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Monday, August 8, 2011

सूर्यपुत्री मां ताप्ती अब फेस बुक पर



बैतूल // रामकिशोर पंवार
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सूर्यपुत्री मां ताप्ती अब सोशल वर्किंग नेटवर्कींग की बेव साइट फेस बुक पर उपलब्ध रहेगी। पूरी दुनिया तक में पुराणो एवं ग्रंथो तथा वेदो में छपी कहानियों के साथ भगवान सूर्य नारायण की पुत्री मां ताप्ती का यशगान दुनिया भर के 75 करोड़ फेस बुक के सदस्यों तक पहुंचने जा रही है। इस संदर्भ में बैतूल जिले में कार्यरत मां ताप्ती जागृति मंच द्वारा शुरू की गई सार्थक पहल के तहत अब मां सूर्यपुत्री ताप्ती की सचित्र गाथा मित्रता मंच फेसबुक पर ताप्ती मैया के नाम से शुरू की जा चुकी है। मां ताप्ती जागृति मंच की ओर से बकायदा पूरी जानकारी एवं सचित्र फेस बुक पर एकाऊंट खोला गया है जिसके पीछे मंशा है कि मां ताप्ती मी महिमा जन - जन तक पहुंचे। धरती पर गंगा के आने के पूर्व रखी गई शर्तो के मुताबिक ताप्ती महात्म को समाप्त करने के लिए देव ऋषि नारद द्वारा ताप्ती का महात्म चुरा ले जाने के बाद से धरती से ताप्ती का महात्म विलुप्त हो गया था।

हालाकि उक्त चोरी के लिए नारद को कोढ़ एवं कुष्ठ रोग भी हुआ था जो मां ताप्ती की जन्म स्थली मुलताई स्थित नारद कुंड में स्नान एवं नारद टेकड़ी पर तप के बाद समाप्त हो गया था। अब उसी ताप्ती महात्म को सोशल नेटवर्किंग वेब साइट के माध्यम से जन - जन तक पहुंचाने के लिए फेस बुक एवं ट्विटर का भी सहारा लिया गया है। tapatimaiya@gmail।com के माध्यम से फेस बुक पर बने इस परिचय वेब पेज पर मां सूर्य पुत्री ताप्ती का पूरा परिवार परिचय है। दोनो माता संध्या एवं छाया के साथ चार भाईयों शनिदेव , यमदेव , अश्विनी कुमार , मानव उर्फ मनु तथा बहने भर्दा एवं यमुना का भी परिचय है। मां ताप्ती के पति राजा सवरण एवं पुत्र कुरू के अलावा पिता भगवान सूर्य नारायण को भी ताप्ती जी के परिवार में शामिल किया गया है। अभी तक तीन सौ से अधिक लोगो ने मित्रता का प्रस्ताव भेजा था जो स्वीकार हो चुका है तथा रोज ताप्ती को लेकर जिज्ञासु व्यक्ति आन लाइन नेटवर्किंग एवं चैट के माध्यम से ताप्ती जी के बारे मे जानकारी ले रहे है। वैसे बैतूल जिले के मुलताई से निकलने वाली आदिगंगा कहलाने वाली सूर्यपुत्री मां ताप्ती का बैतूल जिले में 250 किलोमीटर का बहाव क्षेत्र है तथा वह 500 किलोमीटर गुजरात , महाराष्ट्र ,मध्यप्रदेश में बहती है। ताप्ती जी की वेब जानकारी को लेकर मां ताप्ती जागृति मंच की ओर से एक दर्जन से अधिक ब्लाग तथा वेबपोर्टल लिंकअप को सचित्र जानकारी से जोड़ा गया है।

देश के सबसे बड़े समाचार पत्रो मे भी ताप्ती जागृति मंच आने ब्लाग बना कर सूर्यपुत्री ताप्ती की सचित्र जानकारी एवं पुराणो में अंकित कथा का सार देने जा रहा है। हालाकि फेस बुक पर शिवपुत्री मां नर्मदा का एकाऊंट बना हुआ जिसमें 200 लोगो का मित्रता प्रस्ताव है। दोस्ती के सबसे बड़े प्लेटफार्म फेसबुक पर लाग इन कीजिए और मां ताप्ती ताप्ती मैया के नाम से तथा गणपति बप्पा तैयार हैं आपसे मिलने के लिए। दुनियाभर में 75 करोड़ लोगों का मित्रता मंच फेसबुक पर ताप्ती मां के साथ - साथ गणपति बप्पा भी अवतरित हो गए हैं।

फेसबुक पर अन्य देवी-देवताओं की प्रोफाइल मौजूद है। इसी तरह शिर्डी के साई बाबा और तिरूपति बालाजी की फ्रेंडशिप भी फेसबुक पर देखी जा सकती है। देवी-देवताओं की फेसबुक मित्र मंडली में श्री माता वैष्णो देवी चार हजार से ज्यादा मित्रों के साथ सबसे आगे हैं। हमारे देश में सबसे पहले धरती पर अवतरीत मां सूर्यपुत्री ताप्ती फेस बुक पर अवतरीत पर नदी है जिसे गंगा एवं नर्मदा समान दर्जा प्राप्त है। पुराणो में दी गई कथा के अनुसार गंगा स्नान , नर्मदा दर्शन तथा ताप्ती स्मरण समान पुण्य लाभ है। फेस बुक पर ताप्ती मैया के आने के बाद अब 75 करोड़ लोगो के अलावा टिवट्र सहित अन्य नेटवर्किंग पोर्टल पर भी मां ताप्ती आन लाइन पूजा एवं दर्शन के लिए उपलब्ध रहेगी। मा ताप्ती जागृति मंच के संस्थापक रामकिशोर पंवार के अनुसार बैतूल जिले से मां ताप्ती को लेकर एक दर्जन से अधिक वेब पोर्टल का पंजीयन करवाया जाएगा ताकि ताप्ती मैया के एक दर्जन से अधिक नामों के साथ मां ताप्ती के चौबिस घंटे भक्त दर्शन लाभ ले सकते है।

जहां श्रावण मास में ताप्ती करती है चौबिस घंटे भगवान
अर्धनारीश्वर के बारह ज्योर्तिलिंगो का जलाभिषेक
बैतूल,(रामकिशोर पंवार): पूरे देश - दुनिया में ऐसी कोई भी नदी या सागर नही है जो कि पूरे बारह ज्योर्तिलिंगो का एक साथ एक समय में अपने जल से जलाभिषेक करे । ऐसा कर पाना भी संभव नहीं है क्योकि बारह ज्योर्तिलिंग किसी एक सागर या एक नदी किनारे नहीं है। यदि क्षिप्रा के किनारे बाबा महाकाल है तो नर्मदा के किनारे श्री ओमकारेश्वरम् जी विराजमान है। भागीरथी गंगा के किनारे बाबा विश्वनाथ है तो सागर के किनारे है श्री रामेश्वरम् जी है। ऐसे में कोई इस छोर पर है तो कोई उस छोर पर है। इन सबसे हट कर पूरे देश -दुनिया में मां सूर्य पुत्री ताप्ती के किनारे स्थित शिवधाम में बारह ज्योर्तिलिंगो का होना अपने - आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह कोई मानव निर्मित नहीं है बल्कि भगवान विश्वकर्मा जी ने स्वंय श्री रामेश्वरम् जी की स्थापना के पहले ही सूर्यपुत्री मां ताप्ती के किनारे पत्थरो पर ऊकेरे गए वे बारह ज्योर्तिलिंग है जो कि कई युगो , काल ,सदियो और वर्षो के बाद बाद भी ताप्ती के किनारे पत्थरों पर ज्यों के त्यों दिखाई दे रहे है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह भी है कि मानवीय सोच के चलते कुछ लोगो द्वारा पृथक रूप से बारह ज्योर्तिलिंगो की स्थापना भी की गई लेकिन प्रकृति एवं स्वंय मां ताप्ती ने उनका मूल स्वरूप ही विकृत कर डाला। कई बार असली के बदले नकली बनाए गए बारहलिंगो को ताप्ती का जल अपने साथ या तो बहा ले गया या फिर से खडिंत कर डाला। ऐसे में आज भी रामयुग के प्रमाण बने ए वो बारह ज्योर्तिङ्क्षलंग है जो कि भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने अपने 14 वर्षो के वनवास काल में मां ताप्ती के किनारे अपने तीन दिन के विश्राम काल के दौरान बनवाये थे। भगवान श्री राम बाबा भोलेनाथ के उपासक है इस कारण उन्होने अर्धनारीश्वर भगवान की अपनी पूजा के लिए ताप्ती जी के किनारे बारह ज्योर्तिलिंगो की स्थापना करवा कर उनका ताप्ती से जलाभिषेक किया। यहां पर भगवान श्री राम की उपस्थिति का एक प्रमाण सीता स्नानागार भी है जहां पर मां सीता ने ताप्ती के जल से स्नान किया था। यह सीता स्नानागार भी ताप्ती के ठीक किनारे पत्थरो पर बनवाया गया है। मां ताप्ती जागृति मंच की प्रेस विज्ञिप्त के अनुसार इस स्थान को शिवधाम बारहलिंग कहा जाता है जहां पर प्रत्येक मास की एकादश तीथी पर पूरे तैतीस कोटी के तैतीस करोड़ देवी - देवता एक साथ एक समय पर मां सूर्यपुत्री आदिगंगा कही जाने वाली ताप्ती के पावन जल में स्नान ध्यान करने के बाद भगवान आशुतोष का ताप्ती के पावन जल से जलाभिषेक करते है। इन सबसे हट कर सबसे चौकान्ने वाली चमत्कारिक बात यह है कि पूरे श्रावण मास भर मां ताप्ती स्वंय अपने जल से इन बारह ज्योर्तिङ्क्षलगो का प्रतिदिन नहीं बल्कि पूरे चौबिस घंटे जलाभिषेक करती रहती है। श्रावण मास में सोमवार के दिन भगवान शिव का दुग्ध एवं जल से जलाभिषेक शुभ माना जाता है खास कर बारह ज्योर्तिङ्क्षलंग पर लेकिन एक साथ पूरे पर कर पाना संभव नहीं है क्योकि ज्योर्तिङ्क्षलग है बारह और श्रावण मास में सोमवार चार या पांच से अधिक संभव नहीं है। ऐसे मे ताप्ती के किनारे स्थित शिवधाम बारहलिंग ही सारी समस्या का एक मात्र हल है। ताप्ती नदी किनारे स्थित शिवधाम बारहलिंग में एक साथ इन बारह ज्योर्तिङ्क्षलंगो का हर सोमवार जलाभिषेक संभव है यदि नदी के इस छोर से आप उस छोर पर मां ताप्ती के जल में समाहित इन बारह ज्योर्तिलिंगो को जल अर्पण करे।
भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के गृह जिले अमरावती को जाने वाले बैतूल अमरावती अंतरराज्यीय मार्ग पर ताप्ती घाट से मात्र 4 किलामीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत केरपानी के ठेसका गांव के पास स्थित शिवधाम बारहलिंग का धार्मिक महत्व गुलाम भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जब ज्ञात हुआ तो उन्होने ने भी अपने नजरबंद हुए तीन दिवसो को मां ताप्ती के किनारे स्थित शिवधाम बारहलिंग में व्यतीत किया और तापती स्नान कर भगवान भोलेनाथ की पूजा - अर्चना की थी। दक्षिण भारत का द्वार कहे जाने वाले बैतूल जिले में स्थित इस स्थान पर स्वंय लंकाधिपति के पुत्र मेघनाथ ने भी शिव उपासना की थी। त्रेतायुग में मेघनाथ के साम्राज्य का हिस्सा रहे इस क्षेत्र में भगवान शिव के बाद यदि कोई पूजा जाता है तो वह सिर्फ मेघनाथ , रावण , कुंभकरण ही है। इस क्षेत्र के हर गांव में मेघनाथ और शिवालय मिल जाएगें। बैतूल जिले में चार माह तक पूरे जिले में शिव परिवार की पूजा अर्चना श्रावण मास से शुरू हो जाएगी। पहले शिव पूजा , गणेश पूजा , नाग पंचमी , नौ दुर्गा पुजा , काली पूजा , पोला पर्व पर नंदी पूजा , और अंत में कार्तिक मास में भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। संयोग देखिए कि कार्तिक मास पर ताप्ती के किनारे तीन दिवसीय विशाल मेले का आयोजन भी होता है। पूरे चार मास तक ताप्ती के जल में जलमग्र रहने वाले बारह ज्योर्तिलिंग ताप्ती जल से बाहर हो जाते है और कार्तिक मास में एक बार फिर शिव पूजा होती है। सूर्य पुत्री ताप्ती की सबसे अधिक विशेषता यह है कि वह धरती पर सबसे पहले आई थी तथा उसके किनारे ही सबसे अधिक शिवालय है। बैतूल जिले के पावन शिवधाम बारहलिंग के बारह ज्योर्तिलंगो को डाँ पंडित कांतु दीक्षित देश भर के बारह ज्योर्तिलिंगो का केन्द्र बताते है। ज्योतिषाचार्य पंडित कांतु दीक्षित के अनुसार किसी भी एक पवित्र नदी या सागर के किनारे सब कुछ मिल पाना संभव नहीं है लेकिन ताप्ती इन सबसे हट कर अलग है क्योकि यहां पर आने के बाद मांगने की जरूरत नहीं है स्वंय अपने आप मिल जाता है। ताप्ती में काल सर्पदोष से लेकर साढ़े साती शनि की महादशाओं की शांती भी अपने आप हो जाती है। यह बात अलग है कि लोग अपने मन की शांती के लिए पूजा पाठ करवाते है। पंडित कांतु दीक्षित का तर्क यह है कि भगवान अर्धनारीश्वर स्वंय मां ताप्ती के रोम - रोम में बस रहे है तब उनका जल का स्पर्श ही सारे कृष्टो से मुक्ति दिलाता है। विद्धवान ज्योतिषाचार्य कांतु दीक्षित कहते है कि दक्षिण भारत शिव उपासक युगो और सदियो से रहा है लेकिन शिव का उपासना एवं साधना हिमालय के बाद सबसे अधिक मां सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे हुई है। श्री दीक्षित के अनुसार तपती - तापती - तापी और ताप्ती का शाब्दिक अर्थ ही मेरे दावे को प्रमाणित करता है। यहां पर केवल जप - तप हुए है। सबसे अधिक जप - तप के कारण ही लोगो को यहां पर मोक्ष की प्राप्ति हुई है। श्रावण मास में ताप्ती के स्नान का अपना अलग महत्व है।

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