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Saturday, July 2, 2011

देश के लघु मध्यम समाचार पत्रों की भुखमरी से बचाने के सम्बन्ध में सुझाव


आल इण्डिया स्माल न्यूजपेपर्स के राष्ट्रीय सम्मेलन में केन्द्र सरकार को ज्ञापन सौपा
महोदया, विज्ञापन के अभाव में देश के लघु मध्यम समाचार पत्रों की आर्थिक दशा दयनीय हो गई है। इनके परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गये है। अधिकांश समाचार-पत्र बंद होने के स्थिति में है। यदि लघु समाचार पत्र बंद हो गये तो केन्द्र और प्रदेश सरकारों के पंचायती राज्य व ग्राम्य विकास की योजनाओं का क्या होगा, क्योंकि इन सभी योजनाओं को सुदुर ग्रामीण अंचलों तक प्रचार प्रसार तथा ग्रामीण जनता की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने का कार्य लघु, मध्यम समाचार पत्र ही करते है। सरकार बनाने व हटाने, ग्रामीण वोट बैंक पर निर्भर करती है। इस वोट बैंक को मजबूत करने में इन समाचार पत्रों का भारी योगदान है। यह विषय अत्यंत चिंतनीय एवं दु:खद है। 1. राष्ट्रीय समाचार पत्रों को पूंजीपतियों ने अपने काले धन को सफेद धन करने के लिए खरीद रखा है, इन समाचार पत्रों को सरकारी विज्ञापन भारी धन देना इनके काले धन की वृद्धि करना यह सबसे बड़ा भ्रष्टाचार व अपराध है, क्योंकि इन्हें विज्ञापन धन की आवश्यकता ही नहीं है और इन्हें प्राइवेट कंपनियों से भारी विज्ञापन मिल जाता है, यह शहरी अखबार है। 2. राष्ट्रीय पूंजीपति अखबार मे 80 प्रतिशत विज्ञापन व 20 प्रतिशत न्यूज में 10 प्रतिशत खेलकूद व फिल्मी तथा 10 प्रतिशत में 5 प्रतिशत केन्द्र की और 5 प्रतिशत प्रदेश सरकार की न्यूज होती है। 5 प्रतिशत न्यूज के लिए केन्द्र और प्रदेश सरकारें अपनी बजट का 90 प्रतिशत विज्ञापन धन राष्ट्रीय पूंजीपति समाचार पत्रों को देकर सरकारी धन का दुरूपयोग कर रही है। यह जॉच एवं चिंता का विषय है। 3. राष्ट्रीय पूंजीपति समाचार पत्र यदि 25,000 छापते है फिर भी प्रसार संख्या 5,000 दिखाकर विज्ञापन बजट का भारी भाग हजम कर जाते है। इस दुरूपयोग (भ्रष्टाचार) में विज्ञापन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी भी भागीदार हैं, यह भी अत्यंत जांच का विषय है। सी.बी.आई. जांच संभव नहीं है, क्योंकि पूंजीपति समाचार पत्रों के मालिकों से मंत्री, सांसद व विधायकों ने भारी चंदा ले रखा है। फिर भी यदि सी.बी.आई. जांच कराई जाये तो सरकारी भारी धन का दुरूपयोग बच सकता है। इसी के विपरित-
1. लघु मध्यम समाचार पत्रों में 90 प्रतिशत से लेकर 99 प्रतिशत तक केन्द्र और प्रदेश सरकारों की न्यूज होती है। जिसमे पंचायती राज्य व ग्राम्य विकास की योजनाएं होती है। इन योजनाओं का प्रसार-प्रसार सुदुर गांवों तक, ग्रामीण अंचल तक लघु मध्यम समाचार पत्र करते हैं। फिर भी इन समाचार पत्रों का सरकारी विज्ञापन नगण्य (1 प्रतिशत से 10 प्रतिशत) होता है। सरकारी विज्ञापन की कमी के कारण यह समाचार पत्र भुखमरी के कगार पर पहुंच गये हैं।
2. डी.ए.वी.पी. व प्रदेश के सूचना विभाग विज्ञापन मान्यता देने में इतनी जटिलता कर रखी है कि इनके द्वारा मांगी गई वांछित सूचनाएं देने के लिए तैयार करने में समाचार पत्र को भारी धन की व्यवस्था कर्ज लेकर करनी पड़ती है। फिर भी विभाग द्वारा इनके द्वारा भेजी गई वांछित सूचनाओं (पूवर प्रीटिंग , रिपीटिशन, फर्जी सर्कुलेशन आदि) में कमी दिखाकर बिना सूचना दिए हुए उनकी मान्यता निरस्त कर देता है।
3. लघु मध्यम समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों को प्रेस मान्यता देने में भी भेदभाव किया जाता है अधिकांश समाचार पत्र प्रतिनिधियों को पूरे देश में पच्चीसों वर्ष पत्रकारिता का अनुभव होने के बाद भी पे्रस मान्यता नहीं दी गई है। प्रेस मान्यता के अभाव में न्यूज कवरेंज करने में कितनी कठिनाई होती है आप स्वयं विचार करें। इसी के विपरित राष्ट्रीय पूंजीपति के समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों को भारी संख्या में प्रेस मान्यता दे दी जाती है।
4. केंन्द्र व प्रदेश सरकारों में अधिकांश प्रेस मान्यता प्राप्त लघु, मध्यम प्रतिनिधियों को सरकारी आवास नहीं आवंटित किया है, जबकि पूंजीपति समाचार पत्र प्रतिनिधियों को एक या अधिक मकान दे रखे हैं जिसे वे आज भी किराये में उठाकर धन अर्जित कर रहे है, खास तौर से उत्तर प्रदेश में देखा जा सकता है।
5. लघु मध्यम समाचार पत्रों के विशाल संगठन को केन्द्र व प्रदेश सरकार एक भी सरकारी भवन कार्यालय के लिए आवंटित नहीं किया है। जिलों व प्रदेश से आने वाले संगठन के प्रतिनिधियों को बैठने व उठने की व्यवस्था नहीं है, जबकि पूंजीपति समाचार पत्रों के पत्रकार संगठनों को प्रदेश व केन्द्र सरकारों ने सरकारी भवन आवंटित कर रखा है, यह भेदभाव कहां तक न्याय संगत है।
अत: अनुरोध है कि लघु मध्यम समाचार पत्रों को भुखमरी से बचाने के साथ सरकारी योजनाओं को सुदुर ग्रामीण अंचलों के प्रचार प्रसार को देखते हुए निम्नांकित मांगों को पूरी करने की कृपा करें-
1. उक्त उपरोक्त तथ्यों की जांच सी.वी.आई. से करायी जाये ताकि भारी सरकारी धन का दुरूपयोग रोका जा सके।
2. राष्ट्रीय पूंजीपति समाचार पत्रों के कर्मचारी व प्रतिनिधियों को समाचार पत्र में सह भागीदार बनाया जाये।
3. फर्जी प्रसार संख्या को समाप्त करने के लिए बड़े मध्यम व लघु समाचार पत्रों के विज्ञापन दर समान (एक दर) की जावे ताकि सभी को बराबर विज्ञापन मिल सके।
4. बड़े समाचार पत्रों के सरकारी विज्ञापन के बजट में 10 प्रतिशत व लघु मध्यम समाचार पत्रों को 90 विज्ञापन बजट आवंटित किया जावे।
5. प्रेस मान्यता व विज्ञापन मान्यता की शर्तों को शिथिलता देते हुए सरलीकरण किया जाये ताकि सभी नियमित समाचार पत्रों करे विज्ञापन व प्रेस की मान्यता मिल सके।
6. मान्यता प्राप्त समाचार पत्रों के प्रेस मान्यता प्रतिनिधियों को एक-एक सरकारी आवास आवंटित किया जावे।
7. मीडिया से सम्बन्धित सभी संगठनों को कार्यालय संचालन के लिए एक-एक सरकारी कार्यालय केन्द्र व प्रदेश सरकारों से दिलाया जाये।
8. मीडिया संगठनों के कम से कम 5 पदाधिकारियों को रेल्वे का नि:शुल्क पास अटेन्डेन्ट के साथ सभी दर्जा का और सभी ट्रेनों का रेल्वे मंत्रालय पास पूरे देश का दिलाया जाये, ताकि यह पदाधिकारी देश में भ्रमण कर सरकारी योजनाओं को अपने सम्बन्धित समाचार पत्रों की जानकारी देकर प्रकाशित करा सके। जिससे कि देश संगठित, विकसित व शक्तिशाली राष्ट्र बन सके। मैं आभारी रहूंगा के कृत कार्यवाहीं से मुझे भी अवगत कराने की कृपा करें। भवदीय, शिव शंकर त्रिपाठी, राष्ट्रीय अध्यक्ष

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