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Monday, October 29, 2012

पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर एवं ब्यानों से अपराध नहीं बनता


चार्ज पर डिस्चार्ज हुआ दुराचार का आरोपी

पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर एवं ब्यानों से अपराध नहीं बनता
न्यायालय का कैरिकेचर लगाएं

बैतूल से भारत सेन की रिपोर्ट........8989171913
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बैतूल। कानून एवं न्याय का यह सुस्थापित नियम हैं कि निर्दोष व्यक्तियों पर अदालत में मुकदमा नहीं चलना चाहिए। निर्दोष व्यक्तियों को न्यायालय की प्रक्रिया का सामना करने के लिए मजबूर करना कानून की आड़ में अत्याचार हैं, न्याय के नाम पर अन्याय हैं और मानवाधिकारों का हनन हैं। पुलिस द्वारा दुराचार का एक ऐसा आरोप पत्र न्यायालय में पेश किया जिसे स्वीकार कर लिया जाए तब भी सजा नहीं सुनाई जा सकती हैं। विचारण न्यायालय द्वारा आरोपी के विरूद्ध आरोप तय करते समय यह पाया गया किएफआईआर एवं पुलिस कथनों के आधार पर भारतीय दण्ड विधान का कोई अपराध गठित नहीं होता। न्यायालय द्वारा आरोपी को दुराचार के आरोप से उन्मोचित कर देने के बाद अब यह सवाल उठने लगा हैं दुराचार की राष्ट्रीय राजधानी के नाम पर बदनाम बैतूल जिले में भारतीय दण्ड विधान में दर्ज अपराध धारा 376 का दुरूपयोग आखिर कब तक जारी रहेगा? 
पुलिस थाना बैतूल के अपराध क्रमांक 428/12 में फरियादी ने पुलिस चौकी गंज में रिपोर्ट लिखवाई कि उसके पति की नौकरी छूट जाने से वह आरोपी रमेश मिस्त्री के साथ मजदूरी करती थी। रमेश ने प्रस्ताव दिया कि वह पत्नी बनाकर रखेगा जिसे फरियादी ने स्वीकार कर लिया। आरोपी ने बाद में शादी करने से इंकार कर दिया। फरियादी की रिपोर्ट एवं ब्यानों के आधार पर आरोपी रमेश पिता बारेलाल के विरूद्ध अपराध धारा 376 भारतीय दण्ड विधान का अपराध कायम कर विवेचना उपरांत पुलिस द्वारा आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया गया।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश बैतूल के सत्र प्रकरण क्रमांक 164/12 में आरोपी के विरूद्ध आरोप तय किए जाने की स्थिति पर विद्वान न्यायाधीश अभिनंदन कुमार जैन द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 226 के तहत अभियोजन एवं बचाव पक्ष को सुना गया। विद्वान न्यायाधीश ने आरोपी के विरूद्ध पेश किए गए पुलिस दस्तावेजों का अवलोकन करते हुए यह पाया गया कि आरोपी पेशे से राजमिस्त्री का काम करता हैं। फरियादी उसके साथ मजदूरी करती थी तथा उसने पति ने छोड़ दिया था। वह आरोपी को अपना पति बनाना चाहती थी जिसके लिए वह तैयार नहीं था। दबाव बनाने के लिए मामला बनवाया हैं। पीडि़ता की आयु 32 वर्ष हैं और पीडि़ता ने आरोपी के इस आश्वासन पर कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया हैं, वह परेशान हैं यादि उसकी पत्नी बन जायेगी तो उसे परेशान नहीं होना पड़ेगा। इस प्रस्ताव को स्वीकार कर पीडि़ता सहमत पक्षकार बन गई। आरोपी किसी कारण वश विवाह करने से मना कर देता हैं तो उसका पूर्व का कृत्य दुराचार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता हैं। इस तरह पीडि़ता की रिपोर्ट एवं पुलिस कथन भारतीय दण्ड विधान में दुराचार की परिधि में नहीं आते हैं। 

विद्वान न्यायिक अधिकारी द्वारा अभियोग पत्र के आधार पर आरोपी के विरूद्ध धारा 376 अथवा अन्य कोई अपराध प्रारंभिक तौर पर नहीं बनना पाये जाने से आरोपी को कथित धारा 376 भारतीय दण्ड विधान से दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 के अंतर्गत उन्मुक्त किया गया। आरोपी की ओर से अधिवक्ता राजकुमार यादव ने पैरवी की हैं।

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