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Sunday, December 16, 2018

डॉ. डेंजिल पॉल ने एंग्लो इंडियन विधायक सीट पर अपनी दावेदारी मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात कर प्रस्तुत की

डॉ. डेंजिल पॉल 
TOC NEWS @ www.tocnews.org
भोपाल . मध्य प्रदेश विधानसभा 2018 के लिए एंग्लो इंडियन समुदाय से जबलपुर के डॉक्टर डेंजिल पॉल ने मनोनीत विधायक होने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात कर अपना दावा प्रस्तुत किया है।
डॉक्टर डेंजिल पॉल ने जानकारी देते हुए बताया कि एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए उन्होंने लगातार  मध्य प्रदेश में कार्य किया है एवं कई परिवार मध्यप्रदेश में निवास रखें मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है डॉक्टर डेंजिल पॉल विगत 40 वर्षों से कांग्रेस के साथ जुड़कर समाज की सेवा कर रहे हैं और जबलपुर में स्कूल और कॉलेज के माध्यम से उन्होंने समाज के लिए अपनी अहम भूमिका निभाई है डॉक्टर डेंजिल पॉल वर्तमान में जबलपुर जिले के उपाध्यक्ष भी हैं एवं इन्हें कमलनाथ का करीबी माना जाता है।
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Denzil Paul
ज्ञात हो कि पिछली विधानसभा में ने लोगो लॉरेन बी मनोनीत विधायक रहे जिन्होंने अपने कार्यकाल में मुक्त समाज के लिए कोई कारगर कार्य नहीं किए वही डॉक्टर डेंजिल पॉल का कहना है कि अगर उन्हें विधायक नियुक्त किया जाता है तो वह एंग्लो इंडियन समाज के लिए कम्युनिटी हॉल शिक्षा के क्षेत्र में सबसे पहले कार्य करेंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ जी से मिलकर डॉक्टर डेंजिल पॉल ने इस पद के लिए अपना दावेदारी प्रस्तुत किया है जिस पर कमलनाथ ने आश्वस्त किया है डॉक्टर डेंजिल पॉल मनोनीत किया जाएगा।

सदन में कैसे चुने जाते हैं एंग्लो-इंडियन सदस्य

इस पूरी बात में एक चीज़ ज़ेहन में अटक जाती है – एंग्लो इंडियन सदस्य. आज हम यही जानेंगे कि ये एंग्लो इंडियन सदस्य कौन होते हैं और कैसे चुने जाते हैं.
स्टोरीः
जब अंग्रेज़ हिंदुस्तान आए तो उन्होंने उन्होंने राजपाट खूब पसार लिया. पटरियां बिछाकर रेल चलाई. ‘तार’ के खंबे गाड़कर पोस्ट ऑफिस बनाए. ऐसे ही और कई विभाग थे, जिनमें काम करने के लिए अंग्रेज़ हिंदुस्तान बुलाए गए. क्योंकि भारतीयों को ये काम सिखाने में कुछ समय लगना था.
एंग्लो इंडियन समुदाय के ज़्यादातार लोगों का ताल्लुक रेल्वे के साथ था. (विकिमीडिया कॉमन्स)
अब इन लोगों ने हिंदुस्तान में कुछ काम किया कुछ इश्क. काम से इन्हें तन्ख्वाह मिली और इश्क से परिवार. और ऐसे परिवार कहलाए एंग्लो इंडियन. एंग्लो इंडियन परिवारों में सबसे ज़्यादा का ताल्लुक रेल्वे से ही था. इन परिवारों के लोग आज भी खुद को ‘रेल्वे चिल्ड्रन’ कहते हैं. एंग्लो इंडियन समुदाय ने 1876 में अपना संगठन बनाया ‘द ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन असोसिएशन.’ इसी संगठन के एक चर्चित अध्यक्ष हुए जबलपुर में पैदा हुए फ्रैंक एंथनी.
फ्रैंक एंथनी जबलपुर से थे. लेकिन दिल्ली आकर वकालत करने लगे. बाद में एंथनी एंग्लो इंडियन असोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बने. मुल्क आज़ाद हुआ तो एंथनी संविधान सभा के सदस्य बने. एंथनी की दलील थी कि एंग्लो इंडियन समुदाय इतना छोटा है कि वो अपने दम पर प्रतिनिधी चुनकर संसद नहीं भेज सकता. लेकिन संसद में कोई तो होना चाहिए जो उनकी बात करे. ये व्यक्ति उन्हीं की कौम से होना चाहिए. इन्हीं दलीलों के मद्देनज़र संविधान में अनुच्छेद 331 जोड़ा गया. अनुच्छेद 331 के तहत राष्ट्रपति लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्य नियुक्त करते हैं. इसी अनुच्छेद के तहत फ्रैंक एंथनी 7 बार बतौर सांसद मनोनीत हुए.
फ्रैंक एंथनी.
इंदिरा गांधी के ज़माने में फ्रैंक एंथनी को पंजाब के गवर्नर पद की पेशकश की गई थी. बाद में उप-राष्ट्रपति पद की भी पेशकश हुई. एंथनी ने दोनों पदों को लेने से इनकार कर दिया था. एंथनी ने एंग्लो इंडियन समुदाय के बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन एडुकेशनल ट्रस्ट की स्थापना की जो कई स्कूल चलाता है. एंथनी ने ही काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्ज़ामिनेशन्स बनाया. ये काउंसिल ‘द इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एडुकेशन’ माने ICSE स्कूल चलाता है.
खैर, वापस मनोनीत सदस्यों वाली कहानी पर लौटते हैं. संसद की तरह ही राज्यों की विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन्स के लिए प्रावधान किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 333 के तहत अगर किसी सूबे के राज्यपाल को ये लगता है कि राज्य के एंग्लो इंडियन समुदाय को सदन में प्रतिनिधित्व की ज़रूरत है लेकिन सदन में चुने हुए प्रतिनिधियों के बीच एंग्लो-इंडियन समुदाय को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, तो वो एंग्लो इंडियन समुदाय से एक सदस्य मनोनीत कर सकते हैं.
एंग्लो इंडियन कौन कहलाएगा, इसके लिए भी नियम है. संविधान के अनुच्छेद 366 (2) के तहत एंग्लो इंडियन ऐसे किसी व्यक्ति को माना जाता है जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश के हों. एंग्लो इंडियन्स भारत का अकेला समुदाय हैं जिनका अपना प्रतिनिधी संसद और राज्यों की विधानसभा में होता है. हालांकि इस तरह के इल्ज़ाम भी लगते रहे हैं कि मनोनीत सदस्यों ने अपनी कौम के लिए ज़्यादा कुछ किया नहीं.
सदस्य मनोनीत करते हुए राज्यपाल सूबे के कैबिनेट की सलाह लेते हैं. इसलिए मनोनीत सदस्य कमोबेश सत्ताधारी पार्टी के करीबी ही होते हैं. इसीलिए इस बार जब विनिशा नीरो का नाम कर्नाटक विधानसभा के लिए मनोनीत किए जाने की खबरें आईं तो हंगामा खड़ा हो गया. सबको यही लगा कि विनिशा भाजपा के पक्ष में ही वोट डालेंगे. लेकिन बाद में मालूम चला कि नीरो का नाम यूं ही उछाल दिया गया था. द ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन असोसिएशन ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके कहा कि उन्हें मिले संवैधानिक अधिकारों का राजनैतिक इस्तेमाल उन्हें रास नहीं आएगा.
डेरेक ओ ब्रायन पहले एंग्लो इंडियन थे जिन्होंने सदन में वोट डाला.
क्या एंग्लो इंडियन सदस्य सदन में वोट डाल सकते हैं?
मनोनीत सदस्यों के पास वो सारी ताकतें होती हैं, जो एक आम सांसद के पास होती हैं. लेकिन वो राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते. डेरेक ओ ब्रायन संभवतः अकेले एंग्लो इंडियन थे, जिन्होंने 2012 में राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाला था. लेकिन ऐसा इसलिए हुआ था कि डेरेक तृणमूल कांग्रेस से सांसद हैं.
रही बात उनके किसी एक पार्टी को साथ देने की, तो संविधान की 10वीं अनुसूचि के मुताबिक कोई एंग्लो इंडियन सदन में मनोनीत होने के छह महीने के अंदर किसी पार्टी की सदस्यता ले सकते हैं. ऐसा हो जाने पर वो पार्टी व्हिप से बंध जाते हैं. माने उन्हें पार्टी के कहे मुताबिक सदन में वोट डालना पड़ता है. संभवतः यही वजह है कि कांग्रेस-जेडीएस नहीं चाहते कि कोई सदस्य कर्नाटक विधानसभा में मनोनीत हो.

‘एंग्लो इंडियन’ कौन हैं?

एंग्लो इंडियन का मतलब है ऐसे लोग जिनके माता-पिता में से कोई एक भारतीय और यूरोपीय मूल का हो. 15 अगस्त 1947 को भारत से अंग्रेज विदा हो गए, पर लगभग 30,000 लोग ऐसे नहीं गए जो या तो यूरोपीय समुदाय से थे या यूरोपीय और भारतीय मूल के माता-पिताओं की संतान थे. भारत में रह गए अंग्रेजों को एंग्लो इंडियन कहा जाता है. पर एंग्लो इंडियन केवल भारत में ही नहीं रहते दुनिया के कई देशों में रहते हैं. ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में काफी बड़ी संख्या में एंग्लो इंडियन हैं. इस एंग्लो में ‘एंग्लो’ ज्यादा है ‘इंडियन’ कम. इनकी मातृभाषा अंग्रेजी है और रीति-रिवाज भी. कहना मुश्किल है कि भारत में अभी एंग्लो-इंडियन समुदाय के कितने लोग हैं क्योंकि 1941 की जनगणना के बाद से भारत में जातीय और सामुदायिक आधार पर जनगणना नहीं की गई है. पर अनुमान है कि इनकी संख्या लगभग सवा लाख है जिनमें से ज्यादातर कोलकाता और चेन्नई में रह रहते हैं.
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 366(2) के तहत एंग्लो इंडियन की परिभाषा इस प्रकार की गई है- ''आंग्ल-भारतीय'' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसका पिता या पितृ-परंपरा में कोई अन्य पुरुष जनक यूरोपीय उद्भव का है या था, किन्तु जो भारत के राज्य क्षेत्र में अधिवासी है और जो ऐसे राज्य क्षेत्र में ऐसे माता-पिता से जन्मा है या जन्मा था जो वहाँ साधारणतया निवासी रहे हैं और केवल अस्थायी प्रयोजनों के लिए वास नहीं कर रहे हैं . संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत एंग्लो इंडियन समुदाय को लोकसभा में विशेष प्रतिनिधित्व दिया जाता है. सोलहवीं लोक सभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि शिक्षक प्रो0 रिचर्ड हे और फिल्मी अभिनेता जॉर्ज बेकर हैं. जॉर्ज बेकर असमिया और बंगाली फिल्मी जगत के विख्यात अभिनेता हैं. मसूरी में रहने वाले लेखक रस्किन बांड, फिल्म अभिनेत्री लारा दत्ता, क्रिकेटर स्टुअर्ट बिन्नी, तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन और क्रिकेटर नासिर हुसेन भी एंग्लो इंडियन हैं.

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