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Sunday, December 6, 2015

अनाडिय़ों के हाथ में फंसी अरबों की त्योंथर बहाव योजना

पेटी पर चल रहा मेंटेना का काम
रीवा। प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी त्योंथर बहाव योजना काम शुरू होने के साथ ही गुणवत्ता को लेकर सवालों के घेरे में फंसती जा रही है। इसका कारण  निर्माता कम्पनी मेंटेना की मनमानी है। बताया जाता है कि अरबों रूपये लागत की उक्त योजना का काम कम्पनी खुद करने की बजाय नियम और गाईड लाइन के विरूद्ध उन हाथो में सौंप दिया है। जिन्हें इस तरह के काम का कोई अनुभव नही। लिहाजा योजना के तहत बनाई जा रही नहर और अन्य निर्माण कार्यो की गुणवत्ता का अंदाजा विना किसी के बताये जा सकता है।
 तराई क्षेत्र को हरा भरा बनाने और हर खेत तक बाणसागर का पानी पहुंचाने के लिए सिरमौर से वहां के लिए नहर बनाई जा रही है। त्योंथर बहाव के नाम से बनी इस योजना का काम मेंटेना क म्पनी को सरकार द्वारा दिया गया है। 229 करोड़ की इस योजना का काम कम्पनी कर रही है। तकरीबन साल भर से कम्पनी द्वारा शुरू हुये काम में इसकी  मनमानी अधिक और शासन की गाईड लाइन  और नियम कम ही नजर आ रहे है। बात हवा में नहीं प्रमाण के साथ कही जा रही है।
क्षमता प्रमाण पत्र सावित हो बेमानी
काम देने से पहले  सरकार कम्पनी के अब तक के कामो का मूल्यांकन करती है। कसौटी पर जब यह बात साबित हो जाती है कि उक्त कम्पनी अनुभव  व क्षमता इसके काबिल है तब उसे दिया जाता है। ऐसा नही है कि जो चाहे इतने बड़े काम में हाथ लगा दे और सरकार उसे सौंप देगी। काम से पहले सरकार अपनी तमाम क्षमता और अनुभवों का प्रमाण पत्र सौंप कर सामने आने वाली कम्पनी काम पाने के बाद मनमानी पर उतर आई है। आलम यह है कि उक्त योजना का काम खुद करने की बजाय मेंटेना कम्पनी ऐसे लोगो और एजेन्सीयों से करा रही है जो इसके बारे मे कुछ भी नही जानते है। बस कुछ मशीनरी और लेबर लेकर वह काम में जुट गये है। परिणाम भी इसी तरह सामने है। जरूरत है तो बस जांच करने की।
कमीशन का खेल
ठेके पर ठेका कमीशन के खेल का एक नया तरीका है। मुख्य कम्पनी शासन मिलने वाले रेट से कम पर दूसरे हाथों को काम सौंप देती है और बिना कुछ किये मजा काटती है। दूसरी तरफ कम पैसे पर काम लेने वाले उसी से अपना हिस्सा भी बचाते है इस तरह एक सौ रूपये का काम जब साठ रूपये में किया गया तो उसकी गुणवत्ता क्या होगी आप खुद समझ सक ते है। यही सब खेल 229 करोड़ की त्योंथर बहाव योजना के साथ मेंटेना कम्पनी खेल रही है। कम्पनी तो अपना हिसाब कर करोड़ो रूपये कमाकर एक दिन यहां से चली जायेगी और खमियाज यहां की जनता को भुगतना पड़ेगा। उक्त योजना के पानी के साथ अपनी किस्मत जोड़ रहे है। उनकी ऑखे तब फटी की फटी रह जायेगी जब उन्हें पता चलेगा कि उनका सपना तो कम्पनी के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बाद में भले ही वह सरकार और प्रशासन को कोसते रहे, उन्हें फिर मिलने वाला कुछ नही।
जनता को आना होगा आगे
कम्पनी का काम ठीक ठाक चले और उनका भविष्य संवारने वाली नहर मानक के अनरूप बने इसकी  जम्मेदारी जनता की भी है। सिर्फ शासन व प्रशासन के  भरोसे उन्हें नही बैठना चाहिए। इससे संबंधित नहर और अन्य निर्माण कार्यो में जहां भी कमी समझ में आए जनता को जवाब देह और संबंधित अधिकारी के पास अपनी अपत्ति दर्ज करानी चाहिए। यह सिर्फ उनका अधिकार ही नही कर्तव्य भी है।
इनका कहना है
त्योंथर बहाव योजना का काम मेंटेना कम्पनी द्वारा किया जा रहा है। कम्पनी के कामों की जांच की जाती है। जहां कमी समझ में आती है उसे सुधरवाया जाता है। कम्पनी पेटी कॉन्टे्रक्ट पर काम करा करा रही है। इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। यह जांच के बाद ही पता चलेगा।
अरबिंद त्रिपाठी  कार्यपालन यंत्री त्योंथर नहर  संभाग सिरमौर।

निर्माण कम्पनी मेंटेना मनमानी पर उतारू
त्योंथर बहाव योजना में घटिया मटेरियल का प्रयोग
रीवा। अरबो रूपये की लागत से बनाई जा रही  त्योंथर बहाव योजना की नहर में गुणवत्ताहीन मटेरियल का प्रयोग किया जा रहा है। कम्पनी द्वारा शासन से निर्धारत मानक के इतर मटेरियल लगाये जा रहे है। बात चाहे लोहा, गिट्टी व सीमेन्ट के अनुपात की हो सब पर आरोप लग रहे है। इस तरह कम्पनी की मनमानी के चलते नहर का निर्माण गुणवत्तापूर्ण नही हो रहा है। सामने आ रही इन बातों की उच्चस्तरीय जांच के बाद हकीकत सामने होगी।
 बताया जाता है कि कम्पनी द्वारा जिन कामों को दूसरे स्थानीय ठेकेदारों को सौंपा गया है। वह इसमें अधिक मनमानी कर रहे है। कम्पनी द्वारा उनको काम कराने के लिए निर्धारित दर से मिलने वाली राशि में वह अधिक बचाने के लिए उन तमाम तरीको का इस्तेमाल करते है जिससे उनकी मंशा सफल हो जायें। नतीजा यह निकलता है कि काम गुणवत्तापूर्ण होने की जगह घटिया रहता है।
बलुकन गिट्टी का प्रयोग
नहर में कराये जा रहे कामों में उपयोग की जानी वाली गिट्टी बालुदार पत्थरों की होती है। जबकि शासन के नियम के मुताबिक इस काम में काले पत्थरों की गिट्टी का प्रयोग किया जाना है। बलुकन गिट्टी कमजोर होती है। वह दवाव पडऩे पर जल्दी टुट जाती है। जबकि काली गिट्टी में यह क्षमता अधिक होती है। कम्पनी अपने फायदें के  लिए आस-पास के केसरों से सस्तें दामों में मिलने वाली घटियां गिट्टी खरीदती है। और उसी से निर्माण कार्य कराया जाता है।
अनुपातहीन सीमेन्ट का उपयोग
नहर  व अन्य निर्माण कार्यो में सीमेन्ट की अलग-अलग जगह उपयोग के अनुपात का निर्धारण गाइड लाइन में है। कम्पनी को उसी आधार पर सीमेन्ट का अनुपात बनाये रखना चाहिए । जबकि कम्पनी इस अनुपात का ध्यान नही देती है। इसी तरह लोहे के उपयोग में भी अनियमितता की जा रही है। शासन के नियम के मुताबिक इस काम में अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग साइज के लोहे का प्रयोग किया जाना है। जिसमें कम से कम 10 एमएम से लेकर 32 एमएम तक की सरियां शामिल है। इसके साथ ही कई जगहों में 12 और 16 एमएम मोटाई की छड़ो का प्रयोग होना है। बताया जाता है कि कम्पनी लोहे की निर्धारित साइजों की जगह कम मोटाये के छड़ों का प्रयोग कर रही है। जिससे काम की गुणवत्ता में कमी है। अब तक कम्पनी द्वारा अलग-अलग स्थानों कराई गये तकरीबन 15  से 20 फीसदी काम की जांच होनी आवश्यक है जिससे लग रहे  आरोपों की सच्चाई सामने आ जायें।

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