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Monday, January 22, 2018

सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में याचिका, कल सुनवाई

सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह के लिए इमेज परिणाम

नई दिल्ली। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की परेशानियां कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में अभी जस्टिस लोया प्रकरण थमा नहीं है कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर का भूत एक बार फिर उनके पीछे पड़ गया है। बांबे हाईकोर्ट में इस तरह की एक पीआईएल दायर हुई है जिसमें उससे सीबीआई को ये निर्देश देने की मांग की गयी है कि वो सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह के बरी होने को चुनौती दे।

इस पीआईएल को बांबे लायर्स एसोसिएशन की ओर से दायर किया गया है। ये वकीलों का वही संगठन है जिसने सीबीआई जज बीएच लोया की मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज के नेतृत्व में आयोग गठित करने के लिए बांबे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। और जिसकी सुनवाई के लिए 23 जनवरी की तारीख तय हुई है।
लाइव लॉ के हवाले से आयी खबर में बताया गया है कि याचिकाकर्ताओं ने सीबीआई जज जेटी उत्पट के तबादले के आदेश को भी चुनौती दी है। गौरतलब है कि उत्पट लोया से पहले सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रहे थे। याचिका में कहा गया है कि तबादले का फैसला 27 सितंबर 2012 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ था। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर करते हुए पूरे मामले को एक ही जज से सुनवाई का निर्देश दिया था।
हाईकोर्ट की प्रशासनिक कमेटी ने जज उत्पट का तबादला करने का फैसला लिया था। बाद में जज बीएच लोया ने उनका स्थान लिया।
याचिका में कहा गया है कि पहले गुजरात सरकार पूरी मजबूती से इस बात को खारिज कर रही थी कि सोहराबुद्दीन का एनकाउंटर फेक होने के साथ पूरी तरह से राज्य प्रबंधित था। लेकिन बाद में उसने स्वीकार किया कि ये एक फेक एनकाउंटर का मामला था।
पीआईएल में इस बात को चिन्हित किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने 2010 में दायर की गई चार्जशीट में सीबीआई ने दावा किया था कि षड्यंत्र के बड़े हिस्से का पता लगा लिया गया है और अमित शाह षड्यंत्र के केंद्र में थे।
इसके साथ ही सीबीआई ने चार्जशीट में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर के गवाह तुलसी प्रजापति की एनकाउंटर के जरिये हत्या में भी अमित शाह को आरोपी बनाया था। उस केस को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि-
“प्रशासनिक कमेटी केस को एक ऐसी कोर्ट को आवंटित करेगी जहां ट्रायल कानून के मुताबिक, बगैर देरी किए और पूरे न्यायोचित तरीके से संपन्न हो सके। प्रशासनिक कमेटी इस बात को भी सुनिश्चित करेगी कि ट्रायल शुरू से अंत तक एक ही अफसर द्वारा संचालित किया जाए।”
याचिका में कहा गया है कि इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट की मंशा बिल्कुल साफ थी। इसके बाद भी जज उत्पट का एकाएक तबादला कर दिया गया और जज लोया ने उनकी जगह ली। इस तरह से पीआईएल में प्रशासनिक कमेटी की उस बैठक के मिनट्स को लाने की मांग की गयी है जिसमें तबादले का फैसला हुआ था। याचिकाकर्ताओं ने इस बात का दावा किया है कि सीबीआई के सामने भी उन्होंने अर्जी दी है। लेकिन अभी तक उसका कोई जवाब नहीं मिला। यहां इस बात को बताना जरूरी है कि ये पत्र कुछ दिनों पहले ही 16 जनवरी 2018 को लिखा गया था।
पीआईएल पर सुनवाई 22 जनवरी को जस्टिस एससी धर्माधिकारी करेंगे।

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