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Wednesday, July 20, 2011

कमाऊपूत है करोड़पति खाद्य निरीक्षक नागराज

बैतूल // राम किशोर पंवार (टाइम्स ऑफ क्राइम) प्रतिनिधि से सम्पर्क : 74895 92660
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5 साल से पदस्थ अधिकारी के जिम्मे है पूरे जिले का खाद्य विभाग
बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतों के लिए अधिकृत बैतूल जिले की विभिन्न संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों का कड़वा सच अब लोगों के सामने आने लगा है। जिले में आदिम जाति सहकारी समितियों के माध्यम से संचालित एवं शहरी क्षेत्र में गैर आदिवासी सहकारी समितियों की दुकानों में होने वाली भर्राशाही का यह आलम है कि दुकानो में मौजूद शिकायत एवं निरीक्षण पुस्तिका को चुहे खा गए लेकिन उन पर निरीक्षण एवं शिकायते तक दर्ज नहीं है। बैतूल जिला कलैक्टर कार्यालय में कलैक्टर की जब से जनसुनवाई शुरू हुई है तबसे आज तक कोई भी भी ऐसा मंगलवार नहीं आया जिस दिन कोई न कोई गांव का व्यक्ति सार्वजनिक वितरण प्रणाली की शिकायते लेकर न खड़ा हुआ हो।

सवाल यह उठता है कि जब राशन दुकान में शिकायत पुस्तिका रखी जाती है तो वह किस काम की इस सवाल का जवाब भी कम चौकान्ने वाला नहीं है। जानकार सूत्रों के अनुसार अभी तक बैतूल जिले की प्राय: सभी ग्रामा पंचायतो की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों में से अधिकांश के पास शिकायत या निरीक्षण पुस्तिका नहीं है। जिनके पास पुस्तिका देखने को मिली उसमें वर्ष 2009 से लेकर आज तक कोई भी दुकान निरीक्षण की टीप नहीं अंकित की गई है। बैतूल जिले में एक जिला खाद्य अधिकारी एक सहायक जिला खाद्य अधिकारी तथा तीन खाद्य निरीक्षक के पद है जो कि उस समय के है स्वीकृत पद है जब बैतूल जिला तीन तहसीलो में बटा था। आज बैतूल जिले में तहसीलों की संख्या बढऩे के बाद भी नई पदस्थापना नहीं हुई। जिले में वर्तमान दो खाद्य निरीक्षकों के पास औसतन तीन जनपदे होनी चाहिए लेकिन जिले का कड़वा सच यह है कि मौजूदा समय में मात्र दो खाद्य निरीक्षक है रहने के बाद भी एक आफिस अटैच है तथा दुसरा का पूरे जिले में अपना साम्राज्य फैला हुआ है।

विभागीय जानकारी यह है कि वर्तमान समय में जिला सहायक खाद्य अधिकारी आशिष दुबे का तबाइला बैतूल से छिंदवाड़ा हो चुका है। तथा खाद्य निरीक्षक नागराज अपने नाम एवं उपनाम के अनुसार कार्य कर रहे है। बैतूल जिले में दो सौ से अधिक सेल्समेन नहीं है तथा उनके पास खाद , बीज और क्रय-विक्रय के अलावा ढेर सारे बिगार के काम करने के बाद वे प्रति सप्ताह दो दिन खुलने वाली दुकानो को माह में मात्र दो दिन ही खोल रहे है। गांव में इस समय पहले आओं और पहले पाओं का सिद्धांत अपनाया जा रहा है। माह में मात्र एक या दो दिन खुलने वाली दुकानों के पीछे तर्क भी कुछ कम चौकान्ने वाला नहीं है। जिले में एक सेल्समेन के पास कम से कम तीन या चार दुकाने है। पूरा सप्ताह का उसका विजीट कार्यक्रम सरकारी रिकार्ड में दर्ज है लेकिन सप्ताह के दिन उक्त सेल्समेन अपनी दुकान पर मौजूद ही नहीं रह पा रहा है।

कई स्थानों पर तो यह स्थिति है कि दुकानदार का बेटा उसकी दुकानो को संचालित कर रहा है। जिले के खाद्य विभाग के आला अधिकारी के पास पूरे जिले में होने वाली आन लाइन और आफ लाइन की बैठको में भाग लेने के अलावा एक मात्र कार्य यह है कि जिले की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानो से प्रति माह पहले सप्ताह दुकानो के हिसाब से पांच सौ रूपए प्रति माह की अनाधिकृत वसूली करना है। इस वसूली के पीछे का कड़वा प्रमाण यह है कि जिले के किसी भी खाद्य विभाग के अमले या किसी भी सरकारी जांच अधिकारी द्वारा एक भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान का न तो निरीक्षण किया और न निरीक्षण पुस्तिका पर अपनी कोई टीप लिखी है।

बीते लगभग दो - ढ़ाई सालो से किसी भी पुस्तिका पर किसी भी जांच अधिकारी के निरीक्षण नहीं है। ऐसे में फिल्ड वर्क के बहाने क्या सिर्फ राशन की दुकानो से प्रति माह जिला खाद्य अधिकारी के नाम पर एक हजार रूपए, खाद्य निरीक्षक के नाम पर पांच सौ रूपए तथा स्टाफ के नाम पर पांच सौ रूपए की चौथ वसूली के चलते बैतूल जिला खाद्य विभाग के आला अफसरों एवं छोटे कर्मचारियों एवं अधिकारियों के लिए मात्र चारागाह बना हुआ है। बैतूल जिला मुख्यालय पर इस अवैध वसूली के पीछे का तर्क भी कम चौकान्ने वाला नहीं है। जब भी ऊपर शिकवा-शिकायते होती है तो कहा जाता है कि उक्त वसूली चौथिया कांड के शिकार बने पारधियों के परिवारो पर खर्च किया जाता है।

अकेले सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से प्रति माह पूरे विभाग को चार से पांच लाख रूपए की कमाई होती है। जिसके एवज में सेल्समेन भी अपनी जेब के खर्च की पूर्ति करने के लिए गरीबो को मिलने वाला राशन दुकानो पर पहुंचने के पहले ही साहुकारों एवं व्यापारियों को बेच देता है। इन सबसे हट कर सबसे बड़ा सच यह है कि गरीबो के घरो में चिराग जलाने के लिए मिटट्ी के तेल के लाले पड़ रहे है लेकिन जिले के अधिकांश चौपहिया वाहन केवल मिटट्ी के तेल के भरोसे चल रहे है।

जिले के दबंग अफसरो की दंबगाई भी खाद्य विभाग के सामने भिगी बिल्ली जैसी हो जाती है क्योकि उपकृत होने वालों में कहीं न कहीं इन अधिकारियों पर ऊंगलियां उठ जाती है। बैतूल जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत छै माह का राशन वितरण किया गया है जिसे दुकानों पर सेल्समेनो द्वारा बीपीएल और ए वाय के कार्डो पर दिया गया लेकिन दुकान के ठीक दो गज की दूरी पर खड़ा व्यापारी उस राशन को दुगने दामो पर उन्ही कार्ड धारको से खरीद कर अपने माल गोदामो को भरते जा रहा है। जांच या कार्रवाई के नाम पर पूरे दो साल में मात्र एक दर्जन भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानो के सेल्समेनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकी है जबकि अभी तक जिला कलैक्टर की जन सुनवाई में दर्ज शिकायतों में चार हजार से अधिक शिकायते बीते दो वर्षो में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लेकर जिला मुख्यालय तक पहुंची है।

पूरा विभाग दो अधिकारियों के ऊपर आश्रित है। एक अनुसूचित जाति वर्ग से है दुसरा जनजाति वर्ग से जिसके चलते आम आदमी क्या जनप्रतिनिधि की भी हिम्मत नहीं हो पाती है कि वे उन दोनो अधिकारियों से मुंह जबानी कर सके जो कि बैतूल जिले में फेविकोल के जोड़ से चिपके हुए है। वर्तमान समय में बैतूल जिले की बद से बद्तर हो चुकी सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर नागराज नामक खाद्य निरीक्षक का सर्वाधिकार सुरक्षित है। ऐसे समय में जब खाद्य मंत्री पारस जैन प्रदेश की भाजपा सरकार की ओर से दावा करते है कि प्रत्येक दुकानों की निगरानी की जाएगी उस दावे की पोल अपने आप खुल जाती है।

एक अधिकारी कोई जिन्न या वैताल तो है नहीं कि वह पूरी जगह प्रगट होकर दुकानों पर निगरानी रखे वह भी जिले की 558 ग्राम पंचायतों के 12 सौ से अधिक गांवो पर जो आज भी पहुंच विहीन मार्ग पर बसे हुए है। साल के अंत तक फूड फार योजना के लागू हो जाने के पूर्व ही जबरदस्त लूट खसोट मची हुई है। जिले का खाद्य विभाग जिसके पास गैस, प्रेट्रोल पम्प, मिटट्ी के तेल के थोक विके्रत्रा, थोक एवं फुटकर अनाज व्यापारी आते है उनसे केवल वसूली का काम हो रहा है। यदि राज्य सरकार का आर्थिक अपराध अनुवेषण विभाग, आयकर विभाग, सीबीआई, बैतूल जिले के एक मात्र एक विभाग के कार्यालय एवं अधिकारियों के निवास पर माह के पहले सप्ताह में यदि छापामार कार्रवाई करता है तो कम से कम पचास करोड़ से अधिक की नगद राशी और करोड़ों की बेनामी सम्पत्ति मिल सकती है। जिसमें नागराज नामक अधिकारी की पिछले पांच सालों से तैनाती भी कम चौकान्ने वाली कमाई को उजागर कर सकती है।

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