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Thursday, October 25, 2012

अवधेश बजाज के चरित्र हनन और हत्या की साजिश


किसने रची अवधेश बजाज के चरित्र हनन और हत्या की साजिश स्वयं बता रहे हैं अवधेश बजाज

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तेजस्वी पत्रकार अवधेश बजाज और यशवंत

विषकन्या ने पहले लगाए फोन और फिर किए एसएमएस, होटल निसर्ग में बुलाया, 
पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 12 दिन में ट्रेस किया लड़की का मोबाइल नंबर

27 साल के पत्रकारिता जीवन में मैंने इस तरह का निष्कृष्टतम षड्यंत्र मध्यप्रदेश की राजनीति में तो नहीं देखा। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्यामाचरण शुक्ल और स्व. अर्जुन सिंह सहित विद्याचरण शुक्ल और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के खिलाफ लिखा। बिल्डर और ड्रग माफिया से लेकर तमाम नेताओं के खिलाफ खबरें लिखीं। मानहानि के मामले मुझ पर जरूर लगे, लेकिन कभी किसी ने मेरी हत्या की साजिश या मेरे चरित्र हनन का षड्यंत्र नहीं रचा।

व्यक्ति की सदाशयता और मौन रहने का भाव कभी-कभी नुकसानदेह होता है। मेरे साथ भी पिछले चार माह में ऐसा ही कुछ गुजरा। सत्ता के साकेत में बैठे हुए लोग, सत्ता-प्रतिष्ठानों के डकैत और बिल्डर तथा शैक्षणिक माफिया ने यह सोचा होगा कि बिच्छू डॉट कॉम का राष्ट्रीय संस्करण शुरू हो गया है तो यह अच्छा मौका है, उससे बदला लेने का। विगत साढ़े चार वर्षों में उपभोक्तावाद के इस युग में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वजनदार पदाधिकारियों और सत्ता के साकेत में बैठे हुए लोगों के कहने पर मैंने अपने अखबार का विस्तार किया तो मेरी लेखनी की धार का पैनापन बोथरा हो गया। ऐसे समय में जब मैं मौन के कालखंड में चला गया तब षड्यंत्रों का सिलसिला शुरू हो गया।

षड्यंत्र के सिलसिले तो साढ़े चार साल से चल रहे थे, लेकिन विगत दो माह से ये नंपुसक लोग एक विषकन्या के कंधे का इस्तेमाल कर मुझे फोन पर उस विषकन्या के जाल में फंसाने का प्रयास कर रहे थे। मैंने अपने निकटस्थ पुलिस के आला अफसरों से यह बात शेयर की। उन्होंने अपने मातहत काम करने वाले क्राइम ब्रांच के लोगों को सक्रिय किया। बारह दिन की अथक मेहनत के बाद 12 अक्टूबर 2012 को उक्त क्राइम ब्रांच की टीम ने भोपाल स्थित ग्लोबस हॉस्पिटल में सुबह साढ़े दस बजे आकर मुझे लिखित रिपोर्ट दी। वह रिपोर्ट बड़ी चौंकाने वाली थी। विषकन्या का जो पहला फोन मैंने रिसीव किया, वह आज से डेढ़ माह पूर्व आया था। वह बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, होशंगाबाद रोड से आया था। उसके बाद यह सिलसिला अनवरत चलता रहा।

जिस नंबर से वह फोन आया था, मैंने अपने मोबाइल पर उस नंबर के लिए रांग नंबर लिख दिया और फिर मैंने उस नंबर के फोन रिसीव ही नहीं किए। उसके बाद जो फोन आया, वो रिवेयरा टाउन, माता मंदिर रोड इलाके से आया था। इसके बाद के सात कॉल्स, जो रात दस से रात एक बजे के बीच आए, वह फोन सांची, विदिशा और भानपुर रोड़ इलाके से किए गए थे। उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ एसएमएस भेजने का। उक्त विषकन्या ने यह बताया कि वह मुझे अच्छी तरह से जानती है और मेरी लेखनी पर फिदा है। विषकन्या ने बताया कि वह इंदौर में पत्रकार है। वह अपना नाम स्नेह दीक्षित बता रही थी। यहां तक का मैसेज तो मुझे ठीक लगा। फिर जो एसएमएस आए वे डबरा, भिण्ड, उरई और उन्नाव से आए। इन सभी एसएमएस में उसने लिखा कि मैं अभी इंदौर में हूं, कल भोपाल पहुंच जाऊंगी, आप मुझे होटल निसर्ग में मिलिए। सिर्फ एक बार आप मुझसे मिलें, आपको मजा आ जाएगा। इसके आगे जो एसएमएस आए, वो इतने अश्लील थे कि जिसे लिखने में मुझे शर्म आ रही है। निश्चित तौर पर उक्त लड़की कोई व्यवसायिक कॉल गर्ल ही होगी, ऐसा क्राइम ब्रांच वालों का कहना है। क्राइम ब्रांच की टीम ने बारह दिन में लड़की के मोबाइल नंबर ट्रेस किए कि उसने किन-किन नंबरों पर बात की। ये सभी नंबर डबरा, भिण्ड, उरई और उन्नाव के थे। क्राइम ब्रांच की टीम डबरा से उन्नाव तक गई तो उन्हें यह ज्ञात हुआ कि ये सभी लोग पेशेवर अपराधी एवं शार्प शूटर हैं।

मैंने अपने 27 साल के पत्रकारिता जीवन में इस तरह का निष्कृष्टतम, घटिया षड्यंत्र कम से कम मध्यप्रदेश की राजनीति में तो नहीं देखा। सत्ताइस सालों में मैं सबसे कम उम्र का संपादक बना, जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रीद्वय स्वर्गीय श्यामाचरण शुक्ल, स्वर्गीय अर्जुन सिंह सहित विद्याचरण शुक्ल और दिग्विजय सिंह जैसे राजनेताओं के खिलाफ लिखा। श्यामा भैया, विद्या भैया और अर्जुन सिंहजी जब भी भोपाल आते थे तो मुझे बुलाते थे, उनके खिलाफ लिखने के बावजूद। यह उनकी राजनीतिक सदाशयता थी। सत्ताइस साल में मैं पांच छोटे तथा बड़े अखबारों का संपादक रहा। बिल्डर और ड्रग माफिया से लेकर तमाम नेताओं के खिलाफ खबरें लिखीं। मानहानि के मामले मुझ पर जरूर लगे, लेकिन कभी किसी राजनेता ने मेरी हत्या की साजिश या मेरे चरित्र हनन का षड्यंत्र नहीं रचा। आपको स्मृति विश्राम न हो इसलिए मैं आपको बता देना चाहता हूं कि इससे पूर्व कांग्रेस नेत्री सरला मिश्रा जब रहस्यमय ढंग से जल गई थीं, तब मैं भोपाल एयरपोर्ट पर नवभारत के मालिक, पूर्व राज्यसभा सदस्य श्रद्धेय प्रफुल्ल माहेश्वरी के साथ उतरा।

मैंने देखा कि वहां बहुत सारे कांग्रेसी नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ है। सबसे पहले मुझे कांग्रेस के नेता पीसी शर्मा और ईश्वर सिंह चौहान मिले। मैंने उनसे पूछा कि भाई इतने कांग्रेसी क्यों इकट्ठा हैं?
तब उन्होंने बताया कि सरला मिश्रा ने आत्मदाह कर लिया है। उसे स्टेट प्लेन से दिल्ली ले जाया जा रहा है। तब अर्जुन सिंह तिवारी कांग्रेस में थे और दो दिन बाद ही उनकी कांग्रेस में वापसी हुई तथा श्यामला हिल्स स्थित मुख्यमंत्री निवास पर विधायक दल की बैठक हुई। उसके बाद अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह, जो वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, ने अप्सरा होटल पर विधायकों एवं पत्रकारों का भोज रखा था। भोज शुरू हो चुका था। मैं करीब बीस मिनट लेट पहुंचा। राहुल भैया की नजर मुझ पर पड़ी। उन्होंने कान में मुझसे कहा कि दाऊ साहब ने अंदर क्या बोला है वह मैं तुम्हें नोट करवा रहा हूं। तो हम दोनों अप्सरा होटल के सामने लगे एक पेड़ के पीछे गए। उन्होंने मुझे कुछ पॉइंट ब्रीफ किए और कहा कि चुनिंदा पत्रकारों को यह ब्रीफिंग कर दो।

तत्कालीन गृह मंत्री चरणदास महंत ने हम दोनों को चर्चा करते हुए देख लिया। जब मैं वापस लौटा तो महंत, नर्मदा प्रसाद प्रजापति और प्रेमनारायण ठाकुर भोजन कर रहे थे। चरणदास ने प्लेट नीचे रखी और मुझसे कहा- अवधेश भाई, आपसे कुछ बात करनी है। वे मुझे थोड़ी दूर ले गए और उन्होंने मुझसे कहा राजा साहब (दिग्विजय सिंह) कह रहे हैं कि हत्या की रात अवधेश बजाज सरला के साथ शराब पी रहा था।

सरला मिश्रा कांड में भी हुई थी फंसाने की कोशिश, लेकिन सफल नहीं हुए थे साजिशकर्ता
मेरे बहाने से दिग्विजय सरकार ने दिए थे 110 पत्रकारों को घर खाली करने के नोटिस

दिग्विजय सिंह की सरकार ने 110 पत्रकारों के मकान खाली करने के नोटिस दिए थे। किसी और का तो हुआ नहीं, लेकिन मेरा सामान जरूर संपदा संचालनालय ने सड़क पर फिंकवा दिया। इसी टीस ने मुझे शराबी बनाया। 9 अक्टूबर 2012 को डिटेक्ट हुआ कि मेरा पैन्क्रियाज खराब हो चुका है। यह रिपोर्ट भी आई कि मुझे लीवर सिरोसिस हो गया है। खैर, मेरा परिवार, मेरे शिष्य और मेरे जीवन के युद्ध तथा संघर्ष के साथी आज भी मेरे साथ हैं। न जीवन मृत्यु से ऊपर है और न मृत्यु जीवन से ऊपर है। सबसे बड़ी काल और परिस्थिति है।

उसको बताना कि उसका नाम भी एफआईआर में आ रहा है। यह सुनकर कुछ देर के लिए मैं स्तब्ध था। मैंने अपने आप को संभाला फिर चरणदास से कहा- यह बात कहना ही है तो राजा साहब मुझसे कहें। तो उन्होंने कहा कि आप खुद ही जाकर बात कर लें। तब राजा साहब अर्जुन सिंह, उर्मिला सिंह और हजारीलाल रघुवंशी से चर्चा में मशगूल थे। सर्वप्रथम मैंने जाकर अर्जुन ङ्क्षसह को नमस्ते किया और फिर राजा साहब से कहा कि आपसे बात करनी है। वे प्लेट लेकर कुछ दूर आए। मैंने कहा- चरणदासजी ने मुझसे कुछ कहा है, क्या आपने ऐसा बोला है? इस पर दिग्विजय सिंह बोले- तो उसमें झूठ क्या है? सरला के ड्राइंग रूम से शराब की दो बोतल मिली है एक खाली और एक आधी।

इंटेलिजेंस विभाग के शर्मा का कहना है कि उस रात सरला के घर के सामने लाल रंग की मारुति कार खड़ी थी। जिसका नंबर 470 था। यह मेरी ही कार का नंबर था। संयोग से मेरी जेब में विमान के जरिए दिल्ली से भोपाल आने का बोर्डिंग कार्ड था। वह मैंने उन्हें बताया और कहा कि मैं श्री प्रफुल्ल माहेश्वरी के साथ दिल्ली में था। जब वे मेरी इस बात पर उत्तेजित होने लगे तो मैंने कहा- माफ कीजिए राजा साहब, जिस ब्रांड की बोतल आप बता रहे हैं वह मेरी औकात में नहीं आती है। मैं रेड नाइट पीता हूं, स्कॉच की मेरी औकात नहीं है। यह ब्रांड आपके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह का है।

यह कहकर जब मैं जाने लगा तो राजा साहब ने मुझसे कहा- इतना एटीट्यूड ठीक नहीं है। बुरी तरह फंसोगे। तुम ठीक नहीं कर रहे हो। यह सुनकर भी मैं पलटा नहीं और अप्सरा के गेट पर आया। वहां से कार ली और अपने गनमैन अवधेश सिंह भदौरिया के साथ चला आया। मेरी उम्र 29 साल की रही होगी, इसलिए बहुत घबराहट और असमंजस की स्थिति में गाड़ी चला रहा था। भीतर असमंजस था। मैं होटल जहानुमा पैलेस गया। पहले इच्छा थी कि व्हिस्की पी लूं, फिर बार टेंडर रईस मियां से मैंने ऐसा कोई ड्रिंक देने को कहा जिसकी गंध न आए और जिसे पीकर मैं ऑफिस जा सकूं।

उसने मुझे ब्लेडी मैरी पिलाई। उसका मुझे तीन गिलास तक कोई असर नहीं हुआ। मैंने पांच गिलास ब्लेडी पीकर पान पराग खाया और सीधे नवभारत ऑफिस पहुंचा। तब तक रात के साढ़े दस बज चुके थे और अखबार का पहला संस्करण जा चुका था। मैंने प्रथम पृष्ठ पर एक संपादकीय लिखा। जिसका हैडिंग था ‘सरल नहीं हैं सरला की मौत से जुड़े सवाल इस संपादकीय में मैंने मेरी और राजा साहब की कॉमन मित्र नीलम महाजन सिंह की उन बातों का पूरा वर्णन किया था जो उसने मुझे पूर्व में राजा साहब के चरित्र के बारे में बताई थीं। इससे बौखलाए दिग्विजय सिंह का अगली सुबह पौने आठ बजे मेरे घर के लैंडलाइन नंबर पर फोन आया। उस समय मैं सो रहा था और मेरी मां ने फोन रिसीव किया। राजा साहब ने मुझसे कहा ‘तुमने यह ठीक नहीं किया। फिर चार दिन बाद मैं एक सार्वजनिक कार्यक्रम में गुफरान-ए-आजम के पास बैठा था। उनके पास राजा के सर्वाधिक निकटस्थ महेश जोशी बैठे थे। जोशी ने मुझसे कहा ‘बेटा, ज्यादा उड़ो मत‘ और फिर मां की गाली देते हुए बोले ‘काम लग जाएंगे।

इसके पंद्रह दिन बाद इंदौर में मेरे छोटे भाई को सादी वर्दी में आए पुलिस वालों ने उठाया और उसे ले गए। तब मैं बैंगलोर गया हुआ था। पुलिस वालों ने जब मेरे भाई को दिन में उठाया तो उन्होंने कहा कि ‘तेरा भाई बहुत बड़ा आदमी है। वो बैंगलोर से लौटेगा तब तक तू जेल में होगा।‘ जानकारी मिलने पर मैंने आनन-फानन में बैंगलोर के मेरे मित्र कांग्रेसी नेता सुधींद्र रेड्डी से पैसे उधार लिए और वहां से विमान पकड़कर दिल्ली तथा दिल्ली से विमान पकड़कर भोपाल आया। यहां मैं होमगार्ड के तत्कालीन एडीजी दिनेश जुगरान से मिला और निवेदन किया कि मेरे भाई को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने मेरी मदद से साफ इनकार कर दिया। तब उनके चेहरे के एक्सप्रेशन से मुझे शासन की ताकत का अहसास हो गया। मैं इंदौर गया और वहां एसपी से लेकर टीआई तक सबसे मिला। इस बीच राजा ने मेरे बहाने और पत्रकारों पर दबाव डालने के लिए भोपाल के 110 पत्रकारों को मकान खाली करने का नोटिस थमा दिया। इस समय मैं नवभारत छोड़कर एक नए कांसेप्ट की न्यूज एजेंसी एक्सप्रेस मीडिया सर्विस में काम कर रहा था।

मैं शुक्रगुजार हूं इस एजेंसी के मालिक श्री सनत जैन का, जो संघर्ष के इस दौर में बराबरी से मेरे साथ खड़े रहे। वे बेचारे स्कूटर पर चलते थे और अपनी नई नीली मारूति उन्होंने मुझे दे दी। मैंने डेढ़ महीने इंदौर से भोपाल के चक्कर काटे और मेरे भाई को जेल से छुड़वा लिया। इस बीच मेरे सरकारी मकान से चोरी हो गई। चोर कपड़ों को छोड़कर सारी चीजें ले जा चुके थे। बचा था, घर का सोफा, एक पलंग और मेरे माता-पिता के तथा मेरे कपड़े। फिर एक दिन संपदा संचालनालय से एक गाड़ी आई और मेरे घर का सामान उठाकर बाहर फेंक दिया। मेरे पड़ोसी एमवीएम के तत्कालीन प्राचार्य प्रोफेसर श्रीवास्तव ने मुझे इसकी जानकारी दी। मैंने उनसे निवेदन किया कि वे मेरे आने तक सामान की देखभाल कर लें। सामान थोड़ा ही था। मैंने उसे मारुति के पीछे रखा और चल पड़ा। जब मैं जवाहर चौक से सीधे बाणगंगा की तरफ जा रहा था, तब मुझे जवाहर चौक पर कांग्रेस के नेता चौधरी राकेश सिंह मिल गए। उन्होंने देखा कि मेरी कार में पीछे की ओर मेरी मां का फोटो तथा घर के मंदिर का सामान रखा हुआ था। चौधरी राकेश सिंह के पूछने पर मैंने कहा ‘राजा ने घर का सामान बाहर फिंकवा दिया है।‘ उस समय चौधरी ने जवाहर चौक पर छोटा-सा एक होटल बनाया था। उन्होंने कहा कि ‘अवधेश भाई, और कोई व्यवस्था न होने तक आप मेरे होटल में ही ठहरिए।‘ मैं यायावर की तरह भटकता रहा। फिर राकेश चौधरी के होटल में मैं एक माह रहा। इस दौरान मैंने राजा को एक चिट्ठी लिखी। जिसमें मैंने सिर्फ यह लिखा था ‘राजा महलों में रहते हैं और महल हमारे दिलों में बसते हैं। अब तक आपने मेरे लिए जो कुछ किया, उसका साधुवाद। जिन 110 पत्रकारों के मकान खाली करने के लिए दिग्विजय ने नोटिस दिए थे, उनमें से 109 आज भी उन मकानों में डटे हुए हैं।‘ इस घटना की टीस ने मुझे बहुत शराबी बना दिया। राजा की दी गई एक टीस के कारण 9 अक्टूबर 2012 को यह डिटेक्ट हुआ कि मेरा पैन्क्रियाज खराब हो चुका है और इसी दिन यह रिपोर्ट भी आई कि मुझे लीवर सिरोसिस हो गया है।

खैर, मेरा परिवार, मेरे शिष्य और मेरे जीवन के युद्ध तथा संघर्ष के साथी आज भी मेरे साथ हैं। न जीवन मृत्यु से ऊपर है और न मृत्यु जीवन से ऊपर है। सबसे बड़ी काल और परिस्थिति है। मुझे दु:ख किसी बात का नहीं है न किसी से कोई गिला-शिकवा है।

शिवराज बताए, मेरे चरित्र हनन की साजिश क्यों रची गई..?

इंदौर, भोपाल या ग्वालियर के किसी विश्वविद्यालय से मुझे चरित्र प्रमाण-पत्र की जरूरत नहीं
विषकन्या के बुलावे पर होटल चला जाता तो ब्लैकमेल किया जाता या हत्या भी हो सकती थी

मेरा अंत:करण पूरी तरह ईमानदार है। यदि किसी को लगे कि यह बातें मैं आत्ममुग्धता के कारण कर रहा हूं, तो यह उसकी गलतफहमी है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था में इतना एरोगेंस आ गया है, इस कदर असहनशीलता तथा नफरत का भाव आ गया है कि इंदौर का एक मंत्री यह कहता है कि ‘माफी हमारे शब्दकोष में नहीं है। जब हम इंदौर में हिंदुस्तान टाइम्स की बिल्डिंग में घुसकर रिपोर्टर अनिल दुबे की पिटाई कर सकते हैं तो अवधेश बजाज की सुपारी देने में हमें कोई देर नहीं लगेगी।

ये तो जीवन के चंद किस्से हैं, जो मैंने आपको सुनाए हैं। ऐसे हजारों किस्सों से मेरा जीवन भरा हुआ है। मैं जो हूं, सो हूं। मुझे किसी बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय या जीवाजी विश्वविद्यालय की आवश्यकता नहीं है जो मुझे चरित्र का प्रमाणपत्र दे। मेरे खून में और मेरी पूरी विरासत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि में रची-बसी हुई है। लेकिन मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में भाजपाई जितने पाखंडी और संकुचित मानसिकता के हैं, कांग्रेसी उतने ही दमदार और दड़ेगम काम करने वाले हैं। दिग्विजय ङ्क्षसह जैसे अपवादों को छोड़कर। हालांकि, दिग्विजय सिंह द्वारा इतना बुरा किए जाने के बावजूद मैं पत्रकार के तौर पर उन्हें हिंदुस्तान की राजनीति का कृष्ण कहता हूं।

12 अक्टूबर 2012 को ही जब मैं जीवन और मृत्यु से जूझ रहा था, तब पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर मुझसे मिलने आए। आधे घंटे की चर्चा के बाद उन्होंने बीस लोगों के सामने मुझसे कहा ‘अवधेशजी, यह समय राम बनने का नहीं, कृष्ण बनने का है। केवल ईमानदारी और मूल्यों से जीवन नहीं चलता है।

मेरे अंत:करण में यह बात रात भर चलती रही। मैं सुबह साढ़े चार बजे तक जागता रहा। बारह तारीख की सुबह क्राइम ब्रांच ने मुझे जो रिपोर्ट दी, उससे मैं हतप्रभ था। मैं हाड़-मांस का एक बीमार आदमी, जिसे कोई अदना-सा गुण्डा भी मार सकता है, ऐसे में सत्ता प्रतिष्ठानों के गुंडों और बिल्डर-शैक्षणिक गिरोह के भड़वों ने मेरे चरित्र हनन के साथ मेरी हत्या की योजना क्यों बनाई? यह बात मैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी पूछना चाहता हूं। हालांकि वे बड़े भले, अटल बिहारी वाजपेयीवाद की परंपरा के नेता हैं। फिर भी लिखना मेरा काम है। वो शिवराज सिंह, जो पत्रिका अखबार के मालिक के साथ पेड न्यूज के खिलाफ लम्बे-चौड़े भाषण देते हैं। उन्हीं शिवराज सिंह के मानसहीन सलाहकार ‘गिरजा, छोटू और लाला यह तय करते हैं कि किस अखबार को कितना विज्ञापन देना है। मैं शिवराज से प्रश्न सिर्फ इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि बीते पूरे साढ़े चार साल में मैं उनके द्वार पर कभी कोई पैकेज मांगने, विज्ञापन मांगने या किसी ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए नहीं गया। यदि गया हूं तो वे बताएं।

मध्यप्रदेश में मेरी 27 साल की पत्रकारिता में कोई भी राजनेता यह कह दे कि अवधेश बजाज ने जीवन में कभी भी खबर के साथ समझौता किया हो या कभी किसी को ब्लैकमेल किया हो तो मैं श्यामला हिल्स के सामने खड़ा होकर साइनाइड खाकर आत्महत्या कर लूंगा। पत्रकारिता का एक दौर ऐसा था जब मेरे वरिष्ठ सहयोगी विजयदत्त श्रीधर ने मुझसे कहा था कि कभी भी बिलो द बेल्ट मत लिखना। मैंने कभी ऐसा नहीं लिखा। फिर आपके ही अलम्बरदारों ने होटल निसर्ग में मुझे उस विषकन्या के जरिए क्यों बुलवाया?
अवधेश बजाज की लंगोट इतनी कच्ची नहीं है कि किसी दो कौड़ी की कॉलगर्ल के लिए उस होटल में चला जाता। क्राइम ब्रांच के छोटे अफसरों से लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी साथियों ने मुझे बताया कि ‘अवधेश भाई, अगर आप होटल चले जाते तो न केवल आपको ब्लैकमेल किया जाता बल्कि आपकी हत्या भी हो सकती थी।

यही बात निसर्ग होटल के लोगों ने भी बताई। उसने क्राइम ब्रांच को बताया कि ग्वालियर के नंबर एमपी-07 की एक स्कॉर्पियो और भोपाल के नंबर वाली एक लाल रंग की टोयोटा गाड़ी तीन दिन तक होटल की पार्किंग में खड़ी थी। इन गाडिय़ों में आए लोग होटल के दो कमरों में तीन दिन तक ठहरे थे। उस विषकन्या ने मुझे नौ एसएमएस किए कि सात बज गए हैं, मैं कल इंदौर चली जाऊंगी, प्लीज रात में आ जाना। वो मुझे परेशान करती रही। इस माफिया तथा सत्ता प्रतिष्ठान के भड़वों से मैं कहना चाहता हूं कि यदि वे अपने स्वयं के बाप के वीर्य से पैदा हुए हैं तो मुझसे सामने आकर लड़ाई करें, मैं सहर्ष इसे स्वीकारूंगा। क्योंकि मौत का कोई भय मुझे कभी नहीं रहा। मैंने जीवन में जो कुछ किया, खुलेआम किया। लोग कंबल ओढ़कर शराब पीते हैं, मैंने सरेराह जब मर्जी हुई, तब शराब पी।

यह स्वीकारने में मुझे कोई गुरेज नहीं है। मैंने हमेशा से ईमानदारी के साथ लेखन को प्राथमिकता दी। आज पूरे देश में मेरे हजारों शिष्य हैं, जो मध्यप्रदेश ही नहीं, देश के विभिन्न मीडिया हाउस में बड़े पदों पर काम कर रहे हैं। 27 साल के पत्रकारिता के जीवन में यह पहला मौका था, जब मैं भीतर से हिल गया। जिंदगी और मौत से जूझते वक्त मुझे चर्चिल की वह पंक्ति याद आती है ‘पूरा संसार, पूरी सृष्टि, पूरी व्यवस्था आपके खिलाफ हो जाए, तब भी वह आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, बशर्ते आपका अंत:करण ईमानदार होना चाहिए।

मेरा अंत:करण पूरी तरह ईमानदार है। मैं आत्ममुग्ध भी नहीं हूं। यदि किसी को लगे कि यह बातें जो मैं कर रहा हूं, वह आत्ममुग्धता के कारण हैं, तो यह उसकी गलतफहमी है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था में इतना एरोगेंस आ गया है, इस कदर असहनशीलता तथा नफरत का भाव आ गया है कि इंदौर का एक मंत्री यह कहता है कि ‘माफी हमारे शब्दकोष में नहीं है। जब हम इंदौर में हिंदुस्तान टाइम्स की बिल्डिंग में घुसकर रिपोर्टर अनिल दुबे की पिटाई कर सकते हैं तो अवधेश बजाज की सुपारी देने में हमें कोई देर नहीं लगेगी। मालवा के इस मंंत्री से मेरे और मेरे परिवार के 26 साल के रिश्ते हैं। मैं एक अखबार के मालिक के हस्तिनापुर से बंधा हुआ था। वह अखबार मालिक उस समय इंदौर में था। उसने पत्रिका में इसी मंत्री के खिलाफ कोई खबर देखी। उसका सुबह साढ़े नौ बजे मेरे पास फोन आया। उसने कहा ‘अवधेशजी, आपका इस मंत्री से कोई शुभ-लाभ का नाता तो नहीं है?Ó मैंने जवाब दिया ‘मैं शुभ-लाभ का रिश्ता नहीं रखता हूं। मैं दोस्ती दिमाग से नहीं दिल से करता हूं।
वो मंत्री मेरे मित्र हैं और आज से नहीं बीते 26 साल से यह संबंध है। वे कॉलेज में मेरे सीनियर थे। जिस समय उन्होंने पार्षद का चुनाव लड़ा था, तब मैं दैनिक भास्कर में सेंट्रल डेस्क का काम सीख रहा था। तब से आज तक मेरा उनसे रिश्ता रहा है।Ó उक्त अखबार मालिक ने कहा कि ‘इस मंत्री के खिलाफ पत्रिका में खूब खबरें छप रही हैं। इसमें अकड़ है। यह इंदौर में हमारे अखबार की लांचिंग के समय बार-बार बुलाने पर भी नहीं आया। इसके खिलाफ खबर की जानी चाहिए। मैंने पहले ही लिखा है कि खबरों के साथ मैं कोई समझौता नहीं करता हूं, लेकिन डायन भी एक घर छोड़कर चलती है। मैंने अखबार मालिक की बात को सहर्ष स्वीकारा और कहा ‘जो आपका आदेश।

संभवत: उस दौरान इंदौर में डेंटल कॉलेजों के मालिकों की कोई बैठक चल रही थी। ये अखबार मालिक उस बैठक में आए थे। मैंने करीब बीस मिनट बाद उस अखबार के इंदौर के संपादक विकास मिश्र और सिटी चीफ रोहित तिवारी को फोन किया। उनसे कहा कि इस मंत्री के खिलाफ जितनी भी खबरें हैं, वो मुझे हर हाल में शाम तक चाहिए। इस पर उन्होंने तपाक से पूछा ‘वो मंत्री तो आपके पारिवारिक मित्र हैं। मैंने जवाब दिया ‘वह सब छोड़ो, खबर लिखने के लिए ऊपर से आदेश है। तेरह दिन तक मंत्री के खिलाफ खबरें छपने का सिलसिला चलता रहा।

खबरों की वजह से मंत्री से लेकर आईएएस अफसर तक मुझे जान से मारने की धमकी देते हैं
मुख्यमंत्रीजी, आपके बचपन के मित्रों के कारण चार महीनों से चुप था, लेकिन अब और नहीं...

माननीय शिवराज जी, आप भले इंसान हैं। मैंने अपनी लेखनी में सब कुछ लिखा होगा, लेकिन आपको कभी भी भ्रष्ट और अनैतिक नहीं बताया होगा। आपके परिवारजनों और मुख्यमंत्री निवास पर पलने वाले मानस-हीन सलाहकारों के कई काले कारनामे मैंने जरूर उजागर किए हैं। बिना टेंडर के 700 करोड़ की बिजली खरीदने का मामला सबसे पहले बिच्छू डॉट कॉम ने उठाया था, जिसमें तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी और बिजली विभाग में सालों से जमे संजय बंदोपाध्याय के खिलाफ मुहिम चलाई थी।

इस बीच उक्त मंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से उस अखबार के मालिकान के बारे में अभद्र और अश्लील टिप्पणी कर दी। इससे मालिकों का गुस्सा और भड़क गया। इन तेरह दिन में इंदौर में अखबार का सर्कुलेशन अचानक बढ़कर 32 हजार पर पहुंच गया। फिर शुरू हुआ हॉकर्स के साथ मारपीट करने और अखबार छीनने का सिलसिला। यह सिलसिला लगातार चलता रहा। हालांकि, मेरे मन को अच्छा नहीं लगा और मुझे यह भी लगा कि मैं पाप कर रहा हूं, लेकिन जब आप मालिकान के हस्तिनापुर से बंध जाते हैं तो यह पाप करना पड़ता है।
एक दिन अचानक उक्त मालिकान ने सूचना दी कि अब उस मंत्री के खिलाफ नहीं लिखना है। पत्रिका अखबार में फिर भी इस डॉन मंत्री के खिलाफ छपता रहा। हुआ कुछ भी नहीं, लेकिन मेरा 26 साल का रिश्ता इस मंत्री से गया। मुझे आत्मग्लानि नहीं, बल्कि इस बात का दु:ख है कि 26 साल पुराना मेरा यह मित्र मेरे अन्य मित्रों से कह रहा है कि मेरी हत्या कराने में उसे ज्यादा देर नहीं लगेगी। इस कारण अब जब मैं इंदौर जाता हूं, तो पूरी सुरक्षा के साथ जाता हूं। हालांकि, इस मामले में मुझे ये अच्छा भी लगा कि कम से कम कोई मर्द तो मेरे सामने कह रहा है कि मौका लगा तो अवधेश बजाज की हत्या करवा दूंगा।
लेकिन बीते दो महीने में जिन लोगों ने विषकन्या के जरिये मेरे चरित्र हनन और हत्या का षड्यंत्र रचा, वे संभवत: अपने पिता के वीर्य से पैदा नहीं हुए हैं। मेरा चरित्र हनन करने वालों को बता देना चाहता हूं कि वे अपने गिरेहबान में झांकें, अपने मां-बाप का चरित्र देखें। या तो उनकी मां चरित्रहीन होगी या उनका पिता। अब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। माननीय शिवराज जी, आप भले इंसान हैं। मैंने अपनी लेखनी में सब कुछ लिखा होगा, लेकिन आपको कभी भी भ्रष्ट और अनैतिक नहीं बताया होगा। आपके परिवारजनों और मुख्यमंत्री निवास पर पलने वाले मानस-हीन सलाहकारों के कई काले कारनामे मैंने जरूर उजागर किए हैं। मुझे अच्छी तरह याद है कि बिना टेंडर के 700 करोड़ की बिजली खरीदने का मामला सबसे पहले बिच्छू डॉट कॉम ने उठाया था, जिसमें तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी और लगभग सोलह साल से बिजली विभाग में जमे संजय बंदोपाध्याय के खिलाफ मुहिम चलाई थी। बंदोपाध्याय के खिलाफ मेरे चार-पांच एडिशन में मुहिम चली तो शिवराजजी आपने ही भरी बैठक में उनसे बोला था कि ज्यादा मत बोलो, मैं तुम्हारे बारे में सब जानता हूं। इसके बाद तीसरे ही दिन आपने संजय बंदोपाध्याय को हटा दिया। इसी बंदोपाध्याय ने मुझे तमाम प्रलोभन दिए, इसी राकेश साहनी ने मुझसे मिलने की इच्छा जताई थी, लेकिन मैंने मना कर दिया

जब यह मुहिम चल रही थी तो मेरे पास यह सूचना भिजवाई गई कि बंदोपाध्याय मेरे खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने जा रहे हैं। मैं हंसकर रह गया। इसके बाद मेरे पास संदेश आया कि बंदोपाध्याय ने खुद को एमएसीटी का पढ़ा हुआ बताते हुए कहा है कि अवधेश बजाज के हाथ-पैर तुड़वा दूंगा। मुझे अच्छा लगा कि कोई तो मर्दानगी के साथ बात कह रहा है।

मैं अपनी प्रियतमा शराब के कारण बार-बार अस्पताल से बा-वस्ता होता रहा हूं। मुझे अच्छी तरह याद है कि एक बार मैं एक नर्सिंग होम में भर्ती था। वहां तीन दिन बाद मुझे सूचना मिली कि एक आईएएस अफसर ने अस्पताल के मालिक को फोन किया। वे अपने किसी रिश्तेदार को दिखाने आ रहे हैं। अफसर जिस समय डॉक्टर के चेम्बर में बात कर रहे थे, उसी समय मेरी पत्नी ने वहां प्रवेश किया। मेरी पत्नी डॉक्टर से बात करके चली गई। मेरी पत्नी के जाने के बाद इस अफसर ने यह पूछा यह कौन थी? डॉक्टर का जवाब था अवधेश बजाज की पत्नी। अफसर बोला यहां कैसे डॉक्टर बोला अवधेश बजाज यहां एडमिट हैं। उक्त अफसर का सवाल था ‘ये कमीना कब मर रहा है? वह आईएएस था, इसलिए डॉक्टर ने मुंहदेखी बात की। बोला ‘यूं तो मरा-मराया ही है, फिर भी आप कहें तो इंजेक्शन दे दूं।

फिर यही आईएएस एक रात मेरे दोस्त के फार्म हाउस पर शराब पीने गए। वहां रात को नशे में चूर होकर बोले ‘जब चाहे तब साले अवधेश बजाज को मरवा दूंगा। दूसरे दिन मैं अस्पताल से घर लौट चुका था। मेरे उस दोस्त का फोन आया और उसने इस बात पर नाखुशी जताई कि मैंने उसे अपने भर्ती होने की बात क्यों नहीं बताई। मैंने कहा कि चूंकि मैं बार-बार अपनी प्रियतमा शराब के कारण अस्पताल में दाखिल होता हूं, वहां लोग मुझे ज्ञान बांटते हैं, शुभचिंतक मेरी चिंता करते हैं, इसलिए मैं अब बार-बार लोगों को नहीं बताता कि मैं अस्पताल में भर्ती हूं। जब मेरे मित्र ने बताया कि एक आईएएस अफसर मुझे जान से मरवाने की बात कर रहा है तो मैं अवाक् रह गया। देर रात तक मैं सोचता रहा कि हमारा समाज कितना धैर्यहीन और असहिष्णु हो गया है कि सिर्फ मुद्दा आधारित खबरों पर इतना उद्वेलित हो जाता है। इसी तरह ग्वालियर, चंबल क्षेत्र के एक मंत्री हैं। वो सट्टाखोरी, नकली नोट काण्ड और लड़कीबाजी के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी महत्वाकांक्षा मुख्यमंत्री बनने की है। मैंने उनके खिलाफ कोई नामजद खबर नहीं दी। अलबत्ता गॉसिप कॉलम में तीन बार उनके खिलाफ छापा। वे मंत्री मेरे एक मित्र से बोले ‘अवधेश बजाज ब्लैकमेलर है। एक दिन मेरे पास 25 हजार का विज्ञापन मांगने आया था। मैंने मना कर दिया तो साला मेरे खिलाफ लिख रहा है। उक्त मित्र मेरे बुरे समय का एकमात्र दोस्त है। उस मित्र ने मंत्री से पूछा कि क्या तुम अवधेश बजाज को चेहरे से जानते हो? मंत्री का जवाब था ‘क्यों नहीं, वो ही तो मेरे पास विज्ञापन मांगने आया था। दूसरे ही दिन मेरा वह मित्र चार इमली पर घूमते हुए मंत्री को बहाने से मेरे घर ले आए और मुझे उनसे मिलवाया। मित्र ने उस मंत्री से जब मुझे बा-वस्ता कराया तो मंत्री का चेहरा देखने लायक था। इस वाकिये से मंत्री को उत्तर मिल गया था।

शिवराजजी, मैं यह किस्सागोई इसलिए कर रहा हूं कि आपके मातहत काम करने वालों के झूठे होने की एक तस्वीर प्रस्तुत कर दूं। मैं बीते चार माह से संघ के नेताओं और मुख्यमंत्री निवास पर बैठे हुए मेरे कुछ मित्रों तथा आपके बचपन के मित्रों के कारण चुप था, लेकिन मुझे लगा कि मौन रहना भी एक गुनाह है। मेरी आवाज, मेरे अंत:करण की टीस मेरी लेखनी में इसलिए आती है कि सार्वजनिक जीवन में जिनको हमने चुना है, वे लुटेरे जनता की खून-पसीने की कमाई को लूट नहीं सकते और खासकर मुख्यमंत्री निवास पर बैठकर तो बिलकुल ही नहीं।
आपके मुख्यमंत्री निवास पर पाखंड का ऐसा बोलबाला है कि वहां बैठी महामाई और आपके मानस-हीन ‘गिरजा, छोटू, लाला और दो अफसरान ने आपको धृतराष्ट्र बना दिया है। मेरे बचपन के एक मित्र हैं। कॉलेज के दिनों में वे मुझसे दो साल सीनियर थे।

शिवराज जी, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं आप और आपकी सरकार

शिवराज के साले ने एक करोड़ में दिलाया एक अफसर को आईएएस अवार्ड और कलेक्टरी
मुख्यमंत्री निवास में पदस्थ दो अफसर सिर्फ ट्रांसफर-पोस्टिंग में ही मलाई चाट रहे हैं

योजनाएं कागजों के जंगल में गुम हो गई हैं। नौकरशाह मजे कर रहे हैं। जो मुख्यमंत्री निवास में महामाई की चप्पल उठा रहे हैं, उनसे जुड़ी नौकरशाही पूरे प्रदेश में मौज कर रही है। बाकी जनप्रतिनिधि जूते खा रहे हैं, विधायक नाम की संस्था समाप्त हो गई है। गरीब और समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति की आवाज सत्ता के गलियारों और पूंजीपतियों की तिजोरी में बंद हो गई है। गरीबों की अंगीठियां बुझ रही हैं। आपके राज में लूट मच गई है

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