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Monday, November 6, 2017

अवर सचिव जुलानिया के आदेशों से सरपंच सचिव हलाकान


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TOC NEWS // देवराज डेहरिया

*सिचाई विभाग को नेस्तनाबूत करने के पश्चात पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को मटियामेट करने में लगे अवर सचिव राधेश्याम जुलानिया*

सिवनी। पूरे प्रदेश में ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिव को सबसे बड़ा चोर और भ्रष्टाचारी सिद्ध करने में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अवर सचिव राधेश्याम जुलानिया कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। तथाकथित माॅडल स्टीमेट के नाम पर निर्माण कार्यों की राशि में मनमानी कटौती कर सरपंच सचिवों पर जबरन कार्य करने का दबाव बनाये जा रहा है।
ज्ञात होवे कि जबसे रेत दस हजार रूप्ये प्रति डंफर और सीमेन्ट 230 रूपये प्रति बोरी की दर से बाजार में शुलभता से उपलब्ध थी। जब सी.सी. रोड की लागत 900 से 950 रूपये प्रति वर्ग मीटर प्रदाय की जाती थी। वर्तमान समय में एक डंफर रेत 15 से 20 हजार रूपये के बीच में और सीमेन्ट 300 रूपये प्रति बोरी पार कर चुकी है। ऐसे समय में प्रति वर्ग मीटर (मानक स्टीमेट के आधार पर) 350 रूपये में निर्माण कार्य करने के लिये ग्राम पंचायतों को बाध्य किया जा रहा है। जो कि सरासर गलत एवं अन्याय है।
वहीं दूसरी और प्रमुख त्यौहारों में मजदूरी एवं सामग्री के भुगतानों को रोकना जुलानिया जी की आदत में सुमार हो गया है। इसी के चलते ऐन दिवाली के पूर्व पंचायत दर्पण में सुधार कार्य का हवाला देकर 11 अक्टूबर से वर्तमान समय तक प्रतिदिन नये-नये प्रयोग किये जाने के चलते पंचायतों को मजदूरी एवं सामग्री के भुगतान में अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। एवं भुगतान न कर पाने की मजबूरी के चलते इधर-उधर अपना मुंह छिपाना पड़ रहा है।
सनद् रहे कि प्रदेश की बड़ी पंचायतें जिनमें विभिन्न आकस्मिक एवं आवश्यक व्यय की संभावनायें बनी रहती हैं। किन्तु जुलानिया के तुगलकी फरमानों के चलते स्थानीय आय से प्राप्त राशियों का भुगतान भी नहीं कर पा रहें हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पंचायत दर्पण पोर्टल से वर्तमान समय में समाचार पत्र पत्रिकाओं, विज्ञापन, सार्वजनिक उत्सवों में होने वाले व्यय (चाय नास्ता इत्यादि) एवं पंचायत के कामकाज में लगने वाली अनिवार्य स्टेशनरी एवं अन्य आवश्यक सामग्री के भुगतान के विकल्प को हटा दिया गया है। जिससे पंचायतों के संचालन में अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
वर्तमान समय में पोर्टल के अपडेशन के नाम पर सरपंच सचिव के हस्ताक्षर के बिना भी धड़ल्ले से भुगतान किये जा रहे हैं। जो बाद में सरपंच सचिवों के लिये घातक साबित हो सकता है। मनरेगा के कार्यों में भी मजदूरों को काम देने को बाध्य किया जाता है किन्तु महिनों उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है। साथ ही सरपंच सचिवों को मनरेगा अंतर्गत निर्माण कार्य पूर्ण करा लिये जाने के बाद भी महिनों भुगतान के लिये जनपदों के चक्कर काटना पड़ता है। जिसके चलते सरपंच सचिव निर्माण कार्यों में रूचि नहीं ले रहे हैं।
ज्ञात होवे कि जुलानिया के नित नये तुगलकी फरमानों के चलते प्रदेश का पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग अब त्राहीमाम-त्राहीमाम कर रहा है। देखा जाये तो पंचायत विभाग के जनप्रतिनिधियों को प्रताणित किया जा रहा है। एवं कदम-कदम पर उनके आत्मसम्मान को ठेस पहंचाई जा रही है। पंचायत विभाग के जनप्रतिनिधियों पर इतनी तानाशाही के बाद भी प्रदेश के मुखिया शिवराजसिंह चैहान का मौन कहीं न कहीं जुलानिया के अड़ियल रवैये को सहमति देता प्रतीत हो रहा है।
ज्ञात होवे कि शासन की 70 प्रतिशत योजनाओं का क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों के द्वारा किया जाता है। किन्तु मुख्यमंत्री द्वारा पंचायत प्रतिनिधियों की लगातार की जा रही अनदेखी भविष्य में सरकार का तख्ता पलटने के लिये काफी होगी। इस हेतु समस्त पंचायत प्रतिनिधियों ने ज्ञापन एवं आन्दोलन के माध्यम से सरकार को चेताने का प्रयास किया किन्तु शिवराज सरकार अपनी सत्ता के मद में चूर होकर कुम्भकरण की नींद सो रहे हैं। अगर प्रदेश के मुखिया समय रहते अपनी नींद से नहीं जागे तो प्रदेश सरकार के लाड़ले, लोकप्रिय एवं यशस्वी मुख्यमंत्री के आगे पूर्व लगते देर नहीं लगेगी। वर्तमान में प्रदेश सूखा एवं अल्प वर्षा के चलते खरीफ की फसल से हाथ धो चुका है।
अपनी बची-कुची उपज को बेचने प्रदेश का अन्नदाता मंडियों में दर-दर ठोकर खा रहा है। एवं भावान्तर के भंवरजाल में उलझकर मदद के लिये किसान पुत्र कहे जाने वाले शिवराजसिंह चैहान के तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है। किन्तु प्रदेश के मुखिया मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार करते हुये किसानों की भावनाओं से खेल रहे हैं। किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने के स्थान पर उल्टा कुरेदने का कार्य किया जा रहा है। क्या शिवराज सरकार प्रशासन के दम पर लोक हितकारी योजनाओं को दरकिनार कर पुनः सत्ता में वापसी कर पायेगी? यह आमजनों की समझ से परे है।

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