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Friday, April 28, 2017

भय्यूजी महाराज! संत के कमंडल में वासना क्यों जाग रही है......

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शिवराजजी ! आप ऐसे पाखंडियों की उपेक्षा क्यों नहीं करते?
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विशेष टिप्पणी- महेश दीक्षित

हालांकि, हाई प्रोफाइल धर्म गुरु और स्वघोषित, स्वयंभू राष्ट्रसंत भय्यूजी महाराज करीब एक साल पहले सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेने की घोषणा कर चुके हैं। तथा उन्होंने पिछले कयी महीनों से हाईप्रोफाइल तथाकथित शिष्यों और राज नेताओं से दूरी भी बना रखी है। पर, उनके कमंडल में फिर वासना जाग गयी है। शायद इसीलिए वे एक बार फिर विवाह करने जा रहे हैं। यह खबर चौंकाने वाली जरूर हो सकती है लेकिन सच है। बताते हैं कि, वे इंदौर में अपनी शिष्या डॉ आयुषी के साथ विवाह रचाने जा रहे हैं। भय्यूजी महाराज के शिष्य उनके इस फैसले से अचंभित हैं। 

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शिष्यों का अपने गुरू के पुर्नविवाह से अचम्भित होना और इस कृत्य से उनके संतत्व पर सवाल उठना लाजमी है। उनका कोई साधारण शिष्य भी ऐसी गुस्ताखी करता तब भी शायद हर कोई इसी तरह से सवाल उठता। भैय्यू महाराज कहें कि, मैं संत ही नहीं, राष्ट्र संत हूं, और माया के मोहपाश में फंस जाएं, तो सवाल उठाना स्वाभाविक है। उनके संत-पन पर सवालिया निगाहें उठेंगी ही। उठना भी चाहिए। क्योंकि जिन्हें आध्यात्मिक अनुभूतियां हुई हैं, वे जानते हैं कि, जिस व्यक्ति की ऊर्जा अभी यौन केंद्र पर ही अटकी हुई हो, वह संत नहीं हो सकता? 
वह संत-सा दिखने के लिए कितने ही पाखंड करे, कितने ही स्वांग रचे, जब तक वह माया, तृष्णा, संसारिक इच्छा और वासनाओं से मुक्त नहीं, संत नहीं हो सकता। फिर चाहे वह कुछ छोटी-मोटी सिद्धियां होने के दावे करें? या फिर अपने भक्तों को तंत्र-मंत्र, टोना-टोटका और ताबीज के जादुई करिश्मों से सम्मोहित करने की बाजीगरी दिखाएं? कुछ भोले और नासमझ इस झांसेबाजी को संतत्व समझने की भूल कर सकते हैं, लेकिन किसी भी आध्यात्मिक साधक के लिए यह डमूरूगिरी से ज्यादा कुछ भी नहीं है। कम से कम प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को तो इस तरह के धार्मिक पाखंडियों की उपेक्षा करनी चाहिए। 
भय्यू महाराज कि, यह आकांक्षा-वासना नहीं तो क्या है,  पूर्व पत्नी माधवी की मौत को अभी एक साल भी नहीं हुआ था और उसकी स्मृतियां खाख भी नहीं हुई थी कि, उन्होंने दूसरी शादी रचाने का मंडप तैयार कर लिया। इसके पहले एक और महिला उनकी कथित पत्नी होने का दावा कर चुकी है। इसके साथ भैय्यू महाराज की अपने आश्रम की और-और विस्तार की आकांक्षा, चमक-दमक, विलासिता और एक से एक महंगी गाड़ियां, देखकर क्या यह नहीं लगता कि, उनकी भिक्षा का कमंडल वासना का बना हुआ है, जिसकी तृष्णा और हवस एक औरत, फिर दूसरी औरत और एक गाड़ी, फिर दूसरी गाड़ी मिलने के बाद भी पूरी नहीं हो रही है। कमंडल में कितनी भी माया डालो, वह भरता ही नहीं है।
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महत्वाकांक्षी संत भय्यू महाराज (वास्तविक नाम उदयसिंह देखमुख) ने संत का चोला ओढ़ने के पहले पैसा कमाने के लिए मुंबयी में रहकर कंपनी में नौकरी की। माडलिंग की। रैंप पर कैटवाक की। पर जब इनमें कुछ आकाश हाथ नहीं लगा, तो वीतराग का कमंडल पकड़ लिया। आज इस कमंडल के कमाल से भय्यू महाराज सदगुरु दत्त धार्मिक ट्रस्ट के सर्वेसर्वा और इंदोर में कयी एकड़़ में फैले आश्रम के पीठाधिश्वर हैं। महाराष्ट्र में जिस संत का सबसे ज्यादा प्रभाव है तो वे भय्यू महाराज हैं । 
वे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नजदीकी मित्र और आध्यात्मिक सलाहकार हैं।  वे पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत,  पीएम नरेंद्र मोदी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दंपत्ति,  महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देखमुख, शरद पवार, लता मंगेशकर, उद्धव ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे, आशा भोंसले, अनुराधा पौडवाल और फिल्म एक्टर मिलिंद गुणाजी जैसी हस्तियों की मेजबानी करते रहे हैं। और इस तरह अपना रसूख दिखाकर अप्रत्यक्ष रूप से सेवा संकल्पों- प्रकल्पों के नाम पर नेताओं और अफसरों के लिए लाइसेंस-लाइजनिंग का भी कर्तव्य करते रहे हैं।
यदि ऐसा नहीं है, तो सवाल उठता है कि एक संत के भीतर दूसरे विवाह की वासना-तृष्णा जागने के मायने क्या हैं? नेताओं, अफसर और व्यापारियों की बहुतायत आए दिन आश्रम में मेजबानी किसलिए? इन नेताओं से सांठगांठ किसके लिए?
भैय्यू महाराज! आपका पुनर्विवाह का कृत्य तो एक संत के उर्जा के शिखर सहस्त्रार (समाधि अवस्था) से नीचे गिरने जैसी बुरी खबर है। क्योंकि एक संत का संतत्व मूलाधार की रसधारा में बहने में नहीं, सहस्त्रार पर ठहर जाने में है। सहस्त्रार ही मुक्ति और मोक्ष का द्वार है। यही संत के लिए साध्य और आराध्य है। आपने अब जो मार्ग चुना है वह भुक्ति का मार्ग है। आप कितने ही बड़े संत क्यों न हो गये हों? आपको भुगतना पड़ेगा। जब समाज ने भगवान राम को नहीं छोड़ा, तो आपको कैसे माफ कर देगा?


 

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