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Friday, May 20, 2016

शिवराज सरकार के मंत्री भ्रष्ट्रो मे सरवोत्तम का एक और कारनामा

💰इन्दौर सीवेज प्रोजेक्ट में मंत्री नरोत्तम मिश्रा को मिले 26.70 करोड़ रुपए
जबलपुर. इन्दौर शहर में सीवरेज प्रोजेक्ट के ठेके के एवज में तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री नरोत्तम मिश्रा को 26 करोड़ 70 लाख रुपए दो कंपनियों से मिले थे। इस बेनामी आय से संबंधित मामले का खुलासा होने पर इन्कम टैक्स विभाग ने मंत्री के खिलाफ कार्रवाई शुरु की। विभाग के आंकलन अधिकारी के बाद आयकर आयुक्त और आयकर अपीलीय अधिकरण के यहां से आए आदेशों के बाद यह मामला हाईकोर्ट में दायर हुआ, जो फिलहाल विचाराधीन है।            

इस मामले पर अगली सुनवाई ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद होगी। आयकर विभाग ने 21 जुलाई 2008 को एक मुकेश शर्मा नामक व्यक्ति के यहां छापा मारा था। उसके यहां से बड़ी संख्या में दस्तावेज बरामद हुए, जिससे यह पता चला कि नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा इन्दौर में सीवेज प्रोजेक्ट के दिए गए ठेके में मुकेश ने लाइजनिंग एजेन्ट की भूमिका निभाई थी। दस्तावेजों से यह भी पता चला कि यह ठेका मे. नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और मे. सिम्पलैक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर लि. को दिया गया था। इसके लिए नगरीय प्रशासन मंत्री नरोत्तम मिश्रा को क्रमश: 16 करोड़ 20 लाख और 10 करोड़ 50 लाख रुपए कंपनियों से मिले थे।

पीएस को लगा है झटका
इस ठेके में तत्कालीन प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव को भी 2.21 करोड़ रुपए दोनों कंपनियों ने दिए थे। खुलासा होने पर आयकर विभाग ने उन्हें नोटिस देकर कहा था कि वे वर्ष 2009-10 के वर्ष टैक्स का निर्धारण करने दस्तावेज पेश करें। इस कार्रवाई को चुनौती देकर मलय श्रीवास्तव ने एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी। हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर के मलय श्रीवास्तव आंकलन अधिकारी के सामने हाजिर होकर अपनी बात रखें। यदि वे जांच अधिकारी के आदेश से संतुष्ट नहीं होते तो कानून में मौजूद विकल्पों के तहत उसे चुनौती देने स्वतंत्र होंगे।

‘बेनामी आय और निवेश में फर्क’
आयकर आयुक्त की ओर से दायर अपील पर 10 फरवरी 2016 को चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की युगलपीठ ने सुनवाई की। सुनवाई के दौरान विभाग के अधिवक्ता संजय लाल का कहना था कि अधिकरण ने बेनामी आय और बेनामी निवेश को मत भिन्नता बताकर दरकिनार कर दिया, जो गलत था। प्रकरण का अवलोकन करके युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि विभाग की ओर से दी गई दलीलें से हम प्रथम दृष्टया सहमत हैं। चूंकि इस मामले में कानून के कुछ अहम सवाल जुड़े हैं, इसलिए इस मामले को विचारार्थ स्वीकार किया जा रहा है।

महापौर और आयुक्त भी दायरे में
मलय श्रीवास्तव की याचिका पर दिए फैसले में हाईकोर्ट ने मुकेश शर्मा के घर से बरामद हुए एक दस्तावेज का भी जिक्र किया था। दस्तावेज से साफ था कि तत्कालीन मंत्री को ठेके की 6 फीसदी राशि, प्रमुख सचिव को 1.25 फीसदी, नगरीय प्रशासन आयुक्त को आधा फीसदी, महापौर को 1 फीसदी और आयुक्त को आधा फीसदी राशि बतौर कमीशन दी गई थी। इस पर चारों के खिलाफ आयकर विभाग ने कार्रवाई शुरु की। इन्कम टैक्स की कार्रवाई को लेकर इन्दौर की तत्कालीन महापौर उमा शशि शर्मा और आयुक्त नीरज मंडलोई ने भी हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। फिलहाल ये याचिकाएं विचाराधीन हैं और उनकी सुनवाई भी ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद होगी।

हाईकोर्ट क्यों आया मामला
मंत्री नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ इन्कम टैक्स विभाग के आंकलन अधिकारी ने आयकर निर्धारण को लेकर आदेश पारित किया। जब मामला आयुक्त प्रशासनिक के पास पहुंचा तो उन्होंने 31 दिसंबर 2012 को आंकलन अधिकारी के आदेश को सही न पाते हुए फिर से फिर से टैक्स का निर्धारण करने कहा। उनका मानना था कि आंकलन अधिकारी ने सिर्फ बेनामी निवेश की ही जांच की है। जो मंत्री नरोत्तम मिश्रा को 26 करोड़ 70 लाख रुपए की बेनामी आय हुई, उसके बारे में कुछ नहीं लिखा गया। आयुक्त प्रशासनिक के इस आदेश को नरोत्तम मिश्रा ने आयकर अपीलीय अधिकरण में चुनौती दी। अधिकरण ने 25 नवम्बर 2014 को आयुक्त प्रशासनिक के आदेश को गलत ठहराते हुए खारिज कर दिया। इस पर आयकर आयुक्त की ओर से यह अपील हाईकोर्ट में दायर की गई।

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