश समेत देश के सभी भाषाओं के नामचीन लेखकों ने अकादमी पुरस्कार लौटाने शुरू किए तो हमने उन्हीं पर सवाल करने शुरू कर दिए. अगर सिर्फ उदय प्रकाश की ही बात करें तो लाखों लोग उन्हें पढ़ते हैं. हम जिस भाषा को बोलते हैं, जिसमें रोजगार करते हैं उसकी शान हैं वो. उनकी रचनाओं में हमारा जीवन, हमारे स्वप्न, संघर्ष झलकते हैं लेकिन हम ये सिद्ध करने में लगे रहे कि ये सब प्रायोजित था. तकलीफ हुई थी तब भी, लेकिन बर्दाश्त कर गया था.

लेकिन कब तक करूं और क्यों ??  

मुझे ठीक से नींद नहीं आ रही है. बेचैन हूं मैं. शायद ये अपराध बोध का नतीजा है. किसी शख्स की जिंदगी में जो सबसे बड़ा कलंक लग सकता है वो है - देशद्रोह. लेकिन सवाल ये है कि एक पत्रकार के तौर पर हमें क्या हक है कि किसी को देशद्रोही की डिग्री बांटने का ? ये काम तो न्यायालय का है न ?

कन्हैया समेत जेएनयू के कई छात्रों को हमने ने लोगों की नजर में ‘देशद्रोही’ बना दिया. अगर कल को इनमें से किसी की हत्या हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? हमने सिर्फ किसी की हत्या और कुछ परिवारों को बरबाद करने की स्थिति पैदा नहीं की है बल्कि दंगा फैलाने और गृहयुद्ध की नौबत तैयार कर दी है. कौन सा देशप्रेम है ये ? आखिर कौन सी पत्रकारिता है ये ?

क्या हम बीजेपी या आरएसएस के मुखपत्र हैं कि वो जो बोलेंगे वहीं कहेंगे ? जिस वीडियो में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा था ही नहीं उसे हमने बार-बार हमने उन्माद फैलाने के लिए चलाया. अंधेरे में आ रही कुछ आवाज़ों को हमने कैसे मान लिया की ये कन्हैया या उसके साथियों की ही है? ‘भारतीय कोर्ट ज़िंदाबाद’ को पूर्वाग्रहों के चलते ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ सुन लिया और सरकार की लाइन पर काम करते हुए कुछ लोगों का करियर, उनकी उम्मीदें और परिवार को तबाही की कगार तक पहुंचा दिया. अच्छा होता कि हम एजेंसीज को जांच करने देते और उनके नतीजों का इंतज़ार करते.

लोग उमर खालिद की बहन को रेप करने और उस पर एसिड अटैक की धमकी दे रहे हैं. उसे गद्दार की बहन कह रहे हैं. सोचिए ज़रा अगर ऐसा हुआ तो क्या इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी ? कन्हैया ने एक बार नहीं हज़ार बार कहा कि वो देश विरोधी नारों का समर्थन नहीं करता लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई, क्योंकि हमने जो उम्माद फैलाया था वो NDA सरकार की लाइन पर था. क्या हमने कन्हैया के घर को ध्यान से देखा है ? कन्हैया का घर, ‘घर’ नहीं इस देश के किसानों और आम आदमी की विवशता का दर्दनाक प्रतीक है. उन उम्मीदों का कब्रिस्तान है जो इस देश में हर पल दफ्न हो रही हैं. लेकिन हम अंधे हो चुके हैं !

मुझे तकलीफ हो रही है इस बारे में बात करते हुए लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि मेरे इलाके में भी बहुत से घर ऐसे हैं. भारत का ग्रामीण जीवन इतना ही बदरंग है.उन टूटी हुई दीवारों और पहले से ही कमजोर हो चुकी जिंदगियों में  हमने राष्ट्रवादी ज़हर का इंजेक्शन लगाया है, बिना ये सोचे हुए कि इसका अंजाम क्या हो सकता है! अगर कन्हैया के लकवाग्रस्त पिता की मौत सदमें से हो जाए तो क्या हम जिम्मेदार नहीं होंगे ? ‘The Indian Express’ ने अगर स्टोरी नहीं की होती तो इस देश को पता नहीं चलता कि वंचितों के हक में कन्हैया को बोलने की प्रेरणा कहां से मिलती है !

रामा नागा और दूसरों का हाल भी ऐसा ही है. बहुत मामूली पृष्ठभूमि और गरीबी  से संघर्ष करते हुए ये लड़के जेएनयू में मिल रही सब्सिडी की वजह से पढ़ लिख पाते हैं. आगे बढ़ने का हौसला देख पाते हैं. लेकिन टीआरपी की बाज़ारू अभीप्सा और हमारे बिके हुए विवेक ने इनके करियर को लगभग तबाह ही कर दिया है.

हो सकता है कि हम इनकी राजनीति से असहमत हों या इनके विचार उग्र हों लेकिन ये देशद्रोही कैसे हो गए ? कोर्ट का काम हम कैसे कर सकते हैं ? क्या ये महज इत्तफाक है कि दिल्ली पुलिस ने अपनी  FIR में ज़ी न्यूज का संदर्भ दिया है ? ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली पुलिस से हमारी सांठगांठ है ? बताइए कि हम क्या जवाब दे लोगों को ?

आखिर जेएनयू से या जेएनयू के छात्रों से क्या दुश्मनी है हमारी ? मेरा मानना है कि आधुनिक जीवन मूल्यों, लोकतंत्र, विविधता और विरोधी विचारों के सह अस्तित्व का अगर कोई सबसे खूबसूरत बगीचा है देश में तो वो जेएनयू है लेकिन इसे गैरकानूनी और देशद्रोह का अड्डा बताया जा रहा है.

मैं ये जानना चाहता हूं कि जेएनयू गैर कानूनी है या बीजेपी का वो विधायक जो कोर्ट में घुसकर लेफ्ट कार्यकर्ता को पीट रहा था ? विधायक और उसके समर्थक सड़क पर गिरे हुए CPI के कार्यकर्ता अमीक जमेई को बूटों तले रौंद रहे थे लेकिन पास में खड़ी पुलिस तमाशा देख रही थी. स्क्रीन पर पिटाई की तस्वीरें चल रही थीं और हम लिख रहे थे – ओपी शर्मा पर पिटाई का आरोप. मैंने पूछा कि आरोप क्यों ? कहा गया ‘ऊपर’ से कहा गया है ? हमारा ‘ऊपर’ इतना नीचे कैसे हो सकता है ? मोदी तक तो फिर भी समझ में आता है लेकिन अब ओपी शर्मा जैसे बीजेपी के नेताओं और ABVP के कार्यकर्ताओं को भी स्टोरी लिखते समय अब हम बचाने लगे हैं.

घिन आने लगी है मुझे अपने अस्तित्व से. अपनी पत्रकरिता से और अपनी विवशता से. क्या मैंने इसलिए दूसरे सब कामों को छोड़कर पत्रकार बनने का फैसला बनने का फैसला किया था. शायद नहीं.

अब मेरे सामने दो ही रास्ते हैं या तो मैं पत्रकारिता छोड़ूं या फिर इन परिस्थितियों से खुद को अलग करूं. मैं दूसरा रास्ता चुन रहा हूं. मैंने कोई फैसला नहीं सुनाया है बस कुछ सवाल किए हैं जो मेरे पेशे से और मेरी पहचान से जुड़े हैं. छोटी ही सही लेकिन मेरी भी जवाबदेही है. दूसरों के लिए कम, खुद के लिए ज्यादा. मुझे पक्के तौर पर अहसास है कि अब दूसरी जगहों में भी नौकरी नहीं मिलेगी. मैं ये भी समझता हूं कि अगर मैं लगा रहूंगा तो दो साल के अंदर लाख के दायरे में पहुंच जाऊंगा. मेरी सैलरी अच्छी है लेकिन ये सुविधा बहुत सी दूसरी कुर्बानियां ले रही है, जो मैं नहीं देना चाहता. साधारण मध्यवर्गीय परिवार से आने की वजह से ये जानता हूं कि बिना तनख्वाह के दिक्कतें भी बहुत होंगी लेकिन फिर भी मैं अपनी आत्मा की आवाज (consciousness) को दबाना नहीं चाहता.

मैं एक बार फिर से कह रहा हूं कि मुझे किसी से कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है. ये सांस्थानिक और संपादकीय नीति से जुडे हुए मामलों की बात है. उम्मीद है इसे इसी तरह समझा जाएगा.

यह कहना भी जरूरी समझता हूं कि अगर एक मीडिया हाउस को अपने दक्षिणपंथी रुझान और रुचि को जाहिर करने का, बखान करने का हक है तो एक व्यक्ति के तौर पर हम जैसे लोगों को भी अपनी पॉलिटिकल लाइन के बारे में बात करने का पूरा अधिकार है. पत्रकार के तौर पर तटस्थता का पालन करना मेरी पेशेवर जिम्मेदारी है लेकिन एक व्यक्ति के तौर पर और एक जागरूक नागरिक के तौर पर मेरा रास्ता उस लेफ्ट का है जो पार्टी द्फ्तर से ज्यादा हमारी ज़िंदगी में पाया जाता है. यही मेरी पहचान है.

और अंत में एक साल तक चलने वाली खींचतान के लिए शुक्रिया. इस खींचतान की वजह से ज़ी न्यूज़ मेरे कुछ अच्छे दोस्त बन सके.  

सादर-सप्रेम,
विश्वदीपक

निलंबित आईएएस मालपानी खोलेंगे भ्रष्टाचार की परतें

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भोपाल। कथित रिश्वत मांगने का आडियो वायरल होने के बाद निलंबित किए गए आईएएस अफसर जेएन मालपानी अब विभाग में वर्षों से जारी भ्रष्टाचार की परतें खोलने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल विभाग में सप्लाई होने वाली सामग्री के लिए एक बड़ा काकस बना हुआ है। यह काकस दशकों से यहां काम कर रहा है। जिसके द्वारा पूरा भुगतान लेकर घटिया सामग्री की सप्लाई की जाती है। इस काकस में अफसरों के अलावा नेता भी शामिल हैं। जिलों में कलेक्टर, सीईओ और सहायक आयुक्त आदिवासी इस गिरोह की अहम कड़ी है। सहायक आयुक्त बड़वानी से कथित रिश्वत मांगने के आरोप में निलंबित जेएन मालपानी ने 3 अगस्त 15 को आयुक्त का पदभार संभाला। चार माह में उन्हें निलंबित किया गया। सूत्रों का कहना है कि आयुक्त आदिवासी विकास में कई दशकों से नौकरशाह-अफसर और सामग्री सप्लायरों का ऐसा काकस सक्रिय है जो उनके कारोबार में रोड़ा अटकाने वाले को वहां से हटा देते हैं। चर्चा है कि मालपानी इसी काकस के शिकार बने। आयुक्त आदिवासी विकास में मालपानी ने अपनी आरटीआई में उल्लेख किया है कि जैसे ही अनियमितताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की पहल की, वैसे ही उनके खिलाफ गुमनाम शिकायतें कई स्तर पर शुरू हो गई हैं। मालपानी ने आयुक्त आदिवासी विकास में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए सूचना के अधिकार के अंतर्गत 14 बिंदुओं के तहत जानकारी मांगी है। यदि मालपानी द्वारा मांगी गई सूचना के तहत जानकारी शामिल हुई तो आयुक्त आदिवासी विकास में चल रहे भ्रष्टाचार का बड़ा खुलासा हो सकेगा।
इन बिंदुओं पर मांगी जानकारी
– 18 जिला अधिकारियों को 13 अक्टूबर 15 को कारण बताओ सूचना पत्र जारी किए गए हैं, की प्रमाणित प्रति।
-निलंबित आरके श्रोती को 22 सितंबर 15 और 13 अक्टूबर को जारी कारण बताओ नोटिस की प्रति एवं संबंधित नोटशीट की छायाप्रति।
-अपर आयुक्त आदिवासी विकास द्वारा 7 अक्टूबर और 10 नवंबर को आरके श्रोती को जारी कारण बताओ नोटिस की छाया प्रति।
-3 अक्टूबर 15 को श्रोती के विरुद्ध विभागीय जांच स्थगित करते हुए उन्हें आरोप पत्र जारी किए गए हैं, कि प्रमाणित प्रति।
– मेरे पूर्व अधिकारी द्वारा 24 जून 14 को अनुसूचित जनजाति छात्रावासों में विद्यार्थियों के उपयोग में आने वाली सामग्री क्रय करने हेतु राशि विद्यार्थियों एवं पालक के खाते में जमा करने संबंधी निर्देश जारी किए गए, की प्रमाणित प्रत्रि।
-न्यायालय द्वारा 24 सितंबर 14 को आदेश पारित करते हुए विभागीय निर्देश 13 जून 14 और 23 जून 14 का क्रियान्वयन स्थगित किया गया, की छाया प्रति।
-सामग्री प्रदाय हेतु जारी किए गए नई विभागीय व्यवस्था का क्रियान्वयन जारी रहा एवं माननीय न्यायालय के आदेश का पालन न होने से याचिकाकर्ताओं द्वारा मेरे विरुद्ध उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका क्रमांक 206714 प्रस्तुत की गई है कि प्रमाणित प्रति।
-आयुक्त आदिवासी विकास के पद पर 4 माह के ही अल्प कार्यकाल में मेरे विरुद्ध झूठी एवं गुमनाम शिकायतें अनेकों स्तर पर की गई कि प्रमाणित प्रति।
एक अरब का है गड़बड़झाला
आयुक्त आदिवासी विकास में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की गड़बड़ी हुई है। इसमें छात्रावासों की सुदृढ़ीकरण से लेकर रजाई, गद्दा, खेल सामग्री, विज्ञान सामग्री की खरीदी तक का मामला शामिल है। मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ और मप्र राज्य औद्योगिक संघ तक शामिल है।

इनका कहना है…

मैंने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी है किंतु डेढ़ माह का समय बीतने जा रहा है और अभी तक संबंधित जानकारी नहीं दी गई। इस संबंध में आगे अपील करूंगा।
-जेएन मालपानी, निलंबित आईएएस

Sunday, February 21, 2016

मोदी राज में 25 हजार करोड़ का घोटाला

मोदी राज में 25 हजार करोड़ का घोटाला: सामना
नई दिल्ली। पारदर्शी नीति अपनाने का दावा करने वाली नरेंद्र मोदी सरकार भी भ्रष्टाचार के घेरे में आ गई है। भ्रष्टाचार का यह आरोप किसी विपक्षी पार्टी ने नहीं बल्कि केंद्र और महाराष्ट्र की भाजपानीत सरकार में शामिल शिवसेना ने ही लगाया है।  शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कार्यकारी संपादक संजय राउत ने ‘सच्चाई’ नामक शीर्षक के तहत एलईडी बल्ब में भारी घोटाले का पर्दाफाश किया है। राउत ने लिखा है कि केंद्र सरकार ने एलईडी बल्ब लगाने का ठेका एक मृत कंपनी को दिया है, जिसमें करीब 25 हजार करोड़ रुपये का गैर-व्यवहार हुआ है।  राउत के इस आरोप से भाजपा-शिवसेना के बीच विवाद गहराने की संभावना है। केंद्र और राज्य सरकार में शामिल होने के बाद भी शिवसेना लगातार भाजपा के खिलाफ राजनीतिक बयानबाजी करती रही है लेकिन यह पहला मौका है जब शिवसेना ने अपनी ही सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर भाजपा को खुली चुनौती दी है।

छात्रों को न्यूड फोटो खिंचवाने के लिए मजबूर करते हैं शिक्षक

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बाराबंकी। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने गुरू और शिष्य के रिश्तों को कालिख लगा दिया। यहां के केंद्रीय विद्यालय के छात्रों ने शिक्षक पर उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। छात्रों ने मीडिया के सामने अपना दर्द बयां किया तो सबके होश उड़ गए।


छात्रों ने बताया कि शिक्षक छात्रों से कपड़ें उतरवाकर फोटो खिंचवाने के लिए मजबूर करता था। वहीं बाराबंकी बीजेपी सांसद प्रियंका सिंह रावत ने कहा कि यह शिकायत उन्हें भी लिखित में मिली है। यह मुद्दा संसद में उठाएंगी। आरोपी प्राचार्य और शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगी।

साथ ही केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से भी कार्रवाई की मांग करेंगी। दरअसल, 11 फरवरी को जब बोर्ड परीक्षा की भौतिक विज्ञान का प्रैक्टिकल चल रहा था।

आरोपी शिक्षक आरपी यादव के इशारे पर परीक्षक और उनकी पत्नी ने उन्हें बार बार पैर छूने के लिए धमकाया। फिर छात्रों से कपड़े उतार कर फोटो खिंचवाने को कहा गया। जिसके बाद छात्र रोने लगे।

 इसके बाद इस बात की जानकारी छात्रों ने परिजनों को दी। इस संबंध में प्रधानाचार्य जीपी यादव का कहना है कि बच्चों के साथ कोई खराब व्यवहार नहीं किया गया हे। ये आरोप सरासर गलत है।

सोरी पर ज्वलनशील पदार्थ से हमला

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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में आम आदमी पार्टी की न ेता सोनी सोरी पर अज्ञात लोगों ने हमला कर दिया है. सोरी को ईलाज के लिए जगदलपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है. सोनी पर काले रंग का ज्वलनशील पदार्थ से हमला किया जो कि एसिड जैसा कुछ हो सकता है.

पुलिस ने दर्ज किया मामला
दंतेवाड़ा जिले के पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जिले के गीदम थाना क्षेत्र के अंतर्गत जवांगा गांव के करीब अज्ञात लोगों ने आम आदमी पार्टी की नेता सोनी सोरी पर हमला कर दिया है तथा उसके चेहरे पर ग्रीस जैसा कुछ पदार्थ पोत दिया है. जब उसके चेहरे पर जलन होने लगी तब उसे सीधे गीदम के अस्पताल ले जाया गया. पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है.

हमलावर हुए फरार
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि सोरी अपने दो अन्य साथियों के साथ जगदलपुर से अपने गृहग्राम गीदम के लिए मोटरसाइकल से रवाना हुई थी. सोरी बस्तानार घाट पार करने के बाद जब जवांगा गांव के करीब पहुंची तब कुछ मोटरसाइकल सवार लोगों ने उन्हें घेर लिया और उनके साथ धक्कामुक्की करते हुए उनके चेहरे पर ग्रीस जैसा पदार्थ लगा दिया. घटना को अंजाम देने के बाद हमलावर वहां से भाग गए.

पहले से मिल रही थीं धमकी
इधर राज्य में आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक संकेत ठाकुर ने आरोप लगाया है कि बस्तर में मानवाधिकार उलंघन के मामलों को उठाने के कारण सोरी पर हमला किया गया है. ठाकुर ने कहा कि अज्ञात लोगों द्वारा कुछ दिनों पहले सोरी को जान से मारने की धमकी दी गई थी. जिसकी शिकायत पुलिस से की गई थी, लेकिन पुलिस ने सोरी को सुरक्षा प्रदान नहीं की.

लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं सोनी
दंतेवाड़ा जिला निवासी सोनी सोरी पर नक्सली सहयोगी होने के आरोपों के बाद उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. बाद में वह जमानत पर रिहा हो गई. शिक्षिका सोरी बाद में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गई और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह आम आदमी पार्टी की टिकट से बस्तर लोकसभा क्षेत्र चुनाव भी लड़ी थी. हालंकि वह चुनाव हार गईं.

दो दिन से भूखे प्यासे प्रभात पटट्न वनपरिक्षेत्र में वर्षा के पूर्व पौधारोपण के लक्ष्य की पूर्ति के लिए गडढ़ो की खुदाई करने आए मजदूरो का वनपरिक्षेत्र में भुगतान को लेकर जबददस्त हंगामा

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बैतूल, (रामकिशोर पंवार): दो दिन भुख प्यास से व्याकुल मजदूरो ने उनके द्वारा किए गए कार्यो के एडंवास भुगतान की मांग को लेकर बीती शाम जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर दक्षिण वन मंडल के मुलताई वन परिक्षेत्र कार्यालय में जबरदस्त हंगामा खड़ा कर दिया। अध नंगे छोटे - छोटे एवं दुध मुँहे बच्चों को लेकर आई महिला एवं पुरूषो ने प्रभाट पटट्न सर्किल के  डिप्टी रेंजर श्री बोडख़े के द्वारा एक बिचौलिए के माध्यम से सरकारी लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रभात पटट्न के आसपास की बीटो में बड़े पैमाने पर 30330 साइज के पांच रूपये प्रति गडढ़े की मजदूरी दर पर खुदवायें गडढ़ो की तय की गई सप्ताहिक मजदूरी के एडंवास रूपयो की मांग को लेकर अपना डेरा डाल रखा है।

बीते 14 वर्षो से मध्यप्रदेश शासन के वन विभाग में पौधारोपण के लिए निर्धारित गडढ़ो की खुदाई का काम कर रहे मध्यप्रदेश के रीवा संभाग के कटनी एवं सीधी जिले की घुमन्तु जनजाति के लोगो ने बताया कि प्रभात पटट्न के पूर्व में दक्षिण वन मंडल के आमला वन परक्षिेत्र में18 हजार खोदे गए गए चुके है। इस समय पटट्न सर्किल में 11 हजार गडढ़ो की खुदाई कर चुके मजदूरो को खाने - पीने की सामग्री की खरीदी के लिए रूपये - पैसे नहीं बचे है। उनकी स्थिति यह है कि मात्र 25 लोगो में से 16 रूपये के पास बैंक के खाते है शेष अन्य लोगो ने अपने परिवार के सदस्यों के बैंक खाते दे रखे है जिसमें मजदूरी भुगतान इपेमेंट के माध्यम से किया जा सके। काम करने से पहले इन सभी मजदूरो ने डिप्टी रेंजर से यह तय कर लिया था कि उन्हे प्रति सप्ताह 10 हजार रूपये एडंवास राशी देनी होगी जो उनके जीवन यापन के लिए जरूरी है।

सब कुछ तय होने के बाद ही काम पर गए मजदूरो को जब एडवांस राशी नहीं मिली तो उनका हंगामा खड़ा कर देना स्वभाविक था। मध्यप्रदेश के सीधी एवं कटनी जिले से पिछले चौदह वर्षो से घुम - घुम कर जंगलो में गडढ़ो की खुदाई का काम करने बैतूल पहुंची घुमन्तु जनजाति की महिला एवं पुरूषो तथा उनके संग काम करने आए नाबालिग बच्चों ने दो वक्त की रोटी के लिए पैसे की मांग को हंगामा करने के पीछे की पीड़ा भी व्यक्त की। इन महिलाओं का आरोप था कि विभाग के लोग काम करवा लेते है लेकिन उनकी मजदूरी नहीं देते है।

उनका पिछले साल का पूर्व स्थान पर किए गए कार्यो का 2 लाख 40 हजार रूपये का भुगतान मिलना बाकी है। समय पर भुगतान न होने के कई कारण सामने आए। जहां एक ओर वनविभाग ने इपमेंट से भुगतान होने की बात कहीं वहीं दुसरी ओर फिल्ड पर इन मजदूरो से काम करवाने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने सीधे तौर पर कहा कि काम करने वाले मजदूरो के पास बैंक खाते नम्बर नहीं है जिसकी वजह से उनके खातों में इपेमेंट नहीं हो पा रहा है। सबसे आश्चर्य जनक यह बात सामने आई कि कई लोगो ने अपने रिश्तेदारो के बैंक खाते नम्बर दे दिए जिन्होने बैतूल देखा तक नहीं है।

वनविभाग के अधिकारियों ने बिना किसी पहचान एवं उनके पास बैंक खातो के अभाव में खाना बदोश धुमुन्तु जनजाति एवं अनसूचित जाति के लोगो को काम पर कैसे रख लिया। बताया जाता है कि काम करने वाले बालिग एवं नाबालिग मजदूरो की संख्या दो दर्जन से अधिक है तथा उन्हे लाना वाला पेशेवर बिचौलियां है जो उनके खातों में भुगतान डलवाने के लिए अपने रिश्तेदारो के खाते नम्बर दे चुका है। अब समस्या सामने है कि लगभग दो से ढाई लाख रूपये का बैतूल जिले के विभिन्न परिक्षेत्रो में गडढ़ो की खुदाई का काम कर चुके इन मजदूरो के क्या कलैक्टर रेट पर मजदूरी दी जा रही है या फिर बिचौलिए द्वारा उनसे ठेके पर काम करवाया जा रहा है।

आमला वन परिक्षेत्र अधिकारी श्री अहिरवार इस बात को स्वीकार कर चुके है उन्होने इन मजूदरो से पूर्व में भी गडढ़ो की खुदाई का काम करवाया है। वे इन लोगो को लाने वाले बिचौलिए को जानते है तथा उनसे उनका सबंध है। श्री अहिरवार कहते है कि वनविभाग की ओर से अकसर बजट समाप्त होने तथा वर्षा ऋतु के आगमन के पूर्व ही बड़े पैमाने पर वन परिक्षेत्रो में गडढ़ो की खुदाई का काम करवाया जाता है। बैतूल जिले में लोगो इनके अनुपात में गडढ़ो की खुदाई नहीं कर पाते है इसलिए इनसे ही काम करवाना कई बार वनविभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों की मजबूरी बन जाता है।

श्री अहिरवार को उक्त सभी मजदूर अच्छी तरह से जानते है क्योकि वे उनसे महाकौशल के नरसिंहपुर जिले में अपनी पदस्थापना के दौरान वहां पर भी काम करवा चुके है। बीते वर्षो में उनके कहे शब्दो के अनुसार वे चालिस - पचास लाख का काम कर चुके है लेकिन उनकी दशा एवं दिशा देख कर ऐसा नहीं लगता है कि उनके पास कुछ बचा होगा क्योकि मात्र एक सप्ताह में 25 मजदूरो एवं उन पर आश्रित परिवार के सदस्यों के दस हजार रूपये एडंवास न मिलने के कारण पिछले दो दिन से वे भुख एवं प्यास से तड़प रहे है।

महिलाओं के द्वारा हंगामा खड़ा कर देने के बाद अब वनपरिक्षेत्राधिकारी कहते है कि दुध मुँह बच्चों तथा स्कूल आगंनवाड़ी जाने वाले छोटे - बच्चों की माताओं को वे काम पर नहीं रखेगें तथा उनको वापस बैंरग उनके गांवो को भिजवाया जाएगा लेकिन इन महिलाओं का कहना था कि उनके रूपयें लिए बिना वे यहां से जाने वाली नहीं है। कितनी शर्मसार कर देने वाली बात है कि बैतूल जिले से हजारो की संख्या में आदिवासी परिवार रोजगार की तलाश में पड़ौसी जिलो में हर वर्ष पलायन कर रहे है वहीं  दुसरी ओर हजारो किमी दूर से आए लोगो को वन विभाग में रोजगार दिया जा रहा है।

ताकि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते है।

ताकि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते है।

प्राइम टाइम NDTV रविश कुमार
(अनुरोध - ज़रूर पढ़ियेगा )

नई दिल्ली: आप सबको पता ही है कि हमारा टीवी बीमार हो गया है। पूरी दुनिया में टीवी में टीबी हो गया है। हम सब बीमार हैं। मैं किसी दूसरे को बीमार बताकर खुद को डॉक्टर नहीं कह रहा। बीमार मैं भी हूं। पहले हम बीमार हुए अब आप हो रहे हैं। आपमें से कोई न कोई रोज़ हमें मारने पीटने और ज़िंदा जला देने का पत्र लिखता रहता है। उसके भीतर का ज़हर कहीं हमारे भीतर से तो नहीं पहुंच रहा। मैं डॉक्टर नहीं हूं। मैं तो ख़ुद ही बीमार हूं। मेरा टीवी भी बीमार है। डिबेट के नाम पर हर दिन का यह शोर शराबा आपकी आंखों में उजाला लाता है या अंधेरा कर देता है। आप शायद सोचते तो होंगे।

डिबेट से जवाबदेही तय होती है। लेकिन जवाबदेही के नाम पर अब निशानदेही हो रही है। टारगेट किया जा रहा है। इस डिबेट का आगमन हुआ था मुद्दों पर समझ साफ करने के लिए। लेकिन जल्दी ही डिबेट जनमत की मौत का खेल बन गया। जनमत एक मत का नाम नहीं है। जनमत में कई मत होते हैं। मगर यह डिबेट टीवी जनमत की वेरायटी को मार रहा है। एक जनमत का राज कायम करने में जुट गया है। जिन एंकरों और प्रवक्ताओं की अभिव्यक्ति की कोई सीमा नहीं है वो इस आज़ादी की सीमा तय करना चाहते हैं। कई बार ये सवाल खुद से और आपसे करना चाहिए कि हम क्या दिखा रहे हैं और आप क्यों देखते हैं। आप कहेंगे आप जो दिखाते हैं हम देखते हैं और हम कहते हैं आप जो देखते हैं वो हम दिखाते हैं। इसी में कोई नंबर वन है तो कोई मेरे जैसा नंबर टेन। कोई टॉप है तो कोई मेरे जैसा फेल। अगर टीआरपी हमारी मंज़िल है तो इसके हमसफ़र आप क्यों हैं। क्या टीआरपी आपकी भी मंज़िल है।

इसलिए हम आपको टीवी की उस अंधेरी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां आप तन्हा उस शोर को सुन सकें। समझ सकें। उसकी उम्मीदों, ख़ौफ़ को जी सकें जो हम एंकरों की जमात रोज़ पैदा करती है।

आप इस चीख को पहचानिये। इस चिल्लाहट को समझिये। इसलिए मैं आपको अंधेरे में ले आया हूं। कोई तकनीकि ख़राबी नहीं है। आपका सिग्नल बिल्कुल ठीक है। ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है। हमने जानबूझ कर ये अंधेरा किया है। समझिये आपके ड्राईंग रूम की बत्ती बुझा दी है और मैं अंधेरे के उस एकांत में सिर्फ आपसे बात कर रहा हूं। मुझे पता है आज के बाद भी मैं वही करूंगा जो कर रहा हूं। कुछ नहीं बदलेगा, न मैं बदल सकता हूं। मैं यानी हम एंकर। तमाम एंकरों में एक मैं। हम एंकर चिल्लाने लगे हैं। धमकाने लगे हैं। जब हम बोलते हैं तो हमारी नसों में ख़ून दौड़ने लगता है। हमें देखते देखते आपकी रग़ों का ख़ून गरम होने लगा है। धारणाओं के बीच जंग है। सूचनाएं कहीं नहीं हैं। हैं भी तो बहुत कम हैं।

हमारा काम तरह तरह से सोचने में आपकी मदद करना है। जो सत्ता में है उससे सबसे अधिक सख़्त सवाल पूछना है। हमारा काम ललकारना नहीं है। फटकारना नहीं है। दुत्कारना नहीं है। उकसाना नहीं है। धमकाना नहीं है। पूछना है। अंत अंत तक पूछना है। इस प्रक्रिया में हम कई बार ग़लतियां कर जाते हैं। आप माफ भी कर देते हैं। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि हम ग़लतियां नहीं कर रहे हैं। हम जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं। इसलिए हम आपको इस अंधेरी दुनिया में ले आए हैं। आप हमारी आवाज़ को सुनिये। हमारे पूछने के तरीकों में फर्क कीजिए। परेशान और हताश कौन नहीं है। सबके भीतर की हताशा को हम हवा देने लगे तो आपके भीतर भी गरम आंधी चलने लगेगी। जो एक दिन आपको भी जला देगी।

जेएनयू की घटना को जिस तरह से टीवी चैनलों में कवर किया गया है उसे आप अपने अपने दल की पसंद की हिसाब से मत देखिये। उसे आप समाज और संतुलित समझ की प्रक्रिया के हिसाब से देखिये। क्या आप घर में इसी तरह से चिल्ला कर अपनी पत्नी से बात करते हैं। क्या आपके पिता इसी तरह से आपकी मां पर चीखते हैं। क्या आपने अपनी बहनों पर इसी तरह से चीखा है। ऐसा क्यों हैं कि एंकरों का चीखना बिल्कुल ऐसा ही लगता है। प्रवक्ता भी एंकरों की तरह धमका रहे हैं। सवाल कहीं छूट जाता है। जवाब की किसी को परवाह नहीं होती। मारो मारो, पकड़ो पकड़ो की आवाज़ आने लगती है। एक दो बार मैं भी गुस्साया हूं। चीखा हूं और चिल्लाया हूं। रात भर नींद नहीं आई। तनाव से आंखें तनी रही। अक्सर सोचता हूं कि हमारी बिरादरी के लोग कैसे चीख लेते हैं। चिल्ला लेते हैं। अगर चीखने चिल्लाने से जवाबदेही तय होती तो रोज़ प्रधानमंत्री को चीखना चाहिए। रोज़ सेनाध्यक्ष को टीवी पर आकर चीखना चाहिए। हर किसी को हर किसी पर चीखना चाहिए। क्या टीवी को हम इतनी छूट देंगे कि वो हमें बताने की जगह धमकाने लगे। हममें से कुछ को छांट कर भीड़ बनाने लगे और उस भीड़ को ललकारने लगे कि जाओ उसे खींच कर मार दो। वो गद्दार है। देशद्रोही है। एंकर क्या है। जो भीड़ को उकसाता हो, भीड़ बनाता हो वो क्या है। पूरी दुनिया में चीखने वाले एंकरों की पूछ बढ़ती जा रही है। आपको लगता है कि आपके बदले चीख कर वो ठीक कर रहा है। दरअसल वो ठीक नहीं कर रहा है।

कई प्रवक्ता गाली देते हैं। मार देने की बात करते हैं। गोली मार देने की बात करते हैं। ये इसलिए करते हैं कि आप डर जाएं। आप बिना सवाल किये उनसे सहमत हो जाएं। हमारा टीवी अब आए दिन करने लगा है। एंकर रोज़ भाषण झाड़ रहे हैं। जैसे मैं आज झाड़ रहा हूं। वो देशभक्ति के प्रवक्ता हो गए हैं। हर बात को देशभक्ति और गद्दारी के चश्मे से देखा जा रहा है। सैनिकों की शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। उनके बलिदान के नाम पर किसी को भी गद्दार ठहराया जा रहा है। इसी देश में जंतर मंतर पर सैनिकों के कपड़े फाड़ दिये गए। उनके मेडल खींचे गए। उन सैनिकों में भी कोई युद्ध में घायल है। किसी ने अपने शरीर का हिस्सा गंवाया है। कौन जाता है उनके आंसू पोंछने।

शहादत सर्वोच्च है लेकिन क्या शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल भी सर्वोच्च है। कश्मीर में रोज़ाना भारत विरोधी नारे लगते हैं। आज के इंडियन एक्सप्रेस में किसी पुलिस अधिकारी ने कहा है कि हम रोज़ गिरफ्तार करने लगें तो कितनों को गिरफ्तार करेंगे। बताना चाहिए कि कश्मीर में पिछले एक साल में पीडीपी बीजेपी सरकार ने क्या भारत विरोधी नारे लगाने वालों को गिरफ्तार किया है। हां तो उनकी संख्या क्या है। वहां तो आए दिन कोई पाकिस्तान के झंडे दिखा देता है, कोई आतंकवादी संगठन आईएस के भी।

कश्मीर की समस्या का भारत के अन्य हिस्सों में रह रहे मुसलमानों से क्या लेना देना है। कोई लेना देना नहीं है। कश्मीर की समस्या इस्लाम की समस्या नहीं है। कश्मीर की समस्या की अपनी जटिलता है। उसे सरकारों पर छोड़ देना चाहिए। पीडीपी अफज़ल गुरु को शहीद मानती है। पीडीपी ने अभी तक नहीं कहा कि अफज़ल गुरु वही है जो बीजेपी कहती है यानी आतंकवादी है। इसके बाद भी बीजेपी पीडीपी को अपनी सरकार का मुखिया चुनती है। यह भी दुखद है कि इस बेहतरीन राजनीतिक प्रयोग को जेएनयू में कुछ छात्रों को आतंकवादी बताने के नाम पर कमतर बताया जा रहा है। बीजेपी ने कश्मीर में जो किया वो एक शानदार राजनीतिक प्रयोग है। इतिहास प्रधानमंत्री मोदी को इसके लिए अच्छी जगह देगा। हां उसके लिए बीजेपी ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को कुछ समय के लिए छोड़ा उसे लेकर सवाल होते रहेंगे। अफज़ल गुरु अगर जेएनयू में आतंकवादी है तो श्रीनगर में क्या है। इन सब जटिल मसलों को हम हां या ना कि शक्ल में बहस करेंगे तो तर्कशील समाज नहीं रह जाएंगे। एक भीड़ बन कर रह जाएंगे। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

बहरहाल अब जब चैनलों की दुनिया में हर नियम धाराशायी हो गए हैं। पहले हमें सिखाया गया था कि जो भड़काने की बात करे, उकसाने की बात करे, सामाजिक द्वेष की बात करे उसका बयान न दिखाना है न छापना है। अब क्या करेंगे जब एंकर ही इस तरह की बात कर रहे हैं। प्रवक्ताओं को कुछ भी बोलने की छूट दे रहे हैं। कन्हैया के भाषण के वीडियो को चैनलों ने खतरनाक तरीके से चलाया। बिना जांच किये कि कौन सा वीडियो सही उसे चलाया गया।

अब टीवी टुडे और एबीपी चैनल ने बताया है कि वीडियो फर्ज़ी हैं। कुछ वीडियों में कांट छांट है तो किसी में ऊपर से नारों को थोपा गया है। अगर वीडियो में इतना अंतर है तो यह जांच का विषय है। इसके पहले तक कैसे हम सबको नतीजे पर पहुंचने के लिए मजबूर किया गया। गली गली में जेएनयू के विरोध में नारे लगाए गए। छात्रों को आतंकवादी और देशद्रोही कहा गया।

क्या अब कोई चैनल उन वीडियो की जवाबदेही लेगा। क्या अब हम एंकर उतने ही घंटे चीख चीख कर बतायेंगे कि वीडियो सही नहीं थे। विवादित थे। किसी में कन्हैया गरीबी से, सामंतवाद से आज़ादी की बात कर रहा है तो किसी ने यह काट कर दिखाया कि वो सिर्फ आज़ादी की बात कर रहा है। तो क्या आज़ादी की बात करना कैसे मान लिया गया कि वो भारत से आज़ादी की बात कर रहा है। हमारे सहयोगी मनीष आज कन्हैया के घर गए थे। इतना ग़रीब परिवार है कि उनके पास पत्रकारों को चाय पिलाने की हैसियत नहीं है। उन्हें मुश्किल में देख मनीष कुमार वापस चले गए। इस ग़रीबी को झेलने वाला कोई छात्र नेता अगर ग़रीबी से आज़ादी की बात नहीं करेगा तो क्या उद्योगपतियों की गोद में बैठे हमारे राजनेता करेंगे।

कन्हैया कुमार की तस्वीरों को बदल-बदल कर चलाया गया ताकि लोग उसे एक आतंकवादी और गद्दार के रूप में देख सकें। एक तस्वीर में वो भाषण दे रहा है तो उसी तस्वीर में पीछे भारत का कटा छंटा झंडा जोड़ दिया गया है। फोटोशॉप तकनीक से आजकल खूब होता है। यह कितना ख़तरनाक है। सोशल मीडिया पर कौन लोग समूह बनाकर इसे हवा दे रहे थे। कौन लोग सबूत और गवाही से पहले ओमर ख़ालिद को आतंकवादी गद्दार बताने लगे। उसे भी भागना नहीं चाहिए था। सामने आकर बताना चाहिए था कि उसने क्या भाषण दिया और क्यों दिया। कन्हैया और ख़ालिद में यही अंतर है पर शायद जिस तरह से भीड़ कन्हैया के प्रति उदार है ख़ालिद को यह छूट नहीं मिलती। फिर भी अगर ख़ालिद ने ऐसा कुछ कहा तो उसे सामना करना चाहिए था। हालत यह है कि खालिद को आतंकवादी बताने के पोस्टर जगह जगह लगा दिये गए हैं। अब अगर उसका वीडियो फर्ज़ी निकल गया तो क्या होगा। क्या वीडियो के सत्यापन का इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए।

इसीलिए हमने आज इस स्क्रीन को काला कर दिया है। हम आज आपको तरह तरह की आवाज़ सुनायेंगे। हो सकता है आपमें से कुछ लोग चैनल बदल कर चले जायेंगे।

यह भी तो हो सकता है कि आपमें से कुछ लोग अंत अंत तक उन आवाज़ों को सुनेंगे जो हफ्ते से आपके भीतर घर कर गई है। पहले हम आपको अलग अलग चैनलों के स्टुडियो में जो बातें कहीं गईं वो सुनाना चाहते हैं। नाम और पहचान में मेरी दिलचस्पी नहीं है क्योंकि हो सकता है ऐसा मैंने भी किया हो। ऐसा मुझसे भी हो जाए। पत्रकार तो पत्रकार, प्रवक्ताओं ने जिस तरह एंकरों पर धावा बोला है वो भी कम भयानक नहीं है। कहीं पत्रकार धावा बोल रहे थे, कहीं प्रवक्ता। लेकिन पत्रकारों ने देशभक्ति के नाम पर गद्दारों की जो परिभाषा तय की है वो बेहद खतरनाक है। मेरा मकसद सिर्फ आपको सचेत करना है। आप सुनिये। ग़ौर से सुनिये। महसूस कीजिए कि इन्हें सुनते हुए आपका ख़ून कब ख़ौलता है। कब आप उत्तेजित हो जाते हैं। यह भी ध्यान रखिये कि अभी तक कोई भी तथ्य साबित नहीं हुआ है। जैसा कि दो चैनलों ने बताया है कि वीडियो के कई संस्करण हैं। इसलिए इसके आधार पर तुरंत कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। आपके स्क्रीन पर यह अंधेरा पत्रकारिता का पश्चाताप है। जिसमें हम सब शामिल है। हम फिर से बता दें कि आप मुझे देख नहीं पा रहे हैं। कोई तकनीकि खराबी नहीं है। ये आवाज़ आपके ज़हन तक पहुंचाने की कोशिश भर है। कि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते हैं। कैसे बोलते हैं और बोलने से क्या होता है।

ताकि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते है।

ताकि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते है।

प्राइम टाइम NDTV रविश कुमार
(अनुरोध - ज़रूर पढ़ियेगा )

नई दिल्ली: आप सबको पता ही है कि हमारा टीवी बीमार हो गया है। पूरी दुनिया में टीवी में टीबी हो गया है। हम सब बीमार हैं। मैं किसी दूसरे को बीमार बताकर खुद को डॉक्टर नहीं कह रहा। बीमार मैं भी हूं। पहले हम बीमार हुए अब आप हो रहे हैं। आपमें से कोई न कोई रोज़ हमें मारने पीटने और ज़िंदा जला देने का पत्र लिखता रहता है। उसके भीतर का ज़हर कहीं हमारे भीतर से तो नहीं पहुंच रहा। मैं डॉक्टर नहीं हूं। मैं तो ख़ुद ही बीमार हूं। मेरा टीवी भी बीमार है। डिबेट के नाम पर हर दिन का यह शोर शराबा आपकी आंखों में उजाला लाता है या अंधेरा कर देता है। आप शायद सोचते तो होंगे।

डिबेट से जवाबदेही तय होती है। लेकिन जवाबदेही के नाम पर अब निशानदेही हो रही है। टारगेट किया जा रहा है। इस डिबेट का आगमन हुआ था मुद्दों पर समझ साफ करने के लिए। लेकिन जल्दी ही डिबेट जनमत की मौत का खेल बन गया। जनमत एक मत का नाम नहीं है। जनमत में कई मत होते हैं। मगर यह डिबेट टीवी जनमत की वेरायटी को मार रहा है। एक जनमत का राज कायम करने में जुट गया है। जिन एंकरों और प्रवक्ताओं की अभिव्यक्ति की कोई सीमा नहीं है वो इस आज़ादी की सीमा तय करना चाहते हैं। कई बार ये सवाल खुद से और आपसे करना चाहिए कि हम क्या दिखा रहे हैं और आप क्यों देखते हैं। आप कहेंगे आप जो दिखाते हैं हम देखते हैं और हम कहते हैं आप जो देखते हैं वो हम दिखाते हैं। इसी में कोई नंबर वन है तो कोई मेरे जैसा नंबर टेन। कोई टॉप है तो कोई मेरे जैसा फेल। अगर टीआरपी हमारी मंज़िल है तो इसके हमसफ़र आप क्यों हैं। क्या टीआरपी आपकी भी मंज़िल है।

इसलिए हम आपको टीवी की उस अंधेरी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां आप तन्हा उस शोर को सुन सकें। समझ सकें। उसकी उम्मीदों, ख़ौफ़ को जी सकें जो हम एंकरों की जमात रोज़ पैदा करती है।

आप इस चीख को पहचानिये। इस चिल्लाहट को समझिये। इसलिए मैं आपको अंधेरे में ले आया हूं। कोई तकनीकि ख़राबी नहीं है। आपका सिग्नल बिल्कुल ठीक है। ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है। हमने जानबूझ कर ये अंधेरा किया है। समझिये आपके ड्राईंग रूम की बत्ती बुझा दी है और मैं अंधेरे के उस एकांत में सिर्फ आपसे बात कर रहा हूं। मुझे पता है आज के बाद भी मैं वही करूंगा जो कर रहा हूं। कुछ नहीं बदलेगा, न मैं बदल सकता हूं। मैं यानी हम एंकर। तमाम एंकरों में एक मैं। हम एंकर चिल्लाने लगे हैं। धमकाने लगे हैं। जब हम बोलते हैं तो हमारी नसों में ख़ून दौड़ने लगता है। हमें देखते देखते आपकी रग़ों का ख़ून गरम होने लगा है। धारणाओं के बीच जंग है। सूचनाएं कहीं नहीं हैं। हैं भी तो बहुत कम हैं।

हमारा काम तरह तरह से सोचने में आपकी मदद करना है। जो सत्ता में है उससे सबसे अधिक सख़्त सवाल पूछना है। हमारा काम ललकारना नहीं है। फटकारना नहीं है। दुत्कारना नहीं है। उकसाना नहीं है। धमकाना नहीं है। पूछना है। अंत अंत तक पूछना है। इस प्रक्रिया में हम कई बार ग़लतियां कर जाते हैं। आप माफ भी कर देते हैं। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि हम ग़लतियां नहीं कर रहे हैं। हम जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं। इसलिए हम आपको इस अंधेरी दुनिया में ले आए हैं। आप हमारी आवाज़ को सुनिये। हमारे पूछने के तरीकों में फर्क कीजिए। परेशान और हताश कौन नहीं है। सबके भीतर की हताशा को हम हवा देने लगे तो आपके भीतर भी गरम आंधी चलने लगेगी। जो एक दिन आपको भी जला देगी।

जेएनयू की घटना को जिस तरह से टीवी चैनलों में कवर किया गया है उसे आप अपने अपने दल की पसंद की हिसाब से मत देखिये। उसे आप समाज और संतुलित समझ की प्रक्रिया के हिसाब से देखिये। क्या आप घर में इसी तरह से चिल्ला कर अपनी पत्नी से बात करते हैं। क्या आपके पिता इसी तरह से आपकी मां पर चीखते हैं। क्या आपने अपनी बहनों पर इसी तरह से चीखा है। ऐसा क्यों हैं कि एंकरों का चीखना बिल्कुल ऐसा ही लगता है। प्रवक्ता भी एंकरों की तरह धमका रहे हैं। सवाल कहीं छूट जाता है। जवाब की किसी को परवाह नहीं होती। मारो मारो, पकड़ो पकड़ो की आवाज़ आने लगती है। एक दो बार मैं भी गुस्साया हूं। चीखा हूं और चिल्लाया हूं। रात भर नींद नहीं आई। तनाव से आंखें तनी रही। अक्सर सोचता हूं कि हमारी बिरादरी के लोग कैसे चीख लेते हैं। चिल्ला लेते हैं। अगर चीखने चिल्लाने से जवाबदेही तय होती तो रोज़ प्रधानमंत्री को चीखना चाहिए। रोज़ सेनाध्यक्ष को टीवी पर आकर चीखना चाहिए। हर किसी को हर किसी पर चीखना चाहिए। क्या टीवी को हम इतनी छूट देंगे कि वो हमें बताने की जगह धमकाने लगे। हममें से कुछ को छांट कर भीड़ बनाने लगे और उस भीड़ को ललकारने लगे कि जाओ उसे खींच कर मार दो। वो गद्दार है। देशद्रोही है। एंकर क्या है। जो भीड़ को उकसाता हो, भीड़ बनाता हो वो क्या है। पूरी दुनिया में चीखने वाले एंकरों की पूछ बढ़ती जा रही है। आपको लगता है कि आपके बदले चीख कर वो ठीक कर रहा है। दरअसल वो ठीक नहीं कर रहा है।

कई प्रवक्ता गाली देते हैं। मार देने की बात करते हैं। गोली मार देने की बात करते हैं। ये इसलिए करते हैं कि आप डर जाएं। आप बिना सवाल किये उनसे सहमत हो जाएं। हमारा टीवी अब आए दिन करने लगा है। एंकर रोज़ भाषण झाड़ रहे हैं। जैसे मैं आज झाड़ रहा हूं। वो देशभक्ति के प्रवक्ता हो गए हैं। हर बात को देशभक्ति और गद्दारी के चश्मे से देखा जा रहा है। सैनिकों की शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। उनके बलिदान के नाम पर किसी को भी गद्दार ठहराया जा रहा है। इसी देश में जंतर मंतर पर सैनिकों के कपड़े फाड़ दिये गए। उनके मेडल खींचे गए। उन सैनिकों में भी कोई युद्ध में घायल है। किसी ने अपने शरीर का हिस्सा गंवाया है। कौन जाता है उनके आंसू पोंछने।

शहादत सर्वोच्च है लेकिन क्या शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल भी सर्वोच्च है। कश्मीर में रोज़ाना भारत विरोधी नारे लगते हैं। आज के इंडियन एक्सप्रेस में किसी पुलिस अधिकारी ने कहा है कि हम रोज़ गिरफ्तार करने लगें तो कितनों को गिरफ्तार करेंगे। बताना चाहिए कि कश्मीर में पिछले एक साल में पीडीपी बीजेपी सरकार ने क्या भारत विरोधी नारे लगाने वालों को गिरफ्तार किया है। हां तो उनकी संख्या क्या है। वहां तो आए दिन कोई पाकिस्तान के झंडे दिखा देता है, कोई आतंकवादी संगठन आईएस के भी।

कश्मीर की समस्या का भारत के अन्य हिस्सों में रह रहे मुसलमानों से क्या लेना देना है। कोई लेना देना नहीं है। कश्मीर की समस्या इस्लाम की समस्या नहीं है। कश्मीर की समस्या की अपनी जटिलता है। उसे सरकारों पर छोड़ देना चाहिए। पीडीपी अफज़ल गुरु को शहीद मानती है। पीडीपी ने अभी तक नहीं कहा कि अफज़ल गुरु वही है जो बीजेपी कहती है यानी आतंकवादी है। इसके बाद भी बीजेपी पीडीपी को अपनी सरकार का मुखिया चुनती है। यह भी दुखद है कि इस बेहतरीन राजनीतिक प्रयोग को जेएनयू में कुछ छात्रों को आतंकवादी बताने के नाम पर कमतर बताया जा रहा है। बीजेपी ने कश्मीर में जो किया वो एक शानदार राजनीतिक प्रयोग है। इतिहास प्रधानमंत्री मोदी को इसके लिए अच्छी जगह देगा। हां उसके लिए बीजेपी ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को कुछ समय के लिए छोड़ा उसे लेकर सवाल होते रहेंगे। अफज़ल गुरु अगर जेएनयू में आतंकवादी है तो श्रीनगर में क्या है। इन सब जटिल मसलों को हम हां या ना कि शक्ल में बहस करेंगे तो तर्कशील समाज नहीं रह जाएंगे। एक भीड़ बन कर रह जाएंगे। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

बहरहाल अब जब चैनलों की दुनिया में हर नियम धाराशायी हो गए हैं। पहले हमें सिखाया गया था कि जो भड़काने की बात करे, उकसाने की बात करे, सामाजिक द्वेष की बात करे उसका बयान न दिखाना है न छापना है। अब क्या करेंगे जब एंकर ही इस तरह की बात कर रहे हैं। प्रवक्ताओं को कुछ भी बोलने की छूट दे रहे हैं। कन्हैया के भाषण के वीडियो को चैनलों ने खतरनाक तरीके से चलाया। बिना जांच किये कि कौन सा वीडियो सही उसे चलाया गया।

अब टीवी टुडे और एबीपी चैनल ने बताया है कि वीडियो फर्ज़ी हैं। कुछ वीडियों में कांट छांट है तो किसी में ऊपर से नारों को थोपा गया है। अगर वीडियो में इतना अंतर है तो यह जांच का विषय है। इसके पहले तक कैसे हम सबको नतीजे पर पहुंचने के लिए मजबूर किया गया। गली गली में जेएनयू के विरोध में नारे लगाए गए। छात्रों को आतंकवादी और देशद्रोही कहा गया।

क्या अब कोई चैनल उन वीडियो की जवाबदेही लेगा। क्या अब हम एंकर उतने ही घंटे चीख चीख कर बतायेंगे कि वीडियो सही नहीं थे। विवादित थे। किसी में कन्हैया गरीबी से, सामंतवाद से आज़ादी की बात कर रहा है तो किसी ने यह काट कर दिखाया कि वो सिर्फ आज़ादी की बात कर रहा है। तो क्या आज़ादी की बात करना कैसे मान लिया गया कि वो भारत से आज़ादी की बात कर रहा है। हमारे सहयोगी मनीष आज कन्हैया के घर गए थे। इतना ग़रीब परिवार है कि उनके पास पत्रकारों को चाय पिलाने की हैसियत नहीं है। उन्हें मुश्किल में देख मनीष कुमार वापस चले गए। इस ग़रीबी को झेलने वाला कोई छात्र नेता अगर ग़रीबी से आज़ादी की बात नहीं करेगा तो क्या उद्योगपतियों की गोद में बैठे हमारे राजनेता करेंगे।

कन्हैया कुमार की तस्वीरों को बदल-बदल कर चलाया गया ताकि लोग उसे एक आतंकवादी और गद्दार के रूप में देख सकें। एक तस्वीर में वो भाषण दे रहा है तो उसी तस्वीर में पीछे भारत का कटा छंटा झंडा जोड़ दिया गया है। फोटोशॉप तकनीक से आजकल खूब होता है। यह कितना ख़तरनाक है। सोशल मीडिया पर कौन लोग समूह बनाकर इसे हवा दे रहे थे। कौन लोग सबूत और गवाही से पहले ओमर ख़ालिद को आतंकवादी गद्दार बताने लगे। उसे भी भागना नहीं चाहिए था। सामने आकर बताना चाहिए था कि उसने क्या भाषण दिया और क्यों दिया। कन्हैया और ख़ालिद में यही अंतर है पर शायद जिस तरह से भीड़ कन्हैया के प्रति उदार है ख़ालिद को यह छूट नहीं मिलती। फिर भी अगर ख़ालिद ने ऐसा कुछ कहा तो उसे सामना करना चाहिए था। हालत यह है कि खालिद को आतंकवादी बताने के पोस्टर जगह जगह लगा दिये गए हैं। अब अगर उसका वीडियो फर्ज़ी निकल गया तो क्या होगा। क्या वीडियो के सत्यापन का इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए।

इसीलिए हमने आज इस स्क्रीन को काला कर दिया है। हम आज आपको तरह तरह की आवाज़ सुनायेंगे। हो सकता है आपमें से कुछ लोग चैनल बदल कर चले जायेंगे।

यह भी तो हो सकता है कि आपमें से कुछ लोग अंत अंत तक उन आवाज़ों को सुनेंगे जो हफ्ते से आपके भीतर घर कर गई है। पहले हम आपको अलग अलग चैनलों के स्टुडियो में जो बातें कहीं गईं वो सुनाना चाहते हैं। नाम और पहचान में मेरी दिलचस्पी नहीं है क्योंकि हो सकता है ऐसा मैंने भी किया हो। ऐसा मुझसे भी हो जाए। पत्रकार तो पत्रकार, प्रवक्ताओं ने जिस तरह एंकरों पर धावा बोला है वो भी कम भयानक नहीं है। कहीं पत्रकार धावा बोल रहे थे, कहीं प्रवक्ता। लेकिन पत्रकारों ने देशभक्ति के नाम पर गद्दारों की जो परिभाषा तय की है वो बेहद खतरनाक है। मेरा मकसद सिर्फ आपको सचेत करना है। आप सुनिये। ग़ौर से सुनिये। महसूस कीजिए कि इन्हें सुनते हुए आपका ख़ून कब ख़ौलता है। कब आप उत्तेजित हो जाते हैं। यह भी ध्यान रखिये कि अभी तक कोई भी तथ्य साबित नहीं हुआ है। जैसा कि दो चैनलों ने बताया है कि वीडियो के कई संस्करण हैं। इसलिए इसके आधार पर तुरंत कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। आपके स्क्रीन पर यह अंधेरा पत्रकारिता का पश्चाताप है। जिसमें हम सब शामिल है। हम फिर से बता दें कि आप मुझे देख नहीं पा रहे हैं। कोई तकनीकि खराबी नहीं है। ये आवाज़ आपके ज़हन तक पहुंचाने की कोशिश भर है। कि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते हैं। कैसे बोलते हैं और बोलने से क्या होता है।

ताकि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते है।

ताकि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते है।

प्राइम टाइम NDTV रविश कुमार
(अनुरोध - ज़रूर पढ़ियेगा )

नई दिल्ली: आप सबको पता ही है कि हमारा टीवी बीमार हो गया है। पूरी दुनिया में टीवी में टीबी हो गया है। हम सब बीमार हैं। मैं किसी दूसरे को बीमार बताकर खुद को डॉक्टर नहीं कह रहा। बीमार मैं भी हूं। पहले हम बीमार हुए अब आप हो रहे हैं। आपमें से कोई न कोई रोज़ हमें मारने पीटने और ज़िंदा जला देने का पत्र लिखता रहता है। उसके भीतर का ज़हर कहीं हमारे भीतर से तो नहीं पहुंच रहा। मैं डॉक्टर नहीं हूं। मैं तो ख़ुद ही बीमार हूं। मेरा टीवी भी बीमार है। डिबेट के नाम पर हर दिन का यह शोर शराबा आपकी आंखों में उजाला लाता है या अंधेरा कर देता है। आप शायद सोचते तो होंगे।

डिबेट से जवाबदेही तय होती है। लेकिन जवाबदेही के नाम पर अब निशानदेही हो रही है। टारगेट किया जा रहा है। इस डिबेट का आगमन हुआ था मुद्दों पर समझ साफ करने के लिए। लेकिन जल्दी ही डिबेट जनमत की मौत का खेल बन गया। जनमत एक मत का नाम नहीं है। जनमत में कई मत होते हैं। मगर यह डिबेट टीवी जनमत की वेरायटी को मार रहा है। एक जनमत का राज कायम करने में जुट गया है। जिन एंकरों और प्रवक्ताओं की अभिव्यक्ति की कोई सीमा नहीं है वो इस आज़ादी की सीमा तय करना चाहते हैं। कई बार ये सवाल खुद से और आपसे करना चाहिए कि हम क्या दिखा रहे हैं और आप क्यों देखते हैं। आप कहेंगे आप जो दिखाते हैं हम देखते हैं और हम कहते हैं आप जो देखते हैं वो हम दिखाते हैं। इसी में कोई नंबर वन है तो कोई मेरे जैसा नंबर टेन। कोई टॉप है तो कोई मेरे जैसा फेल। अगर टीआरपी हमारी मंज़िल है तो इसके हमसफ़र आप क्यों हैं। क्या टीआरपी आपकी भी मंज़िल है।

इसलिए हम आपको टीवी की उस अंधेरी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां आप तन्हा उस शोर को सुन सकें। समझ सकें। उसकी उम्मीदों, ख़ौफ़ को जी सकें जो हम एंकरों की जमात रोज़ पैदा करती है।

आप इस चीख को पहचानिये। इस चिल्लाहट को समझिये। इसलिए मैं आपको अंधेरे में ले आया हूं। कोई तकनीकि ख़राबी नहीं है। आपका सिग्नल बिल्कुल ठीक है। ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है। हमने जानबूझ कर ये अंधेरा किया है। समझिये आपके ड्राईंग रूम की बत्ती बुझा दी है और मैं अंधेरे के उस एकांत में सिर्फ आपसे बात कर रहा हूं। मुझे पता है आज के बाद भी मैं वही करूंगा जो कर रहा हूं। कुछ नहीं बदलेगा, न मैं बदल सकता हूं। मैं यानी हम एंकर। तमाम एंकरों में एक मैं। हम एंकर चिल्लाने लगे हैं। धमकाने लगे हैं। जब हम बोलते हैं तो हमारी नसों में ख़ून दौड़ने लगता है। हमें देखते देखते आपकी रग़ों का ख़ून गरम होने लगा है। धारणाओं के बीच जंग है। सूचनाएं कहीं नहीं हैं। हैं भी तो बहुत कम हैं।

हमारा काम तरह तरह से सोचने में आपकी मदद करना है। जो सत्ता में है उससे सबसे अधिक सख़्त सवाल पूछना है। हमारा काम ललकारना नहीं है। फटकारना नहीं है। दुत्कारना नहीं है। उकसाना नहीं है। धमकाना नहीं है। पूछना है। अंत अंत तक पूछना है। इस प्रक्रिया में हम कई बार ग़लतियां कर जाते हैं। आप माफ भी कर देते हैं। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि हम ग़लतियां नहीं कर रहे हैं। हम जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं। इसलिए हम आपको इस अंधेरी दुनिया में ले आए हैं। आप हमारी आवाज़ को सुनिये। हमारे पूछने के तरीकों में फर्क कीजिए। परेशान और हताश कौन नहीं है। सबके भीतर की हताशा को हम हवा देने लगे तो आपके भीतर भी गरम आंधी चलने लगेगी। जो एक दिन आपको भी जला देगी।

जेएनयू की घटना को जिस तरह से टीवी चैनलों में कवर किया गया है उसे आप अपने अपने दल की पसंद की हिसाब से मत देखिये। उसे आप समाज और संतुलित समझ की प्रक्रिया के हिसाब से देखिये। क्या आप घर में इसी तरह से चिल्ला कर अपनी पत्नी से बात करते हैं। क्या आपके पिता इसी तरह से आपकी मां पर चीखते हैं। क्या आपने अपनी बहनों पर इसी तरह से चीखा है। ऐसा क्यों हैं कि एंकरों का चीखना बिल्कुल ऐसा ही लगता है। प्रवक्ता भी एंकरों की तरह धमका रहे हैं। सवाल कहीं छूट जाता है। जवाब की किसी को परवाह नहीं होती। मारो मारो, पकड़ो पकड़ो की आवाज़ आने लगती है। एक दो बार मैं भी गुस्साया हूं। चीखा हूं और चिल्लाया हूं। रात भर नींद नहीं आई। तनाव से आंखें तनी रही। अक्सर सोचता हूं कि हमारी बिरादरी के लोग कैसे चीख लेते हैं। चिल्ला लेते हैं। अगर चीखने चिल्लाने से जवाबदेही तय होती तो रोज़ प्रधानमंत्री को चीखना चाहिए। रोज़ सेनाध्यक्ष को टीवी पर आकर चीखना चाहिए। हर किसी को हर किसी पर चीखना चाहिए। क्या टीवी को हम इतनी छूट देंगे कि वो हमें बताने की जगह धमकाने लगे। हममें से कुछ को छांट कर भीड़ बनाने लगे और उस भीड़ को ललकारने लगे कि जाओ उसे खींच कर मार दो। वो गद्दार है। देशद्रोही है। एंकर क्या है। जो भीड़ को उकसाता हो, भीड़ बनाता हो वो क्या है। पूरी दुनिया में चीखने वाले एंकरों की पूछ बढ़ती जा रही है। आपको लगता है कि आपके बदले चीख कर वो ठीक कर रहा है। दरअसल वो ठीक नहीं कर रहा है।

कई प्रवक्ता गाली देते हैं। मार देने की बात करते हैं। गोली मार देने की बात करते हैं। ये इसलिए करते हैं कि आप डर जाएं। आप बिना सवाल किये उनसे सहमत हो जाएं। हमारा टीवी अब आए दिन करने लगा है। एंकर रोज़ भाषण झाड़ रहे हैं। जैसे मैं आज झाड़ रहा हूं। वो देशभक्ति के प्रवक्ता हो गए हैं। हर बात को देशभक्ति और गद्दारी के चश्मे से देखा जा रहा है। सैनिकों की शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। उनके बलिदान के नाम पर किसी को भी गद्दार ठहराया जा रहा है। इसी देश में जंतर मंतर पर सैनिकों के कपड़े फाड़ दिये गए। उनके मेडल खींचे गए। उन सैनिकों में भी कोई युद्ध में घायल है। किसी ने अपने शरीर का हिस्सा गंवाया है। कौन जाता है उनके आंसू पोंछने।

शहादत सर्वोच्च है लेकिन क्या शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल भी सर्वोच्च है। कश्मीर में रोज़ाना भारत विरोधी नारे लगते हैं। आज के इंडियन एक्सप्रेस में किसी पुलिस अधिकारी ने कहा है कि हम रोज़ गिरफ्तार करने लगें तो कितनों को गिरफ्तार करेंगे। बताना चाहिए कि कश्मीर में पिछले एक साल में पीडीपी बीजेपी सरकार ने क्या भारत विरोधी नारे लगाने वालों को गिरफ्तार किया है। हां तो उनकी संख्या क्या है। वहां तो आए दिन कोई पाकिस्तान के झंडे दिखा देता है, कोई आतंकवादी संगठन आईएस के भी।

कश्मीर की समस्या का भारत के अन्य हिस्सों में रह रहे मुसलमानों से क्या लेना देना है। कोई लेना देना नहीं है। कश्मीर की समस्या इस्लाम की समस्या नहीं है। कश्मीर की समस्या की अपनी जटिलता है। उसे सरकारों पर छोड़ देना चाहिए। पीडीपी अफज़ल गुरु को शहीद मानती है। पीडीपी ने अभी तक नहीं कहा कि अफज़ल गुरु वही है जो बीजेपी कहती है यानी आतंकवादी है। इसके बाद भी बीजेपी पीडीपी को अपनी सरकार का मुखिया चुनती है। यह भी दुखद है कि इस बेहतरीन राजनीतिक प्रयोग को जेएनयू में कुछ छात्रों को आतंकवादी बताने के नाम पर कमतर बताया जा रहा है। बीजेपी ने कश्मीर में जो किया वो एक शानदार राजनीतिक प्रयोग है। इतिहास प्रधानमंत्री मोदी को इसके लिए अच्छी जगह देगा। हां उसके लिए बीजेपी ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को कुछ समय के लिए छोड़ा उसे लेकर सवाल होते रहेंगे। अफज़ल गुरु अगर जेएनयू में आतंकवादी है तो श्रीनगर में क्या है। इन सब जटिल मसलों को हम हां या ना कि शक्ल में बहस करेंगे तो तर्कशील समाज नहीं रह जाएंगे। एक भीड़ बन कर रह जाएंगे। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

बहरहाल अब जब चैनलों की दुनिया में हर नियम धाराशायी हो गए हैं। पहले हमें सिखाया गया था कि जो भड़काने की बात करे, उकसाने की बात करे, सामाजिक द्वेष की बात करे उसका बयान न दिखाना है न छापना है। अब क्या करेंगे जब एंकर ही इस तरह की बात कर रहे हैं। प्रवक्ताओं को कुछ भी बोलने की छूट दे रहे हैं। कन्हैया के भाषण के वीडियो को चैनलों ने खतरनाक तरीके से चलाया। बिना जांच किये कि कौन सा वीडियो सही उसे चलाया गया।

अब टीवी टुडे और एबीपी चैनल ने बताया है कि वीडियो फर्ज़ी हैं। कुछ वीडियों में कांट छांट है तो किसी में ऊपर से नारों को थोपा गया है। अगर वीडियो में इतना अंतर है तो यह जांच का विषय है। इसके पहले तक कैसे हम सबको नतीजे पर पहुंचने के लिए मजबूर किया गया। गली गली में जेएनयू के विरोध में नारे लगाए गए। छात्रों को आतंकवादी और देशद्रोही कहा गया।

क्या अब कोई चैनल उन वीडियो की जवाबदेही लेगा। क्या अब हम एंकर उतने ही घंटे चीख चीख कर बतायेंगे कि वीडियो सही नहीं थे। विवादित थे। किसी में कन्हैया गरीबी से, सामंतवाद से आज़ादी की बात कर रहा है तो किसी ने यह काट कर दिखाया कि वो सिर्फ आज़ादी की बात कर रहा है। तो क्या आज़ादी की बात करना कैसे मान लिया गया कि वो भारत से आज़ादी की बात कर रहा है। हमारे सहयोगी मनीष आज कन्हैया के घर गए थे। इतना ग़रीब परिवार है कि उनके पास पत्रकारों को चाय पिलाने की हैसियत नहीं है। उन्हें मुश्किल में देख मनीष कुमार वापस चले गए। इस ग़रीबी को झेलने वाला कोई छात्र नेता अगर ग़रीबी से आज़ादी की बात नहीं करेगा तो क्या उद्योगपतियों की गोद में बैठे हमारे राजनेता करेंगे।

कन्हैया कुमार की तस्वीरों को बदल-बदल कर चलाया गया ताकि लोग उसे एक आतंकवादी और गद्दार के रूप में देख सकें। एक तस्वीर में वो भाषण दे रहा है तो उसी तस्वीर में पीछे भारत का कटा छंटा झंडा जोड़ दिया गया है। फोटोशॉप तकनीक से आजकल खूब होता है। यह कितना ख़तरनाक है। सोशल मीडिया पर कौन लोग समूह बनाकर इसे हवा दे रहे थे। कौन लोग सबूत और गवाही से पहले ओमर ख़ालिद को आतंकवादी गद्दार बताने लगे। उसे भी भागना नहीं चाहिए था। सामने आकर बताना चाहिए था कि उसने क्या भाषण दिया और क्यों दिया। कन्हैया और ख़ालिद में यही अंतर है पर शायद जिस तरह से भीड़ कन्हैया के प्रति उदार है ख़ालिद को यह छूट नहीं मिलती। फिर भी अगर ख़ालिद ने ऐसा कुछ कहा तो उसे सामना करना चाहिए था। हालत यह है कि खालिद को आतंकवादी बताने के पोस्टर जगह जगह लगा दिये गए हैं। अब अगर उसका वीडियो फर्ज़ी निकल गया तो क्या होगा। क्या वीडियो के सत्यापन का इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए।

इसीलिए हमने आज इस स्क्रीन को काला कर दिया है। हम आज आपको तरह तरह की आवाज़ सुनायेंगे। हो सकता है आपमें से कुछ लोग चैनल बदल कर चले जायेंगे।

यह भी तो हो सकता है कि आपमें से कुछ लोग अंत अंत तक उन आवाज़ों को सुनेंगे जो हफ्ते से आपके भीतर घर कर गई है। पहले हम आपको अलग अलग चैनलों के स्टुडियो में जो बातें कहीं गईं वो सुनाना चाहते हैं। नाम और पहचान में मेरी दिलचस्पी नहीं है क्योंकि हो सकता है ऐसा मैंने भी किया हो। ऐसा मुझसे भी हो जाए। पत्रकार तो पत्रकार, प्रवक्ताओं ने जिस तरह एंकरों पर धावा बोला है वो भी कम भयानक नहीं है। कहीं पत्रकार धावा बोल रहे थे, कहीं प्रवक्ता। लेकिन पत्रकारों ने देशभक्ति के नाम पर गद्दारों की जो परिभाषा तय की है वो बेहद खतरनाक है। मेरा मकसद सिर्फ आपको सचेत करना है। आप सुनिये। ग़ौर से सुनिये। महसूस कीजिए कि इन्हें सुनते हुए आपका ख़ून कब ख़ौलता है। कब आप उत्तेजित हो जाते हैं। यह भी ध्यान रखिये कि अभी तक कोई भी तथ्य साबित नहीं हुआ है। जैसा कि दो चैनलों ने बताया है कि वीडियो के कई संस्करण हैं। इसलिए इसके आधार पर तुरंत कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। आपके स्क्रीन पर यह अंधेरा पत्रकारिता का पश्चाताप है। जिसमें हम सब शामिल है। हम फिर से बता दें कि आप मुझे देख नहीं पा रहे हैं। कोई तकनीकि खराबी नहीं है। ये आवाज़ आपके ज़हन तक पहुंचाने की कोशिश भर है। कि हम सुन सकें कि हम क्या बोलते हैं। कैसे बोलते हैं और बोलने से क्या होता है।