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Monday, March 29, 2010

मस्त रहो मस्ती मे आग लगे बस्ती मे

मस्त रहो मस्ती मे आग लगे बस्ती मे
संजय लिखित कर ‘‘बम‘‘ mob :9407282226
बीजापुर:- बीजापुर जिले मे ब्लाक आवापल्ली से लगभग 40 कि.मी. दूरी पर ग्राम पंचायत कोंडापल्ली मे 3 माह से राशन दुकान से चांवल आदि अनाजों का वितरण नही हो रहा है और जिला प्रशासन के अधिकारी इससे बेखबर हो कर चैन की बंशी बजा रहे है विशसनिय सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि ग्राम पंचायत कोंडापल्ली मे गत 3 माह से चांवल आदि सामग्री आदि का वितरण उचित मूल्य कि दुकान से नही हुआ है । जब सेल्समेन से इस संबंध मे पुछा गया तो उसने बताया की जनवरी माह का कोटा नही मिला फरवरी मे राशन कोटे के संबंध मे जानकारी मांगी तो वह जानकारी देने मे आनाकानी करने लगा मात्र मार्च माह मे चांवल का राशन दुकान से वितरण हुआ है उसमे भी दो गांव वलो को ही राशन वितरण किया गया शेष दो गांव वालों कां चांवल नही बांटा गया है सेल्समेन बसंत की माने स्वयं हमारे पास आकर सूचना दी कि गांव वालों को 3 माह से चांवल नही बांटा गया गांव वालो का कहना है कि उचित मूल्य कि दुकान पर सभी राशन को हि दाम पर बेचा जाता है गांव वालों का कहना है कि सचिव की यहां मनमर्जी चलती है वह जैसा चाहता है वैसा ह ियहां कार्य होता है सचिव चिरमूल राममूर्ती कभी गांव मे सन् 2000 से आज तक आया ही नही वह अगर कोई मिटिंग हो तो ब्लाक आ्फिस मे या जिला कार्यालय मे ही मौजुद रहता है अन्यथा वह हमेशा दन्तेवाड़ा मे अपने परिवार के साथ रहता है और वहीं से बैढे-बैढे अपने खास गुर्गो के माध्यम से कार्य संचालित करता है गांव वालों को अगर कोई काम पडता है तो उसका मिलना नामुमकिन रहता है उसपे आजतक वृद्धावस्था पेंशन विकलांग पेंशन नही बांटा है । ग्राम पंचायत कोंडापल्ली मे 3 माह से राशन दुकान से चांवल आदि सामग्री का वितरण नही हुआ इसकी जानकारी लेने वाला कोई भी अधिकारी आजतक नही पंहूचा है प्रशासन के अधिकारीयों को गरीबों की सुध लेने की फुरसत नही है छत्तीसगढ़ शासन के मुख्यमंत्री रमन सिंह जी के कथन ‘‘अब कोई गरीब भुखा नही रहेगा’’ को ठेंगा दिखा रहे है ज्ञात हुआ है कि चांवल नही मिलने पर ग्रामीणों ने 10रू. की कनकी को खरिद कर अपना पेट भर रहे है। अतः अब गांव वाले का कहना है कि गांव का पढा लिखा लडका वेको मंगलू को राशन दुकान संचालित करने दिया जाये जिससे राशन की कालाबजारी पर अंकुश लगेगा और गरीबों को समय पर अनाज उपल्ब्ध हो सकेगा इससे यह साबित होता है कि अधिकारी इस बेखबर होकर चैन की बंशी बजा रहे है और मस्त रहो मस्ती मे आग लगे बस्ती मे गाना गुनगुना रहें है।
वाह रे शशि तेरी मायासंजय लिखित कर ’’बम’’बीजापुर:- एक कथा है कि एक बार एक ग्वाला अपने सिर के ऊपर दुध का मटका लेकर शहर की ओर बेचने निकला रास्ते भर वह अपने जीवन को स्वर्गमय बनाने के लिये मन ही मन अनेक प्रकार के ताने-बाने बुनकर योजना बनाने लगा दुध की कमाई से चार-पांच भैंस खरिदुंगा शादि करूंगा पत्नि को रानी बना कर रखुंगा फिर बच्चे होंगे तो उन्हे अच्छे स्कूल मे पढाउंगा आदि महत्वाकांक्षी योजना बनाकर शेखचिल्ली की भांती चला जा रहा था किन्तु अचानक पत्थर कि ठोकर खा कर वह गिर पडा जिससे दुध भरा मटका फुट गया और उसकी महत्वकांक्षी योजना तारतार हो गई कहते है कि मेहनत की कमाई हमेशा टिकती है और पाप की कमाई का हमेशा भांडा फुटता है । यह कहानी एक साधारण परिवार मंडला मे जन्मे शशि कार्तिक के ऊपर सटिक बैढती है शाशि कार्तिक मूलतः मंडला जिले का मूल निवासी है और वह बीजापुर मे अपने बडे भाई जो कृषि विभाग मे कार्यरत् थे उनके पास रहकर शायद शिक्षा-दिक्षा की उनके स्थानांतरण के बाद वह अपने जिजा के पास रहा और अपना जीवन गुजर-बसर करने लगा जिजा के स्थानांतरण के बाद रोटी के लिए फांका-मस्ती की जीन्दगी गुजारने की नौबत आयी तो शशि कार्तिक ने लगभग 550 रू0 प्रति माह के वेतन पर सरस्वतीशिशु मंदिर शाखा भोपालपटनम मे नौकरी करने लगा 550 रू0 मे गुजर-बसर नही होने लगा तो उसके संगी‘सााथी शासकिय सेवकों ने तन मन धन से उसकी मदद की जब संगी साथियों का अन्यत्र तबादला हो गया तो वह पुनः पुरानी स्किति पे आ गया और सरस्वतीशिशु मंदिर की नौकरी छोड दिया चंद दिन फाका-मस्ती के दिन गुजारने के बाद किस्मत का सितारा बुलंद होने के कारण राजिव गांधी जलग्रहण मिशन मे लगभग 3500 रू0 प्रतिमाह की नौकरी करने लगा और नौकरी लगते ही ‘‘उसके दोनो हाथ घी मे और सर कढ़ाई’’ मे हो गया अपुस्ट जानकारी के अनुसार इन्होने तत्कसलीन सी.ई.ओ. गुप्ता के साथ मिलकर आंख बंद कर कागजों पर भी घोर नक्सली क्षेत्र मे भी मिनी वाटरसेड व अन्य कार्य करवाये तथा सामाजिक अंकेकक्षण मे भी मात्र बीना मूल्यांकन किये ही कार्य को पूर्ण हाने का अमलिजामा पहनाया इस प्रकार शशि कार्तिक ने लगभग लाखों करोडों रूपये की हेरा-फेरी कर चल-अचल सम्पत्ती एकत्रित कर अपने आपको आर्थिक रूप से मजबुत बनाया । कथित तौर पर ‘‘अपुस्ट जानकारी व लोगो के कहे अनुसार ज्ञात हुआ है की आवापल्ली मे पदस्थ वर्तमान सी.ई.ओ. ने दो अन्य सचिवों के साथ मिलकर शशि कार्तिक के बीना हस्ताक्षर के लगभग 2 करोड़ 30 लाख रूपये का आहरण कर लिया जब इसकी जानकारी शशि कार्तिक को लगी तो वह इसकी जानकारी देने के लिये एक पत्रकार के पास पंहुंचा जब पत्रकार संबंधित फाइल को पढ़ने के बाद अपने पेपर मे लिखने लगा तो शशि कार्तिक ने उस न्यूज को ना लिखे यैसा कहकर आना कानी करने लगा इससे यह अनुमान लगता है कि वह वर्तमान सी.ई.ओ. व दो सचिवों के साथ मिलकर कुछ लेन-देन कर चुप बैठ गया होगा पत्रकार ने नाम न बताने की शर्त के कथित तौर पर बताया की इस कार्य का सामाजिक अंकेकक्षण भी हो गया और इतने बडे घोटाले को सहानुभूति पूर्वक दबा दिया गया । इसी प्रकार अनेक काले कारनामों को अंजाम देते हुए लाखों-करोडों रूपयों को डकार गया और ऊफ तक नही की साथ ही लाखों-करोडों मे अचल सम्पत्ती अर्जित कर ली वर्तमान मे जिला मुख्यालय मे एन.एच. 16 पर द्रुतगती से निर्माणाधिन लॉज है या गोदाम वह शशि कार्तिक का ही है साथ ही जिला मुख्यालय मे शशि कार्तिक के दो-तीन मकान भी है उसके पास आय से अधिक सम्पत्ती कैसे अर्जीत की यह सोचने का प्रश्न है एैसा लोगो का कहना है । लोगो का कहना है की एक शासकीय सेवक दम्पती नौकरी से सेवा निवृत्त होने के बाद भी महंगाई के इस दौर मे इतनी सम्पत्ती अर्जीत नही कर सकता इससे यह ज्ञात होता है की इसने करोडों रूपयों का भ्रष्टाचार किया होगा और इतनी सम्पत्ती अर्जीत कि इतनी सम्पत्ती को देखकर यह प्रश्न आने लगा ीि क्या शशि कार्तिक की लॉटरी लग गई ? क्या जमीन मे गडा धन मिला ? क्याा शशि कार्तिक अपने पैतृक घर से सुखी सम्पन्न है ? यह सभी विचारणीय प्रश्न है इन सबको उजागर करना आवश्यक है । अगर वह इतना सुखी सम्पन्न होता तो छत्तीसगढ़ के अति पिछडे आदिवासी जिला बीजापुर मे 550 रू0 प्रतिमाह की नौकरी के लिऐ दर-दर नही भटकता अतः आयकर विभाग व सी.बी.आई. से इसकी जांच होनी चाहिए तभी इस भ्रष्टाचारी शशि कार्तिक की असली पोल खुलेगी जिससे दुध का दुध और पानी का पानी हो जायगा एैसा लोगो का मानना है ।

Sunday, March 28, 2010

0.58 करोड़ की हानि- भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का प्रतिवेदन

अव्यवहारिक खदानों के अर्जन के परिणामस्वरूप 0.58 करोड़ की हानि
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का प्रतिवेदन

ममता अरोरा/आर.एस.अग्रवाल मो. 982613975

कम्पनी खनिज पट्टे अर्जन, खनिज निकालने तथा विक्रय करने का कार्य कर रही थी और उसका खनिजों का व्यवसाय में मध्यस्थ कार्य था। राज्य सरकार के लघु खनिज नियम 1996 के अनुसार राज्य सरकार ने कम्पनी को पट्टे तथा रायल्टी के अग्रिम भुगतान पर रेत की खदानें सौंपी थी। यह भी कि कम्पनी प्रायवेट पार्टियों सहित खुले टेण्डर में भागीदारी भी करती थी और नीलामी में निर्धारित नीलामी मूल्य के भुगतान पर जिलाधीशों से खाने/रेत की खदाने प्राप्त करती थी।राज्य सरकार की अधिसूचना में स्पष्ट रूप से यह शर्त दी गई है कि नीलामी में भगीदारी से पूर्व पट्टाधारक द्वारा खानों/खदानों की स्थिति, उपलब्धता तथा खनिज की गुणवत्ता आदि सुनिश्चित करनी होती है। कम्पनी ने 2005-06 एवं 2007-08 के मध्य राज्य सरकार से नीलामी के माध्यम से खदानों की रेत की मांग तथा गुणवत्ता का विश्लेषण किये बिना 14 रेत की खदानें (होशंगाबाद तथा रायसेन प्रत्येक में सात) प्राप्त की। नीलामी की निबन्धन एवं शर्तों के अनुसार कम्पनी ने अपने अनुमान के अनुसार 3.99 लाख घन मीटर रेत उठाने के लिये अग्रिम रॉयल्टी के रूप में 2005-06 एवं 2007-08 के मध्य 1.30 करोड रूपये का भुगतान किया। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार यदि उठाई गई मात्रा अनुमानित मात्रा से कम होती है तो रायल्टी की असमायोजित राशि व्यपगत हो जायेगी और व्यय के रूप में मानी जायेगी। इन खदानों से संबंधित अभिलेखों की संवीक्षा से प्रकट हुआ कि उपरोक्त अवधि के दौरान कम्पनी ने वस्तुत: केवल 0.74 लाख घन मीटर रेत ही उठाई थी जिसे 0.72 करोड रूपये में बेचा गया था। इस प्रकार रेत की उस अनुमानित मात्रा के न उठाने के कारण जिसके लिये रॉयल्टी भुगतान किया गया था, कम्पनी को 0.58 करोड रूपये की हानि उठानी पड़ी। कम रेत उठाने के कम्पनी द्वारा यथा विश्लेषित कारण खदानों में उपलब्ध रेत की मात्रा तथा गुणवत्ता का मूल्यांकन न करना तथा खदानों को अधिकार में लेने में विलम्ब करना था। प्रबन्धन ने सूचित किया (अप्रैल/जून 2009) कि रेत की कोई मांग नहीं थी, क्योंकि इन खदानों की रेत की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, जिसके कारण रेत कम बिकी। इसलिये होशंगाबाद जिले की सात खदानें 2008-09 में सरकार को सौंप दी गई और रायसेन की सात खदानें 14 सितम्बर 2008 को परिचालन के लिये प्रायवेट ठेकेदारों को आबंटित कर दी गई। उत्तर विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि कम्पनी नीलामी में भागीरथी करने से पूर्व रेत की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने में विफल रही और अनुमानित मात्रा निकालने में भी विफल रही।इस प्रकार खदानों के चयन तथा अर्जन में कम्पनी के गलत अनुमान के कारण कम्पनी ने 0.58 करोड रूपये की परिहार्य हानि उठाई । यह अनुसंशा की जाती है कि रेत की गुणवत्ता तथा मात्रा का तकनीकि मूल्यांकन खदानों के चयन तथा अर्जन से पूर्व किया जाना चाहिये।

Thursday, March 25, 2010

इलाहाबाद और रीवा बार्डर के आरक्षित वनों में अवैध खनन से अरबों की क्षति

अवैध खनन लाभ सनन

इलाहाबाद और रीवा बार्डर के आरक्षित वनों में अवैध खनन से अरबों की क्षति
ब्यूरो प्रमुख उ. प्र.// सूर्य नारायण शुक्ल

(इलाहाबाद // टाइम्स ऑफ क्राइम)

सामजिक वानिकी वन प्रभाग इलाहाबाद में भारतीय वन सेवा की कसमें खा कर नौकरी प्राप्त कर अधिकारी अपने वन सम्पदा की सुरक्षा न करके सिर्फ मालामाल होने में व्यस्त नजर आ रहे है। जिससे करोड़ों अरबों की वन सम्पदा नष्ट हुई, प्राकृतिक संरचना नष्ट हुयी। उल्लेखनीय है कि जनपद के कोरांव वन रेंज जो यू.पी., एम.पी. सीमा के कैमूर एरिया का हनुमना जनपद रीवा ड्रमण्डगंज जिला मिर्जापुर तथा कोरांव वन रेंज इलाहाबाद तथा मऊगंज जिला रीवा के पर्वतीय वन आरक्षित वन है। इसमें सबसे मंहगी वन सम्पदा वृक्ष व ईमारती पत्थर पटीआ है। मिर्जापुर के वन अधिकारी तो सुप्रीम कोर्ट की डर से अवैध खनन बन्द कराये 5-6 वर्ष से अधिक हो रहा है। लेकिन कोरंाव व हनुमना वन रेंज के पर्वतों में पत्थर माफियाओं ने वन विभाग पुलिस और तहसील के कुछ अधिकारियों को पटा कर खनन कार्य होता रहा। सबसे अधिक यू.पी. इलाहाबाद के ही लोगों ने हनुमना वन रेंज के पहाड़ों का पत्थर पटीआ खनन लगवा कर फर्जी ढंग से प्रपत्र एम एम 11 के जरिये कोरंाव के वन अधिकारी कर्मी पुलिस वाले ट्रकों और ठेकेदारों से सुविधा शुल्क लेकर गैर प्रान्त बिहार आदि व गैर जनपदों तक आपूर्ति की जाती रही।हनुमना वन परिक्षेत्र के रेंज अधिकारी आर.के. जायसवाल ने देखा कि एम.पी. के आरक्षित वनों पर्वतों की ईमारती पत्थर पटीआ यू.पी. के खास तौर से कोरंाव के पत्थर पटीआ के माफिया खनन कराकर गैर प्रान्तों तक जब सप्लाई करने लगे तो उन्होंने एक अभियान चालू किया और पत्थर माफिया व सप्लायरों की धर पकड़ शुरू कर दी। जिसमें थाना कोरंाव इलाहाबाद क्षेत्र के ग्राम पियरी निवासी राम बहादुर सिंह पटेल व बलापुर थाना कोरांव निवासी अमर बहादुर सिंह पटेल सप्लायर के विरूद्ध केस दर्ज कर दिया व ट्रकों को भी निरूद्ध कर दिया जिसमें एक ट्रक क्क 70 ्रञ्ज 1266 अमर बहादुर सिंह पटेल की 3 मार्च 2010 को मह ईमारती पत्थर पटीआ से लदी ट्रक को फर्जी प्रपत्र एम एम 11 सहित पकड़ कर हनुमना वन रेंज में जब्त कर दिया। और राज सात की कार्यवाही सुनिश्चित हो रही है। ट्रक नं. क्क 070 ्रञ्ज 372 को मह ट्रक मालिक राम बहादुर सिंह पटेल निवासी पियरी कोरांव इलाहाबाद को अवैध परिवहन अधि. व भारतीय वन अधि. के तहत् 06/11/09को निरूद्ध किया। ट्रक मालिक ट्रक सहित गिरफ्त के बाहर है। जिसके लिए डी.एफ.ओ. रीवा अजय कुमार यादव तथा अन्य प्रशासनिक अफसरों ने उक्त ट्रक व मालिको की गिरफ्तारी हेतु डी.आई.जी. इलाहाबाद जिलाधिकारी इलाहाबाद तथा पुलिस अधीक्षक यमुनापार इलाहाबाद को अर्धषासकीय पत्र भी 15 मार्च 2010 को लिखा है।इसके पूर्व एक वन अपराधी राम कृपाल आदिवासी ग्राम नेवढिय़ा पाल कोरंाव इलाहाबाद जो उप वन रेंजर हनुमना राम सुमन मिश्रा पर वन की डियूटी करते समय प्राण घातक हमला किया था जिसमें वाछित अभियुक्त राम बहादुर पटेल का ही हाथ बताया जा रहा है। जो हनुमना थाना रीवा में वर्ष 2007 में धारा 307 व 120 बी आई.पी.सी. आदि के केस दर्ज है। षेश अभिुक्तों की तलाष पुलिस कर रही है। लेकिन कोरंाव पुलिस ने उक्त पांच हजार की ईनामी मुल्जिम राम कृपाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जिस पर वनक्षेत्राधिकारी हनुमना के प्रयास से वन विभाग रीवा शासन की और से 05 हजार का पुरश्कार थानाध्यक्ष कोरांव अजय सिंह को प्रेषित कर दिया गया है। श्री जायसवाल वन क्षेत्राधिकारी ने बताया कि अवशेष वन अपराधियों का भी ईनाम घोषित करने जा रहा है, ताकि यू.पी. पुलिस से मदद मिल सके।उधर पत्थर वन माफिया डान अवैध खनन सप्लाई पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाने से बौखला कर वन क्षेत्राधिकारी हनुमना व यू.पी. के सहयोगी वन कर्मियों तथा अवैध खनन की खबरें प्रकाशित करने व शिकायत करने वालों के भी विरूद्ध षडय़ंत्र रच रहे है। जिसकी सूचना वन क्षेत्राधिकारी ने कोरांव पुलिस सी. ओ. मेजा इलाहाबाद आर.बी. चौरसिया से लेकर एस.एस.पी. इलाहाबाद आदि तक व खबरें लिख कर खनन बन्द करवाने वाले वन पर्यावरण प्रेमी एक पत्रकार को भी धमकिया देने पर डी.जी.पी. पुलिस उ.प्र. लखनऊ डी.आई.जी. इलाहाबाद को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने व विधिक कार्यवाही हेतुु पत्र दिया है। जिससे पत्थर माफिया बौखला गये है अन्दर ही अन्दर कमाई ठप होने से स्थानीय पुलिस वन विभाग के अफसर कर्मी भी वन क्षेत्राधिकारी हनुमना रीवा व पत्रकार ए.ए. सिद्दीकी कोरांव इलाहाबाद से खार खाये हुए है। वांछित वन अपराधी क्षेत्र में घूम घूम कर कहते फिर रहे है कि पुलिस हम लोगो के पक्ष में है जब जंगल या क्षेत्र में पकड़ धकड़ करने आयेगें तो जान लेवा हमला बोल दिया जायेगा। वन क्षेत्राधिकारी हनुमना आर.के. जायसवाल ने संवाददाता को बताया कि अपराधी चाहे जितना बड़ा क्यों न हो, चाहे जितनी पैरवी कराले लेकिन उसे कानून के शिकंजे में आना ही है चाहे आज पकड़ा जाये चाहे बाद में, उन्हे गिरफ्त में आना ही है। और खनन कटान वन्य जीवो का पलायन रोकना मेरी प्राथमिकता है। जनपद रीवा के डी. एफ. ओ. अजय यादव ने कहा कि यू. पी. के ही वन अपराधी एम. पी. के जंगलों को क्षति पहुंचा रहे है। यू. पी. के शासन से सहयोग लेकर अवैध खनन बन्द कराया जायेगा। उन्होंने कहा कि फिलहाल खनन तो बन्द है लेकिन आगे कड़ी कार्यवाही से कोई हिम्मत भी नहीं करेगा कि खनन व सप्लाई करें। इधर जिला इलाहाबाद में कोरांव वन रेंज की आरक्षित वनों में खनन किये जाने अवैध कटानों फर्जी लीज़ संस्तुति किये जाने मनमाने ढंग से कई साल से एक ही स्थान व जिले में तैनात रहकर मनमानी कर रहे वन कर्मियों अफसरों के विरूद्ध जांच कार्यवाही शुरू होने से पूरे वन महकमें में हड़कम्प मचा है।शासन स्तर तक वन सम्पदा दोहन की शिकायतों की जांच हेतु कई बार वन अफसरों ने जब निष्पक्ष जांच नहीं किया तो पुन: शिकायतें हुयी और पुन: जांच काम्बिंग के आदेश दिये गये है। और आर.टी.आई. के तहत् कई प्रमुख सूचनाएं मांगे जाने से भी अफरा तकरी का माहौल है। शिकायतों परान्त मुख्यमंत्री कार्यालय लखनऊ अनुभाग 02 पत्रांक 05/सू.अ./सी.एम.-02/2010-4 सू.अ./10 दिनांक 07 जनवरी 2010 द्वारा जारी शासनादेश जो प्रमुख सचिव वन लखनऊ व जिलाधिकारी इलाहाबाद को कार्यवाही हेतु प्रेषित किया गया है। इससे पूरे माईन्स विभाग तथा वन विभाग में हड़कम्प मचा हुआ है। खुन्नस खाये वनाधिकारी पुलिस पत्थर माफिआ शिकायत करने वालों के ही पिछे पड़ गये है जिसकी सूचनाएं सक्षम तंत्र को दे दी गयी है। परन्तु काबिले गोर बात है कि वन सुरक्षा वन्य जीवों के हित में राजस्व की हो रही अपूर्णनीय क्षति पर क्या प्रशासन शासन संवेदनशील नहीं है? जिससे देश, क्षेत्र, समाज, को वन से जल और जल से अन्न मिलता है?

ब्यूरो प्रमुख उ. प्र. से सम्पर्क 99362 29401

न्याय का शासन है तो शलभ को जेल भेजो

न्याय का शासन है तो शलभ को जेल भेजो
भोपाल // आलोक सिंघई
(पीआईसीएमपी // टाइम्स ऑफ क्राइम)
सूचना की शक्ति से डरे हुए भ्रष्ट राजनेताओं ने पत्रकारों पर लगाम लगाने के लिए जो हथकंडे अपनाए वे आज प्रगति के पथ पर तेजी से बढ़ती जा रही शिवराज सरकार के पैरों की बेडियां बन गए हैं. अमानत में खयानत करने वाला कथित जालसाज शलभ भदौरिया ऐसा ही एक नमूना है जो सरकारी नुमाईंदों के पस्त हौसलों का उद्घोष कर रहा है. पत्रकारों के इस गद्दार ने अपने बचाव के लिए पत्रकारिता का मुखौटा पहन रखा है. भ्रष्ट सत्तातंत्र यह मुखौटा नोंचना भी नहीं चाहता क्योंकि उसे लगता है कि पत्रकारों को इसी बहाने कुछ खरी खोटी सुनाई जा सकती है. जबकि हकीकत यह है कि शलभ भदौरिया पर मुकदमा चलाकर उसे जेल न भेजने से बदनामी राजनीति की होगी पत्रकारिता पर उसका कोई असर नहीं पडऩे वाला. आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के अफसरों ने तमाम दबावों और प्रलोभनों को दरकिनार करते हुए अपना अभियोग पत्र पूरी मुस्तैदी के साथ तैयार किया है.इसे जिला अदालत के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है. लेकिन विधि विशेषज्ञ की रायशुमारी के बहाने यह अभियोग पत्र अब तक अदालत की देहरी नहीं लांघ पाया है. न्यायप्रिय शासन की आवाज बुलंद करने के लिए इस अभियोग पत्र पर अदालत में सुनवाई होना जरूरी है. अभियोग पत्र की इबारत पढऩे के बाद भविष्य की साफ तस्वीर उभर रही है. भारतीय दंड संहिता सभी के लिए एक समान है.
इसलिए पत्रकारिता की खाल ओढ़कर आपराधिक जालसाजियां करने वाले शलभ भदौरिया की गिरफ्तारी और दंड सुनिश्चित है. इसीलिए वह चाहता है कि यह मामला किसी तरह ठंडे बस्ते में पड़ा रहे. दैनिक अग्निबाण के लिए खंडवा से पत्रकारिता करने वाले रवि जायसवाल ने इस मामले की खबर अपने अखबार में प्रकाशित कर दी. इससे तिलमिलाए शलभ भदौरिया ने उसे फोन करके काफी भला बुरा कहा और देख लेने की धमकी भी दी. इसकी शिकायत पत्रकार साथी ने जिले के पुलिस अधीक्षक आई. पी. एस. हरिनारायण चारी मिश्रा से की है. गृह विभाग ने पत्रकारों के खिलाफ शिकायत की प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस की जांच का प्रावधान किया है इसलिए यह शिकायत फिलहाल जांच में है. पुलिस अधीक्षक एच.एन.सी. मिश्रा ने खंडवा में अपराधियों पर लगाम कसने का जो अभियान चलाया हुआ है उसे नागरिक और पत्रकार सभी समर्थन दे रहे हैं. जाहिर है कि स्थानीय पत्रकार की शिकायत को भी कानून को बुलंद बनाने वाले नजरिए से ही देखा जाएगा. मामले की तह में झांकें तो आम नागरिक भी समझ सकता है कि किस तरह पत्रकारिता की आड़ लेकर जालसाजी की गई है.
इस मामले की शिकायत वर्ष 2003 में भोपाल के पत्रकार राधावल्लभ शारदा ने आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में की थी. इस शिकायत के सत्यापन के बाद निरीक्षक इंद्रजीत सिंह चौहान ने पाया कि वर्ष 1999 से 2003 के बीच श्रमजीवी पत्रकार नाम से प्रकाशित किए जाने वाले अखबार के प्रधान संपादक शलभ भदौरिया और संपादक विष्णुवर्मा विद्रोही थे. प्रेस पुस्तक पंजीकरण अधिनियम के अनुसार किसी भी समाचार पत्र के प्रकाशन से पहले उसका नाम भारत के पंजीयक के रजिस्टर में दर्ज करवाना अनिवार्य होता है. पूंजीवाद के आगमन से पहले ट्रेड यूनियन आंदोलन बहुत प्रभावी हुआ करता था. इसी के चलते राजनेता भी पत्रकारों की तमाम मांगें आंखें मूंदकर मान लेते थे. ऐसा ही कमोबेश पत्रकार भी किया करते थे.
यही कारण था कि वर्ष 2002 में जब शलभ भदौरिया को तत्कालीन शासकों ने संगठन का मुखपत्र निकालने के लिए जनसंपर्क महकमे से धन देने का आश्वासन दिया तो उसने श्रमजीवी पत्रकार नामक अखबार का नकली पंजीयन प्रमाण पत्र बनवाया. यह जालसाजी पत्रकार भवन में ही की गई. जनसंपर्क महकमे की विज्ञापन शाखा ने इस फर्जी पंजीयन प्रमाण पत्र के आधार पर अखबार को विज्ञापन जारी करना शुरु कर दिए. मामले की शिकायत होने तक समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय के फर्जी पंजीयन प्रमाण पत्र के आधार पर भदौरिया लाखों रुपयों की ठगी कर चुका था. यह ठगी मध्यप्रदेश के पत्रकारों के लिए विज्ञापन के मद में दी जाने वाली धन राशि की भी थी और डाक विभाग से मिलने वाली छूट की भी थी. तब सूचना का अधिकार अधिनियम लागू नहीं था और जनसंपर्क महकमे के अधिकारी आज की ही तरह जनसंपर्क के बजट की राशि को उजागर नहीं होने देना चाहते थे. इसीलिए जनसंपर्क विभाग के माध्यम से मध्यप्रदेश की जनता से की गई धोखाघड़ी आज भी सामने नहीं आई है.
लेकिन डाक विभाग की ओर से रियायती मूल्यों पर डाक वितरण की जो छूट दी जाती है उस छूट की राशि शिकायत होने की तारीख तक एक लाख चौहत्तर हजार नौ सौ सत्तर हो चुकी थी.यह शिकायत पंजीयक कार्यालय से प्राप्त जानकारी के आधार पर सत्य पाई गई. आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुधीर लाड़, थाना प्रभारी उमाशंकर तिवारी और विवेचना करने वाले निरीक्षक नरेन्द्र तिवारी ने अभियोग पत्र में पाया है कि आरोपियों ने भारतीय दंड संहिता की धारा-120 बी, 420, 467, 468, 471 के अंतर्गत अपराध किया है इसलिए माननीय न्यायालय के समक्ष अभियोग पत्र भेजा जा रहा है. जाहिर है कि इस मामले में कार्यपालिका ने अपना काम मुस्तैदी के साथ किया है.अब बारी विधायिका की है. माननीय मुख्यमंत्रीजी विधानसभा में उद्घोष कर चुके हैं कि अपराधी कोई भी हो,कैसा भी हो उसे छोड़ा नहीं जाएगा. इसलिए उम्मीद नजर आ रही है कि इस मामले में भी अपराधी सलाखों के पीछे अवश्य पहुंचेंगे.

Friday, March 19, 2010

भ्रष्टाचारियों की पोल खोल दें

देश में फैले भ्रष्टाचार में कई बार ऐसा होता है कि प्रशासनिक तंत्र अपनी समस्याओं को उपलब्ध साक्ष्यों, प्रमाणों के बावजूद दूर नहीं कर पाते, आप को न्याय नहीं मिल पाना. आपकी परेशानियां न सुलझे वहीं आपको परेशान करते हैं. नाजायज रुपयों की मांग की जाती है. आप अपनी हर तरह की समस्याएं हमें समुचित प्रमाणों के साथ- लिख भेजें. हम मीडिया के दायित्वों को निभाते हुए आपकी समस्या को प्रकाशित कर आपके संघर्ष में शामिल होंगे, अगर आप चाहेगें तो आपका नाम गुप्त रखा जाएगा.
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प्रधान कार्यालय : - टाइम्स ऑफ क्राइम
23/टी-7, गोयल निकेत, पे्रस कॉम्पलेक्स, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.)11
cont.- 0755-4078525 मोबाईल:- 98932 21036

Wednesday, March 17, 2010

पिपरिया का डॉन ईनामी अर्जुन पलिया गिरफ्तार






पिपरिया का डॉन ईनामी अर्जुन पलिया गिरफ्तार
ब्यूरों प्रमुख// सुरिन्दर सिंह अरोरा(होशंगाबाद //टाइम्स ऑफ क्राइम)
अपराधियों को किसी भी कीमत पर बक्शा नहीं जाएगा। अपराध को रोकने के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए जाए। उक्त बात होशंगाबाद पुलिस रेंज के आई जी श्री स्वर्ण सींग ने जिला पंचायत के सभागृह में जिला पुलिस द्वारा आयोजित पत्रकारों की एक संयुक्त बैठक में कही । इस अवसर पर उपस्थित पत्रकारों को जानकारी देते हुए होशंगाबाद पुलिस रेंज के आई जी श्री स्वर्ण सींग ने बताया कि लम्बे समय से फरार विभिन्न अपराधों में पुलिस को वान्टेड 5 हजार के ईनामी अर्जुन पलिया को गिरफतार कर होशंगाबाद पुलिस ने प्रंशसनीय कार्य किया है। पलिया की गिरफतारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पुलिस अधिकारियों को लिखित प्रशंसा मिलेगी। अधिकारियों की सीआर में लिखित प्रशंसा टीप लिखी जाएगी। पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए आईजी स्वर्ण सिंह ने बताया कि पलिया की गिरफतारी के साथ कई अन्य मामलों का खुलासा हो सकेगा। इस अवसर पर जिला पुलिस अधीक्षक रूचिवर्धन, पिपरिया एसडीओपी राजेश रघुवंशी, प्रोवेशनल डीएसपी ऋचा राय, एजेके डीएसपी विमला चौधरी सहित समस्त थाना प्रभारी उपस्थित थे।होशंगाबाद पुलिस रेंज के आई जी श्री स्वर्ण सींग के बताए अनुसार अर्जुन पलिया पिता हरप्रसाद पलिया उम्र 52 साल निवासी ग्राम बासखेड़ा थाना पिपरिया पिछले तीन दशक/लंबे अरसों से आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होकर वर्ष 1973 से लेकर अभी तक संगीन अपराध घटित करते एवं कराते चला आ रहा है जैसे हत्या, हत्या का प्रयास, घर में घुसकर हत्या कर डकैती, मारपीट, वन्य उपज की सागौन/सतकटा लकडिय़ां काटकर उपयोग करना, अपने आतंकित प्रभाव से दबाव डालकर गरीबों की जमीन हड़पना, शासकीय ठेकों के ठेकेदारों पर दबाव डालकर अवैध वसूली करना एवं कार्यवाही करने पर शासकीय अधिकारी/कर्मचारियों को जान से मार देने एवं मरवा डालने हेतु धमकी देना जैसे अपराध राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने के कारण घटित किए गए है। वर्तमान में भी इसी प्रकार के कृत्य कर रहा था, वर्ष 2009 में इसके विरूद्ध पंजीबद्ध अपराधों के फरियादी एवं गवाहों को लगातार धमकी देने से एमपीईबी एवं वन विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा द्वारा अपना स्थानांतरण करवाकर मय परिवार के तहसील पिपरिया से बाहर चले गए है। राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने से इसका इतना आंतक एवं भय व्याप्त है कि यह संगीन अपराध घटित करना व घटित करवाना व शासकीय कर्मचारियों/अधिकारियों पर दबाव डालकर अपने पक्ष में काम करवाना इसका पेशा बन गया है इसके कारण पिपरिया तहसील व आसपास के लोगों में/शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारियों में इतना भय व्याप्त जिसके कारण अनावेदक अर्जुन पलिया पिता हरप्रसाद पलिया के विरूद्ध उपरोक्त आपराधिक कृत्यों के कारण व आम लोगों के सामान्य जीवन जीने के लिए अनावेदक के विरूद्ध इस्तागाशा क्रमांक 01/10 धारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 की धारा 3(2) एवं क्रमांक पुअ/होश/रीडर/एनएसए/5/10 दिनांक 11.3.10 को तैयार कर श्रीमान जिला दंडाधिकारी महोदय न्यायालय होशंगाबाद में पेश कर अनावेदक अर्जुन पलिया का गिरफतारी वारंट प्राप्त किया गया तदोपरांत अनावेदक अर्जुन पलिया को केन्द्रीय जेल, इंदौर भेजा गया है। अर्जुन पलिया पर अभी तक 17 आपराधिक प्रकरण दर्ज हो चुके है, उस पर कई बार प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की जा चुकी है इसके बाद भी पिपरिया, बनखेड़ी एवं आसपास के क्षेत्र में लगातार उसके आपराधिक कृत्यों में कमी नहीं आ रही थी।
चर्चा में है गिरफ्तारीजिले की पिपरिया विधानसभा सीट से विधायक रह चुके सपा के पूर्व विधायक अर्जुन पलिया को बाबई पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर इन्दौरी होटल के पास से गिरफतार करने मे सफलता पाई आमजन के गले नही उतर रही है जिस अपराधी पर पुलिस ने 5 हजार के ईनाम की घोषणा की हो वह अपराधी दिन मे अपनी पत्नी के साथ भोपाल रेल्वे स्टेशन से टिकट लेकर टे्रन से होशंगाबाद आए और होशंगाबाद रेल्वे स्टेशन से एक कांग्रेसी के घर जाए और वहॉ से कार द्वारा अपने गृहनगर को रवाना हो बाबई जैसे कस्बे में मुख्य मार्ग के एक होटल में चाय पानी के लिए रूके और इसी बीच पुलिस उसे गिरफतार कर ले, आमजन एवं पूर्व में अपराध जगत से जुड़े रहे लोगों का मानना है कि ईनाम घोषित अपराधी कभी इस तरह आना-जाना नहीं करते। आमजन का मानना है कि सरकारी तंत्र ने अर्जुन पलिया को योजनाबद्ध तरीके से सरंक्षण देने वाले बाहुबली नेताओं से चर्चा कर उनको विश्वास मे लेकर अर्जुन पलिया को गिरफतार किया है च

पूर्व विधायक अर्जुन पलिया का आपराधिक रिकार्ड
क्र. अपराध क्र. धारा थाना.................................................................................................



1 125/73 458,302,396 भादवि पिपरिया



2 350/78 147,148,149,307 भादवि पिपरिया



3 284/86 294,506 भादवि पिपरिया



4 310/87 147,323,325 भादवि पिपरिया



5 06/90 147,148,149,307 भादवि पिपरिया



6 329/92 307,34 भादवि पिपरिया



7 66/95 457,294,323,147,148,149 भादिव पिपरिया



8 81/01 323,506,34 भादवि 3(1)(10) एससीएसटी एक्ट एजेके



9 472/04 147,148,149,326,307 भादवि 3,5 विस्फोटक पदार्थ अधि.पिपरिया



10 136/07 294,327,506,323,34 भादवि पिपरिया



11 642/08 188 भादवि पिपरिया



12 261/09 307,34 120 बी भादवि पिपरिया



13 265/09 33,41 भारतीय वन विधान 1927 पिपरिया



14 266/09 39बी वन संरक्षण अधिनियम 1972 पिपरिया



15 268/09 379,34 भादवि 135 विद्युत अधिनियम 2003 पिपरिया



16 274/09 308,285,336, भादवि



138 विद्युत अधिनियम पिपरिया



17 169/09 384,34 भादवि



बनखेड़ी-------------------------------------------------------------------------------------------
37 वर्ष बाद कानून के हाथ आया शातिर
एक लंबे अंतराल के आद आखिर पुलिस ने पूर्व विधायक अर्जुन पलिया को कुख्यात घोषित कर न केवल गिरफतार किया वरन रासुका के तहत कार्यवाही कर सेन्ट्रल जेल इंदौर भेज दिया है। पुलिस कप्तान रूची वर्धन श्रीवास्तव ने यहां बधाई की पात्र बनी है, जिनके निर्देश पर पुलिस ने 5 हजार के घोषित फरारी को गिरफतार कर लिया है। आईजी स्वर्ण सिंह ने अपनी पत्रकार वार्ता में उन्हें स्टाफ सहित बधाई दी साथ ही यह भी कहा कि उनकी तरफ से जो भी अनुशंसा इसमें होगी वे स्टाफ के लिए करेंगे।1973 से अपराधों में संलग्न रहने वाले अर्जुन पलिया को पकडऩे में 37 वर्ष लग गए। आईजी स्वर्ण सिंह स्वयं यहां एसपी पदस्थ रहे चुके है फिर भी वे इस शातिर की नकेल नहीं कस पाए थे। अपराधों की शुरूआत में यदि पुलिस अर्जुन पलिया को गिरफत में ले लेती तो अर्जुन पलिया अभी तक उन सामाजिक ओहदों पर नहीं पहुंच पाता जिससे वह नवाजा गया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी के वफादार रहे अर्जुन पलिया कांग्रेस जिलाध्यक्ष रह चुका है इतना ही नहीं कांग्रेस का टिकिट नहीं मिले के कारण अर्जुन पलिया अभी तक उन सामाजिक ओहदों पर नहीं पहुंच पाता जिससे वह नवाजा गया। प्रदेश कांग्रेस जिलाध्यक्ष रह चुके तमाम अपराधों के सिरमौर बने अर्जुन पलिया की दबंगता यहां एसपी रही अनुराधा शंकर सिंह सहित जिला पंचायत अध्यक्ष रही उमा आरसे ने देखी है। पर वर्तमान कप्तान रूची वर्धन ने कानून के शिकंजे में उसे आखिर कस लिया। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 की धारा 3(2) के तहत जिला दंडाधिकारी निशांत बरबड़े के वारंट से पकड़ाए अर्जुन पलिया को सेन्ट्रल जेल इंदौर भेजा गया जिसकी गिरफतारी नाटकीय रही है। इधर आवाम के गले मामला अभी तक उतर नहीं पा रहा जो यह मान रही है कि अर्जुन पलिया के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी जनपद अध्यक्ष श्रीमती आरती पलिया ने उसी दिन जिलाध्यक्ष की उपस्थिति में पंच सरपंच सम्मेलन बखूबी कैसे निभा दिया। अर्जुन पलिया के वकील के अनुसार तमाम मामलों में अग्रिम जमानत पा चुके अर्जुन पलिया पर रासुका लगाकर उसे जेल भेजना आज भी क्षेत्रवासियों को प्रश्न चिन्ह साबित हो रहा है जिसके उत्तर अनुन्तरित है। इधर पिपरिया पुलिस ने विभिन्न धाराओं से संबंधित अपराधों की लिस्ट प्रेस नोट के जरिए बांटी है।फिर इंदौर से पड़ा पालाअर्जुन पलिया के लिए इंदौर शहर कटु अनुभव है। करीब ढाई दशक पूर्व की एक गैंगवार में उनके भाई राजेन्द्र पलिया की हत्या इंदौर में हुई थी और उनके जातीय दुश्मन इंदौर में काफी सक्रिय है। जिसके कारण पलिया परिवार इंदौर जाने से परहेज करता रहा है। शुक्रवार को अर्जुन पलिया पर जब रासुका लगी तो उन्हें सेन्ट्रल जेल इंदौर भेजा गया।नारीशक्ति पड़ी पलिया पर भारी जिले में अब तक चार महिला एसपी पदस्थ हुई और तीन बार महिला एसपी अर्जुन पलिया के लिए भारी पड़ी। अनुराधा शंकर सिंह के कार्यकाल में अर्जुन पलिया पर तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष उमा आरसे पर दबाव बनाने पर एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ और उन्हें काफी समय तक फरार रहना पड़ा। वहीं से पलिया के विरूद्ध पुलिस का अभियान शुरू हुआ। बाद में गत वर्ष एसपी दीपिका सूरी के कार्यकाल में बलराम बैस गोली कांड के बाद पुलिस ने अर्जुन पलिया के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही की और फरार पलिया पर ईनाम घोषित किया। आखिरकार वर्तमान एसपी श्रीमती रूचि वर्धन श्रीवास्तव ने उन्हें गिरफतार किया और रासुका के तहत इंदौर जेल भेज दिया। 1973 के बाद पहली बार अर्जुन पलिया की गिरफतारी हुई और वह भी महिला एसपी के कार्यकाल में।



गरीबों का मसीहा अर्जुन पलिया
पुलिस ने भले ही विभिन्न अपराधों में लिप्त अर्जुन पलिया के विरूद्ध मामले दर्ज किए है लेकिन पिपरिया विधानसभा क्षेत्र एवं उससे लगे ग्रामों के गरीब तबके के लोग आज भी उन्हें अपना मसीहा बताते है। गरीबों के सुख दुख में शामिल होना उन्हें निस्वार्थ मदद करना आज भी उनके दैनिक कार्यो मे उनकी फिदरत है। गॉव के कुछ ग्रामीणों के बताए अनुसार जैसे ही अर्जुन भैया को पता लगता था कि उनके क्षेत्र के गॉव में किसी भी गरीब की कोई गम्भीर समस्या है तत्काल समय निकाल या अपना विश्वसनीय दूत भेज ग्रामीण को यथासम्भव मदद करते रहे है। दबी जबान मे कुछ पुलिसकर्मी और राजस्व से जुड़े कुछ शासकीय कर्मी भी इस बात को स्वीकारते हुए बताते है कि अर्जुन पलिया ने गरीबों को कभी नही सताया।

ब्यूरों प्रमुख से सम्पर्क : 99939 93300



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Sunday, March 7, 2010

शासकीय महाविद्यालय सिहोरा उच्च श्रेणी लिपिक श्रीमान जालसाज ओ.पी. दुबे को राजनैतिक संरक्षण

प्रतिनिधि// उदय सिंह पटेल(जबलपुर // टाइम्स ऑफ क्राइम)

उल्टा चोर कोतवाल को डॉटे, इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया शासकीय महाविद्यालय सिहोरा के ओम प्रकाश उर्फ ओ.पी.दुबे, उच्चश्रेणी लिपिक ने। इस कहानी के जानकार शासकीय कला महाविद्यालय पनागर जिला जबलपुर में कार्यरत एक कर्मचारी ने ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ को लिखित जानकारी में बताया कि, घटना वर्ष 1999 की है। उस समय आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक के पद पर शासकीय कला महाविद्यालय पनागर में पदस्थ था। और उस समय उसके पास कैश का भी प्रभार था। जानकारी में बताया गया है, कि आरोपी ओमप्रकाश उर्फ ओ.पी. दुबे की नियत खराब हो गई और उसने अपनी प्लानिंग अनुसार गंभीर अपराध करने की ठान कर दस्तावेजों में हेराफेरी की और 58,357=85 (अन्ठानवन हजार, तीन सौ सन्तावन रूपये पच्चयासी पैसे) नगद राशि का गबन किया और लम्बे अवकाश पर वहां से भाग गया। जिसकी विभागीय जांच अभी भी चल रही है। अत: उक्त घटना के संदर्भ में सिहोरा ''टाइम्स ऑफ क्राइम'' ने विगत 14 जनवरी 2010 को छापकर प्रकरण के आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक की पोल खोल दी जिस कारण आरोपी बुरा मान गया और उसने गुस्से से भगड़ कर क्राइम रिपोर्टर को जेल भिजवाने की धमकी दी और म.प्र. हाईकोर्ट के वकील के माध्यम से धमकी भरा नोटिस भेजकर क्राइम रिपोर्टर को डराया धमकाया उल्लेखनीय है। कि उक्त घटना की रिपोर्ट लिखाने शासकीय कला महाविद्यालय पनागर की प्राचार्य स्व. श्रीमती कीर्ति गुरू पुलिस थाना पनागर गई थी। किन्तु आरोपी ओ.पी. दुबे के भाई सहायक पुलिस उपनिरीक्षक के दबाव के कारण आरोपी के खिलाफ पनागर पुलिस ने उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी। जानकारी में आगे बताया गया है। कि मजबूरन प्राचार्य श्रीमती गुरू ने घटना की शिकायत पुलिस अधीक्षक जबलपुर तथा आयुक्त उच्च शिक्षा म.प्र. शासन भोपाल को रजिस्टर्ड डाक से प्रेषित की थी। ज्ञात हो कि पुलिस अधीक्षक जबलपुर को भेजी गई शिकायत पर पनागर पुलिस ने घटना को गंभीरता से नहीं लिया केवल कागजी खाना पूर्ति कर मामले का खात्मा कर दाखिल दफ्तर कर दिया। बात आश्चर्य की है, कि शासकीय कला महाविद्यालय पनागर के कैश प्रभारी ने 58,357=85 नगद राशि का गबन किया और पनागर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया इस बात से जाहिर है आरोपी ऊंची पहुंच वाला व्यक्ति है। उल्लेखनीय है कि शिकायत पर विभागीय जांच पर आयुक्त उच्चशिक्षा म.प्र. शासन भोपाल ने आरोपी ओ.पी. दुबे उगा श्रेणी लिपिक को घटना का दोषी माना है और विगत 6 दिसम्बर 2008 को पदच्युत करने का आदेश पारित किया। किन्तु आरोपी ने उक्त आदेश के खिलाफ ऊंची छलांग लगाई और डॉ. महेन्द्र सिंह रघुवंशी उपसचिव उच्चशिक्षा विभाग के दरबार में पहुंच कर आयुक्त द्वारा पारित आदेश दिनांक 6 दिसंबर 2008 निरस्त करा लिया और सत्यवादी हरिश्चंद बन गया उल्लेखनीय है कि घटना के संदर्भ में ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ ने प्राचार्य शासकीय महाविद्यालय सिहोरा से संपर्क किया तब चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि आरोपी ओ.पी.दुबे चार्ज के लिये उन पर भारी दवाब डालता है और उन्हें धमकाता है। ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ के पूंछने पर कि क्या.? आरोपी ओ.पी. दुबे उच्चश्रेणी लिपिक, अल्प वेतन भोगी कर्मचारी की श्रेणी में आता है, इस सवाल पर प्राचार्य ने अपने जवाब में कहा कि आरोपी दुबे उच्चश्रेणी लिपिक हैं, जो अच्छे वेतनमान की श्रेणी में आता है। आरोपी दुबे अल्प वेतन भोगी कर्मचारी की श्रेणी में नहीं आता। घटना के जानकारों का मानना है, कि डॉक्टर श्री रघुवंशी उप सचिव उच्चशिक्षा विभाग मंत्रालय ने आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक को अल्प वेतन भोगी कर्मचारी माना है। जो नियम तथा कानून के विपरीत हैं। इस प्रकार अपने आदेश में प्राचार्य श्रीमती गुरू के द्वारा पनागर थाने में घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही गई है। जबकि पुलिस थाना पनागर ने उक्त घटना की रिपोर्ट नहीं लिखी। इसलिये उप सचिव उच्चशिक्षा विभाग मंत्रालय द्वारा पारित आदेश दिनांक-2 दिवसंबर 2009 त्रुटि पूर्ण एवं संदिग्ध माना जा रहा है आरोपी अपना सौभाग्य ही समझे कि उसके भाई सहायक पुलिस उपनिरीक्षक जिसने अपनी वर्दी का दुरूपयोग किया और पनागर पुलिस पर अनुचित दबाव डालकर प्रकरण को प्रभावित कर आरोपी ओ.पी. दुबे को पुलिस के चंगुल से छुड़ाया। उक्त घटना की लिखित जानकारी, तथा आयुक्त उच्चशिक्षा संचालनालय भोपाल एवं उपसचिव उगा शिक्षा विभाग मंत्रालय के आदेशों की प्राप्त फोटो कॉपी के आधार पर विगत 14 जनवरी 2010 को आरोपी ओ.पी. दुबे के विरोध में प्रथम प्रकाशन किया गया था, सिहोरा ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ रिपोर्टर का आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक की मानहानी करने का कतई इरादा नहीं था। और न ही उसका किसी से कोई लेना देना है। नगर में चर्चा है कि आरोपी अपने आपको धन बल से सम्पन्न ऊंची हस्ती मानता है, उसका दावा है कि उस पर लगाये गये आरोप को साम-दाम दण्ड भेद की नीति से समाप्त करवा लेगा। इस प्रकरण के संदर्भ में मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ सिहोरा इकाई ने प्रदेश शासन के मुखिया मुख्यमंत्री श्री चौहान से प्रकरण में हस्तक्षेप कर आरोपी के खिलाफ चल रही विभागीय जांच के अंतिम निराकरण तक आरोपी दुबे को सस्पेंड करने तथा उक्त संपूर्ण घटना की जांच पुलिस के माध्यम से कराने की मांग की है वरना आन्दोलन किया जा सकता है।

यूनिक रिपोर्टर के संपादक पर धोखाधड़ी का आरोप २० लाख ऐंठे

ब्यूरों प्रमुख// सुरिन्दर सिंह अरोरा(होशंगाबाद ेटाइम्स ऑफ क्राइम)
साप्ताहिक समाचार पत्र यूनिक रिपोर्टर के संपादक एवं अपने आप को पायनियर दैनिक अंग्रेजी समाचार पत्र के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ का ब्यूरो बताने वाले होशंगाबाद निवासी मनीष मिश्रा पर जिले के विभिन्न ग्रामों से आए लगभग दो दर्जन से अधिक युवकों ने धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए पुलिस अधीक्षक को शिकायत की है। शिकायत में युवकों ने बताया कि उक्त व्यक्ति द्वारा हम लोगों को नौकरी दिलाने के नाम पर हमसे पैसा लिया गया और कुछ लोगों को फर्जी नियुक्ति पत्र व प्रेस के परिचय पत्र दिए गए। परेशान युवकों द्वारा जब अपने पैसे वापिस मांगे तो मनीष मिश्रा द्वारा जान से मारने की धमकी और झूठे प्रकरण में फंसाने की धमकी दी गई। अपने आप को आईजी, डीआईजी और कलेक्टर से पहचान रखने वाला बताते हुए कहता है कि मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सिवनीमालवा तहसील से आए लगभग दो दर्जन युवकों ने एक शिकायती पत्र के माध्यम से एसपी रूचि वर्धन को बताया कि अपने आप को साप्ताहिक यूनिक रिपोर्टर समाचार पत्र का संपादक बताने वाले होशंगाबाद निवासी मनीष मिश्रा द्वारा हम लोगों यूनिक रिपोर्टर में नौकरी दिलाने के नाम पर किसी से 40 हजार रूपए, किसी से 1 लाख रूपए, किसी से 1.5 लाख रूपए लेकर प्रेस के कार्ड व प्रेस में नियुक्ति आदेश की प्रति दी गई। जब हम नियुक्ति आदेश की प्रति लेकर संबंधित कार्यालय में पहुंचे तो बताया गया कि यहां से किसी प्रकार का नौकरी के लिए विज्ञापन नहीं दिया गया है। युवकों ने एसपी को बताया कि मनीष मिश्रा द्वारा धोखाधड़ी कर हम बेरोजगार युवकों से लगभग 20 लाख रूपए नौकरी दिलाने के नाम पर लिए।ठगे गए युवकों जिनमें कैलाश, पूनम सिंह, मंगल सिंह, रामनिवास, बहादुर सिंह, प्रहलाद मालवीय, मुरारी, मोहन सिंह, रामस्वरूप, संदीप, आनंद, राजेन्द्र लोवंशी, सुरेन्द्र लोवंशी, संदीप लोवंशी, इंदर सिंह, कमल सिंह, ओमप्रकाश, सुनीता, पवन, जितेन्द्र, मुकेश कुमार आदि युवकों ने बताया कि जब हम अपना पैसा वापिस लेने मनीष मिश्रा से मिले तो उसने कुछ लोगों को चैक द्वारा पैसे लौटाए लेकिन खाते में पैसा न होने से चैक अनादरित हो गए। दोबारा मनीष से पैसों की मांग करने पर मनीष द्वारा कुछ लोगों को झूठे प्रकरण में फसाने व कुछ लोगों को जान से मारने की धमकी दी गई। युवकों ने पुलिस अधीक्षक से न्याय की मांग करते हुए मनीष के खिलाफ कार्यवाही करने हेतु शिकायती पत्र की प्रतियां प्रदेश के मुखिया को भी भेजी हैं। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में जिले में फर्जी पत्रकारों की बाढ़ से आ गई है जिससे अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी सहित आमजन भी परेशान है। जिला जनसंपर्क अधिकारी श्री एचके बाथरी ने नगर में आने वाले समाचार पत्रों के संवाददाताओं से परिचय पत्र जमा करने को कहा है। इसके साथ ही जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा समाचार पत्रों के संपादकों से उनके द्वारा नियुक्त किए गए संवाददाताओं की जानकारी चाही है। चब्यूरों प्रमुख से सम्पर्क : 99939 93300

म.प्र. स्वास्थ्य विभाग के कुख्यात लुटेरे

भोपाल // विनय जी. डेविड (टाइम्स ऑफ क्राइम) mo. 9893221036
घपलेबाजों के घपलेबाज, घोटालों के महानायक कहें तो भी इन भ्रष्टाचारियों को कम पड़ेगा। इन भ्रष्टाचारी दरिन्दों ने जो किया वह किसी स्तर से भी इनको बख्शने के काबिल नहीं है। पिछले कई सालों से इस स्वास्थ्य विभाग में जितने भी संचालक आये उनने विभाग को अपने बाप की बपौती समझ कर नोंच-नोंच कर खा गये। देश में शिवराज सरकार को जो सुनना सहना पड़ा है, शायद वो उनकी जिन्दगी का सपना ही होगा, परन्तु इन घोषित मगरमच्छों ने तो प्रदेश कि उन जनता का खून चुस लिया जिनको खून चढ़ाने की आवश्यकता थी। विभाग के सर्वश्री घपलेबाज डॉ. योगी राज शर्मा, कमिश्नर राजेश राजौरा और उस पर पनौती डॉ. अशोक शर्मा ने जो किया उसका परिणाम सीधे इनको जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना ही है। इनके घिनौने कृत्य ने देश में मध्यप्रदेश को भ्रष्टाचार की श्रेणी में प्रथम पायदान पर पहुंचा दिया है। इन रूपयों के हवसखोरों की भूख इतनी है कि ये अगर अपने पदों पर रहे तो पूरा प्रदेश बिमारू राज्य के पायदान पर में प्रथम होगा। इन नियुक्त लुटेरों ने दुआ नहीं प्रदेश के मरीजों की हाय का भण्डार बटोरा है जिन्हें कई बिमारियों के चलते दवाओं की आवश्यकता थी। जहां वो मौत से लड़ रहे थे उनको दवायें नहीं मिली, जबकि पूरे प्रदेश के उन गरीबों की जीवन स्वास्थ्य के साथ खेला है जो शासकीय दवाईंयों के सहारे अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं। जो मौत के सामने बजट के अभाव में जीवन से हार गये। बजट की कही कमी नहीं थी। परन्तु विभाग में बैठे नासूरों ने इसे अपनी भूख मिटाने के लिये चीर फाड़ कर अनेकों बार बलात्कार किया है। इस ओछी हरकतों ने शिवराज सिंह चौहान की अच्छी खासी थू-थू करवाई है, परन्तु अपनी लाज शर्म के मारे वे कहें तो क्या कहें। पूरा का पूरा विधानसभा सत्र भ्रष्टाचार कि चित्कार से गंूज रहा है। जवाब देना, सामना करने को कुछ रहा नहीं मात्र समय पास करना इस भा.ज.पा. संचालित सरकार की हो गई है। ग्लूकोज में चल रही भ्रष्टाचारी संरक्षण सरकार चाहे जितना चाह ले इनको बचाकर रखने की परन्तु एक दिन तय है कि ये नासूर कैन्सर बन कर इनके जीवन की इललीला समाप्त कर देगा। भोले-भाले शिवराज इनकी तिगड़ी एवं प्रदेश की ए.आई.एस. लाबी के आगे नस्मस्तक हैं जो इस बात को संकेत देता है कि हमारा प्रदेश का मुख्यमंत्री काफी कमजोर है। अरे मुंह की फकर-फकर तो हर सूरमा भोपाली कर लेता है, अगर वाकई प्रशासनिक दर्द है, तो इन घोटालेबाजों को बर्खास्त कर इनकी समस्त संपत्ति जब्त कर पिछले तीन पीढिय़ों का हिसाब ले लेना चाहिये। आखिर इन तयशुदा लुटेरों ने पूर्ण संपत्ति कैसे आर्जित की है। क्यों इन भ्रष्टाचारियों के पीछे अपनी छी-छी लीदड़ करते फिर रहे हैं। ऐसी सटीक कार्यवाही करना चाहिये जिससे इन भ्रष्टाचारी रावणों की सात पीढ़ी भी दण्डनीय व्यवस्था में गंजी उत्पन्न हों। घोटालेबाजी अच्छी होती है उसके सुख अच्छे होते हैं। लेकिन परिणाम जेल की सलाखे ही होती है। कानून इतना अभी कमजोर नहीं की इन दानवों के आगे नापुंशक नजर आये। बात तो वक्त की है और बिकाऊ व्यवस्था की जो अपनी बुज़दीली के आगे अपने घुटने टेक दे। भ्रष्टाचार के आगे अगर शिवराज सिंह चौहान झुक रहें हैं तो हमारी सलाह है उनको इतने भ्रष्टाचार के आगे अपना श्वेतपत्र हथियार डाल देना चाहिये। अगर नहीं तो मर्दों की भान्ति कानूनी परिक्रमा में इन चौट्टों को अपनी कामचोरी का फायदा उठाने का सबक जरूर देना चाहिये ये तो छोटी लड़ाई है गांधी जी ने तो देश से अंग्रेजों को भगाया था ये तो मात्र विभागीय लुटेरे हैं। अगर इनके आगे नस्मस्तक हो गये तो अनेकों विभाग हैं जिसके महायोद्धा आपको धूल चटा देगें।आखिर क्यों नहीं होती समय रहते कार्यवाहीइन भस्मासूरों पर कार्यवाही करने, ना करने के पीछे सरकार की दवाबी राजनीति होती है, पीछे से माल बटोरने की। और शिकायतों को दबा-दबा कर मुद्दों की हवा निकलने की रणनीति काम करती है। अधिकारी वर्ग एक दूसरे से जब तक खुन्दक ना हो, तब तक कोई कार्यवाही नहीं करते। यहां पर घोटालेबाज एक दूसरे को अपना घोटालेभाई मानते हैं। जब मुद्दा सार्वजनिक हो जाता है, जो जांच और टाला मटोली के शब्दबाण चलते हैं, परन्तु सालों में जांचे पूरी नहीं होती। अब हमारे इन घोटालेबाजों की ही शिकायतें लें लेते तो सारा माजरा कई सालों पहले खुल जाता, श्रीमान डाक्टर भ्रष्टाचारी महोदय योगीराज के तो काले कारनामों की तो काफी लम्बी चौड़ी लिस्ट है, अनेकों बार इनके घपले समाचार पत्रों, मैग्जिनों में चिघांड़ रहे थे, परन्तु आंख की अंधी, कान की बहरी प्रशासनिक लाबी कुंभकरण निकली, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को भी कई शिकायतें दी गई परन्तु ना जाने कौन सी मजबूरी रही कि वे भी पूर्ण स्वास्थ्य मंत्री के साथ स्प्रिंग गर्दन वाले गुड्डे के जैसे सिर हिलाते रहे और इनको मूक सहमति दे दी। कार्यवाही अब की तो क्यों घोटाले की हद पार हो गई, करोड़ों का बजट ये लुटेरे लुट गये, अपनी बीबी, बच्चों को खूब खिला-पिला कर मुस्टंडा बना दिया, अब क्या है कार्यवाही करो न करो।भ्रष्टाचारों पर लगामसरकार को चाहिये की सभी बजट ऑन लाईन कर दें वही आय-व्यय की पूर्ण जानकारी एक क्लिक पर सार्वजनिक हो पूरा खर्चा वितरण नाम सहित शो कर देना चाहिये, जब सब खुला रहेगा तो अनेकों नजर पड़ेगी जल्दी घपला पकड़ा जायेगा और पोल खुल जायेगी, ऐसे कई और तरीके हैं जिससे भ्रष्टाचारों पर लगाम लगाई जा सकती