Wednesday, January 18, 2012

बात शरम की नहीं करम की है

   डॉ. शशि तिवारी
                जब एक देश का प्रधानमंत्री सरकारी कार्यक्रम में यह कहे कि कुपोषण देश के लिए ‘‘राष्ट्रीय शर्म’’ है तो बड़ा हास्यादपद एवं दिल को दुखाने वाला लगता है। हास्यादपद इसलिए कि शक्तिशाली देश का मुखिया कितना लाचार है? कितना बेबस है। लाचारी, बेबसी से देश नहीं चला करते है। जब जनता ईमानदारी से टैक्स अदा करती है तो उसे भी अधिकार है कि वो जाने ये सब कुछ क्यों हो रहा है? असली जिम्मेदार कौन है? उन्हें सजा क्यों नही दी जाती? हमारी गाढ़ी कमाई के लुटेरे कौन है? जब जनता ने लोकतंत्र में विश्वास जता जनप्रतिनिधियों को नियंता मान भेजा है फिर सरकार से ऐसे वक्तव्य आते है, मसलन महंगाई को हम काबू में नहीं कर पा रहे, मिलावटखोरों पर नकेल नहीं कस पा रहे, मुनाफाखोरों पर बस नहीं चल पा रहा, पेट्रोल कंपनियों को छुटटा सांड की तरह छोड़ दिया है जो निरीह जनता को जब चाहे अपने सींगों से घायल कर रहा है, खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही है, चारों और भ्रष्टाचार का हाहाकार मचा हुआ है तब दिल दुखता है। ऐसे नाजुक मौंकों पर जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी से भागते, बचते नजर आए तब लगता है ‘‘करे कोई भरे कोई’’ जब किसी पर बस नहीं चलता तो क्यों नही सभी जिम्मेदार लोग इस्तीफा दे जनता के पाले में क्यों खड़े नहीं हो जाते। क्यों नहीं अपने करम की जनता से माफी मांगते?
                 आज गरीब देश के अमीर जनप्रतिनिधि एवं मंत्री लाखों रूपया बाकायदा सेवा के नाम पर पगार के रूप में लेते है साथ में पेंशन भी लेते है। जनता का पैसा खा-खाकर नेता तो मस्त हो रहे है लेकिन भारत के नौनिहाल बच्चे कुपोषण का शिकार हो पस्त होते जा रहे है।
                 देश के प्रधानमंत्री कहते है ‘‘आज देश में 6 वर्ष से कम आयु के करीब 16 करोड़ बच्चे है कल वे ही वैज्ञानिक किसान, शिक्षक, डेटा आपरेटर, काश्तकार, सेवा प्रदाता आदि बनेंगे और कुपोषण की ऊंची दर के साथ कोई देश स्वस्थ्य भविष्य की उम्मीद नहीं कर सकता।’’ भूख तथा कुपोषण पर हगामा (हंगर एंड माल न्यूट्रिशन) ने 9 राज्यों के 112 जिलों एवं 73 हजार घरों का सर्वेक्षण कर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस अध्ययन रिपोर्ट में पाया गया कि पांच वर्ष से कम के 42 प्रतिशत बच्चे सामान्य से कम वजन के पाए गए एवं 59 प्रतिशत बच्चे निर्धारित ऊंचाई से भी कम पाए गए। इस लिहाज से दुनिया में कुपोषण का शिकार हर तीसरा बच्चा भारतीय है। यह बात भी सही है पहले यह दर 53 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में यह तथ्य भी खुलकर सामने आया कि कुपोषण की स्थिति उन परिवारों में ज्यादा खराब थी जिनकी आय कम थी। साथ-साथ यह स्थिति अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा गरीब मुस्लिम परिवारों में ज्यादा भयावह थी। 66 प्रतिशत माताओं ने तो कभी स्कूल में शिक्षा ही नहीं पाई, लेकिन पढ़ी-लिखी माताओं के घर में कुपोषण की स्थिति का स्तर कम था। .प्र. के 12 जिले बड़वानी, पन्ना, उमरिया, झाबुआ, डिण्डोरी, टीकमगढ़, छतरपुर, गुना, शिवपुरी, भिण्ड, विदिशा एवं इन्दौर है। इनमें बडवानी एवं उमरिया की स्थिति सबसे गंभीर है।
                 महिला बाल कल्याण विकास ने उच्चतम न्यायालय में एक प्रकरण में बताया कि देश में 59 प्रतिशत बच्चे 11 लाख आंगन बाड़ियों केन्द्रों के माध्यम से पोषण आहार ले रहे है। वही मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि देश के 80 प्रतिशत बच्चों को आंगनबाडी केन्द्रों का लाभ मिल रहा है। एक आंकड़े के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर प्रति हजार नाईजीरिया में 183, पाकिस्तान 109, भारत 93, बांग्लादेश 77, इण्डोनेशिया 45, मिस्त्र में 41, ब्राजील में 36 है।
                 बच्चों एवं माताओं की बेहतरी के लिए यू तो ढेरों योजनाएं केवल चल रही है बल्कि भारी भरकम बजट भी इसके लिए है लेकिन फिर भी ऐसी शर्मनाम स्थिति आखिर क्यों?
                 मध्यप्रदेश में तो बाकायदा अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन के तहत् 100 करोड़ का बजट है। तब ऐसी स्थिति? 2009 में अक्टूबर, दिसंबर में झाबुआ जिले में जब 29 बच्चों के मौत की खबर छपी तब आयोग ने इसे संज्ञान में लिया। इसी तरह रीवा, सीधी में भी अधिकारियों द्वारा भी दिशा में अपने दायित्वों के सही, निर्वहन करने का भी मामला प्रकाश में आया। लेकिन ऐसे निकम्मों पर कार्यवाही का नतीजा सिफर ही रहा। केन्द्र सरकार को इस ओर अधिक से अधिक ध्यान देना होगा।
                 सभी राज्यों को बजट आवंटन में विशेष प्रावधान रख सुनियोजित ढंग से कड़ाई से भेजे गए धन पर निगरानी भी रखनी होगी। इस दिशा में बरती गई लापरवाही को कड़ाई से निपटना होगा, फिर चाहे वह कितना ही बडा अधिकारी क्यों हो? जिम्मेदार मंत्रियों, अधिकारियों को यह भी देखना होगा कि चरणबद्ध कार्यक्रमों में क्या-क्या कमियां है उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है, कैसे सफलता का प्रतिशत जमीनी स्तर पर बढ़ाया जा सकता है।
                हकीकत तो यह है कि जब तक जच्चा-बच्चा स्वस्थ नहीं होगा तब तक हम कैसे स्वास्थ्य और शक्तिशाली राष्ट्र की कल्पना कर सकते है।
 (लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक हैं)
 मो. 09425677352

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