अवधेश पुरोहित // toc news
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी की सत्ता के मुखिया शिवराज सिंह चौहान सबका साथ सबके विकास के नारे के साथ-साथ प्रदेश के चहुंओर विकास का ढिंढोरा पीटते नजर आते हैं, तो सवाल यह उठता है कि यही नहीं उनके कार्यकाल के दौरान अभी तक हुए हर उपचुनाव में सफलता के बाद उनका यही दावा रहता है कि विकास ने उन्हें विजय दिलाई, तो वहीं किसानों की खेती को लाभ का धंधा बनाने का ढिंढोरा भी खूब पीटा जाता है लेकिन उसके बावजूद भी प्रदेश का किसान आत्महत्या करने को मजबूर है, सवाल यह है कि जिस प्रदेश के विकास की यह स्थिति हो कि राज्य के ६१ फीसदी के आबादी के घरों तक पेयजल नहीं पहुंच रहा है, जबकि मध्यप्रदेश की तुलना में छत्तीसगढ़ की ५३ फीसदी आबादी को ही पेयजल मिल पाता है। इन सबकी तुलना में गुजरात की ९५ फीसदी आबादी को पाइप लाइन के जरिये पेयजल पहुंचाया जा रहा है।
मध्यप्रदेश सरकार के विकास को आइना दिखाने का काम कोई विपक्षी दल के नेता या मीडिया के द्वारा नहीं बल्कि केन्द्रीय नीति आयोग के सदस्य रमेशचन्द्र के द्वारा राज्य के विकास के इन दावों के आंकड़ों की पोल खोली गई। नीति आयोग के सदस्य रमेश चन्द्र ने मीडिया से बातचीत में कहा कि मध्यप्रदेश में कृषि विकास दर अद्भुत तरीके से बढ़ी है, लेकिन कुल विकास की बात करें तो मध्यप्रदेश अभी कई राज्यों से पीछे है। मध्यप्रदेश में बीते दस साल में प्रति व्यक्ति आय पांच फीसदी बढ़ी है, लेकिन देश की औसत क्रय दर में मध्यप्रदेश की औसत क्रय दर पचास फीसदी कम है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश की स्थिति कृषि में अच्छी है, लेकिन दूसरे सेक्टर्स में काम करने की जरूरत है।
वहां अभी भी तीसरी और पांचवीं के बच्चे शब्द नहीं पहचान पाते। प्रो. रमेशचंद्र ने पत्रकारों से चचौ भी की जिसमें उन्होंने मध्यप्रदेश की कृषि क्षेत्र में हुई प्रति की तारीफ की लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि एक अवसर ऐसा आाएगा जब कृषि के क्षेत्र में हो रही प्रगति में स्थिरता आ जाएगी। अत: मध्यप्रदेश को कृषि के अलावा बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम विकास, जल संसाधन और उद्योग के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है क्योंकि इन क्षेत्रों में अन्य राज्यों की बजाय मध्यप्रदेश की स्थिति कमजोर है जैसे मध्यप्रदेश में पीने का पानी पाइप के द्वारा मात्र ३९ प्रतिशत लोगों को ही मिलता है जबकि ६१ प्रतिशत लोगों की अभी पीने का पानी पाइप से नहीं मिल रहा। गुजरात में ९५ प्रतिशत लोगों को पीने का पानी पाइप के द्वारा सप्लाई किया जाता है।
रमेशचंद्र के अनुसार भावान्तर योजना को २००३ में बनया गया था। उसे नीति आयोग की सलाह पर ही मध्यप्रदेश में लागू किया जा रहा है। प्रो. रमेशचन्द्र ने बताया कि देश की औसतन क्रय दर के मुकाबले मप्र की क्रय दर ५० फीसदी से भी कम है। शिक्षा की हालत यह है कि तीसरी के छात्र दूसरी कक्षा के शब्द नहीं पहचानते जबकि मध्यप्रदेश के आधे हिस्से में सिंचाई की सुवधिा नहीं है। प्रो. रमेशचन्द्र ने बताया कि मध्यप्रदेश का दौरा करने के पीछे मुख्य वजह पुरानी योजनाओं की जगह सफलतम नीति को लागू करना है। अब पंचवर्षीय योजनाओं को बंद कर तीन वर्षीय योजना बनाई जा रही है। इन्हीं कारणों से मध्यप्रदेश में प्याज की यह स्थिति हुई है। सरकार को चाहिए कि प्याज के लिए दूसरे राज्यों के व्यापारियों को भी बलाये।
प्रदेश में पर्याप्त मात्रा में स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट भी होने चाहिए। भावान्तर योजना में किसानों को पचास फीसदी अनुदान गोडाउन दिये जाने का प्रावधान है। पत्रकार वार्ता में आईपीएस राजेन्द्र मिश्रा ने प्रो. रमेशचन्द्र के मप्र दौरे के संदर्भों को स्पष्ट किया। कुल मिलाकर नीति आयोग के उच्चस्तरीय दल के मध्य प्रदेश के दौरे से प्रदेश में जहां कृषि के क्षेत्र में किये गये कार्यों की सराहना मिली वहीं शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली, जल संसाधन और उद्योग के क्षेत्र में अभी बहुत ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता बताई गई। सो, तेजी से विकास का दंभ भरने वाले प्रदेश के लिए नीति आयोग की सलाह आंखें खोल देने के लिए काफी है।
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